व्यापार संरक्षण के पक्ष में आर्थिक और गैर-आर्थिक तर्क | Read this article in Hindi to learn about the economic and non-economic arguments in favour of trade protection. The arguments are:- 1. आर्थिक तर्क (Economic Arguments) 2. गैर-आर्थिक तर्क (Non-Economic Arguments).

हैबरलर ने तर्कों को दो भागों में विभाजित किया है:

(1) आर्थिक और

(2) गैर-आर्थिक ।

ADVERTISEMENTS:

आओ हम इन तर्कों का विस्तार में अध्ययन करें:

(1) संरक्षण का आर्थिक तर्क (Economic Arguments in Favour of Protection) :

i. राजस्व सम्बन्धी तर्क (The Revenue Arguments):

आयात शुल्क लगा कर घरेलू उद्योग को संरक्षण देने का मुख्य उद्देश्य राजस्व अर्जित करना है क्योंकि केवल विदेशी लोग ही कर देते हैं । प्राय: एक कम आय वाला देश जो तीव्र आर्थिक विकास की इच्छा रखता है उसे निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये उपभोग कम करने की आवश्यकता होती है ।

परन्तु नर्कसे के ‘कुचक्र’ के प्रचलन के कारण इसका क्षेत्र सीमित है । नर्कस का कुचक्र इस प्रकार है- ”आय के निम्न स्तर का आवश्यक रूप में अर्थ है बचतों का निम्न स्तर । यदि आय नहीं बढ़ायी जा सकती तो बचतें बढ़ायी जा सकती हैं । परन्तु आय को वांछित सीमा तक नहीं बढ़ाया जा सकता क्योंकि बचतें अपर्याप्त हैं ।”

ADVERTISEMENTS:

इस चक्र को किसी बिन्दु पर तोड़ना है तथा सर्वाधिक स्वीकार्य स्थान है निवेश । अत: नर्कस ने आगे कहा है कि निर्माण गतिविधि के निम्न स्तर के कारण, औद्योगिक क्षेत्र में निवेश लोक-उपयोग्यताओं में आगे नहीं आता क्योंकि उनके पास पूंजी गहन कॉम्पलैक्स होता है और लाभ प्रदता की दर नीचा होती है ।

इसलिये सरकार का कर्त्तव्य है कि सामाजिक अतिरिक्त पूंजी का निर्माण करें जो तभी सम्भव होगा यदि इसके पास पर्याप्त बजटीय साधन होंगे । एक अन्य मार्ग घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने में निहित है ।

कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यदि संरक्षण की इजाजत दे दी जाती है तो पर्याप्त आय नहीं होगी तथा यदि आय की आवश्यकता है तो संरक्षण सम्भव नहीं । इस प्रकार, अधिकतम संरक्षण और अधिकतम राजस्व के बीच प्रतिकूलता है । तथापि, यदि शुल्क सामान्य है तो वह आय और संरक्षण प्राप्त करेंगे ।

ii. आरम्भिक उद्योगों से सम्बन्धित तर्क (Infant Industries Arguments):

ADVERTISEMENTS:

आरम्भिक उद्योगों के तर्क का निर्माण एलेक्जैण्डर हैमिल्टन (1790) और जर्मन अर्थशास्त्रि फ्रैडरिक लिस्ट द्वारा किया गया जिन्होंने इसे प्रस्तावित किया और लोकप्रिय बनाया । उसका मत था कि मुक्त व्यापार के अतिरिक्त उद्योग नियमों द्वारा प्रशासित होते हैं ।

उसने आगे तर्क प्रस्तुत किया कि परम्परावादी अर्थशास्त्री- “यह कल्पना करने में असफल हैं कि पूर्णतया स्वतन्त्र प्रतियोगिता प्रणाली के अन्तर्गत अधिक उन्नत निर्माणकर्त्ता राष्ट्रों में, एक राष्ट्र जो इनसे कम उन्नत है, निर्माण के लिये सुयोग्य होने पर भी अपने बलबूते पर पूर्णतया विकसित निर्माणकारी शक्ति कभी प्राप्त नहीं कर सकता ।”

लिस्ट ने अस्थायी संरक्षण के विचार का समर्थन किया तथा संरक्षण को अपना कार्य कर लेने के तुरन्त पश्चात् वापिस ले लेने का सुझाव दिया । इसलिये, प्रत्येक औद्योगिक देश को चाहिये कि अपने प्रारम्भिक उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से बचाने के उपाय करें क्योंकि यह शक्ति बढ़ाने के लिये आत्म-विश्वास की रचना करते हैं । इस नीति का मौलिक नियम है- ‘शिशु की देखभाल करें, बच्चे का संरक्षण करें और वयस्क को स्वतन्त्र करें ।’

iii. रोजगार सम्बन्धी तर्क (Employment Arguments):

संरक्षण का इस आधार पर भी समर्थन किया जाता है कि यह विशेषतया अल्प विकसित एवं निर्धन देशों में रोजगार के अवसरों का संवर्धन करता है । सन् 1930 के दशक में यह दृष्टिकोण बहुत लोकप्रिय था जब चाक्रिक बेरोजगारी की समस्या विश्व भर में फैली हुई थी ।

यह सामान्य विश्वास है कि सीमा शुल्क लगाना कुछ आयातों को प्रतिबन्धित करने में सहायता करता है जिसके परिणामस्वरूप घरेलू धन की बचत होती है तथा इस राशि का व्यय संरक्षित घरेलू उद्योगों के उत्पादों को खरीदने में किया जायेगा । गुणक और त्वरण प्रभावों के साथ समग्र अर्थव्यवस्था में आय की उत्पत्ति होगी ।

पूंजी वस्तुओं के उद्योगों में शुद्ध निवेश बदले में निवेश और रोजगार को बढ़ायेगा; इसके अतिरिक्त, सीमा शुल्क विदेशी पूंजी को आकर्षित कर सकता है क्योंकि विदेशी उत्पादक देखते हैं कि उनके बाजारों को खतरा है ।

वे चुनौती का सामना करने के लिए अपने उद्योग स्थापित करते हैं, परन्तु मुक्त व्यापार का पक्ष करने वाले इस विचार की व्यवहार्यता के सम्बन्ध में कुछ सन्देह प्रकट करते हैं । उनका विचार है कि क्योंकि निर्यात आयातों के लिये भुगतान करते हैं, सीमा शुल्कों द्वारा आयातों की कमी निर्यातों में भी समान घटाव का कारण बनेंगी ।

इसलिये, संरक्षित उद्योगों में अतिरिक्त रोजगार का कार्यान्वयन आयातों को कम करके किया जा सकता है और निर्यात उद्योगों में बेरोजगार की समान मात्रा द्वारा अधिक निष्क्रियता की जा सकती है । परन्तु, यह दलील त्रुटिपूर्ण है । आधुनिक अर्थशास्त्री अनुभव करते हैं कि सीमा शुल्क रोजगार अवसरों को कम नहीं करते ।

iv. घरेलू बाजार को विस्तृत करने का तर्क (Expanding a Home Market):

सबसे पहले यह तर्क राष्ट्रपति अब्राहाम लिंकन द्वारा प्रस्तुत किया गया था । इस दृष्टिकोण से किसी घरेलू बाजार की रचना और विस्तार सीमा शुल्क की दीवार के पीछे की जा सकती है । यह भी उतना ही सत्य है कि निर्यात बाजार उसी समय कम हो जाता है क्योंकि आयातों में कमी के परिणामस्वरूप निर्यात घट जाते हैं ।

यह भी कहा जाता है कि जब देश में विस्तृत सम्भावना विद्यमान होती है, तो बाहर निर्यात बाजार की खोज करना व्यर्थ है । यदि उद्योग को अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय के लिये व्यवस्थित किया होता तो उत्पादन अधिक होता । केन्ज़ ने ‘विस्तृत होते हुये घरेलू बाजार के तर्क’ का बहुत रुचिकर ढंग से वर्णन किया है ।

v. भुगतानों के सन्तुलन का तर्क (Balance of Trade Argument):

यह विश्वास किया जाता है कि किसी देश में भुगतानों के सन्तुलन में असन्तुलन को ठीक करने के लिये अनुकूल सन्तुलन कायम रखा जाना चाहिये । व्यापार का अनुकूल सन्तुलन तब होता है जब आयातों पर निर्यातों का अतिरेक होता है ।

अत: इस अतिरेक की प्राप्ति के लिये उचित सीमा शुल्क का निर्माण आवश्यक है । विश्व मन्दी के पश्चात् अनेक देशों ने अपने व्यापार के सन्तुलन की स्थिति को सुधारने के स्पष्ट उद्देश्य से अपने सीमा शुल्क को बढ़ाया ।

यह तर्क भी अन्य अनेक दलीलों की भांति भ्रमपूर्ण है:

(i) यदि सभी देशों ने यह नीति अपनानी हो तो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बहुत कम हो जायेगा,

(ii) कोई देश स्थायी निर्यात अतिरेक प्राप्त नहीं कर सकता; देश में आने वाला स्वर्ण कीमतें बढ़ा देगा और आयातों को बढ़ा देगा और

(iii) यदि कोई देश बड़ी मात्रा में स्वर्ण प्राप्त कर लेता है, वह अन्य देशों से वस्तुएं खरीदने के अलावा इससे क्या करेगा?

इन मतों के बावजूद, सीमा शुल्क को, भुगतानों के सन्तुलन में असन्तुलन को ठीक करने के ढंग के रूप में, अवमूल्यन की तुलना में बेहतर माना जाता है ।

vi. क्रय शक्ति का तर्क (Purchasing Power Argument):

एक अन्य तर्क यह है कि आयातों में कमी क्रय शक्ति का उपभोग कर लेगी । इब्राहिम लिंकन ने इस प्रकार टिप्पणी की है- ”मैं सीमा शुल्क के सम्बन्ध में अधिक नहीं जानता, परन्तु मैं नहीं जानता कि मैंने इंग्लैण्ड से कब कोट खरीदा है, मेरे पास कोट है तथा इंग्लैण्ड के पास धन है । परन्तु जब मैं इस देश में कोट खरीदता हूं, मेरे पास कोट होता है और अमरीका के पास धन ।”

यह कथन दो गलत धारणाओं पर आधारित है:

(i) यह धन है न कि वस्तुएं जिसे लोग वास्तव में प्राप्त करते हैं,

(ii) यह कल्पना करता है कि धन के लिये आयातों का भुगतान किया जाता है ।

इसका भाव है कि निर्यातों के लिये आयातों का भुगतान किया जाता है । इस प्रकार जब कोई आयात नहीं है, तो कोई निर्यात भी नहीं हो सकते । हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि कोई विदेशी हमारी वस्तुओं को तब तक नहीं खरीदेगा जब तक कि हम उसकी वस्तुएं नहीं खरीदते । क्रय शक्ति की सम्भाल का तर्क बिल्कुल भ्रमपूर्ण है ।

vii. वैज्ञानिक सीमा शुल्क का तर्क (Scientific Tariff Argument):

अमरीका के निवासियों ने कुछ समय पहले तर्क प्रस्तुत किया था कि सीमा शुल्क को घर में और विदेश में उत्पादन की लागत बराबर करने के लिये लगाया जाये । वैज्ञानिक आधार पर उत्पादन की कम लागत के भय से कुछ देशों में संरक्षण की दलील भी दी जाती है ।

यदि आयातों की लागत देश में उच्च लागत उत्पादक के स्तर तक बढ़ा दी जाती है, तब उचित प्रतियोगिता होगी । तथापि, यह तर्क भी पूर्णतया भ्रामक है । यदि इसे स्वीकार कर लिया जाता है तो कोई अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नहीं होगा, क्योंकि समग्र व्यापार लागतों में अन्तरों पर निर्भर करता है ।

viii. क्षेपण विरुद्ध तर्क (Anti-Dumping Arguments):

घरेलू उद्योग के संरक्षण का इसलिये भी समर्थन किया जाता है कि यह विदेशी उत्पादकों को घरेलू कीमतें घटाने अथवा क्षेपण का मार्ग अपनाने से रोकता है । अन्य शब्दों में, जिस देश के बाजार में वस्तुओं का क्षेपण विदेशी उत्पादकों द्वारा किया जाता है उनके लिये अच्छा होगा कि ऐसे आयातों पर भारी शुल्क लगा कर घरेलू उद्योग का संरक्षण करें ।

कम कीमतों से अस्थायी लाभ को जब उच्च कीमतों से होने वाली अन्तिम हानि के सन्दर्भ में सोचा जाता है तो यह महत्वहीन होता है । कोई भी विदेशी देश किसी अन्य देश में बाजार हथियाने के उद्देश्य से माल भेज सकता है ।

ऐसी परिस्थितियों में आवश्यक होता है, कि घरेलू उत्पादकों को विदेशी डम्पिंग से बचाने के लिये उच्च दर के शुल्क लगा दिये जायें अर्थात् संरक्षण उपलब्ध करके डम्पिंग को रोकना आवश्यक है ।

ix. उद्योग के विविधीकरण का तर्क (Diversification of Industry Argument):

विविधीकरण के पक्ष में जर्मनी के प्रो. लिस्ट द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया है । इस नीति को अत्यधिक विशेषीकरण के कारण असन्तुलित अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में अपनाया गया है । वास्तव में परम्परावादी अर्थशास्त्रियों का विश्वास था कि विशेषज्ञता उन उत्पादों में होनी चाहिये जहां एक प्रतिस्पर्द्धी लाभ स्थित है ।

अब यह कहा जाता है कि इसके साधनों के अनुकूल देश की अर्थव्यवस्था का विविधीकरण किया जाना चाहिये ताकि सभी उद्योगों में सामंजस्यतापूर्ण और सन्तुलित विकास लाया जा सके । तथापि, यह राजनीतिक और आर्थिक आधारों पर भी आवश्यक है क्योंकि थोड़े उद्योगों पर निर्भर करना जोखिमपूर्ण तथा खतरनाक है ।

विविधता को न्यायसंगत ठहराने के लिये निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये गये हैं:

(a) व्यापार की शर्तें आरम्भिक उत्पादकों के विरुद्ध चल रही हैं, इसलिये उन्हें एक ही उत्पाद के अर्जन पर निर्भरता कम करने के लिये अपने निर्यातों में विविधता लानी चाहिये ।

(b) विशेषज्ञता के अन्तर्गत कुछ ही उद्योगों में केन्द्रीकरण रहता है जो बुद्धिमत्ता-पूर्ण पग नहीं है । इसलिये विविधता बहुत महत्व रखती है ।

(c) एक विविधीकृत संरचना मन्दी के जोखिम को कम करती है और देश में अन्य असन्तुलनों को दूर करती है ।

(d) रोजगार, उत्पादकता और आय बढ़ाने के अधिक अवसर ।

(e) एक अर्थव्यवस्था को ऐसे असन्तुलनों से पृथक करने का एक ही मार्ग-देश में संरक्षण द्वारा विविधता की प्राप्ति है ।

x. मुख्य उद्योग का तर्क (Key Industry Argument):

संरक्षण के पक्ष में एक अन्य तर्क मौलिक एवं प्रमुख उद्योग है जो अर्थव्यवस्था को बड़ी मात्रा में दृढ़ता प्रदान करते हैं । वे आर्थिक विकास को शीघ्रतापूर्वक सम्भव बनाते हैं । इसके अतिरिक्त देश की रक्षा को भी दृढ़ता प्राप्त होती है ।

सम्भव है कि उनमें तुलनात्मक लाभ न हो परन्तु मूलभूत तथा मुख्य उद्योगों का विकास अवश्य किया जाना चाहिये और आत्म-निर्भरता की प्राप्ति के लिये तथा विकास दर के स्वचालित संवर्धन के लिये उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिये ।

(2) संरक्षण का गैर-आर्थिक तर्क (Non-Economic Arguments in Favour of Protection):

संरक्षण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं:

i. रक्षा उद्योगों का तर्क (Defence Industries Argument):

एडम स्मिथ ने कहा है कि- ”रक्षा धन सम्पत्ति की प्रचुरता से बेहतर है ।” किसी देश को दृढ़ बनाना आवश्यक है चाहे वह आसर्थिक रूप में समृद्ध न भी हों । अस्त्र-शस्त्र और गोला-बारूद बनाने वाले उद्योग, विद्युत उद्योग, वायुयान बनाने वाले उद्योग आदि देश की सुरक्षा की दृढ़ता के लिये संरक्षण चाहते हैं ।

कभी-कभी कहा जाता है कि सेना की पूर्तियां विदेशों से की जा सकती हैं । यह सत्य है, परन्तु अनुभव दर्शाता है कि हम सदैव इस पर निर्भर करता है तो युद्ध में वह कठिन स्थिति का सामना कर सकता है, इसलिये यह उद्योग देश में ही होने चाहिये । इसलिए रक्षा के दृष्टिकोण से संरक्षण आवश्यक है ।

ii. राष्ट्रीय आत्म-निर्भरता का तर्क (National Self-Sufficiency Argument):

संरक्षण का समर्थन इस आधार पर भी किया जाता है कि कुछ आवश्यक पूर्तियों के लिये राष्ट्र का आत्म-निर्भर होना आवश्यक है । अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अन्यों पर निर्भरता ठीक नहीं है । युद्ध के दौरान जब विदेशी व्यापार बन्द हो जाता है तो विदेशी निर्भरता संकटपूर्ण सिद्ध हो सकती है ।

ऐसी स्थिति में जब युद्ध के बादल सदैव सिर पर मण्डराते रहते हैं तो राष्ट्र की आत्म-निर्भरता बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है । अन्यथा देश, अन्य देशों के राजनीतिक और सैनिक प्रभुत्व का आसानी से शिकार हो जायेगा । इस प्रकार यह देशभक्ति के अनुकूल है ।

iii. सम्भाल का तर्क (Preservation Arguments):

संरक्षण के पक्ष में एक अन्य गैर-आर्थिक तर्क है जनसंख्या की कुछ श्रेणियों अथवा कुछ व्यवसायों की सम्भाल । इस तर्क का समर्थन कृषि शुल्क के लिये, किसी कृषि समुदाय की सामाजिक एवं राजनीतिक कारणों से सम्भाल के लिये किया जाता है ।

मौलिक उद्देश्य केवल कृषकों के हितों की रक्षा करना ही होता है । यह प्रस्तावित किया गया है कि सीमा शुल्कों को कृषि वर्ग की सम्भाल करनी चाहिये क्योंकि यह समाज की रीड़ हड्डी है ।

उदाहरण के रूप में युरापियन देशों ने कैनेडा और आस्ट्रेलिया से सस्ते अनाज के आयात द्वारा गिरती हुई कीमतों की ऐसी स्थिति का सामना किया । इंग्लैण्ड में ”अनाज के कानूनों” द्वारा 1819 में गेहूं के कीमत स्तरों की कायम रखने के लिये और अनाज के उत्पादन को विध्वंस होने से रोकने के लिये शुल्क लगाया गये ।

iv. विलासतापूर्ण एवं हानिकारक वस्तुओं के आयात को रोकने के लिये (To Check the Imports of Luxuries and Harmful Goods):

संरक्षण के पक्ष में प्रस्तुत किया गया एक अन्य तर्क यह है कि यह अनेक हानिकारक और विलासतापूर्ण वस्तुओं के आयात को रोकता है, क्योंकि इन वस्तुओं का आयात लोगों के चरित्र को विपरीत प्रभावित करता है । इन वस्तुओं के हानिकारक प्रभाव से बचने के लिये संरक्षण बहुत सहायक है ।

v. विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिये (To Attract Foreign Capital):

संरक्षण की विधि से विदेशी पूंजी देश में लाई जा सकती है । संरक्षण नीति को ध्यान में रखते हुये लगाये गये आयात शुल्कों से बचने के लिये, विकसित देश, संरक्षण की नीति अपनाने वाले देशों में सीधे अथवा परोक्ष रूप में कर देते हैं । इस प्रकार यह विदेशी पूंजी को आकर्षित करता है जिसका उपयोग देश की बेहतरी के लिये किया जा सकता है ।

vi. बचत में वृद्धि (Increase in Savings):

संरक्षण की नीति का इस आधार पर भी समर्थन किया जाता है कि यह बचतों को प्रोत्साहित करती है । जब विदेशी वस्तुओं के आयात पर, उच्च दर शुल्क लगाये जाते हैं तब ये वस्तुएं महंगी हो जाती हैं ।

फलत: ऐसी आयात की गई वस्तुओं पर उपभोग व्यय जो ठाठ-बाठ के लिये होता है, सरलता से धीमा किया जा सकता है जिससे बचतों में वृद्धि होती है । इस बचत का उपभोग पूंजी वाली वस्तुओं के आयात के लिये किया जा सकता है जिससे पूंजी निर्माण का संवर्धन होता है ।

vii. मूलभूत उद्योग का तर्क (Basic Industries Argument):

मूलभूत उद्योग जैसे लोहा और इस्पात, रसायन, भारी विद्युत वस्तुएं आदि की स्थापना संरक्षण द्वारा की जा सकती है । नि:सन्देह इनके लिये लिये भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है फिर भी देश के पूर्ण एवं सन्तुलित औद्योगिक ढांचे के लिये उनका विकास आवश्यक है । यह संरक्षण की नीति की सहायता से ही सम्भव है ।

viii. सौदेबाजी का तर्क (Bargaining Argument):

संरक्षण के पक्ष में एक अन्य तर्क यह है कि संरक्षण शुल्क लगाने वाले देशों की सौदेबाजी की शक्ति बढ़ जाती है । इस नीति को अपना कर कोई देश अन्य देशों से कुछ सुविधाएं प्राप्त कर सकता है ।

संरक्षण शुल्कों का एक उपकरण के रूप में प्रयोग करते हुये एक देश दूसरे देश को, अपने लिया कुछ अधिक और हितकर सुविधाओं के बदले में, कुछ सुविधाएं भेंट कर सकता है । इसलिये, संरक्षण का समर्थन सौदेबाजी तर्क के कारण भी किया जाता है ।

Home››Economics››Trade››