पर्यावरण और संसाधन आवंटन के आर्थिक मॉडल | Read this article in Hindi to learn about the models of environment and resource allocation.

पर्यावरणीय संरक्षण के सन्दर्भ में, विकासशील देशों के सामने प्रस्तुत गम्भीर चुनौती का कारण निर्धनता है । इसमें पर्यावरणीय अधोगति के कारण उत्पन्न स्वास्थ्य संकट भी सम्मिलित हैं ।

पर्यावरणीय साधनों के कितने दक्ष निर्धारण सम्भव है, यह जानने के लिये पर्यावरण के कुछ आर्थिक मॉडल हैं । यह मॉडल उन स्थितियों का वर्णन करने के योग्य भी होगे जिनके अन्तर्गत प्राकृतिक साधनों का अधिकतम सामाजिक लाभ के लिये दक्षतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है ।

निजी स्वामित्व वाले साधन (Privately Owned Resources):

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उच्च विकसित मुद्रीकृत बाजारों वाले देशों में पर्यावरण के कुछ सामान्य आर्थिक मॉडलों पर विचार किया गया । प्रत्येक मॉडल में, पर्यावरणीय बाह्यताओं का हिसाब देने में बाजार की असफलता एक अपवाद है न कि नियम तथा तब अदक्षता के उपचार के लिये नव-परम्परावादी सिद्धान्त का उपयोग किया जाता है ।

साधनों के दक्ष निर्धारण तथा यह देखने के लिये कि बाजार की असफलताएं कैसे अदक्षता की ओर ले जाती है, नव-परम्परावादी सिद्धान्त का प्रयोग पर्यावरणीय विषयों पर किया जाता है तथा इन त्रुटियों को दूर करने के उपाय सुझाये जाते हैं ।

रेखाचित्र 7.1 दर्शाता है कि बाजार किसी प्राकृतिक साधन के अनुकूलतम प्रयोग को कैसे निर्धारित करता है अनुकूलतम बाजार परिणाम खोजने में किसी साधन से सामाजिक लाभों का अधिकतमीकरण सम्मिलित है जो किसी साधन से प्राप्त कुल लाभों और उत्पादकों को इसे उपलब्ध करने की कुल लागतों के बीच अन्तर है ।

यह रेखाचित्र 7.1 के छायायुक्त क्षेत्र के बराबर है । कुल शुद्ध लाभ तब अधिकतम होता है जब साधन की एक और इकाई के उत्पादन अथवा निकालने की सीमान्त लागत ग्राहक के सीमान्त लाभ के बराबर होती है । यह Q* पर होता है जहां मांग और पूर्ति वक्र काटते हैं ।

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किसी पूर्ण प्रतियोगी बाजार में, ‘अदृश्य हाथ’ यह सुनिश्चित करेगा कि Q उत्पादित मात्रा है । रेखाचित्र 7.1 में सीमान्त लागत वक्र ऊपर की ओर ढलान वाला है क्योंकि किसी साधन के अधिक दुर्लभ हो जने पर उसे निकालने की लागतें बढ़ जाती हैं ।

जिसे उत्पादक का अतिरेक अथवा लाभ अथवा ‘दुर्लभता लगान’ कहा जाता है । रेखाचित्र में aPb क्षेत्र उत्पादक का अतिरेक है और क्षेत्र DPb उपभोक्ता का अतिरेक है । वे मिलकर अधिकतम लाभ उत्पादित करते हैं जो Dab के बराबर है ।

यदि साधन दुर्लभ तथा समयानुसार वितरित है तो दुर्लभता लगान, उत्पादन की सीमान्त लागत स्थिर होने पर भी उत्पन्न हो सकते हैं जैसा कि रेखाचित्र 7.2 से स्पष्ट है । एक दुर्लभ साधन का स्वामी बेचने के लिये साधन X की सीमित मात्रा (75 इकाईयां) रखता है तथा जानता है कि भविष्य में बिक्री के लिये इसका एक भाग बचा लेने से वह आज एक उच्च कीमत वसूल कर सकता है ।

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एक वस्तु की कीमत जिसे अन्तर-अस्थायी (अधिकाल) रूप में नियन्त्रित किया जाता है, के लिये आवश्यक है कि, प्रत्येक काल में उपभोग की गई अन्तिम इकाई के सीमान्त शुद्ध लाभों की वर्तमान कीमत को आवश्यक बराबर करें अर्थात्, उपभोक्ता किसी वस्तु की अगली इकाई को आज अथवा कल प्राप्त करने में आवश्यक रूप में तटस्थ हों ।

रेखाचित्र 7.2 में कल्पना करें कि साधन स्वामी के पास 75 इकाइयां उपलब्ध हैं । यदि वह आज बिक्री के लिये 50 प्रस्तुत भेंट करने को तैयार है, दुर्लभ साधन के लिये बाजार मूल्य Ps है ।

साधन के स्वामी द्वारा प्राप्त किया गया दुर्लभता लगान Ps abP के बराबर है, रेखाचित्र 7.2 में कीमत और सीमान्त लागत के बीच छाया-युक्त क्षेत्र । इन लगनों को एकत्रित करना स्वामी की क्षमता है जो नियन्त्रणकारी प्रभाव की रचना करते हैं ।

अत: आवश्यक है कि अधिकाल में साधनों का दक्ष निर्धारण सुनिश्चित किया जाये । दुर्लभता न होने पर, सभी साधन निकालने की लागत P = MC पर बेचे जायेंगे, 75 इकाईयां एक ही समय पर प्रयोग कर ली जायेंगी तथा कोई लगान एकत्रित नहीं किये जायेंगे ।

नव-परम्परावादी मुक्त बाजार सिद्धान्त में प्रस्तावक इस बात पर बल देते हैं कि साधनों के निर्धारण में अदक्षताएं मुक्त बाजार के संचलन में त्रुटियों से अथवा सम्पत्ति अधिकार प्रणाली में अपूर्णताओं के फलस्वरूप होती हैं । जब तक सभी साधन निजी स्वामित्व में होंगे तथा कोई बाजार विकृतियां नहीं होंगी, साधन का आबंटन दक्षतापूर्वक होगा ।

शुद्ध सम्पत्ति अधिकारों के बाजारों के लक्षण चार स्थितियों द्वारा दर्शाये जाते हैं:

1. व्यापकता (Universality) – सभी साधनों का निजी स्वामित्व है ।

2. अनन्यता (Exclusivity) – अन्यों को निजी स्वामित्व वाले साधनों से लाभ प्राप्त करने से रोकना अवश्य सम्भव होना चाहिये ।

3. स्थानान्तरण की क्षमता (Transferability) – साधन का स्वामी जब चाहे साधन को बेच सके ।

4. प्रवर्तनीयता (Enforceability) – साधनों से लाभों का नियत वितरण आवश्यक रूप में प्रवर्तनीय हो ।

इन परिस्थितियों के अन्तर्गत, एक दुर्लभ साधन के स्वामी के पास इसकी बिक्री अथवा प्रयोग से शुद्ध लाभ को अधिकतम बनाने का आर्थिक प्रोत्साहन उपलब्ध है ।

उदाहरण के रूप में, एक किसान जो अपनी भूमि का स्वामी है, निवेश, प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन के ऐसे स्तरों का चुनाव करेगा जो भूमि के शुद्ध उत्पादन को अधिकतम बनाये । क्योंकि भूमि के मूल्य का प्रयोग एक ऋणाधार के रूप में किया जा सकता है, किसी भी व्यवहार्य फार्म निवेश की वित्त व्यवस्था, ब्याज की प्रचलित दरों पर ऋण लेकर की जा सकती है ।

साधनों के कुनिर्धारण को सही करने का मार्ग प्राय: विकृतियों को दूर करना होता है । साधन निर्धारण में स्पष्ट अदक्षताओं का वर्णन करने के लिये अनेक मॉडल निर्मित किये गये हैं जो तीसरे विश्व की पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिये इन ढांचों की सीमाओं की खोज करेंगे ।

सांझी सम्पत्ति के साधन (Common Property Resources):

जब एक दुर्लभ साधन का स्वामित्व और नियन्त्रण सार्वजनिक प्राधिकरण के हाथ में होता है तथा सब को स्वतन्त्र रूप में उपलब्ध होता है तो इसे सांझी सम्पत्ति साधन कहा जाता है । कृषि, चराई, पशु पार्क तथा उद्यान सार्वजनिक सम्पत्ति के उदाहरण हैं ।

स्वामित्व की इस प्रणाली के अन्तर्गत सम्भावित लाभ अथवा दुर्लभ लगान समाप्त हो जायेंगे । अदक्षता, जैसे कि पहले अध्ययन किया गया है तब उत्पन्न होगी जब दुर्लभता लगान अनुपस्थित होंगे जैसे कि परम्परावादी सिद्धान्त द्वारा सुझाया गया है । श्रमिकों की संख्या तथा श्रमिकों के प्रतिफल क्रमश: X और Y अक्षों पर रेखाचित्र 7.3 में दर्शाये गये हैं ।

APL और MPL श्रम की औसत और सीमान्त उत्पादकता के वक्र हैं । WW सार्वजनिक ह प्राधिकरण द्वारा निश्चित वेतन दर है । रेखाचित्र 7.3 भूमि के एक प्रदत्त टुकड़े पर श्रम के प्रतिफल और इस पर कार्यरत श्रमिकों की संख्या के बीच सम्बन्ध का वर्णन करता है ।

यह कल्पना करते हुये कि भूमि के टुकड़े का स्वामित्व निजी है, भूमि का स्वामी अधिकतम लाभ कमाने के लिये श्रमिकों की उस संख्या को नियुक्त करेगा जहां सीमान्त उत्पादकता सीमान्त मजदूरी के बराबर है तथा यह दोनों बिन्दु D पर बराबर हैं ।

भूमि का स्वामी श्रमिकों प्रत्येक श्रमिकों की OL संख्या नियुक्त करेगा तथा प्रत्येक श्रमिक को OW मजदूरी का भुगतान किया जायेगा क्योंकि APL (श्रम की औसत उत्पादकता) OW से बड़ी है इसलिये स्वामी अधिकतम मूल्य APC DW (रेखाचित्र का छायायुक्त भाग) कमायेगा । यह भूमि के स्वामी को प्राप्त होने वाला दुर्लभता लगान है तथा भूमि का प्रयोग दक्षतापूर्ण होगा ।

दूसरी और यदि भूमि का स्वामित्व सार्वजनिक है, तो भूमि से कुल सामाजिक लाभ सांझी सम्पत्ति प्रणाली के अधीन नीचा होगा । इस प्रणाली के अन्तर्गत, प्रत्येक श्रमिक अपने कार्य के सभी उत्पादों को ले लेने के योग्य होगा, जो सभी श्रमिकों के औसत उत्पाद के बराबर होंगे ।

श्रमिक आय मजदूरी से तब तक बढ़ना जारी रखेगी जब तक कि पर्याप्त श्रमिक आकर्षित नहीं होते ताकि औसत उत्पाद वेतन के स्तर तक गिरे तथा यह E द्वारा दर्शाया गया है और नियुक्त श्रम Lc के बराबर है ।

फार्म के कुल उत्पादन का बढ़ना या गिरना MPL के सकारात्मक अथवा नकारात्मक होने पर निर्भर करता है । इस प्रकरण में MPL नकारात्मक रूप में खींचा गया है और अतिरिक्त श्रमिक का सीमान्त उत्पाद मजदूरी से कम है ।

इसका आभप्राय है कि, जब सीमान्त उत्पाद मजदूरी से कम होता है तो शुद्ध सामाजिक लाभ गिरता है । Lc पर कोई दुर्लभता लगान उत्पन्न नहीं होगा । इस व्यवस्था के अधीन सामाजिक कल्याण कम होगा और सम्भव है कि साधनों का दक्ष निर्धारण न हो । दूसरी ओर, साधनों का निजीकरण सामाजिक कल्याण और साधनों के बेहतर आवंटन की ओर ले जा सकता है ।

सीमाएं (Limitations):

उपरोक्त नव-परम्परावादी मॉडल दक्षता से सम्बन्धित हैं (साधनों के दक्ष आवंटन) तथा समानता की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देते । आय वितरण पर विचार नहीं किया गया तथा यह मॉडल वितरणात्मक समस्याओं से निश्चिन्त हैं जोकि तब उत्पन्न होती हैं जब दुर्लभ साधनों से सभी दुर्लभता लगान कुछ निजी स्वामियों द्वारा एकत्रित कर लिये जाते हैं ।

इसलिये, अभिप्राय यह होता है कि अनुकूलतम परिणाम दुर्लभ/प्राकृतिक साधनों के स्वामियों को होने वाले लाभों पर कराधान द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं । इसके अतिरिक्त, साधनों का बड़े स्तर पर व्यापारिक निजीकरण सामाजिक कल्याण की वृद्धि अथवा निर्धन बहुसंख्यक लोगों के जीवन स्तर में सुधार की ओर नहीं भी ले जा सकता । वितरणात्मक विषयों की उपेक्षा इन दोनों मॉडलों की मुख्य दुर्लभता है ।

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