अफ्रीका पर निबंध | Essay on Africa in Hindi.

यह एशिया के बाद विश्व का दूसरा बड़ा महाद्वीप है । यह एकमात्र महाद्वीप है, जिससे होकर विषुवत वृत्त, कर्क वृत्त और मकर वृत्त गुजरते हैं । यह महाद्वीप जिब्राल्टर जलसंधि, भूमध्यसागर, स्वेज नहर, लाल सागर और अरब सागर द्वारा यूरेशिया से अलग है ।

इसके पूर्व में हिन्द महासागर और पश्चिम में अटलांटिक महासागर है । इसका सम्पूर्ण क्षेत्रफल 30,065,000 वर्ग किमी. है । इसका सबसे बड़ा प्रायद्वीप सोमाली है ।

अफ्रीका की भूमि मेज की तरह ऊँची और पहाड़ी है । अफ्रीका का एकमात्र मोड़दार पर्वत ‘एटलस’ (उत्तर-पश्चिम) है, जिसका विस्तार यूरोप है । अफ्रीका की पूर्वी उच्चभूमि का उत्तरी भाग इथोपिया और दक्षिणी भाग ‘ड्रैकेंसबर्ग’ पर्वत है । अफ्रीका के दो सबसे ऊँचे पर्वत किलिमंजारो और केन्या इन्हीं दोनों के मध्य स्थित हैं ।

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ये दोनों ज्वालामुखी पर्वत हैं । पूर्वी उच्च भूमि में ही एक लम्बी दरार घाटी (Rift Valley) है, जो मलावी झील से प्रारंभ होकर तथा उत्तर में लाल सागर को पार करते हुए मृत सागर (एशिया) तक पहुँचती है ।

इस ‘भ्रंश घाटी’ में कई झीलें हैं, जिनका उत्तर से दक्षिण की ओर क्रम है- रूडोल्फ, अलबर्ट, एडवर्ड, कीबू, टांगानिका और न्यासा या मलावी । ‘विक्टोरिया झील’ अफ्रीका की सबसे बड़ी झील है । इससे होकर विषुवत रेखा गुजरती है । विश्व की सबसे लम्बी नदी ‘नील’ विक्टोरिया झील से निकलती है तथा भूमध्यसागर में गिरती है ।

जायरे (कांगो) सबसे अधिक जल ढोनेवाली नदी है । यह विषुवत रेखा को दो जगहों पर काटती है । स्टेनले व लिविंगस्टोन जलप्रपात इसी पर स्थित है । जाम्बेजी नदी पर अवस्थित ‘विक्टोरिया जलप्रपात’ अपनी ऊँचाई के लिए विश्वप्रसिद्ध है । अफ्रीका में सबसे अधिक जलविद्युत का उत्पादन करने वाला ‘करीबा बाँध’ इसी नदी पर निर्मित है ।

अफ्रीका की प्रमुख नदियों में नील, जाम्बेजी, नाइजर, जायरे (कांगो), ऑरेंज, लिम्पोपो आदि है । इसमें नाइजर, जायरे और ऑरेंज नदियाँ अटलांटिक महासागर में गिरती है । जाम्बेजी व लिम्पोपो नदियाँ हिन्द महासागर में गिरती हैं ।

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अफ्रीका विश्व की 5% से भी कम जलविद्युत उत्पन्न कर रहा है, जबकि इसकी संभावित जलशक्ति 28% है । इथोपिया में ब्लू नदी पर ग्रेड रेनिसेंस (Renaissance) बाँध बनाकर अफ्रीका की सबसे बड़ी जल-विद्युत परियोजना का निर्माण किया जा रहा है । ‘सहारा विश्व’ का सबसे बड़ा मरूस्थल है, जो उत्तरी अफ्रीका में स्थित है ।

‘कालाहारी’ अपेक्षाकृत छोटा है । यह दक्षिणी अफ्रीका में है । ‘बोत्सवाना’ में इस मरूस्थल का सर्वाधिक विस्तार मिलता है । उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों का सबसे ज्यादा विस्तार अफ्रीका महाद्वीप में ही है । संसार में सबसे ऊँचा तापमान 58C लीबिया के ‘अल-अजीजिया’ नामक स्थान पर दर्ज किया गया है ।

विषुवत रेखा के निकट सालोंभर भारी वर्षा होती है, जिससे जलवायु उष्णार्द्र रहती है । भीषण गर्मी पड़ने के कारण गर्म हवा ऊपर उठकर फैल जाती है तथा संघनित होकर प्रतिदिन वर्षा कराती है । उष्णार्द्र जलवायु के कारण इस क्षेत्र में उष्ण कटिबंधीय या विशुवतीय वर्षा वन मिलते हैं । इससे उत्तर व दक्षिण की ओर वर्षा केवल ग्रीष्म काल में होती है ।

औसत गर्मी (कोष्ण) एवं वर्षा की कमी के कारण यहाँ कड़ी, लम्बी और मोटी घास उगती है । ऐसी तृणभूमि को ‘सवाना’ तथा इस प्रकार की जलवायु को ‘सवाना या सूडान तुल्य जलवायु’ कहते हैं । कालाहारी और सहारा मरूस्थल की जलवायु बहुत ही गर्म और शुष्क है, जहाँ वर्षा नाममात्र ही होती है । यहाँ वनस्पति के नाम पर कँटीले पौधे ही उगते हैं, जैसे- कैक्टस, नागफनी, खजूर आदि ।

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सहारा में ऊँट और कालाहारी में शुतुरमुर्ग मुख्य जीव हैं । ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ के अंतर्गत इथियोपिया, सोमालिया व जिबूती आते हैं । यह पशुपालन का क्षेत्र है । अफ्रीका के उत्तरी तथा दक्षिणी तटीय प्रदेशों में भूमध्यसागरीय जलवायु पाई जाती है । यहाँ केवल जाड़ों में वर्षा होती है जबकि ग्रीष्म ऋतु शुष्क रहती है ।

इन प्रदेशों में शीत ऋतु न ज्यादा ठंडी होती है और न ही ग्रीष्म ऋतु ज्यादा गर्म । शीतकालीन वर्षा होने के कारण वृक्ष छोटे (बौने) होते हैं, परन्तु वे सदाबहार होते हैं । जैतून, नींबू, नारंगी आदि यहाँ के प्रमुख पेड़ हैं । अफ्रीका में केला, अनानास, कटहल, आम, पपीता, नींबू, संतरे आदि फलदार पेड़-पौधे उष्ण कटिबंध में तथा जैतून, सेब, नाशपाती, अंगूर आदि के पेड़-पौधे शीतोष्ण कटिबंध में खूब उगते हैं ।

इस महाद्वीप में कृषि योग्य भूमि मात्र 10% ही है । नील घाटी की मिट्‌टी सबसे अधिक उपजाऊ है, जहाँ जलोढ़ मिट्‌टी का विस्तार है । पूर्वी अफ्रीका की ज्वालामुखी के लावे से बनी मिट्‌टी तथा सवाना घास की कुछ मिट्‌टियाँ भी उपजाऊ हैं । यहाँ की खाद्य फसल कंदमूल है, जैसे- रतालू और कैसावा । अन्य महत्वपूर्ण खाद्य फसल मक्का है ।

 

नकदी फसलों में तेलताड़ (Palm Oil), मूंगफली, कोको, कहवा, कपास और सिसल महत्वपूर्ण है । इनमें प्रथम चार मुख्यतः पश्चिमी अफ्रीका में उपजाए जाते हैं । कपास की खेती नील घाटी में मुख्य रूप से होती है । सिसल पूर्वी मध्य अफ्रीका (तंजानिया) में उत्पन्न किया जाता है ।

यह रेशा, बोरियाँ और रस्सियाँ बनाने के काम में आता है । तंजानिया के ‘जंजीबार’ और ‘पेम्बा’ द्वीपों में लौंग और इलायची प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं । संसार में लौंग के कुल उत्पादन का 90% भाग इन्हीं द्वीपों से आता है । अफ्रीका के पूर्वी भाग में काजू का उत्पादन होता है ।

संसार में सोना, हीरा और प्लेटिनम के उत्पादन में अफ्रीका का पहला स्थान है । यहाँ कोबाल्ट, मैंगनीज, क्रोमियम, टिन, बॉक्साइट, यूरेनियम और तांबे के विशाल भंडार हैं । परन्तु इस महाद्वीप में लौह-अयस्क और कोयले का उत्पादन कम है । इससे लोहे और इस्पात के उद्योग के विकास में बाधा पड़ी है ।

खनिज तेल उत्तरी देशों में मिला है- लीबिया और अल्जीरिया । अफ्रीका की उत्तरी सीमा से स्वेज मार्ग और दक्षिणी सीमा से उत्तम आशा अंतरीप (Cape of Good Hope) समुद्री मार्ग गुजरते हैं । अफ्रीका विश्व का ऐसा महाद्वीप है, जहाँ लगभग सभी युगों की प्राचीनतम व नवीनतम संस्कृतियाँ मिल जाती है ।

यहाँ का एक धर्म सर्वात्मवाद है, जो प्रकृति प्रेम और पारस्परिक सद्‌भावना पर आधारित है । अफ्रीका में बुशमैन (कालाहारी), पिग्मी (कांगो बेसिन), बदबू (सहारा) और मसाई (पूर्वी अफ्रीका) जनजातियाँ मूल अफ्रीकी हैं । यहाँ की तीन चौथाई जनसंख्या अश्वेतों की है ।

यूरोपीय लोगों ने यहाँ अपने उपनिवेश स्थापित किए तथा मूल निवासियों को काला कहकर सारे महाद्वीप को ‘काला महाद्वीप’ या ‘अंध महाद्वीप’ घोषित कर दिया था । अफ्रीका के जिन भागों में लोगों का निवास अधिक है, वे हैं- नील नदी की घाटी, पश्चिमी अफ्रीका के कुछ क्षेत्र एवं दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश के वैसे भाग, जहाँ कृषि और उद्योगों का विकास हुआ है ।

सहारा और कालाहारी मरूस्थल क्षेत्र जनशून्य है । मध्यवर्ती क्षेत्र भी जनशून्य है, क्योंकि वहाँ की भूमि दलदल और घने वनों से ढकी है तथा जलवायु अस्वास्थ्यकर है । दक्षिणी सूडान अफ्रीका का नवीनतम राष्ट्र है, जो UNO का 193वाँ सदस्य बन गया है ।

9 जुलाई, 2011 को यह स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया । इस ईसाई बहुल देश की राजधानी ‘जूबा’ है । कॉस्ट ऑफ लिविंग सर्वे 2015 के अनुसार, अफ्रीकी देश अंगोला की राजधानी ‘लुआण्डा’ पिछले तीन वर्षों से दुनियाँ का सबसे महँगा शहर रहा है ।

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