भारतवर्ष पर निबंध! Here is an essay on ‘India’ in Hindi language.

”भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ ?

फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल जहाँ ।

सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है ?

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उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन ? भारतवर्ष है ।”

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने इन पंक्तियों के द्वारा भारतवर्ष को महिमामण्डित किया है, किन्तु इन पंक्तियों में कोई अतिशयोक्ति नहीं, अपितु सच्चाई है, क्योंकि एक समय भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था और तब यह धर्म, साहित्य, कला, विज्ञान, कृषि आदि क्षेत्रों में विश्व में सबसे आगे था ।

भारत को संसार में विश्व गुरु की उपाधि दी गई थी । यहाँ की सभ्यता-संस्कृति से समूचा विश्व प्रभावित था । चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत की प्रशंसा इन शब्दों में की है- ”धन्य है वह भारत जहाँ न्यायालय है पर कोई अपराधी नहीं; कारागार है, पर कोई बन्दी नहीं; धर में सम्पूर्ण समृद्धि है, पर ताले नहीं ।”

मोहम्मद इकबाल की लिखी ये पंक्तियाँ भी भारतवर्ष की श्रेष्ठता सिद्ध करती हैं- “सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ।” वास्तव में, भारत दुनिया का एक ऐसा देश है, जहाँ प्राकृतिक विविधताओं के साथ-साथ भाषा, रहन-सहन आदि क्षेत्रों में भी विविधताएँ पाई जाती हैं ।

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बावजूद इसके सम्पूर्ण देश एकता के सूत्र में बँधा है । यही कारण है कि इसे दुनिया का एक अनोखा देश कहा गया है । भारत की सभ्यता-संस्कृति एवं प्राकृतिक सुन्दरता से अभिभूत होकर हर वर्ष लाखों विदेशी पर्यटक यहाँ भ्रमण के लिए आते हैं । तमी तो अपने देश की विशेषता का वर्णन करते हुए कवि ‘जयशंकर प्रसाद’ ने लिखा है-

”अरुण यह मधुमय देश हमारा,

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा”

भारत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में 8°4’ से 37°7’ उत्तरी अक्षांश और 68°7’ से 97°25’ पूर्वी देशान्तर के बीच एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है । यह पूर्व से पश्चिम तक 2,933 किमी तथा उत्तर से दक्षिण तक 3,214 किमी में फैला है ।

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इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है । क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से यह विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है । इसकी जनसंख्या सवा अरब है । जनसंख्या के दृष्टिकोण से यह चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है ।

इसकी उत्तरी सीमा हिमालय पर्वत से घिरी है, जिसके दूसरी ओर चीन, नेपाल तथा भूटान स्थित हैं । इसके पूर्व में म्यांमार एवं बांग्लादेश हैं तथा इसकी पश्चिमी सीमा की ओर पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान है ।

भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर है । भारत का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है । भारतीय पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, महाराजा दुष्यन्त के वीर पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा ।

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण करने बाले यूनानियों ने इसे इण्डिया कहना शुरू किया तथा मुस्लिम इतिहासकारों ने इसे हिन्द अथवा हिन्दुस्तान के रूप में सम्बोधित किया ।

इन नामों के अतिरिक्त जम्बूद्विप, आर्यावर्त, भारतखण्ड इत्यादि इसके प्राचीन नाम हैं । अपने हजारों साल के इतिहास में इसे कई विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा । अधिकतर विदेशी आक्रमणकारी भारतीय सभ्यता-संस्कृति में इस तरह पुल-मिल गए, मानो वे यहीं के मूल निवासी हो ।

शक, हूण इत्यादि ऐसे ही विदेशी आक्रमणकारी थे । विदेशी आक्रमणकारियों के आगमन एवं यहाँ की सभ्यता-संस्कृति में घुल-मिल जाने का सिलसिला मध्यकालीन मुगलों के शासन तक चलता रहा । अठारहवीं सदी में जब अंग्रेजों ने भारत के कुछ हिस्सों पर अधिकार जमाया, तो पहली बार यहाँ के लोगों को गुलामी का अहसास हुआ ।

अब तक सभी विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत को अपना देश स्वीकार कर यहाँ शासन किया था, किन्तु अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार करने के बाद अपने देश इंग्लैण्ड को धन-धान्य से परिपूर्ण करने के लिए इसका पूरा-पूरा शोषण करना शुरू किया ।

उन्नीसवीं शताब्दी में जब अंग्रेजों ने मुगलों का शासन समाप्त कर पूरे भारत पर अपना अधिकार कर लिया, तो उनके शोषण एवं अत्याचार में और भी वृद्धि होने लगी, फलस्वरूप भारतीय जनमानस का जीवन दूभर हो गया ।

भारतमाता गुलामी की जंजीरों में कराहने लगी, तब “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” में विश्वास करने वाले स्वतन्त्रता के दीवानों ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के संघर्ष का बिगुल फूँक दिया । अन्ततः 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतन्त्रता हासिल हुई ।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा है- ”हमारी भारत-भूमि की एक बड़ी विशेषता है कि यहाँ कितने भी उतार-चढ़ाव क्यों न आ जाएँ, पुण्यशाली आत्माएँ यहाँ जन्म लेती ही हैं ।”

आजादी प्राप्त करने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने के साथ ही हमारा देश गणतन्त्र हुआ । भारतीय प्रजातन्त्र में लिंग, जाति, धर्म इत्यादि किसी भी आधार पर नागरिकों में विभेद नहीं किया जाता । धर्मनिरपेक्षता भारतीय गणतन्त्र की एक प्रमुख विशेषता है ।

भारत में कई धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं, जिनके रहन-सहन एवं आस्थाओं में अन्तर तो है ही, साथ ही उनकी भाषाएँ भी अलग-अलग हैं । इन सबके बावजूद यहाँ अनेकता में एकता का संगम दिखाई पड़ता है । राष्ट्रीयता के लिए भौगोलिक सीमाएँ राजनीतिक चेतना और सांस्कृतिक एकबद्धता अनिवार्य होती है ।

यद्यपि प्राचीनकाल में हमारी भौगोलिक सीमाएँ इतनी व्यापक नहीं थीं और यहाँ अनेक राज्य स्थापित थे, तथापि हमारी संस्कृति और धार्मिक चेतना एक थी । कन्याकुमारी से हिमालय तक और असोम से सिन्ध तक भारत की संस्कृति और धर्म एक थे, यही एकात्मकता हमारी राष्ट्रीय एकता की नींव थी ।

भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अपनी-अपनी अलग परम्पराएँ, आस्थाएँ एवं रीति-रिवाज थे, किन्तु समूचा भारत एक सांस्कृतिक सूत्र में आबद्ध था । इसी को अनेकता में एकता एवं विविधता में एकता कहा जाता है, जो पूरी दुनिया में हमारी अलग पहचान स्थापित कर हमारे गौरव को बढ़ाता है ।

भारत प्राकृतिक विविधताओं से परिपूर्ण देश है । इसके उत्तर में बर्फीले पर्वतों की चोटियाँ हैं, तो पश्चिम एवं दक्षिण में यह समुद्रों से घिरा है । भारत में वर्षभर में छ: ऋतुएँ होती हैं- ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, शिशिर, हेमन्त एवं बसन्त । भारत की जलवायु उष्णकटिबन्धीय मानसूनी है ।

शिमला, कश्मीर, कुल्लू, मनाली, मसूरी, ऊटी, नैनीताल, पचमढ़ी, दार्जिलिंग, माउण्ट आबू, देहरादून इत्यादि प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण भारत के खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं ।

सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, महानदी इत्यादि भारत की प्रमुख नदियाँ हैं । भारत के खूबसूरत जंगलों में अनोखी जैविक विविधता देखने को मिलती है ।

खूबसूरत हरे-भरे पेड़, अनेक प्रकार के फूल, हजारों प्रकार के पशु-पक्षी इत्यादि मिलकर भारत की खूबसूरती में चार-चाँद लगाते हैं । हजारों विशेषताओं से परिपूर्ण भारत को इस समय कुछ आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है ।

धार्मिक कट्टरता, जाति प्रथा, अन्धविश्वास, नारी-शोषण, दहेज प्रथा, सामाजिक शोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या बुद्धि, भ्रष्टाचार, गरीबी इत्यादि हमारी प्रमुख सामाजिक समस्याएँ हैं, तथा जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक-विषमता, भ्रष्टाचार, गरीबी, सामाजिक शोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया इत्यादि भारत में आर्थिक विकास की कुछ मुख्य चुनौतियाँ हैं ।

देश एवं समाज की वास्तविक प्रगति के लिए इन आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं का शीघ्र समाधान आवश्यक है । लगभग एक हजार वर्षों की परतन्त्रता के बाद अनेक संघर्षों व बलिदानों के फलस्वरूप हमें स्वाधीनता प्राप्त हुई थी ।

स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद हमारी एकता सुदृढ़ तो हुई, परन्तु साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता, अज्ञानता और भाषागत अनेकता ने पूरे देश को आक्रान्त कर रखा है ।

राष्ट्रीय स्तर पर संगठित राष्ट्र एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरता है । सामूहिक शक्ति का उपयोग करके कोई भी देश किसी भी तरह का रचनात्मक निर्माण कार्य कर सकता है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अभी तक हमारा देश हमारी एकता के कारण ही तेजी से विकास कर रहा है ।

जो राष्ट्र संगठित होता है, उसे न कोई तोड़ सकता है और न ही कोई उसका कुछ बिगाड़ सकता है । वह अपनी एकता सामूहिक प्रयास के कारण सदा प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है । इसलिए अपने प्यारे भारतवर्ष की एकता और अखण्डता की रक्षा करना हमारा परम कर्त्तव्य है ।

आशा है विश्व को प्रेम, अहिंसा और शान्ति का सन्देश देने वाले इस देश का वर्तमान और भविष्य भी इसके अतीत की तरह ही समृद्ध व गौरवशाली रहेगा । महात्मा गाँधी ने कहा भी है- “संसार ठण्ड से काँप उठा है, यदि दुनिया को गर्मी आने वाली है, तो वह हिन्दुस्तान से ही आएगी ।”

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