भारत और उसके पड़ोसी देश पर निबंध! Here is an essay on ‘India and Its Neighbouring Countries’ in Hindi language.

Essay on India and Its Neighbouring Countries


Essay Contents:

  1. भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध
  2. भारत-चीन सम्बन्ध
  3. भारत-नेपाल सम्बन्ध
  4. भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध
  5. भारत-भूटान संबंध
  6. भारत-म्यांमार सम्बन्ध
  7. भारत-श्रीलंका सम्बन्ध
  8. भारत-मालदीव सम्बन्ध
  9. भारत-अफगानिस्तान सम्बन्ध

Essay # 1. भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध:

दक्षिण एशिया में स्थित भारत इस समय विश्व के प्रभावशाली देशों में स एक है । इसके उत्तर में पर्वतराज हिमालय है झोर दक्षिण में विशाल हिन्द महासागर । भौगोलिक रूप से यह जल और थल दोनों से जुड़ा हुआ है । इसके आकार और शान्तिपूर्ण छवि के कारण एशिया महाद्वीप में इसका स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।

इस बात से इसके पड़ोसी देश भी भली-भांति परिचित हैं ।  इसके वृहत आकार के कारण इसके पडोसी देशों की संख्या भी अधिक ही है भारत के पडोसी देशों में पाकिस्तान, चीन, नेपाल, छान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यामार, श्रीलंका तथा मालदीव को सम्मिलित किया जाता है । उसका प्रत्येक पढ़ोसी देश बहुत अहम् है, इसलिए भारत का प्रयास रहता है कि उन सभी से उसके सम्बन्ध सकारात्मक दिशा में आगे बढें ।

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भारत का सबसे निकटतम पडोसी देश उत्तर-पश्चिम में स्थित पाकिस्तान है । एक प्रकार से देखा जाए, तो पाकिस्तान भारत का ही अंग है । वर्ष 1947 से पूर्व पाकिस्तान नाम का कोई राष्ट्र था ही नहीं । स्वतन्त्रता के पूर्व भारत में कुछ स्वार्थी और सत्तालोभी राजनीतिको ने ‘दो-राष्ट्र’ की विचारधारा को बल दिया, जिसके कारण भारत को आजादी के साथ विभाजन भी स्वीकार करना पडा ।

ब्रिटिश नीति के तहत भारत विभाजन की योजना के अनुपालन में 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली । जिस प्रकार पैतृक सम्पत्ति के बँटवारे के बाद भी दो भाइयों में विवाद जारी रहता है ठीक उसी प्रकार विभाजन के बाद भी दोनों देशों के सम्बन्ध तनावपूर्ण रहे है ।

वास्तव में, ऊश्मीर विवाद के कारण आरम्भ से ही दोनों देशों में तनाव रहा है । नैतिक और सन्तुलित दृष्टिकोण से देखा जाए, तो कश्मीर के महाराजा हरिसिंह द्वारा भारत के साथ विलय सन्धि पर हस्ताक्षर करने के बाद कश्मीर भारत का अखण्ड अंग बन चुका है, परन्तु पाकिस्तान उसे मुस्लिम बहुल राज्य बताकर बार-बार उस पर अपना दाबा करता है और समय-समय पर उस पर अपना अधिकार करने की कोशिशें करता है ।

यही कारण है कि भारत के सम्बन्ध पाकिस्तान के साथ कभी सामान्य नहीं रहे । जनवरी, 1964 में पूर्वी पाकिस्तान में हुए साम्प्रदायिक दगे एवं हिन्दुओं के महाभिनिष्क्रमण पर श्री जयप्रकाश नारायण ने कहा था- ”देश का विभाजन समस्याओं का युक्तिसंगत समाधान सिद्ध नहीं हुआ ।”

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पाकिस्तान अब तक भारत पर चार बार (वर्ष 1947, और 1999) आक्रमण कर चुका है । अपनी सम्प्रभुता और अखण्डता की रक्षा के लिए भारत को उसका उत्तर देना ही पडता है । उल्लेखनीय है कि हर बार पाकिस्तान ने ही पहले भारत पर आक्रमण हे और हर बार उसे भारत के हाथों पराजित होना पडा है ।

इसके बावजूद बह अपनी भारत-विरोधी हरकतों से बाज नहीं आता है तथा वर्तमान में भारत में आतंकवाद को बढावा देने के उद्देश्य हेतु प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से आतंकी संगठनों की सहायता करता है । 13 दिसम्बर, 2001 को भारतीय संसद पर तथा 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में ताज होटल व अन्य स्थानों पर हुए आतंकवादी हमले इस तथ्य की पुष्टि करते हैं ।

पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण रवैये के बाद भी भारत ने पाकिस्तान के प्रति सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया है । भारत अपने पड़ोस में एक स्थिर राजनीतिक वातावरण की महत्ता को समझता है इसलिए बातचीत करके शान्तिपूर्ण ढंग से कश्मीर विवाद को हल करने के पक्ष में रहा है ।

इसी क्रम में अब तक दोनों देशों के बीच वर्ष 1966 में ताशकन्द समझौता तथा वर्ष 1972 में शिमला समझौता हो चुका है । शिमला समझौते के तहत दोनों देशों के बीच 22 जुलाई, 1976 को समझौता एक्सप्रेस के नाम से रेल सेवा आरम्भ की गई । लेकिन इनके बाद भी पाकिस्तान के व्यवहार में विशेष अन्तर नहीं आया, फिर भी भारत ने शान्ति स्थापना के प्रयासों में रखी ।

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फरवरी, 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री थी अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा के माध्यम से मित्रता की पहल की, लेकिन पाकिस्तान ने फिर से विश्वासघात करके मई-जुलाई, 1999 में भारत के कारगिल क्षेत्र पर हमला बोल दिया ।

कारगिल की इस लड़ाई में पाकिस्तान को हार का मुंह देखना पडा और ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत भारत विजयी हुआ । कारगिल युद्ध के तुरन्त बाद पाकिस्तान में दिसम्बर, 1999 में भारतीय एयरलाइंस के यात्री विमान का अपहरण कर लिया गया । इन दोनों ही घटनाओं ने भारत-पाक सम्बन्धों को बुरी तरह प्रभावित किया ।

दोनों देशों के बीच कई वर्षों तक क्रिकेट एवं राजनयिक सम्बन्ध टूटे रहे । नवम्बर 2003 में संघर्ष विराम की घोषणा के साथ पुन दोनों देशों के सम्बन्ध थोडे सामान्य हो पाए । इसके बाद कई बार क्रिकेट की बिसात पर भी दोनों देशों के मध्य समन्ध सुधारने के प्रयास किए गए हैं ।

भारत के पूर्व विदेश मन्त्री श्री नहर सिंह के शब्दों में- ”वर्ष 2004 से 2007 के मध्य भारत-पाक सम्बन्धों में हुआ सुधार स्वागत योग्य है । समग्र वार्ता सही दिशा में जा रही थी । मुल्तान में वर्ष 2004 में अभूतपूर्व घटना घाटी जब बीरेन्द्र सहबाग के 319 रन पूरे होने पर स्टेडियम के सभी लोगों ने खडे होकर तालियों से उनका स्वागत किया था ।”

किन्तु वर्ष 2008 के अन्त में मुम्बई में पाक पोषित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा के द्वारा हमले किए जाने के बाद दोनों पड़ोसी देशों के रिश्ते में पुन: खटास आ गई ।  वर्ष 2010-12 के दौरान पाकिस्तान ने 200 से भी अधिक बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया और हद तो तब हो गई जब जनवरी, 2013 में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सीमा में घुसकर फायरिग करते हुए, भारत के दो जवानों की भून डाला और उनमें से एक का सिर तक गायब कर दिया ।

इस घटना की पूरे विश्व में निन्दा की गई । वर्ष 2014 में भारत के नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नबाज शरीफ को विशेष रूप से आमन्त्रित करके फिर से भारत के शान्ति प्रयासों को स्पष्ट कर दिया है ।

किन्तु पाकिस्तानी सेना द्वारा रह-रहकर भारत-पाक सीमा पर गोलियाँ बरसाई जा रही है । मुशर्रफ जैसे नेता आज भी कह रहे हैं- ”पाकिस्तान को कश्मीर में संघर्ष कर रहे लोगों को उकसाने की जरूरत हैं ।”  पर हम भारतीय यह भी नहीं भुला पाते कि जबारा के नवाब भारतीय कवयित्री महादेबी वर्मा के जन्मदिन व हर पर्व पर उनसे मिलने आया करते थे । हम देशवासी आज भी आस सजोए बैठे हैं कि दोनों देशों में पुन भाईचारा बहाल हो ।


Essay #2. भारत-चीन सम्बन्ध:

भारत का दूसरा महत्वपूर्ण पड़ोसी देश हैं-एशिया का तेजी से उभरता हुआ शक्तिशाली देश ‘चीन’ भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की सीमाओं से स्पर्श करता हुआ चीन क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत से बड़ा है, इन दोनों देशों को एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में जाना जाता है ।

यद्यपि भारत और चीन के सम्बन्ध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक रूप से हजारों साल पुराने हैं, स्वतन्त्रता के पश्चात भी दोनों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे । यहाँ तक कि भारत न अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन का सहयोग करते हुए उसे संयुक्त राष्ट्र सब में स्थायी सदस्यता दिलवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और वर्ष 1955 में बान्डुंग सम्मेलन में दोनों देशों ने एक-दूसरे का पूर्ण सहयोग करते हुए ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ का नारा लगाया, परन्तु तिब्बत विवाद के कारण इस मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध में दरार आ गई ।

दोनों देशों के मध्य वर्ष 1954 में पंचशील समझौता हुआ उस समय लगा कि सम्बन्धों में कडवाहट का दौर शीघ्र ही समाप्त हो गया, लेकिन तिब्बत में चीनी प्रशासन के दमन् का समर्थन भारत सरकार नहीं कर सकी । वास्तव में, वर्ष 1958 में तिब्बत क्षेत्र में हुए विद्रोह को आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा का समर्थन मिल रहा था । चीन ने इस विद्रोह को विफल कर दिया । इसके बाद 31 मार्च, 1959 को दलाई लामा ने भारत में शरण ली ।

भारत द्वारा दलाई लामा को शरण देना चीन को बहुत बुरा लगा और उसने भारत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपमानित करने के उद्देश्य से 20 अक्टूबर, 1962 को भारत के उत्तर-पूर्वी सीमान्त क्षेत्र में लद्‌दाख की सीमा पर आक्रमण करके जम्मू-कश्मीर के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया ।  दलाई लामा को शरण देने का कारण तो बस एक बहाना था, वास्तव में चीन इस आक्रमण के द्वारा अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर भारत को कमजोर साबित करना चाहता था ।

चीन के इस आक्रमण से जवाहरलाल नेहरू को बडा आघात पहुँचा और वर्ष 1964 में उनकी मृत्यु हो गई । यहाँ से भारत-चीन के शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों की शुरूआत हुई । वर्ष 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में उसने परोक्ष रूप से पाकिस्तान का साथ देकर अपने शत्रुतापूर्ण इरादे पूरी तरह से जाहिर कर दिए ।

वर्तमान समय में भी चीन, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर अपना अधिकार होने की बात करता है साथ ही वह चीनी सागर और हिन्द महासागर में भी अपना प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है ।

वह चारों ओर से भारत को सामरिक मोर्चे पर घेरने की तैयारी में भारतीय सीमा के क्षेत्रों में चौड़ी लेन वाली सडकों का जाल बिछा रहा है और ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह को मोड़ने की परियोजना पर भी काम कर रहा है । ये सभी गतिविधियों भारत के हित में नहीं है ।

वर्ष 1954 में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कहा था- ”यदि भारत ने तिब्बत को मान्यता प्रदान की होती, जैसा कि उसने वर्ष 1949 में चीनी गणराज्य को प्रदान की थी, तो आज भारत-चीन सीमा विवाद न होकर तिब्बत-चीन सीमा विवाद होता । चीन को ल्हासा पर अधिकार देकर प्रधानमन्त्री ने चीनी लोगों को अपनी सेनाएँ भारत की सीमा पर लाने में पूरी ।”

यद्यपि दोनों देशों के मध्य गतिरोधों को दूर करने के प्रयास वर्ष 1968 से ही शुरू हो गए थे । वर्ष 1988 में राजीव गाँधी ने चीन की यात्रा करके मित्रता की पहल की । वर्ष 2008 में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने भी राजीव गाँधी के नक्शेकदम पर चलते हुए दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध सुधारने की कोशिश की ।

इस दौरान दोनों देशों की ओर से ‘21वीं शताब्दी का साझा लक्ष्य’ दस्तावेज जारी किया गया, जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य व्यापार, विज्ञान एवं तकनीकी आदि क्षेत्रों में अब तक अनेक समझौते हो चुके हैं और दोनों की आर्थिक भागीदारी में वृद्धि हुई है ।

वर्ष 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के पश्चात चीनी राष्ट्रपति श्री शी जिन पिंग की यात्रा के दौरान दोनों देशों के मध्य सीमा विवाद को निपटाने पर चर्चा की गई थी, साथ ही 16 विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे । नि:सन्देह चीनी राष्ट्रपति की इस यात्रा से आपसी भाईचारे की भावना का विकास हुआ है, किन्तु दोनों देशों के सम्बन्ध अभी भी सन्देह के वातावरण में ही ।


Essay #3. भारत-नेपाल सम्बन्ध:

यदि पाकिस्तान और चीन को छोड़ दे, तो भारत के सम्बन्ध अपने अन्य सभी पड़ोसी देशों के प्रति काफी अच्छे है बात अगर नेपाल की करें, तो नेपाल के साथ भारत के सम्बन्ध बहुत ही अच्छे है । उत्तर में नेपाल की सीमा चीन से लगती है, अन्य सभी ओर से यह भारत से घिरा हुआ है । प्राचीनकाल से ही नेपाल और भारत में सांस्कृतिक रूप से बहुत अधिक समानताएँ रही हैं सम्भवत इस कारण दोनों के मध्य कभी कोई विशेष विवाद नहीं रहा ।

आज भी दोनों देशों में एक ‘विशेष सम्बन्ध’ कायम है, जिसके कारण दोनों देशों के नागरिक बिना किसी वीजा या पासपोर्ट के एक-दूसरे के देश में प्रवेश कर सकते है ।  भारत-नेपाल के मध्य वर्ष 1950 में शान्ति एवं मैत्री सन्धि भी हो चुकी है, जिसके अन्तर्गत दोनों देश सुरक्षा की दृष्टि से पारस्परिक सहयोग करेंगे और किसी भी भ्रामक स्थिति में परस्पर संवाद स्थापित करके मित्रता के सम्बन्ध का निर्वाह करेंगे ।

नेपाल अपेक्षाकृत एक गरीब राष्ट्र है, इसलिए भारत एक अच्छा पड़ोसी होने के नाते आर्थिक रूप से भी उसकी सहायता करता रहता है ।  वर्ष 1950 की सन्धि के अन्तर्गत भारत ने नेपाल को न केवल Re.1.50 बिलियन के पेट्रोलियम उत्पाद उपलब्ध कराए, बल्कि चावल, गेहूँ मक्का, चीनी आदि के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबन्ध भी हटा लिए । फरवरी, 1996 में भारत-नेपाल के मध्य महाकाली नदी के पानी और बिजली को साझा करने का समझौता भी हुआ ।

वर्ष ने नेपाल में लोकतन्त्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उसे शान्ति और विकास की प्रक्रिया में हरसम्भव सहायता देने का आश्वासन दिया । वर्ष 2014 में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल यात्रा के दौरान उसे 10,000 करोड़ नेपाली रुपये की सहायता प्रदान करने की घोषणा की । पिछले 17 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमन्त्री की यह पहली आधिकारिक यात्रा थी ।


Essay #4. भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध:

भारत के पूर्व में स्थित बांग्लादेश पहले पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था । यह पहले पाकिस्तान का ही हिस्सा था, लेकिन पाकिस्तानी सरकार के तानाशाही रवैये के कारण तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को दमन का शिकार होना पडा । उस समय बहुत सारे बांग्लादेशियों ने भारत में शरण ली ।

तब मजबूरन भारत को सैन्य हस्तक्षेप करना पडा । भारतीय प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी और अन्तर्राष्ट्रीय जगत् के सम्मिलित प्रयासों द्वारा 6 दिसम्बर, 1971 को बांग्लादेश को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई ।

यद्यपि जनसंख्या के दृष्टिकोण से बांग्लादेश विश्व का दूसरा सबसे बडा मुस्लिम देश है, लेकिन यह आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है, इसलिए भारत बांग्लादेश को यथा सम्भव सहयोग प्रदान करता है । उल्लेखनीय है कि बाग्लादेशवासी भारत को ‘बड़े भाई’ की भूमिका में देखते हैं, फिर भी अगस्त, 1975 तक भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध अधिक घनिष्ठ नहीं थे ।

बाद में बांग्लादेश में आवामी लीग के सत्ता में आने से दोनों देशों के सम्बन्धों में गरमाहट आई । दिसम्बर, 1997 में दोनों देशों के मध्य 30 साल तक के लिए गंगा नदी के जल बँटवारे पर समझौता हुआ । इसमें दोनों देशों की ओर से बाढ़ की चेतावनी और तैयारियों के मुद्दे पर भी सहयोग करने की बात हुई ।

वर्तमान समय में, दोनों देशों के बीच मैत्री सम्बन्ध तो अवश्य हैं, लेकिन कुछ मुद्दों पर विवाद की स्थिति बनी हुई है । बांग्लादेश समय-समय पर पडुआ और न्यू मूर द्वीप पर अपना दाबा करता रहता है, जोकि वर्ष 1971 से पूर्व से ही भारत के नियंत्रण में थे ।

इसके अलावा, गंगा नदी के पानी की साझेदारी और बंगाल की खाडी के आधिकारिक क्षेत्र पर भी दोनों में विवाद रहता है । इन सबके अतिरिक्त, बांग्लादेश में उसका जैसे आतंकवादी संगठन भी सक्रिय है, जिनके माध्यम से पाकिस्तान की आई एस आई संस्था भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देती है एक अनुमान के अनुसार, भारत में 20 लाख से भी अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं ।

भारत जब भी इस समस्या को उठाता है, तो बांग्लादेश की ओर से यही उत्तर मिलता है कि भारत में एक भी बांग्लादेशी प्रवासी नहीं है । इस समस्या के हल के लिए वर्ष 2002 में भारत ने मील से अधिक लम्बी सीमा पर बाढ़ लगवाई, परन्तु इससे भी कोई विशेष लाभ नहीं हुआ ।

कुल मिलाकर देखा जाए, तो सांस्कृतिक रूप से समानता होते हुए भी दोनों देशों के बीच कुछ विवादित मुद्दे हैं, लेकिन इन्हें बातचीत के जरिये सुलझाया जा सकता है ।  अभी हाल ही में (जून, 2014) भारतीय विदेश मन्त्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने बांग्लादेश के साथ सम्बन्धों को सकारात्मक दिशा देते हुए ‘मैत्री एक्सप्रेस सेन की आवृत्ति बढ़ाने, ढाका से गुवाहाटी और शिलांग तक बस सेवा आरम्भ करने, बांग्लादेश को त्रिपुरा से 100 मेगावाट बिजली उपलब्ध कराने तथा वहाँ एक विशेष आर्थिक जोन के विकास करने की घोषणा की है ।

इस दौरान बांग्लादेश के विदेश मन्त्री श्री अबुल हसन महमूद अली ने कहा था- ”बांग्लादेश भारत का नम्बर एक मित्र बनना चाहता है और देश में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने और ऑटोमोबाइल, ऊर्जा व उत्पादन के क्षेत्र में निवेश करने के लिए भारतीय कम्पनियों को आमन्त्रित करता है ।” आने वाले समय में दोनों देशों के बीच सम्बन्ध निश्चित तौर पर बेहतर ही होंगे ।


Essay #5. भारत-भूटान संबंध:

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए, तो भारत और भूटान के सम्बन्ध काफी घनिष्ठ रहे हैं । अगस्त, 1949 में दोनों देशों ने मैत्री सन्धि पर हस्ताक्षर किए, जिसके अन्तर्गत दोनों देश पारस्परिक रूप से शान्ति बनाए रखने के लिए एक-दूसरे के आन्तरिक मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे यद्यपि भूटान की सरकार अपने विदेशी सम्बन्धों के विषय में भारत सरकार की सलाह से निर्देशित होने की बात से सहमत थी तथापि 8 फरवरी, 2007 में भूटान और भारत के बीच करीबी दोस्ती और सहयोग के स्थायी सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए इस सन्धि को संशोधित किया गया ।

अब भारत न केवल भूटान का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्बन्धों को दिशा देने में मार्गदर्शन करेगा, बल्कि दोनों देश राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर भी सहयोग करेंगे और इनमें से कोई भी देश अपनी जमीन का उपयोग दूसरे के अहित के लिए नहीं करेगा ।

इस संशोधन के बाद एक स्वतन्त्र और सम्प्रभु राष्ट्र के रूप में भूटान की स्थिति मजबूत हुई है वर्ष 2008 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह ने भूटान की यात्रा कर उसे लोकतन्त्र की स्थापना के लिए प्रेरित किया और भूटान से बिजली आयात करने का समझौता किया ।

भूटान में भारतीय कम्पनी टाटा पावर द्वारा एक पनबिजली बाँध निर्मित किया गया है । इससे न केबल भूटान में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं, बल्कि इस बाँध द्वारा उत्पादित बिजली भारत की बढती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत को निर्यात भी की जाती है ।

इससे भूटानी अर्थव्यवस्था का विकास हुआ है । इस बाँध परियोजना के कारण भूटानी अर्थव्यवस्था में 20% उछाल आया हो जो विश्व में दूसरी सर्वाधिक वृद्धि दर है । भारत, भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश भी है ।

अगस्त, 2013 में भूटान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने भारत की यात्रा की, तब भारत सरकार ने छान की अर्थव्यवस्था को वित्तीय सहायता देते हुए उसे मिलियन अमेरिकी डॉलर देने का समझौता किया । भूटान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है, इसलिए जून, 2014 में वर्तमान भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भूटान को चुना ।

उनकी इस यात्रा का उद्देश्य पारस्परिक सहयोग को बढावा देना था । इस दौरान उन्होंने भूटान के उच्चतम न्यायालय परिसर का उद्‌घाटन किया और भूटान को सूचना प्रौद्योगिकी एवं डिजिटल क्षेत्र में सहयोग देने का वादा किया । निश्चित रूप से आने वाले समय में भूटान के साथ हमारा रिश्ता और गहरा होगा ।


Essay # 6. भारत-म्यांमार सम्बन्ध:

भारत के अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर और मिजोरम राज्यों से सटा म्यामांर भारत के पूर्व में स्थित है । अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण म्यामांर भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ऐतिहासिक रूप से भारत और म्यामांर काफी करीबी देश रहे हैं । वर्ष 1948 में म्यामांर की स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत ने म्यामांर के साथ मजबूत सांस्कृतिक और वाणिज्यिक सम्बन्ध स्थापित किए ।

बाद में म्यामांर में सेना द्वारा तख्तापलट करने से दोनों देशों के सम्बन्धों में तनाव आ गया, क्योंकि भारत ने म्यामांर में लोकतन्त्र के दमन की कड़ी निन्दा की थी, फिर भी भू-राजनीतिक चिन्ताओं के चलते भारत ने म्यामांर के साथ अपने सम्बन्धों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया ।

इसी उद्देश्य के चलते वर्ष 1987 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी ने म्यामांर की यात्रा की, परन्तु वर्ष 1988 में लोकतन्त्र विरोधी आन्दोलन के चलते भारत में म्यामांर शरणार्थियों की संख्या बहुत तीव्र गीत से बढी, जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध और भी बिगड गए ।

इस दौरान चीन ने म्यामांर के साथ नजदीकी बढानी चाही, जिसे भारतीय राजनीतिको ने चिन्ता की दृष्टि से देखा, इसलिए वर्ष 1998 के बाद बने प्रधानमन्त्रियों (विशेष रूप से पी बी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी) ने म्यामांर के साथ सम्बन्ध सुधारने पर जोर दिया ।

वर्ष 2010 में लोकतन्त्र की स्थापना के बाद भारत-म्यामांर सम्बन्धों में खुशहाली का दौर शुरू हुआ है । वर्ष 2012 के अन्त में भारत यात्रा पर आई म्यामांर की लोकतन्त्र समर्थक नेता आग साग सु ची ने कहा था- ”मैं खुद को आशिक रूप से भारतीय नागरिक मानती हूँ ।”

म्यामांर की नोबेल पुरस्कार प्राप्त नेता के इस कथन से दोनों देशों का आपसी प्यार प्रदर्शित होता है । इन्होंने 60 के दशक में दिल्ली स्थित कॉलेज से ही शिक्षा ग्रहण की थी । हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह वर्ष 2012 और 2014 में म्यामांर गए थे । वर्ष 2013 में भारत ने म्यामांर को विकास के लिए 500 मिलियन अमोरका डॉलर का ऋण दिया है ।

इसके अतिरिक्त, मौजूदा दौर में भारत म्यामांर का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है । म्यामांर के कुल निर्यात में भारत का 25% हिस्सा है । दोनों देशों की सरकारें कृषि, दूरसंचार, सूचना एवं प्रौधोगिकी, स्टील, तेल प्राकृतिक गैस, खाद्य आदि मुद्दों पर एक-दूसरे का सहयोग कर रही है ।

इसी को ध्यान में रखते हुए 18 फरवरी, 2001 में दोनों देशों ने 260 किमी लम्बे भारत-म्यामांर मैत्री मार्ग का उद्‌घाटन किया । इसे मुख्य रूप से भारतीय आर्मी बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन ने बनाया है, जिसका मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के व्यापारिक सम्बन्धों को मजबूत करना हे भारत सरकार म्यामांर के साथ व्यापार बढाने के लिए जल, थल और वायु मार्गों के विस्तार पर ध्यान केन्द्रित कर रही है ।

इसी क्रम में, भारत और म्यामांर के बीच 3,200 किमी लम्बे, 4 लेन वाले त्रिकोणीय हाई – वे के निर्माण को लेकर समझौता हुआ है, जोकि वर्ष 2016 तक बनकर तैयार हो जाएगा । इस प्रकार, भारत और म्यामांर मिलकर अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को नया आयाम दे रहे हैं ।

हमारे वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नवम्बर, 2014 में आसियान एवं पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान म्यामांर जाकर दोनों देशों की मित्रता को और सुदृढ़ किया है । आशा है भविष्य में हम एक-दूसरे से और नजदीक हो सकेंगे ।


Essay # 7. भारत-श्रीलंका सम्बन्ध:

हिन्द महासागर में स्थित श्रीलंका भारत के दक्षिण में स्थित है पाक जलडमरूमध्य, दोनों राष्ट्रों के मध्य की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा है । आमतौर पर, श्रीलंका और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे हैं, लेकिन श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान भारतीय हस्तक्षेप से दोनों देशों के सम्बन्ध बुरी तरह प्रभावित हुए ।

श्रीलंका में हुए रह युद्ध और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम १७७५ की आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए वर्ष 1987 में भारत ने ‘पवन’ ऑपरेशन के तहत इण्डियन पीस कीपिंग फोर्स तक को श्रीलंका भेजा । भारत का उद्देश्य श्रीलंका को गृह युद्ध से उबारना था, परन्तु इसका उल्टा ही परिणाम सामने आया ।

श्रीलंका में बसे तमिल समुदाय ने इसे सन्देह की दृष्टि से देखा और इसी सन्देह के चलते श्रीलंका में सक्रिय लिट्टे संगठन ने भारत को बहुत बडा आघात पहुँचाया । लिट्टे ने मानव-बम का प्रयोग कर 21 मई, 1991 को हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी की हत्या कर दी ।

भारत के लिए यह घटना दिल दहला देने वाली थी । इस पर कडी कार्यवाही करते हुए भारत ने लिट्‌टे को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया । इस पूरे घटनाक्रम में श्रीलंका के साथ भारत का सम्बन्ध कमजोर पड गया, हालाँकि बाद में दोनों देशों के सम्बन्ध सुधरने शुरू हुए ।

बीते दशक (वर्ष 2001-10) में दोनों देशों के सम्बन्धों में गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तन आया है । राजनीतिक सम्बन्धों के साथ-साथ व्यापार निवेश, रक्षा आदि क्षेत्रों में भी द्विपक्षीय संबंध मजबूत हुए हैं । इस समय भारत-श्रीलंका ने और अनेक विकशोन्मुखी योजनाओं का संचालन किया है । वर्ष 2006-07 में भारत ने श्रीलंका को Rs.28 करोड़ की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई ।

दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को लेकर वर्ष 2010 को सबसे अधिक सफल वर्ष कहा जाता है, क्योंकि इस वर्ष श्रीलंका ने भारत को 45% अधिक निर्यात किया । इस समय इण्डियन नेशनल थर्मल पावर कॉपरिशन (NTPC) सामपुर (श्रीलंका) में 500 मेगावाट की क्षमता का पावर प्लाण्ट निर्मित कर रहा है ।

कहा जाता है कि यह परियोजना भारत-श्रीलंका सम्बन्धों को एक नए स्तर पर ले जाएगी । वैसे श्रीलंका ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है । फरवरी, 2013 में श्रीलंका के राष्ट्रपति श्री महिन्दा राजपक्षे ने भगवान बुद्ध की नगरी बोधगया की यात्रा की थी ।

तब तमिल सियासत की ओर से उनका विरोध प्रदर्शन भी किया गया था । हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह ने भी मार्च, 2014 में श्रीलंका की यात्रा की थी और उन्होंने वहाँ के राष्ट्रपति से श्रीलंका द्वारा गिरफ्तार किए गए 32 भारतीय मछुआरों को मुक्त करने का अनुरोध किया था ।

इधर श्रीलंका द्वारा न सिर्फ हमारे नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को आमन्त्रण मिला है, बल्कि उसने मौत की सजा का सामना कर रहे पाँच भारतीय मछुआरों को रिहा कर भारत के साथ सद्‌भावना भी व्यक्त की है । भविष्य में हमारे रिश्ते अवश्य ही और मजबूत होंगे ।


Essay # 8. भारत-मालदीव सम्बन्ध:

श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित मालदीव 1200 से अधिक छोटे-छोटे द्वीपों का समूह है । हिन्द महासागर में स्थित यह देश सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए भारतीय विदेश नीति में मालदीव को विशेष स्थान प्राप्त है ।

वर्ष 1966 में मालदीव की स्वतन्त्रता के बाद से ही भारत ने मालदीव के साथ दृढ़ सांस्कृतिक, आर्थिक एवं रक्षा सम्बन्ध स्थापित किए हैं । वर्ष 1988 में भारत ने आतंकवादी संगठन लिट्टे के विरुद्ध मालदीव को सैन्य सहायता उपलब्ध कराई ।

भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ के तहत मालदीव में तख्तापलट होने से रोक दिया जिसकी अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, नेपाल, बांग्लादेश आदि सहित सभी देशों ने प्रशंसा की । ‘कैक्टस’ अभियान की सफलता के बाद भारत और मालदीव के द्विपक्षीय सम्बन्धों में उल्लेखनीय विस्तार हुआ ।

इस समय भारत विभिन्न क्षेत्रों में मालदीव को विकास की ओर ले जा रहा है और यथा सम्भव वित्तीय सहायता दे रहा है । अप्रैल, 2006 में भारतीय नौसेना ने मालदीव को एक फास्ट अटैक क्राफ्ट उपहार में दिया था ।

मालदीव एक छोटा और अपेक्षाकृत कम विकसित देश है, जिस पर आतंकवादी संगठनों की बुरी नजर रहती है । अतः वर्ष 2009 में नई दिल्ली ने मालदीव के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए है, जिसके तहत भारत मालदीव की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने में अपना योगदान देगा ।

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति श्री मोहम्मद नशीद ने अपने पद से इस्तीफा देने और फिर वर्ष 2013 में वहाँ की एक अदालत के द्वारा गिरफ्तारी वारण जारी किए जाने के पश्चात् भारतीय उच्चायोग में शरण ली थी । उच्चायोग से जाते समय उन्होंने भारतीयों का आभार व्यक्त करते हुए कहा था- ”पनाह के दिनों में आपके उपकार और आतिथ्य के लिए शुक्रिया ।”

तब भारत ने मालदीव की सभी बडी पार्टियों से शान्ति और धैर्य बनाए रखने की अपील की थी और दोनों देशों के मध्य सकारात्मक सम्बन्ध कायम रखने की उम्मीद जाहिर की थी । आशा है पूर्व की तरह आगे भी भारत और मालदीव के मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध कायम रहेंगे ।


Essay # 9. भारत-अफगानिस्तान सम्बन्ध:

पारम्परिक रूप से भारत और अफगानिस्तान के बीच मजबूत और मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे हैं । पिछले कुछ दशकों से अफगानिस्तान में तालिबान का आतंक रहा है । तालिबानी आतंकवादी हमारे दो राजनयिकों की हत्या कर चुके हैं । वर्ष 2013 में आतंकवादियों ने अफगानिस्तान में रह रही भारतीय लेखिका सुष्मिता बनर्जी को भी अपना शिकार बनाया था ।

भारत एकमात्र दक्षिण-एशियाई देश है, जिसने तालिबान के उन्मूलन के लिए किए गए सोवियत रूस के सैन्य अभियान का समर्थन किया था । इस समय भारत, अफगानिस्तान के विकास के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण पर उसे आर्थिक और सैन्य सहायता उपलब्ध करा रहा है ।

अफगानिस्तान भारत को अपना ‘भाई राष्ट्र’ मानता है । इस समय भारत अफगानिस्तान में सबसे बडा क्षेत्रीय निवेशक है और उसके पुनर्निर्माण के लिए सबसे अधिक प्रतिबद्ध है ।  बहुत सारे भारतीय कामगार और भारतीय सेना का कुछ भाग अफगानिस्तान में बडे पैमाने पर सडक मार्ग, रेलमार्ग, अस्पताल, स्कूल आदि के निर्माण कार्यों में संलग्न है ।

अफगानिस्तान में भारत के शान्ति प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र संघ भी सराहनीय मानता है । वर्तमान समय में अमेरिकी सेना आईएसएफ अफगानिस्तान में शान्ति कायम रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है, पर अमेरिका अब अपनी सेना की इस टुकडी को अपने देश लौटाना चाहता है ।

हमारे वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि अमेरिका को वहाँ से अपनी सेना को धीरे-धीरे चरणबद्ध ढंग से हटाना चाहिए, ताकि बही लोकतन्त्र की जडे मजबूत हो सकें श्री मोदी ने सितम्बर, 2014 में श्री अहमदजई के अफगानिस्तान के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर पूरा सहयोग करने का वादा किया है । आशा है भविष्य में हमारी मित्रता और प्रगाढ होगी ।

यदि सभी पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्धों की समीक्षा की जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान और चीन के अतिरिक्त अन्य सभी देशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हैं । भारत दक्षिण एशिया का एक प्रभावशाली राष्ट्र है, लेकिन वह अपने पडोसी देशों के साथ मधुर व्यवहार करता है ।

इसके पडोसी देश इसे ‘बडे भाई’ की भूमिका में देखते हैं और भारत भी अपनी शान्तिप्रिय छवि के अनुसार उन्हें उचित सहायता प्रदान करता है एवं उनके बिकास में सहयोग देता है । प्राकृतिक आपदाओं के समय भारत आगे बढकर अपने पडोसियों की सहायता करता है ।

इनमें म्यामांर (नरगिस चक्रवात), श्रीलंका और मालदीव (सुनामी) के उदाहरण उल्लेखनीय है । वैसे भारत की कोशिश पाकिस्तान और चीन के साथ अपने सम्बन्ध सुधारने की है, परन्तु इस प्रक्रिया में उन्हें भी सहयोग देना होगा ।

चीन और पाकिस्तान को भी समझना होगा कि भारत के साथ उनके मैत्री सम्बन्ध उनके हित में ही होंगे ।  भारत अपनी उन्नति के साथ-साथ अपने पड़ोसी को भी उन्नत देखना चाहता है । अतः वह दक्षिण एशिया में सदैव सकारात्मक भूमिका अदा करता रहेगा और समयानुकूल पडोसी राष्ट्रों के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करता रहेगा ।


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