उत्पादन की इंटरमीडिएट तकनीक | Read this article in Hindi to learn about:- 1. मध्यवर्ती तकनीकों का अर्थ (Meaning of Intermediate Techniques) 2. मध्यवर्ती तकनीकों का स्वरूप (Nature of Intermediate Techniques) 3. आवश्यकता (Need) 4. महत्व (Importance).

मध्यवर्ती तकनीकों का अर्थ (Meaning of Intermediate Techniques):

अल्पविकसित देशों के औद्योगीकरण के सन्दर्भ में तकनीकों का चुनाव मूलभूत समस्या है । पश्चिम के विकसित देशों में जहां पूँजी की बहुलता है वहां स्पष्ट तथा पूँजी-गहन तकनीकों का चुनाव होगा । परन्तु भारत जैसे देशों में जहां पूँजी की दुर्लभता के साथ विस्तृत जनसंख्या तथा भारी बेरोजगारी है, वहां केवल पूँजी गहन तकनीकों पर निर्भर रहना उचित नहीं ।

इसी प्रकार, त्वरित वृद्धि दर के लिये केवल श्रम-गहन तकनीकों पर निर्भर रहना बुद्धिमता नहीं । अत: ऐसे देशों के लिये मध्यवर्ती तकनीक एक अनिवार्य चयन बन गई है ।

”उनके अनुसार- सतत् वृद्धि के दृष्टिकोण से, न तो श्रम गहन और न ही पूँजी गहन तकनीक पूर्णत: व्यवहार्य है । इन देशों में बढ़ती हुई बेरोजगारी मध्यवर्ती तकनीकों को अपनाये जाने का सुझाव देती है । मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी उस प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित है जिसमें प्रति कार्य स्थान औसत लागत लगभग £70 से £100 है ।” -ई. एफ. शुम्पीटर

मध्यवर्ती तकनीकों का स्वरूप (Nature of Intermediate Techniques):

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मध्यवर्ती तकनीकों का मूल्यांकन निम्नलिखित से लिया जा सकता है:

(i) मध्यवर्ती तकनीकों के कार्य स्थान गाँवों और कस्बों में स्थापित किये जायें न कि बड़े शहरों में ।

(ii) इन कार्य स्थानों पर अधिक श्रमिक, कम लागतें तथा न्यूनतम आगतें विशेषतया पूँजी सम्मिलित होनी चाहिये ।

(iii) उत्पादन की विधियां सरल होनी चाहियें ताकि ”उच्च निपुणता” तथा उच्च शिक्षित लोगों की मांग कम रहे । उत्पादन की प्रक्रिया, संगठन, कच्चे माल की पूर्ति, साख और अन्य गतिविधियां जहां तक सम्भव हों सरल होनी चाहिये ।

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(iv) उत्पादन मुख्यता स्थानीय सामग्री और स्थानीय श्रमिकों पर आधारित होना चाहिये ।

(v) मरम्मत की सुविधा कार्य स्थान के समीप होनी चाहिये ।

मध्यवर्ती तकनीक की आवश्यकता (Need of Intermediate Techniques):

मध्यवर्ती तकनीक की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों के सम्बन्धित है:

1. बेरोजगारी (Unemployment):

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बेरोजगारी, ‘अल्प रोजगार’ और छुपी हुई बेरोजगारी अल्पविकसित देशों के विशेष लक्षण है । इस समस्या के उन्मूलन के लिये आवश्यक है कि देश में ऐसे उद्यमों का प्रसार किया जाये जिनमें कम पूँजी की आवश्यकता हो । इस प्रयोजन से ऐसे देशों में मध्यवर्ती तकनीक के अपनाये जाने की आवश्यकता होती है ।

2. ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवास (Migration from Rural Areas):

अल्पविकसित देशों में लोगों द्वारा काम की तलाश में ग्रामों से शहरों की ओर प्रवास की प्रवृत्ति होती है जिससे शहरी इलाकों में खुली बेरोजगारी बढ़ जाती हैं तथा इससे सम्बन्धित निवास आदि की समस्याएं भी उठ खड़ी होती हैं ।

इस समस्या को रोकने के लिये मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होती है । इसके अतिरिक्त, अधिकतम ग्रामीण लोगों को व्यस्त करने के लिये ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसरों की रचना की जानी चाहिये ।

3. पूँजी की दुर्लभता (Scarcity of Capital):

अल्पविकसित देशों में पूँजी का बहुत अभाव होता है । परन्तु आधुनिक उद्यमों को भारी मात्रा में पूँजी निवेश की आवश्यकता होती है । इसलिये, समय की मांग यह है कि ऐसे उद्यम स्थापित किये जायें जहां तुलनात्मक रूप में कम पूँजी की आवश्यकता होती है । मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी के लिये कम पूँजी की आवश्यकता होती है, इसलिये, इसे सरलता से अपनाया जा सकता है ।

4. सरल प्रक्रिया (Simple Process):

अल्प विकसित देशों में प्रशिक्षित श्रमिकों की पूर्ति बहुत कम होती है । इसलिये, उत्पादन के सरल उपाय अपनाना ही उचित है । मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी उत्पादन के सरल उपायों के अनुरूप है क्योंकि इसे सरल उपकरणों और साज-समान की आवश्यकता होती है । इसके अतिरिक्त उनकी स्थानीय स्तर पर मुरम्मत और रख-रखाव सम्भव है ।

मध्यवर्ती तकनीक का महत्व (Importance of Intermediate Techniques):

निम्नलिखित तर्क अल्पविकसित देशों में मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी के महत्व को स्पष्ट करते हैं:

(i) दोहरी अर्थव्यवस्था (Dual Economy):

अल्पविकसित देशों में बहुत लम्बे समय तक दोहरी अर्थव्यवस्था के प्रचलन की सम्भावना होती है । ऐसी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में आधुनिक प्रौद्योगिकी प्रयोज्य नहीं होती । अत: ऐसी अवस्था में मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी को अपनाना अनिवार्य हो जाता है ।

(ii) परम्परागत क्षेत्र (Traditional Sector):

प्रायः देखा गया है कि दोहरी अर्थव्यवस्थाओं का परम्परागत क्षेत्र विकसित नहीं होता वरन् केवल विघटित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी बढ़ेगी और लोग गाँवों से शहरों की ओर बड़ी संख्या में प्रवास आरम्भ कर देंगे ।

जिससे शहरी क्षेत्रों के जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा । अत: मध्यवर्ती तकनीक परम्परागत क्षेत्र के विकास का एक मात्र समाधान है जिससे बेरोजगारी और शहरीकरण की समस्याओं से एक साथ निपटा जा सकता है ।

(iii) निर्धनों का सुधार (Improvement of the Poor):

अल्पविकसित देशों में निर्धन लोगों की स्थिति सुधारने के लिये मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी बहुत महत्व रखती है ।

(iv) अन्य विविध समस्याएं (Other Miscellaneous Problems):

अल्पविकसित देशों के लिये जो पूँजी की दुर्लभता और श्रम की बहुलता की समस्या का सामना करते है मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी का चुनाव किया जाना चाहिये ताकि पूर्ण रोजगार का उद्देश्य प्राप्त किया जा सके ।

संक्षेप में गैडगिल (Gadgil) ने भी इसका पक्ष लेते हुये कहा है- ”मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय लक्ष्य होना चाहिये । इसका प्रयोग अर्थव्यवस्था के बड़े भाग में किया जाना चाहिये ।” शुम्पीटर ने भी अल्पविकसित देशों में मध्यवर्ती प्रौद्योगिकी के प्रयोग का क्षेत्रीय विकास के लिये समर्थन किया है ।

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