Read this essay in Hindi to learn about the concept and consequences of green revolution in India.

Essay # 1. हरित क्रांति की परिभासा (Concept of Green Revolution):

खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए 1966 में नई खाद्यान्न नीति तय करने हेतु एक कमेटी का गठन किया गया जिसमें अन्य उपायों के अतिरिक्त देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया ।

समिति ने यह भी चिन्ता व्यक्त की कि कई विदेशी ताकतें भारत के खाद्यान्न संकट का फायदा उठाकर हमारी आन्तरिक और बाह्य नीति को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं । अत: इससे बचने लिए भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है ।

हरित क्रांति का तात्पर्य आधुनिक तकनीकों तथा सुविधाओं का अधिकतम प्रयोग करके खाद्यान्न उत्पादन में तेजी से वृद्धि करना है । इसके अंतर्गत उन्नत बीजों र खादों सिंचाई के साधनों कीटनाशकों तथा कृषि की उन्नत मशीनों का प्रयोग करके 1966 के बाद कृषि के उत्पादन में तेजी से बढ़ोत्तरी आयी ।

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कृषि उत्पादन में इस बढ़ोतरी को हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है । सरकार ने सस्ते दामों पर किसानों को बीज खादें तथा मशीनों के लिए ऋण उपलब्ध कराएँ । साथ ही सिंचाई के साधनों का विकास किया गया । कृषि विज्ञान व तकनीकि के विकास के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को प्रोत्साहित किया गया ।

भारत की हरित क्रांति में नार्मन बोरलाग तथा एम.एस. स्वामीनाथन जैसे कृषि वैज्ञानिकों का विशेष योगदान है । नार्मन बोरलाग ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए गेहूँ की उन्नत किस्मों की खोज में विशेष योगदान दिया । हरित क्रांति के समय डॉ. स्वामीनाथन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के निर्देशक थे तथा उनकी देख-रेख में उन्नत बीजों तथा अन्य तकनीकों को किसानों को उपलब्ध कराया गया । भारत में उनके नाम से एक कृषि पुरस्कार भी दिया जाता है ।

Essay # 2. हरित क्रांति के परिणाम (Consequences of Green Revolution):

हरित क्रांति के सकारात्मक परिणाम (Positive Results of Green Revolution):

हरित क्रांति के निम्नलिखित सकारात्मक परिणाम सामने आये:

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1. खाद्यान्नों के उत्पादन में तेजी से वृद्धि होने के कारण भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई । अब भारत को खाद्यान्न के लिए विदेशों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं रह गयी ।

2. हरित क्रांति के कारण किसानों में कृषि की नई तकनीकि अपनाने के लिए रुचि उत्पन्न हुई । इसकी वजह से भविष्य में भी कृषि उत्पादन बढ़ाने की सम्भावनाएँ बढ़ गईं ।

3. हरित क्रांति का प्रभाव पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र के कतिपय क्षेत्रों में अधिक था, अत: यहाँ पर किसानों के जीवन स्तर में वृद्धि हुई । कृषि कार्यों में विस्तार के साथ ही कृषि मजदूरों को रोजगार के नये अवसर भी प्राप्त हुये ।

4. हरित क्रांति का औद्योगिक विकास पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा । कृषि पर आधारित उद्योगों का तेजी से विकास हुआ । इसके साथ ही कृषि मशीनरी उद्योग में भी वृद्धि हुई ।

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हरित क्रांति के नकारात्मक परिणाम (Negative Results of Green Revolution):

 

हरित क्रांति के कतिपय नकारात्मक परिणाम भी हुये, जो निम्नलिखित हैं:

(I) क्षेत्रीय असंतुलन (Regional Imbalance):

उल्लेखनीय है कि हरित क्रांति देश के कतिपय हिस्सों जैसे-पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि में ही केन्द्रित थी, अत: इन क्षेत्रों का तेजी से विकास हुआ लेकिन देश के अन्य क्षेत्र हरित क्रांति से वंचित रह गये । पुन: हरित क्रांति में मुख्यत: गेहूँ के उत्पादन पर विशेष जोर दिया गया तथा चावल उत्पादक क्षेत्रों पर खास ध्यान नहीं दिया गया । इसका परिणाम यह हुआ कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि विकास को लेकर असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गयी जो आज भी देखी जा सकती है ।

(II) अमीर किसानों को अधिक लाभ (More Benefits to Rich Farmers):

हरित क्रांति की सफलता इस बात पर निर्भर थी कि कृषि में अधिक निवेश बढ़ाकर आधुनिक उपायों के माध्यम से कृषि उत्पादन बढ़ाया जाये । अत: इसका पूरा फायदा बड़े और अमीर किसानों ने उठाया जबकि हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में ही गरीब किसान इसके लाभ से वंचित रह गये । अत: इन क्षेत्रों में ही अमीर किसानों व गरीब किसानों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ गयी ।

(III) कृषि भूमि की उर्वरकता में कमी (Decrease in Fertility of Agricultural Land):

हरित क्रांति के अंतर्गत आधुनिक तकनीकि और खादों का अधिकाधिक प्रयोग करके भूमि पर अधिक से अधिक फसलें उगाने का प्रयास किया गया । इसके लिए जब बड़ी मात्रा में रासायनिक खादों का प्रयोग किया गया तो भूमि की उर्वरक क्षमता कम हो गयी । सिंचाई के अधिक प्रयोग के कारण भूमि में नमक की मात्रा भी बढ़ गयी ।

कृषि क्षेत्र का विस्तार करने के लिए वनों और घास के मैदानों को कम कर दिया गया जो पर्यावरण के लिए उचित नहीं है । फिर भी हरित क्रांति भारत में कृषि के विकास का एक महत्त्वपूर्ण चरण है । इसका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाना है ।

श्वेत क्रांति (White Revolution):

कृषि क्षेत्र के विकास के लिए खाद्यान्नों के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन बढ़ाने का भी प्रयास किया गया है, जिसे श्वेत क्रांति के नाम से जाना जाता है । दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 1960 के दशक में गुजरात में ऑपरेशन फ्लड नामक कार्यक्रम शुरू किया गया था ।

बाद में इस कार्यक्रम का विस्तार किया गया तथा दुग्ध उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई । श्वेत क्रांति में कृषि वैज्ञानिक बर्गीज कुरियन का विशेष महत्व है । उन्हें भारत के मिल्क मैन के नाम से जाना जाता है । श्वेत क्रांति के अंतर्गत दुग्ध उत्पादों का ब्रांड नाम अमूल के रूप में प्रचलित है ।

आज अमूल तथा श्वेत क्रांति एक-दूसरे के पर्यायवाची बन गये हैं । श्वेत क्रांति की तरह ही दक्षिणी प्रान्तों में मछली उत्पादन को बढ़ावा दिया गया है, जिसे नीली क्रांति के नाम से जाना जाता है । इसी तरह अण्डों में उत्पादन में वृद्धि को सिल्वर क्रांति का नाम दिया जाता हैं ।

(IV) गरीबी निवारण तथा ग्रामीण विकास (Poverty Alleviation and Rural Development):

गरीवी भारतीय जीवन की एक गंभीर समस्या है । ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रकोप सर्वाधिक है । 60 साल के नियोजित विकास के बावजूद भी आज देश की 33 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी का जीवन जीने के लिए विवश है । गरीबी अन्य सामाजिक समस्याओं को भी जन्म देती है ।

भारत के नियोजित विकास में गरीबी निवारण पर 1970 के दशक में विशेष ध्यान दिया गया । 1970 के चुनावों में कांग्रेस का मुख्य नारा गरीबी हटाओ था । इसी तरह पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का मुख्य लक्ष्य गरीबी की समस्या का समाधान था । चूंकि गरीबी की समस्या का सबंध ग्रामीण विकास में कमी से है, अत: ग्रामीण विकास के लिए कई कार्यक्रम चलाये गये ।

इनमें 1952 में आरंभ किया गया सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा 1979 में संचालित एकीकृत ग्रामीण विकास योजना प्रमुख है । 2005 में ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए मनरेगा कार्यक्रम आरंभ किया गया है ।

ग्रामीण क्षेत्रों में विकास तथा आधुनिक सुविधाओं की उपलब्धता के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं । यद्यपि ग्रामीण विकास और गरीबी निवारण में भारत को वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई लेकिन नियोजित विकास के इन क्षेत्रों में सकारात्मक परिणाम आये हैं ।

(V) वैश्वीकरण के युग में नियोजन का बदलता स्वरूप – सांकेतिक योजना (Changing Nature of Planning in the Era of Globalization – Indicative Planning):

भारत ने 1991 में आर्थिक उदारीकरण तथा निजीकरण की नीतियों को लागू किया है । इसकी वजह से अर्थव्यवस्था पर राज्य का नियंत्रण कम हो गया है । राज्य अब नियंत्रक के स्थान पर नियामक की भूमिका में आ गया है । इसका प्रभाव नियोजन पर भी पड़ा है । अब योजना आयोग विस्तृत योजनाओं के स्थान पर सांकेतिक योजना को धीरे-धीरे अपना रहा है ।

सांकेतिक योजना की निम्नलिखित विशेषतायें महत्त्वपूर्ण हैं:

(1) यह एक दीर्घकालीन योजना है जिसमें योजना की अवधि 15-20 वर्ष होती है । इसमें दीर्घकालीन लक्ष्यों को निर्धारित किया जाता है ।

(2) इस योजना में राज्य का कार्बनिजी क्षेत्र व सरकारी में समन्वय स्थापित करना है । इसका उद्देश्य पूर्व की भांति निजी क्षेत्र को नियन्त्रित करना नहीं है ।

(3) सांकेतिक योजना में राज्य द्वारा विभिन्न नीतिगत उषादों से निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित कर आर्थिक विकास को दीर्घकालीन अवधि में प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है ।

(4) सांकेतिक योजना में राज्य का एक महत्वपूर्ण कार्य सम्पूर्ण व्यवस्था की एक समग्र तस्वीर प्रस्तुत करना है तथा दीर्धकालीन अवधि में विकास की बाधाओं को चिन्हित कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना है ।

विकास की समकालीन उपलब्धियों- संचार क्रान्ति, तथा दूसरी हरित क्रान्ति (Contemporary Achievements of Development – Communication Revolution, and the Second Green Revolution):

भारत में विकास की प्रक्रिया वैश्वीकरण के युग में भी जारी है । भारत ने अपने विकास मॉडल में परिवर्तन करते हुए 1991 में उदारवादी आर्थिक नीतियों को अपनाया है । इस नीति में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाई गयी है तथा लाइसेन्स नीति को उदार बनाया गया है । आयात और निर्यात के नियमों को भी सरल और उदार बनाया गया है ।

नई आर्थिक नीतियों का परिणाम यह हुआ है कि भारत ने गत 20 वर्षों में 7 से 8 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर अर्जित की है । इस विकास में सेवा क्षेत्र संचार क्रांति आदि का विशेष योगदान है । भारत में सकल राष्ट्रीय उत्पादन में सेवा क्षेत्र का हिस्सा निरन्तर बढ़ रहा है ।

संचार क्रांति के अंतर्गत कम्प्यूटर तथा मोबाइल का प्रयोग बढ़ा है । 2012 में भारत मोबाइल फोन प्रयोग करने वाला विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है । इस वर्ष भारत में मोबाइल फोन प्रयोग करने वालों की संख्या 93 करोड़ थी ।

2012 में ही इंटरनेट सेवाओं के उपयोग में भारत का स्थान विश्व में तीसरा है । वर्तमान में भारत में 15 करोड़ लोग इंटरनेट सेवाओं का प्रयोग करते हैं । सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में विश्व में भारत की स्थिति अग्रणी है । भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों में भी कार्यरत् हैं ।

सेवा क्षेत्र में तीव्र विकास (Rapid Growth in the Service Sector):

किसी भी अर्थव्यवस्था के मुख्यत: तीन क्षेत्र होते हैं- प्रथम, कृमि क्षेत्र, दूसरा ज्योग तथा विनिर्माण तथा तमिरा सेवा । 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद गत बीस वर्षो में भारत में जो आर्थिक विकास हुआ है, उसमें सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान सेवा क्षेत्र का विकास है । सेवा क्षेत्र अत्यंत व्यापक है । इसमें छोटी सेवा जैसे नर्गिस से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी तक बडी सेवाएं शामिल हैं ।

सेवा क्षेत्र में होटल, तकनीकी परामर्श, बीमा, शिक्षा, चिकित्सा, बैंकिंग, परिवहन संचार, भण्डारण, रीयल एस्टेट, वित्त पोषण आदि शामिल हैं । भारत के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में 1991 में हिस्सा 42 प्रतिशत था जो 2012 में बढकर 60 प्रतिशत हो गया है ।

गत बीस वर्षों में सेवा क्षेत्र में औसतन 10 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गयी है । दूसरी तरफ कृषि क्षेत्र का हिस्सा इसी अवधि में 29.6 प्रतिशत से घटकर 14.4 प्रतिशत रह गया है । अर्थव्यवस्था का तीसरा क्षेत्र उद्योग व विनिर्माण क्षेत्र है, जिसके हिस्से में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । सकल राष्ट्रीय उत्पादन में इसका 27 प्रतिशत ही बना हुआ है ।

कॉल सेण्टर किसी कम्पनी की गतिविधियों अथवा सेवाओं के बारे में आधुनिक संचार माध्यमों के द्वारा बड़े स्तर पर सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक केन्द्रीकृत कार्यालय अथवा स्थान होता है ।

दूसरी हरित क्रान्ति:

इसी तरह कृषि विकास को गति देने के लिए 2007 में दूसरी हरित क्रांति को शुरू करने का निर्णय लिया गया है । इसके अंतर्गत देश के पूर्वी राज्यों बिहार उड़ीसा पश्चिम बंगाल तथा गैर-सिंचित क्षेत्रों में चावल के उत्पादन को बढ़ावा दिया जायेगा । उल्लेखनीय है कि 1966 की प्रथम हरित क्रांति में सिंचित क्षेत्रों में गेहूँ के उत्पादन पर विशेष बल दिया गया था । दूसरी हरित क्रांति से विकास का क्षेत्रीय असंतुलन कम होगा ।

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