जल प्रदूषण पर निबंध | Essay on Water Pollution in Hindi!

Essay # 1. जल प्रदूषण का अर्थ एवं कारण (Meaning and Causes of Water Pollution):

जल के भौतिक एवं रासायनिक स्वरूप में परिवर्तन करना ही जल प्रदूषण कहलाता है । हमारे जीवन का आधार जल है, परंतु विश्व में जल का वितरण बहुत असमान हैं । विश्व के बहुत-से देशों में वर्षा केवल दो-तीन महीनों तक ही सीमित रहती है ।

उदाहरण के लिये भारत के अधिकतर भाग में 80 प्रतिशत से अधिक वर्षा केवल वर्षा ऋतु के चार महीनों में रिकार्ड की जाती है । ऐसी परिस्थिति में जल संचय के लिये नदियों पर बाँध बनाकर ही साल भर जल की आपूर्ति की जा सकती है ।

विश्व के विभिन्न देशों में जल की गुणवत्ता में भी भारी विविधता पाई जाती है । पानी में बहुत प्रकार के प्रदूषण मिले रहते हैं जो जल की महक और उसके स्वाद को प्रभावित करते हैं ।

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वर्षा के जल को अपेक्षाकृत शुद्ध माना जाता है, परंतु वर्षा का जल जब धरातल पर बहकर नदी-नालों में प्रवेश करता है तो उनमें बहुत-से प्रदूषण करने वाले पदार्थों का मिश्रण हो जाता है । प्रदूषित जल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है ।

निम्न में जल प्रदूषण के मुख्य कारणों पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला गया है:

(i) गंदे पानी एवं कीचड़ का मिश्रण (Sewage and Sludge):

गंदे पानी तथा कीचड़ इत्यादि जल प्रदूषण का मुख्य कारण है । गंदे पानी में मानव व जानवरों का मलमूत्र खाद्‌य, अवशेष, शोधन अभिकर्ता तथा अन्य व्यर्थ के पदार्थ होते हैं । ऐसे प्रदूषित जल से बहुत-सी बीमारियाँ फैलती हैं, जिनमें हैजा, पेचिस, बुखार, टाइफाइड इत्यादि मुख्य हैं ।

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(ii) अजैविक पदार्थ एवं खनिज (Inorganic Compounds and Minerals):

जल में बहुत-से अम्ल तथा खनिजों के तत्व भी मिल जाने से जल प्रदूषित हो जाता है । इन पदार्थों का आहार श्रृंखला में प्रवेश करने से नाना प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती है जिनमें दिमाग की बीमारी होने की आशंका बड़ी रहती है ।

(iii) नाइट्रेटस (Nitrates):

जल प्रदूषण में नाइट्रेट भी एक प्रमुख कारण है । किसानों के द्वारा खेती में उपयोग होने वाला रासायनिक नाइट्रेट खाद जब पोखर, तालाब तथा नदियों में दाखिल हो जाता है तो उससे जल प्रदूषण हो जाता है । भारत की अधिकतर झीलें एवं जलाशय इससे प्रभावित हैं । धान के खेतों से बहकर भारी मात्रा में नाइट्रेट खाद का डल और बुलर झील में प्रवेश होता है, जिससे इन दोनों झीलों का जल प्रदूषित हो गया है ।

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(iv) सिंथेटिक जैविक कंपाउंड (Synthetic Organic Compound):

नाना प्रकार के सिंथेटिक जैविक कंपाउड भी जल प्रदूषण का एक मुख्य कारण है । औद्योगिक एवं कृषि से उत्पन्न होने वाले ऐसे कंपाउड से जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता जा रहा है ।

(v) तेल तथा पेट्रोलियम (Oil and Petroleum):

तेल और पेट्रोलियम के जल में मिश्रित होने से जल की गुणवत्ता पर भारी प्रभाव पड़ रहा है तथा यह प्रदूषण विशेष रूप से टेकर तथा तेल के कुओं के द्वारा फैलता हैं जल एवं सागरीय प्रदूषण से पारितंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।

(vi) रेडियोऐक्टिव कदा-करकट (Radioactive Waste):

जल प्रदूषण में रेडियोऐक्टिव कूड़ा-करकट की भी प्रमुख भूमिका है । ऐसे हानिकारक कूडा-करकट मिलिट्री द्वारा निष्कासित किया जाता है ।

(vii) विविध कारण (Miscellaneous Water Pollution):

ताप बिजली घरों से निकलने वाले जल से भी जल प्रदूषण होता रहता है । उपरोक्त सभी प्रदूषणों का मानव स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव पड़ता है । इसके अतिरिक्त पारितंत्र बुरी तरह प्रभाव पडता है ।

Essay # 2. जल प्रदूषण के प्रभाव (Consequences of Water Pollution):

जल प्रदूषण के प्रतिकुल प्रभाव का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रस्तुत किया गया है:

(i) जल से उत्पन्न होने वाली बीमारियाँ (Waterborne Diseases):

बहुत-सी बीमारियाँ; जैसे-हैजा, पेचिस, दस्त, पीलिया, तपेदिक, टाइफाइड तथा बुखार इत्यादि प्रदूषित जल के पीने से फैलती हैं ।

(ii) पेट की बीमारियाँ (Stomach Disorder):

प्रदूषित जल में कुछ ऐसे खनिज मिले होते हैं जिनसे पेट की बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । पेट की बीमारी ही नहीं कैंसर इत्यादि भी प्रदूषित जल के द्वारा हो सकते हैं ।

(iii) फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer):

ऐस्बेस्टास रेशों से प्रदूषित जल का उपयोग यदि मानव इस्तेमाल करे तो उसे फेफड़ों का कैंसर हो सकता है ।

(iv) त्वचा की बीमारियाँ (Skin Diseases):

जल में जहरीले पदार्थों के द्वारा जल में अधिक प्रदूषण से त्वचा की बहुत-सी बीमारियाँ हो सकती हैं ।

(v) जल-पारितंत्र पर प्रभाव (Damage to Aquatic Ecosystem):

अम्लीय जल से जलीय पारितंत्र को हानि होती है ।

(vi) जलाशयों में अपतृण (Eutrophication):

जलाशयों में नाइट्रेट की मात्रा में वृद्धि होने से जल में अपतृण एवं नाना प्रकार के खरपतवार उत्पन्न हो जाते हैं ।

(vii) मृदा प्रदूषण (Damage to Soil):

जल प्रदूषण से मृदा में क्षारीयता की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मृदा कृषि के लिये उपयोगी नहीं रह पाती ।

(viii) सागरीय पारितंत्र को हानि (Damage to Marine Ecosystem):

यदि सागर में तेल और पेट्रोलियम से जल प्रदूषित हो जाये तो सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र पर खराब असर पड़ता है ।

Essay # 3. जल संरक्षण (Water Conservation):

वर्तमान में विश्व के बहुत-से देशों में जल की मात्रा एवं गुणवत्ता में कमी होती जा रही है ।

जल की उपलब्धि एवं जल की गुणवत्ता को बनाये रखने के निम्न प्रकार के कदम उठाने की आवश्यकता है:

(i) पर्यावरण शिक्षा (Environmental Education):

प्रत्येक व्यक्ति एवं समाज को पर्यावरण की महत्ता के बारे में शिक्षित करने की परम आवश्यकता है । विशेषकर लोगों में इस बात की जागरूकता उत्पन्न करनी कि यदि पर्यावरण का ह्रास होता रहा तो उसका पारिस्थितिकी अर्थव्यवस्था एवं समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा ।

(ii) औद्योगिक इकाइयों को उत्तरदायी बनाना (Accountability of the Industrial Units):

सभी औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषित जल को साफ करके निष्कासित करना चाहिए ।

(iii) वित्तीय सहायता (Financial Support):

सरकार को सिविक-बाडीस को पर्याप्त मात्रा में धन उपलब्ध कराना चाहिए ताकि जल प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सके ।

(iv) वनरोपण (Afforestation):

वृक्षारोपण से भी जल प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है ।

(v) मृदा संरक्षण (Soil Conservation):

मृदा अपरदन से जल में बहुत-से अजैविक पदार्थों का मिश्रण होता रहता है, इस लिये मृदा संरक्षण आवश्यक हो जाता है ।

(vi) कृषि में रासायनिक खादों के उपयोग में कमी करना (Less Use of Chemical Fertilizers):

रासायनिक खादों के इस्तेमाल करने से जल में नाइट्रेट की मात्रा में वृद्धि होती है जिसके कारण नाना प्रकार के जलीय खरपतवार उत्पन्न हो जाते हैं, इसलिए रासायनिक खाद का उपयोग कृषि में कम करना चाहिए ।

(vii) पर्यावरण के संबंध में कड़े कानून बनाना (Legislation of Strict Environmental Laws):

सरकार को पर्यावरण के बारे में सख्त कानून बनाने चाहिए । और उनका उल्लंघन करने वालों को कड़ी सजा देनी चाहिए ।

(vii) विविध अन्य उपाय (Miscellaneous Steps):

पर्यावरण संबंधी नियमों का उल्लंघनन करने के लिए व्यक्ति, समाज नौकरशाही तथा उद्योगपतियों को जवाबदेह ठहराना ।

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