Read this article in Hindi to learn about the seven main components of environmental audit. The components are:- 1. पारिस्थितिकी ऋण (Ecological Debt) 2. ब्लैक कार्बन (Black Carbon) 3. कार्बन कर्ज (Carbon Debt) 4. कार्बन क्रेडिट (Carbon Credit) 5. कार्बन फुटप्रिन्ट (Carbon Footprint) 6. कार्बन कुण्ड (Carbon Sink) 7. कार्बन व्यापार (Carbon Trading).

Component # 1. पारिस्थितिकी ऋण (Ecological Debt):

पारिस्थितिकी कर्ज का संबंध विकासशील देशों के संसाधनों का विकसित देशों द्वारा दोहन से है । यूँ तो पारिस्थितिकी कर्ज एक नई अवधारणा है परन्तु इसकी शुरूआत 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन एवं यूरोप में औद्योगिक क्रांति के समय से हो चुकी थी । अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण संगठन के अनुसार विकसित देशों ने विकासशील देशों के संसाधनों को बुरी तरह लूटा है ।

धनी-विकसित देशों की उन्नति का आधार गरीब देशों के संसाधन रहे हैं । विकसित देशों ने न केवल विकासशील देशों का अपने लाभ के लिये उपयोग ही नहीं किया बल्कि इनके द्वारा निष्कासित ग्रीन हाऊस गैसों के विसर्जन से भू-मण्डलीय तापन (Global Warming) की परिस्थिति उत्पन्न हो रही है ।

भूमण्डलीय तापन के कारण विश्व स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है । भूमण्डलीय व तापन से विश्व के विकसित एवं विकासशील देश सभी प्रभावित हो रहे हैं । जंगलों का काटना तथा मांस-उत्पादन भी भूमण्डलीय-तापन के लिये जिम्मेदार हैं । विकासशील देशों की सरकारें इस परिस्थिति से निपटने में सक्षम नहीं हैं । विकासशील देशों को गरीबी से उबारने के लिये विकसित-धनी देशों की जिम्मेदारी बहुत अधिक है ।

Component # 2. ब्लैक कार्बन (Black Carbon):

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ब्लैक कार्बन वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन का कार्बन-डाईऑक्साइड (CO2) के पश्चात् दूसरा सबसे बड़ा कारण है । ब्लैक-कार्बन सूर्य की ऊष्मा को अधिक मात्रा में तीव्र गति से सोख लेता है । ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन भौतिक एवं मानवीय दोनों ही कारणों से होता है ।

ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन विशेष रूप से उस समय होता है । जब लकड़ी, कोयले, ईधन पूर्ण रूप से न जले । वाहनों से जलने वाले डीजल लकड़ी को जलाने से प्राय: इस गैस का उत्सर्जन होता है । ब्लैक कार्बन के उत्सर्जन को कम करने का प्रयास करने चाहिये और इस समय ऐसी टेक्नोलॉजी उपलब्ध है जिससे ब्लैक कार्बन को कम किया जा सकता ।

Component # 3. कार्बन कर्ज (Carbon Debt):

विश्व के विकसित एवं विकासशील देशों में ग्रीन-हाऊस गैसों (Green House Gases) का उत्सर्जन समान मात्रा में नहीं है । उदाहरण के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति व्यक्ति कार्बन-उत्सर्जन सात टन प्रतिवर्ष है, जबकि भारत में यह मात्रा केवल आधा टन प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है ।

विकसित देशों में अधिकतर ऊर्जा उपभोग ईधन (कोयला, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, लकड़ी आदि) से होता है जिसके कारण भारी मात्रा में कार्बन-डाई-ऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन होता है । ऐसे प्रदूषण से भूमण्डलीय तापन में वृद्धि होती जा रही है । जिसके फलस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होती जाती है । ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से विशेष रूप से विकासशील एवं गरीब देशों की जनता अधिक प्रभावित होती है ।

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प्राकृतिक आपदाओं से जान-माल की हानि होती है फसलें बर्बाद हो जाती हैं घरों सडकों रेल मार्गों को नुकसान पहुँचता है । ऐसी परिस्थितियों में धनी-विकसित देश आपदा प्रभावित देशों को धन उपलब्ध कराते हैं । वास्तव में विकसित देश गरीब देशों के कर्जदार हैं । साथ ही साथ विकासशील देशों के जंगल तथा सागर एवं महासागर ग्रीन हाऊस गैसों को सोखने का कार्य करते हैं ।

Component # 4. कार्बन क्रेडिट (Carbon Credit):

कार्बन क्रेडिट (Carbon Credit) की अवधारणा की उत्पत्ति क्योटो प्रोटोकॉल से हुई थी, जिसमें 169 देशों ने हिस्सा लिया था । क्योटो प्रोटोकॉल ने कानूनी तौर पर प्रत्येक देश की ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन की सीमा निर्धारित की थी ।

क्योटो प्रोटोकॉल के अनुसार विकसित देशों को ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन पर निम्न फॉर्मूले के आधार पर सीमा निर्धारित करनी है:

(i) ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन क्योटो प्रोटोकॉल की निर्धारित सीमा या उससे कम होना चाहिये ।

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(ii) जो देश ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में सफल हुये हैं, उनको कार्बन-क्रेडिट एवं सर्टिफिकेट (प्रमाण-पत्र) जारी किये जायेंगे । ग्रीन हाऊस गैसों में जलवाष्प कप्ताटा (Water Vapour), कार्बन-डाइ-ऑक्साइड (CO2), मिथेन, नाइट्रस-ऑक्साइड तथा ओज़ोन सम्मिलित हैं ।

Component # 5. कार्बन फुटप्रिन्ट (Carbon Footprint):

कार्बन फुटप्रिंट पृथ्वी पर पाये जाने वाले ऐसे चिन्ह हैं जो मानव की प्रक्रियाओं के कारण उत्सर्जित कार्बन के द्वारा उत्पन्न होते हैं। दूसरे शब्दों में ये चिन्ह पर्यावरण पर मानव के प्रभाव को दर्शाते हैं । इनको कार्बन-डाइ-ऑक्साइड (Carbon Dioxide) की इकाई में मापा जाता है ।

Component # 6. कार्बन कुण्ड (Carbon Sink):

कोई भी वस्तु जो कार्बन मुक्त करने की तुलना में कार्बन को अधिक सोखती हो कार्बन कुण्ड (Carbon Sink) कहलाती है । जंगल, मृदा, सागर, महासागर, जलाशय तथा वायुमण्डल कार्बन का संचय (Store) करते हैं और इनमें से कार्बन का संचार एक से दूसरे में होता रहता है । इस प्रकार का संचार कार्बन चक्र (Carbon Cycle) कहलाता है ।

कार्बन के इस प्रकार के निरंतर में वन एक कार्बन कुण्ड का कार्य करता है । कार्बन कुण्ड प्राकृतिक हो सकता है और मानव द्वारा निर्मित भी । मानव द्वारा बनाये गये कार्बन कुण्डों में (i) कचरा भराई (Landfill), तथा (ii) कार्बन संचय (Storage) स्थल सम्मिलित हैं ।

Component # 7. कार्बन व्यापार (Carbon Trading):

कार्बन व्यापार (Carbon Trading) का प्रचलन 2002 में आरम्भ हुआ था । कार्बन व्यापार सूची में प्रदूषण व्यापार को भी क्योटो प्रोटोकॉल में सम्मिलित किया गया था । ग्रीन हाऊस गैसों (Green House Gases) पर फोकस (Focus) करने के साथ कार्बन व्यापार मानिटर संस्था (Carbon Trading Watch Monitors) प्रदूषण व्यापार का पर्यावरण, पारिस्थितिकी सामाजिक एवं आर्थिक न्याय पर प्रभाव का लेखा-जोखा भी तैयार करती है ।