औद्योगिक प्रदूषण पर निबंध | Essay on Industrial Pollution in Hindi.

Essay on Industrial Pollution


Essay Contents:

  1. उद्योग प्रदूषण का परिचय (Introduction to Industrial Pollution)
  2. उद्योग प्रदूषण का स्रोत (Sources of Industrial Pollution)
  3. उद्योग द्वारा प्रदूषण (Pollution Caused by Industries)
  4. उद्योग प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Industrial Pollution)
  5. उद्योग प्रदूषण के उपाय (Control of Industrial Pollution)

Essay # 1. उद्योग प्रदूषण का परिचय (Introduction to Industrial Pollution):

गत सौ वर्ष में मनुष्य की जनसंख्या में मारी बढ़ोतरी हुई है । इस के कारण अन्न, जल, घर, बिजली, सड़क, वाहन और अन्य वस्तुओं की माँग के भी वृद्धि हुई है, परिणामस्वरूप हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड रहा है और वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण, बढता जा रहा है ।

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हमारी आज भी आवश्यकता है कि विकास की प्रक्रिया को बिना रो के अपने महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को खराब होने और इनको अवक्षय को रोवेंफ और इसे प्रदूषित होने से बचाएँ । प्रदूषण एवं उद्योग दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं । जहां उद्योग होगा, वहाँ प्रदूषण तो होगा ही । उद्योगों की स्थापना स्वयं में एक महत्वपूर्ण कार्य होता है । प्रत्येक देश में उद्योग अर्थव्यवस्था के मूल आधार होते हैं । यह जीवन की सुख-सुविधाओं, रहन-सहन, शिक्षा चिकित्सा से सीधे जुडा हुआ है ।

इन सुविधाओं की खातिर मनुष्य नित नए वैज्ञानिक आविष्कारों एवं नए उद्योग-धंधों को बढाने में जुटा हुआ है । औद्योगीकरण ऐसा ही एक चरण है, जिससे देश को आत्मनिर्भरता मिलती है और व्यक्तियों में समृद्धि की भावना को जागृत करती है । भारत इसका अपवाद नहीं है ।

सैकडों वर्षों की गुलामी ने हमें कुछ हनी दिया । कुशल कारीगरों की मेंहनत ने भी अपने देश को उन्नति के चरण पर नहीं पहुंचाया । सन् 1947 में आजाद देश ने इस दिशा में सोचा और अपने देश की क्रमबद्ध प्रगति के लिए चरणबद्ध पंचवर्षीय योजनाएं बनाई ।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1958-61) में देश में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ, जो निरंतर बढता ही रहा (आर्थिक मंदी के कारण इसमें शिथिलता भी आई) । एक सर्वेक्षण के अनुसार सत्रह समूहों में विभाजित हजारों बडे उद्योग (सही संख्या उपलब्ध नहीं) और 31 लाख लघु एवं मध्यम उद्योग वर्तमान में देश में कार्यरत हैं ।

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सभी उद्योग किसी-न-किसी प्रकार का उत्सर्ग पैदा करते हैं, जो प्रदूषण का कारण बनता है ।

साधारणतः उत्सर्ग निम्न में से एक या अधिक होते हैं:

उत्सर्ग जल:

विभिन्न उद्योग-धंधों से विभिन्न प्रकार के उत्सर्ग जल निकलते हैं ।

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सामान्य गुणों के आधार पर उत्सर्ग जल तीन प्रकार के होते हैं:

1. वे उत्सर्ग जल, जिसमें ठोस निलंबित अवस्था में हो ।

2. वे उत्सर्ग जल, जिसमें ठोस विलयन के रूप में हो ।

3. अधिक सांद्रण के विलियन वाले उत्सर्ग जल ।

उत्सर्ग जल की प्रकृति व संगठन, उद्योग पर आधारित रहता है ।

साधारणतः निम्न प्रकार के संगठन वाले उत्सर्ग जल विभिन्न उद्योगों से निर्गत होते हैं:

(a) कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाला उत्सर्ग जल-पेपर बोर्ड, स्टार्च आदि ।

(b) सायनाइड, क्रोमियम, निकिल की अधिकता वाला उत्सर्ग जल-इलेक्ट्रोप्लेटिग उद्योग ।

(c) विभिन्न रसायनों की अधिकता वाला उत्सर्ग जल-डिटरजेंट, कीटनाशक, उर्वरक, प्लास्टिक, पेट्रोलियम उद्योग ।

(d) नाइट्रोजन की अधिकता वाला उत्सर्ग जल-डेयरी उद्योग ।

अधिकांश उद्योगों में उत्सर्ग-जल के उपचार की उपयुक्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं है, जो प्रदूषण की दृष्टि से खतरनाक है । विभिन्न उद्योगों के उत्सर्ग चाहे वह जल हो अथवा ठोस, को क्रमानुसार सूचीबद्ध किया जा रहा है ।

पर्यावरण प्रदूषण एवं उद्योग (Environment Pollution and Industries):

भारत सरकार ने जल प्रदूषण की समस्या को हल करने के लिए कुछ प्रयास किए हैं, जिनमें प्रमुख वातावरण नियोजन एवं समन्वय की राष्ट्रीय समिति का गठन है, जो वर्तमान जल-प्रदूषण की समस्या को भविष्य में स्थापित होने वाली औद्योगिक इकाइयों की स्थिति का निर्धारण करेगी ।

प्रदूषण नियंत्रण की इन आवश्यकताओं के मद्देनजर भारत सरकार ने सन 1974 में जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम के अंतर्गत केंद्रीय जल प्रदूषण मण्डल का गठन किया ।

Essay # 2. उद्योग प्रदूषण का स्रोत (Sources of Industrial Pollution):

i. आयल रिफाइनरी उद्योग:

उत्सर्ग जल में तेल. क्षार, अमोनिया, फिनाइल, हाइड्रोजन, सलफाइड एवं कार्बनिक रसायन होते हैं । यह जलीय जीवों के लिए हानिकारक हैं । इसके कारण गंध व स्वाद भी खराब हो जाता है ।

ii. टेनरी उद्योग:

उत्सर्ग जल में हानिकारक रसायनों के अतिरिक्त क्रोमियम बाल, मांस आदि कोलायड अवस्था में रहते हैं ।

iii. स्टील मिल उद्योग:

उत्सर्ग जल में अमोनिया, फिनाइल, कार्बनिक एसिड, सायनाइड आदि रहते हैं । ठोस भी इस उत्सर्ग में काफी बडी मात्रा में निलंबित अवस्था में रहते हैं ।

iv. डिस्टलरी उद्योग:

उत्सर्ग जल में मुख्यतः कार्बनिक पदार्थ विलयन के रूप में रहते है । यह भारत का सबसे अधिक प्रदूषण कारक उद्योग है, क्योंकि इसमें उत्सर्ग जल प्रचुर मात्रा में होता है ।

v. इलेक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग:

उत्सर्ग जल की प्रकृति अम्लीय होती है व रसायनों का विलयन भी होता है । इस उत्सर्ग जल में निलंबित ठोस बहुत कम होते हैं ।

Essay # 3. उद्योग द्वारा प्रदूषण (Pollution Caused by Industries):

यह औद्योगिक क्रांति ही थी, जिसने पर्यावरण प्रदूषण को जन्म दिया । बडी-बडी कोयला और अन्य जीवाश्म ईधन के बहुत अधिक मात्रा में उपभोग के कारण अप्रत्याशित रूप से भी उद्योग के क्रियाशील होने पर प्रदूषण तो होगा ही ।

एक उद्योग से संबन्धित कम-से-कम निम्न प्रक्रिया तो होती ही है:

I. विषैली गैसों का चिमनियों से उत्सर्जन,

II. चिमनियों में एकत्रित हो जाने वाले सूक्ष्म कण

III. उद्योगों में कार्य आने के बाद शेष

IV. चिमनियों में प्रयुक्त ईधन के अवशेष एवं

V. उद्योगों में काम में आए हुए जल का बहिर्साव ।

ये सभी दृष्टिकोण औद्योगिक प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण हैं । उद्योगों से होने वाले प्रदूषण हैं- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, तापीय प्रदूषण, औद्योगिक उत्सर्ग, बहिस्राव से पेड और फसलों की बर्बादी जन हानि । उद्योगों से प्रदूषण के अंतर्गत, प्रदूषण के दुष्प्रभाव एवं नियंत्रण पर क्रमवार चिंतन यहां प्रस्तुत है ।

Essay # 4. उद्योग प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Industrial Pollution):

i. उद्योगों के बहिस्राव से पेड़ और फसलों की बर्बादी:

कई प्रकार के उद्योग, जिनमें जल का अधिक मात्रा में उपयोग होता है, वह अपने कारखाने के बहिस्राव को बिना उपचार के ही नदियों में, खाली जमीन पर, खेतों में निकाल देते हैं । जब बिना उपचार किया जल खेतों में पहुंचता है, वह वहां की फसल को नष्ट कर देता है और किसान असहाय होकर रह जाता है ।

‘मुरादनगर’ (गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश) में हजारों पेड तथा वहां की फसलों की बर्बादी का कारण पास में ही चल रही कागज मिल के कारण है । शीशम और जामुन के पेडों की मानों निशानदेही बची है । किसान कहते हैं, धान की फसल आठ दिन में सूख जाती है । पानी में अधिक देर तक खडे हों तो पैरों में जलन होने लग जाती है ।

ii. उद्योगों से जन-हानि:

आज सिर्फ भारत में ही नहीं वरन पूरे विश्व में उद्योगों की संख्या लाखों में है और इसमें कार्यरत लोगों की संख्या करोडो में होगी । अलग-अलग उद्योगों से निकलने वाले उत्सर्जन विभिन्न प्रकार के रोग फैलाते हैं और उसमें न जाने कितने लोगों के जीवन का अंत हो जाता है ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1992 द्वारा में प्रसारित संबंधी रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरे विश्व में एक वर्ष में लगभग 3.27 करोड औद्योगिक क्षेत्र की दुर्घटनाएँ होती हैं । इनमें 1,46,000 व्यक्ति मृत्यु के शिकार हो जाते हैं, यह भी अनुमान लगाया गया है कि जिन रोगों से औद्योगिक कारीगर ग्रस्त होते हैं ।

वह निम्न प्रकार हैं:

यह सूची अपने आप में पूरी नहीं है, क्योंकि भारत जैसे देश में अनीमिया, आंखों के रोग, हड्डियों के रोग, वायुजनित रोग, श्वसन संबंधी रोग आदि बहुतायत से होते हैं । अतः उद्योगों में कार्य करने वाले लोग सदैव अस्वस्थ ही रहते हैं ।

Essay # 5. उद्योग प्रदूषण के उपाय (Control of Industrial Pollution):

उद्योगों से प्रदूषण कम के उपाय:

उद्योगों से प्रदूषण कम हो सके, सके लिए कुछ उपाय इस प्रकार हैं:

(I) उद्योगों के स्थान का चयन बहुत सोच-समझकर करना चाहिए । वहां न तो अधिकृत वन क्षेत्र हो, न ही कृषि एवं आवासीय भूमि वह क्षेत्र इतना विस्तृत हो कि वहां वृक्षारोपण किया जा सके, ताकि वहां का वातावरण प्रदूषित न हो । अच्छे वातावरण के लिए वहां ऐसे वृक्षों को लगाया जाए, जो विशेष वषैली गैसों का अवशोषण कर सकें । वृक्षों की सघन पट्टियां ध्वनि-अवशोधक भी होती हैं ।

(II) फैक्ट्रीयों की चिमनियों में ‘बैग फिल्टर’ लगा होना चाहिए । जब धुआँ इस फिल्टर से होकर गुजरता है, तब उसे फिल्टर के सिलेंडर से होकर गुजरना होता है, जिससे धुएं के कणिकीय पदार्थ नीचे बैठ जाते है, जबकि गैस बेलनाकार बैग से होकर बाहर निकलती है यह गैस कणिकीय पदार्थों से मुक्त होती है अतः वातावरण कम प्रदूषित होता है ।

(III) उद्योगों में कार्य कर रहे ऊर्जा-संयंत्र तथा गैसों व सूक्ष्मकणों को उत्सर्जित करने वाली चिमनियों से प्रदूषकों की मात्रा कम हो, इस हेतु प्रचलन में आ रहे स्क्रमबर्स अवशोषक, साइक्लोंस, इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर्स, बैग फिल्मटर्स संयंत्रों का भरपूर उपयोग किया जाए ।

(IV) ओजोन क्षयकारी रसायनों के स्थान पर वैकल्पिक रासायनिक यौगिकों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।

(V) उद्योगों से संबंधित होने वाली घटनाओं विषय में सभी श्रमिकों को जानकारी देना चाहिए ।

(VI) जलीय तथा ठोस अपशिष्टों की जितनी भी उपचारात्मक संक्रिय संभव हो, उसके बाद ही अपने क्षेत्र में विसर्जित करना चाहिए ।