Read this article in Hindi to learn about the strategies adopted for mitigation of climate change.

जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये निम्नलिखित उपाय उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं:

1. वनरोपण (Afforestation):

सरकारी तथा गैर-सरकारी एजेंसियों उस के द्वारा वृक्षारोपण से पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक उपयोगी तथा स्थिर बनाया जा सकता है । वृक्षारोपण से वनों का क्षेत्रफल बढ़ेगा, जिसका जलवायु पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अनुकूल पड़ता है । इस में सामाजिक वनरोपण की भूमिका भी महत्वपूर्ण है । भारत में बहुत-से क्षेत्र हैं, जिनमें वृक्षारोपण किया जा सकता है ।

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2. ऊर्जा के परंपरागत संसाधनों विकास (Development of Non-Conventional Sources of Energy):

वायुमंडल में परंपरागत ऊर्जा के साधनों के प्रयोग से बहुत धुआँ अर्थात् कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की भारी मात्रा में उत्सर्जन होता है । वायुमंडल में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की कमी करने के लिये वृक्षारोपण की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है इसलिये परंपरागत ऊर्जा के विकल्प ढूँढ़ने होगे । नये ऊर्जा के साधनों में सौर ऊर्जा, पन-ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा तथा भू-तापीय ऊर्जा सम्मिलित हैं । इनका उत्पादन एवं उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए ।

3. पर्यावरण के प्रति विश्व स्तर पर जागरूकता उत्पन्न करना (Global Awareness about Environment):

जलवायु परिवर्तन की समस्या के बारे में अंतर्राष्ट्रीय प्रादेशिक एवं स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है । इसलिये इस मुद्दे पर बहुस्तरीय योजनाएँ तैयार करने की आवश्यकता है । साथ ही साथ बाढ़, सूखा, प्रदूषण, वनों में लगने वाली आग तथा का भी समाधान ढूँढ़ना होगा ।

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4. पर्यावरण शिक्षा (Environmental Education):

पर्यावरण एक अनिवार्य विषय के रूप में सभी कक्षाओं में पढ़ाए जाना चाहिए । पर्यावरण विषय नर्सरी कक्षा से लेकर, स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाया जाना चाहिए । विद्यार्थियों को पर्यावरण एवं प्रदूषण के संबंध में ट्रेनिंग दी जानी चाहिए । इस बारे में संगोष्ठी, सम्मेलन तथा सेमिनार आदि आयोजित किये जाने चाहिए ।

5. हाइड्रोजन ऊर्जा (Hydrogen Energy):

विशेषज्ञों के अनुसार हाइड्रोजन-ईंधन जलवायु परिवर्तन का एकमात्र समाधान हो सकता है क्योंकि हमारे ब्रह्मण्ड में इस तत्व की मात्रा सबसे अधिक है । हाइड्रोजन तत्त्वों को ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके हाइड्रोजन ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है । उपयोगिता के बावजूद हाइड्रोजन ऊर्जा के उत्पादन में बहुत-सी तकनीकी रुकावटें है ।

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6. जैव-मास ऊर्जा (Biomass Energy):

जैव-मास (वनस्पति-सामग्री) भी ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है । इससे वाहनों के लिये ऊर्जा उपलब्ध कराई जा सकती है । जैव-मास लकड़ी, कड़ा-करकट, कचरे तथा जैव-ईंधन से प्राप्त की जाती है । जैव-मास से एल्कोहल तथा इथेनोल भी तैयार की जाती है । जैव-मास ऊर्जा का मुख्य लाभ यह है कि इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है ।

7. विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण (Control on Population Growth in the Developing Countries):

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, विकासशील देशों में तीव्र गति से बढती हुई जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है । अधिक जनसंख्या वृद्धि से विकास की गति मद हो जाती है तथा विकास कार्यों से समाज को अधिक लाभ नहीं पहुँच पाता । ”छोटा परिवार सुखी परिवार” का नारा घर-घर तक पहुँचना चाहिए ।

8. विकसित देशों में उपभोक्तावाद पर अंकुश (Reduction of Consumerism in the Developed Countries):

विश्व के अधिकतर संसाधनों का इस्तेमाल विकसित देश करते हैं । संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा जैसे देशों में उपभोक्तावाद चरम सीमा पर पहुँच चुका है । विकसित देशों के लोगों का जीवन-स्तर बहुत ऊँचा है । उपभोक्तावाद में संसाधनों का दुरुपयोग होता है । देशों में लोगों को फजूलखर्ची के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है ।