भारत और उसके पड़ोसी देश पर निबंध! Read this essay in Hindi to learn about India and its neighbouring countries.

मशहूर दार्शनिक फ्रॉस्ट ने कहा था कि अच्छी दूरी अच्छे पड़ोसी बनाती हैं । यह बात कुछ हद तक सही भी है । परंतु यदि बात दो देशों के मध्य संबंधों की हो तो अच्छे पड़ोसियों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए लोगों से लोगों के बीच संपर्कों तथा व्यापार और राजनैतिक समझ की जरूरत होती है ।

यदि मानव के संक्षिप्त इतिहास को देखा जाए तो स्पष्ट हो जाता है की औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व तक देशों की सीमाएं परिवर्तित होती रहती थी । लोगों का ध्यान राज्य के केंद्रीय हिस्से की और रहता था और सीमाओं का आपेक्षिक महत्व कम था किन्तु धीरे-धीरे औद्योगिक क्रान्ति और औपनिवेशीकरण का युग आया तो साम्राज्यवादी देशों को अपने उपनिवेशों की सुरक्षा हेतु सीमांकन आवश्यक लगा ।

बाद के दिनों में जब संसाधनों के प्रति जागरूकता बढ़ी तो सीमाएं और भी ज्यादा महत्वपूर्ण और संवेदनशील हो गईं । सीमाएं किन्हीं दो देशों के बीच सेतु का कार्य करती हैं । ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अच्छे संबंधों के मूल में सुरक्षित और मजबूत सीमा आवश्यक है या फिर यह स्वच्छंद वैचारिक और सांस्कृतिक प्रवाह में अवरोध का कार्य करती है ।

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जब दो देशों के बीच राजनीतिक और सामाजिक तनाव बढ़ जाते हैं तो सीमाएं कितनी भी मजबूत हों वे अप्रतिम मानवीय दबाव को झेल नहीं पाती । यही नहीं, सीमाएं इनके मानवीय पहलू को नेपथ्य में डाल देती हैं । चाहे वह म्यांमार से भाग रहे राहिंग्या मुस्लिमों की समस्या हो या फिर अफगान हजारा की या उत्तरी अफ्रीका से द. यूरोप की तरफ प्रवासन कर रहे लोगों की हो ।

यहां इस बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है कि जहां सीमाएं इस समस्या के समाधान में असफल रही हैं, वहीं इससे सम्बंधित देशों के मध्य दूरियां भी बड़ी हैं । दरअसल, सीमाएं सिर्फ भौतिक अवरोध होती हैं, यह स्वच्छद सांस्कृतिक और वैचारिक प्रवाह को बाधित करती हैं क्योंकि अक्सर दो देशों के मध्य सांस्कृतिक सम्बन्ध काफी घनिष्ठ पाए जाते हैं ।

बंगाल-बांगलादेश, उत्तर-पूर्वी देश-म्यांमार, पकिस्तान- अफगानिस्तान और इन सबसे आगे अमरीका और पश्चिमी यूरोप के मध्य सांस्कृतिक संबंधों के ही कारण तो इनके संबंधों को अटलांटिक महासागर की गहराई भी विच्छेदित नहीं कर पाती ।

वर्तमान में जब सूचना क्रान्ति का दौर चल रहा है, सूचनाएँ तीव्र गति से आ रही हैं, परिस्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं, साइबर अपराध बढ रहे है, वैश्वीकरण के दौर में जब जब व्यापार में विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाओं की महत्ता बढ़ रही है तो सीमाओं की उपादेयता ।

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यूरोपीय यूनियन इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जहां वे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर को भुलाकर एक मजबूत पक्ष के रूप में अपनी बात रखते हैं धीर-धीरे यही देशों में भी बलवती हो रही है । सीमाएँ यदि सुरक्षा और अच्छे पडोसी की क्रीमिया विवाद इतना प्रचंड कभी नहीं होता । इसके मूल में यही है कि पूर्वी ने उस भौतिक अवरोध को दिल से कभी नहीं स्वीकार किया ।

दरअसल, सीमाएँ प्राचीन काल से ही, राज्यों के बीच विवाद का विषय रही हैं और कई उसका समाधान सोचा गया । इसके उदाहरण प्राचीन काल के चीन से लेकर में इजराइल और बर्लिन तक मिल जाएँगी । पर क्या दीवार खड़ी कर देना ही दोनों देशों की सुरक्षा या फिर दोनों देशों के संबंधी की गारंटी है, यह सवाल अकसर सामने खडा रहता है ।

भारत ने अपनी सीमाओं पर कटीली बाड लगाकर पाकिस्तान और बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ पर काफी हद तक रोक लगाई है, पर क्या इससे हम अच्छे पड़ोसी हो गए? शायद नहीं । इसके पीछे कारण सिर्फ सीमा विवाद ही नहीं है बल्कि और भी हैं ।

जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो उसका दृष्टिकोण मुख्य रूप से भारत विरोधी है । लगभग हर मुद्दे पर दोनों ही देश एक-दूसरे पर अंदरूनी मामलों में दखल का आरोप लगाते हैं । यदि संबंधों को सामान्य बनाना है तो उसके समाधान के लिए सीमा पर भौतिक बाड़ के साथ कुछ अभौतिक बाड़ों की भी जरूरत है, जिनका दोनों देश सम्मान करें ।

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साठ के दशक में नेहरू जी ने इन बाड़ी की आवश्यकता को महसूस कर लिया था और पंचशील के रूप में विश्व के सामने रखा था कि कोई देश दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न दे, आक्रमण न करे, दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करे, इत्यादि ।

किन्तु इतने मजबूत पक्षों के बावजूद सीमाओं की उपादेयता को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता । यह देशों को सुरक्षा का भाव तो देता ही है । इसी कारण पाक से लोगों के गैर-कानूनी प्रवासन की खबरे नहीं सुनाई देती किन्तु बांग्लादेश के सन्दर्भ में तो यह एक बडा मुद्दा है, इस समस्या का एक प्रमुख कारण यह भी है कि भारत-बांग्लादेश सीमाबंदी का पूर्ण न होना और काफी जटिल भौगोलिक संरचना का होना ।

भारत जैसे दहस जो शक्ति पड़ोसियों से घिरे हैं उनके लिए सीमाएं की महत्ता और बढ़ जाती है । वर्तमान में आतंकवाद के साए में सीमाओं की चौकसी और उचित सीमाबंदी एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है । भारत चीन समस्या के मूल में सीमा की समस्या ही है क्योंकि हम मैकमोहन रेखा पर इसकी ऐतिहासिकता की वजह से एकमत नहीं हो पा रहे हैं किन्तु यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि चीन-म्यामांर ने अपने सीमा विवादों को मैकमोहन रेखा के ही आलोक में सुलझाया है ।

स्पष्ट है बात भारत चीन विवाद के समाधान में मैकमोहन रेखा के महत्व को और इसके समाधान के मार्ग को प्रशस्त करती है । अमेरिका तथा कनाडा के सीमा सबधो को अक्सर एक श्रेष्ठ उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है किन्तु यहाँ मुख्य तथ्य यह है कि दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध है । सामाजिक, सांस्कृतिक और विकास की समानता जैसे मुद्दे उनकी सीमाओं को सुरक्षित और स्वछन्द बनाते हैं ।

वहीं अमरीका-मेक्सिको सीमा तो अमरीका में गैर कानूनी तरीके से घुसने का मार्ग बन चुकी है । स्पष्ट है कि सीमाओं की स्वछन्दता में दोनों देशों की जिम्मेदारी बराबर होती है जिसमें अन्य शक्तियाँ भी कार्य करती हैं ।

ऐसे समय में जबकि संसाधनों को हथियाने की होड मची हो विभिन्न राष्ट्र अधिकाधिक संसाधनों पर नियंत्रण चाहते है तो सीमाओं की उपादेयता अपने आप बढ जाती है । दक्षिण चीन सागर की समस्या का मूल, संसाधनों के नियंत्रण को लेकर ही है ।

जाहिर है, इसी कारण चीन की उस क्षेत्र के सभी पडोसी देशों से कटुता है । जापान और द. कोरिया के संबंधों में भी दुराव के पीछे यही है । भारत पाक के बीच सरक्रीक का मुद्दा भी इसी कारण गरमाया रहता है । यदि सीमाओं का उचित सीमांकन होता तो ये समस्याएं शायद कभी होती ।

इन सब पक्षों के अलावा यह भी उल्लेखनीय है कि सुरक्षित सीमाओं के अस्थिर देश अपने पडोसी देशों के लिए भी समस्या उत्पन्न करता है । एक अस्थिर या अफगानिस्तान पूरे क्षेत्र के लिए एक समस्या बन सकता है । उत्तर कोरिया जैसे अक्सर ‘ब्लैक होल’ स्टेट कहा जाता है, ऐसे देशों के साथ संबंधों में सुरक्षित सीमाएं काफी महत्वपूर्ण होती हैं ।

अंत में ये कहा जा सकता है कि सुरक्षित सीमाएँ अच्छे पडोसी की गारंटी किन्तु इससे सुरक्षा संबंधी मुद्दों के सम्बन्ध में उनकी प्रमुखता कम नहीं हो जाती । वैसे देशों की विदेश नीति का मकसद सीमाओं को महत्वहीन बनाना ही होना चाहिए सारी नीतियों और कूटनीतिक बातचीतों के मूल में भी यही रहना चाहिए ।

जैसा कि किसी दार्शनिक ने कहा भी था, भूगोल ने हमें पडोसी, इतिहास ने मित्र, अर्थशास्त्र ने भागीदार तथा आवश्यकता ने सहयोगी बनाया है । जाहिर है, सीमाओं को बाँधकर, रोककर या फिर दीवार खड़ी करके अच्छे पड़ोसी की गारंटी नहीं दी जा सकती है, लेकिन सांस्कृतिक संबंधों जैसे कई सेतु हैं जो बिना दीवारों और अवरोधों की ही देश के नागरिकों को जोडे रहते हैं और अच्छे पड़ोसी के साथ-साथ अच्छे पड़ोसी का भी निर्माण कराते हैं ।

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