आर्थिक विकास के रोस्टो के चरण | Read this article in Hindi to learn about Rostow’s stages of economic growth. The stages are:- 1. परम्परागत समाज की अवस्था (The Traditional Society) 2. स्वयं स्फूर्ति से पूर्व की दशा (The Pre-Take Off Stage) 3. स्वयं स्फूर्ति की दशा (The Take-Off Stage) and a Few Others.

आर्थिक विकास की अवस्थाओं का ऐतिहासिक क्रम के अनुरूप विश्लेषण अमेरिकन अर्थशास्त्री प्रो. डब्ल्यू. रोस्टव ने अपनी पुस्तक The Stages of Economic Growth में किया ।

रोस्टव के अनुसार– विकास की मुख्य अवस्थाएँ पाँच हैं:

1. परम्परागत समाज की अवस्था ,

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2. स्वयं स्कूर्ति से पूर्व की दशा ।

3. स्वयं स्फूर्ति की दशा ।

4. परिपक्वता की अवस्था ।

5. पाँचवीं अवस्था- उच्च जन उपभोग की अवस्था |

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उपर्युक्त अवस्थाओं की व्याख्या निम्न हैं:

Stage # 1. परम्परागत समाज की अवस्था (The Traditional Society):

परम्परागत समाज की अवस्था से अभिप्राय एक प्राथमिक समाज से है जिसमें उत्पादन हेतु परम्परागत तकनीक का प्रयोग किया जाता है तथा भौतिक जगत के लिए परम्परागत दृष्टिकोण विद्यमान होता है ।

रोस्टव के अनुसार- परम्परागत समाज वह है जहाँ न्यूटन से पूर्व के विज्ञान एवं तकनीक पर आधारित उत्पादन फलन कार्य करते हैं व दृष्टिकोण भी संकुचित होता है ।

परम्परागत समाज की अवस्था के मुख्य लक्षण निम्न हैं:

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(i) यह परिवर्तन रहित व जड़ समाज है । परम्परा रीति-रिवाज एवं सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन किया जाना सम्भव नहीं होगा ।

(ii) कृषि मुख्य व्यवसाय होता है जिसके साथ अन्य शिल्प धीरे-धीरे विकसित होते है ।

(iii) राज्य आगम मुख्यत: भूमि द्वारा प्राप्त होते हैं ।

(iv) सामाजिक संरचना में पारिवारिक एवं जातिगत सम्बन्ध महत्वपूर्ण होते हैं ।

(v) व्यक्ति अपने भौतिक पर्यावरण के बारे में पर्याप्त समझ नहीं रखते । इस कारण परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी शक्तियाँ सतत् व नियमित रूप से कार्य नहीं करतीं ।

Stage # 2. स्वयं स्फूर्ति से पूर्व की दशा (The Pre-Take Off Stage):

विकास की दूसरी अवस्था स्वयं स्फूर्ति के लिए पूर्व दशाओं का आधार मुख्यत: सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संरचना में आधारभूत परिवर्तन लाती हैं । परिवर्तन की इस प्रक्रिया में काफी लम्बा समय एक शताब्दी या इससे भी अधिक लगता है ।

सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तन से अभिप्राय है:

(i) दृष्टिकोण में परिवर्तन ।

(ii) वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग, तकनीक में सुधार ।

(iii) जोखिम सहन करने की योग्यता का बढ़ना ।

(iv) लाभ प्राप्त करने की इच्छा ।

(v) कर प्रणाली एवं वित्तीय प्रणाली का विकास ।

Stage # 3. स्वयं स्फूर्ति की दशा (The Take-Off Stage):

स्वयं स्फूर्ति की दशा के उत्पन्न होने के लिए प्रेरक शक्तियों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए रोस्टव ने कहा कि यह प्रेरणाएँ एक राजनीतिक क्रान्ति का रूप भी ले सकती है जिससे विनियोग का परिव्यय आय का वितरण, आर्थिक संस्थाओं का चरित्र एवं सामाजिक शक्ति व मूल्यों का सन्तुलन प्रभावित होता है ।

सन् 1848 में जर्मन क्रान्ति, जापान में सर 1868 का मीजी पुनर्जागरण, चीन में साम्यवादी शक्तियों की विजय एवं भारत की स्वतन्त्रता इसके मुख्य उदाहरण हैं । रोस्टव के अनुसार- स्वयं स्फूर्ति की अवधि अल्पकालीन होती है और यह लगभग दो दशकों में पूर्ण हो जाती है ।

रोस्टव के अनुसार- स्वयं स्फूर्ति काल में अग्र क्षेत्रों का तीव्र विकास होता है ।

इसका कारण है:

(i) इन क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की समर्थ माँग में होने वाली तीव्र वृद्धि ।

(ii) इन क्षेत्रों में पूँजी का अधिक प्रयोग किया जाना ।

(iii) उत्पादन की नवीन विधियों का प्रयोग ।

(iv) बचतों को विनियोग की ओर गतिशील करना ।

(v) मुख्य क्षेत्रों के विकास से अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में उत्पादकता वृद्धि मुख्य क्षेत्रों का उदाहरण रेलवे व वस्त्र उद्योग है ।

रोस्टव के अनुसार– अर्थव्यवस्था में मुख्य क्षेत्र निम्न तीन हैं:

I. प्राथमिक वृद्धि क्षेत्र:

जहां नव-प्रवर्तन की अधिक सम्भावनाएँ विद्यमान होती हैं जिसके द्वारा अभी तक अशोषित संसाधनों का बेहतर प्रयोग होता है तथा वृद्धि की उच्च दर प्राप्त होती है ।

II. पूरक वृद्धि क्षेत्र:

प्राथमिक वृद्धि क्षेत्र में होने वाली वृद्धि के प्रत्युत्तर में पूरक क्षेत्र विकास करते हैं ।

III. व्युत्पन्न वृद्धि क्षेत्र:

कुल वास्तविक आय व जनसंख्या में होने वाली वृद्धि के परिणामस्वरूप व्यूत्पन्न क्षेत्र वृद्धि करते है ।

संक्षेप में स्वयं स्फूर्ति दशा को निम्न प्रवृत्तियों के द्वारा स्पष्ट किया जाता है:

(a) कृषि क्षेत्र में जनसंख्या का प्रतिशत अल्प होना, औद्योगिक क्षेत्र का विकास होना तथा कृषि व उद्योग में उत्पादन की नवीन तकनीक का प्रयोग होना ।

(b) जनसंख्या वृद्धि की दर के सापेक्ष राष्ट्रीय आय की वृद्धि दरें उच्च ।

(c) राष्ट्रीय आय की वृद्धि से पूँजी संचय बढ़ता है व विनियोग दरें ऊँची होती हैं ।

(d) अर्थव्यवस्था में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक परिवर्तन जिनसे नव-प्रवर्तन को प्रोत्साहन मिलता है ।

Stage # 4. परिपक्वता की अवस्था (Drive to Maturity):

स्वयं स्फूर्ति अवस्था के उपरान्त की अवस्था अर्थव्यवस्था को परिपक्वता की ओर ले जाती है । रोस्टव के अनुसार- परिपक्वता की अवस्था में सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाओं पर आधुनिक तकनीक का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखायी देता है । नयी तकनीकों की खोज होती है, नये उद्योग फलते-फूलते हैं । कोयला, लौह इस्पात व भारी इंजीनियरिंग वस्तुओं के स्थान पर मशीन, रसायन व विद्युत यन्त्र उद्योग का विकास होता है ।

राष्ट्रीय आय के 10 से 20 प्रतिशत भाग का विनियोग होने से प्रति व्यक्ति आय में भी तेजी से वृद्धि होती है । व्यक्तियों के जीवन-स्तर में सुधार आता है । कार्यकारी जनसंख्या अधिक कुशल होती है । व्यक्ति शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं । अधिक आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा हेतु श्रमिकों में संगठित रहने की प्रवृत्ति बढ़ती है । स्वतन्त्र निजी उपक्रमी के स्थान पर वेतन भोगी प्रबन्धक का योगदान बढ़ता है । उत्पादन के क्षेत्र में उपभोक्ता वस्तु उद्योग के विकास को सर्वाधिक महत्व प्राप्त होता है ।

विदेशी व्यापार के क्षेत्र में निर्भरता कम होने लगती है । निर्यातों के परिमाण व मूल्य में वृद्धि होती है तथा अधिकांश आयातित वस्तुओं का उत्पादन देश में किया जाने लगता है ।

 

संक्षेप में, परिपक्वता की अवस्था के मुख्य बिन्दु निम्न हैं:

(i) राष्ट्रीय आय में कृषि के प्रतिशत में कमी, ग्रामीण जनसंख्या का अल्प प्रतिशत व शहरीकरण की वृद्धि ।

(ii) आधुनिक तकनीक के प्रयोग से उत्पादकता में तीव्र वृद्धि ।

(iii) श्रमिकों का अधिक जागरूक व संगठित होना ।

(iv) विदेशी व्यापार में वृद्धि ।

Stage # 5. अत्यधिक जन उपभोग की अवस्था (Stage of High Mass Consumption):

उच्च जन उपभोग की अवस्था में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का प्रयोग बढ़ता है । व्यक्ति की प्रति व्यक्ति आय इतनी अधिक हो जाती है कि जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक खाद्यान्न, वस्त्र एवं आवास की समुचित व्यवस्था करने के उपरान्त उच्च उपभोग की वस्तुओं, जैसे- रेफ्रिजरेटर, धुलाई की मशीन, मोटर कार इत्यादि को क्रय करना आवश्यक समझता है ।

इस अवस्था में पूर्ति के सापेक्ष माँग पक्ष, उत्पादन की समस्याओं के सापेक्ष उपभोग पक्ष पर अधिक ध्यान दिया जाता है । व्यक्ति शहरी क्षेत्रों से उपनगरीय क्षेत्रों में रहना अधिक पसन्द करने लगते हैं ।

उच्च जन उपभोग की अवस्था में देश अपनी सुरक्षा पर अधिक ध्यान देता है । कल्याणकारी राज्य को स्थापित करने के उद्देश्य से आर्थिक विषमताओं में कमी करने वाले कार्यक्रमों को लागू किया जाता है । जनसंख्या का अधिकांश भाग सेवा क्षेत्र में आजीविका प्राप्त करता है तथा श्रमिकों के हित हेतु सामाजिक सुरक्षा के विभिन्न उपाय अपनाये जाते है ।

रोस्टव के अनुसार- अमेरिका के उच्च जन उपभोग की अवस्था को 1913-14 से 1946-56 की अवधि में प्राप्त कर लिया । पश्चिमी यूरोप व जापान में यह दशा 1950 के दशक से प्राप्त हुई ।

रोस्टव द्वारा वर्णित विकास की अवस्थाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation):

प्रो. रोस्टव के ऐतिहासिक घटनाओं के मूल्यांकन द्वारा आर्थिक वृद्धि की अवस्थाओं का सुस्पष्ट विश्लेषण प्रस्तुत किया । उनकी व्याख्या एक देश के दारा किये जा रहे विकास हेतु आवश्यक आवश्यकताओं एवं सामाजिक व सांस्कृतिक दशाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करती है ।

इन्हीं कारणों से प्रो. बेंजामिन हिगन्स रोस्टव की व्याख्या को ऐतिहासिक अवलोकन की दृष्टि से उपयुक्त मानते हैं । लेकिन साइमन कुजनेट्‌स, केअरनक्रास, प्रो. मेयर, स्टीफन एनके ने रोस्टव के विश्लेषण को व्यावहारिक नहीं माना ।

आलोचना के मुख्य बिन्दु निम्न हैं:

i. विकास की विभिन्न अवस्थाओं का स्पष्ट विभाजन सम्भव नहीं:

प्रो.पी.टी. वायर के अनुसार- रोस्टव द्वारा वर्णित विकास की विभिन्न अवस्थाएँ स्पष्ट रूप से व्याख्यायित नहीं की गयी है । प्रो. साइमन कुजनेट्‌स व केअरनक्रास के अनुसार- विभिन्न अवस्थाएँ एक-दूसरे के ऊपर आच्छादित रहती है व ऐसे में अलग-अलग अवस्थाओं में एक जैसी विशेषताएँ दिखायी देती हैं । अत: वैज्ञानिक, सांस्कृतिक व भौतिक उपलब्धियों की दृष्टि से यह मापदण्ड पर्याप्त नहीं है ।

ii. प्रत्येक देश हेतु नियत अवस्थाओं से गुजरना आवश्यक नहीं:

मेयर, हबाकुक एवं गरशेनक्रान का विचार था कि प्रत्येक देश के लिए आवश्यक नहीं कि वह विकास की प्रक्रिया में इन्हीं अवस्थाओं को प्राप्त करें व इन्हीं से होकर गुजरें । यह सम्भव है कि किसी अवस्था से अगली अवस्था में प्रवेश कर जाएँ ।

iii. विभिन्न अवस्थाओं की तिथि सही नहीं मानी जा सकती:

रोस्टव ने विकास की विभिन्न अवस्थाओं को प्राप्त करने सम्बन्धी जो तिथियाँ विभिन्न देशों के सन्दर्भ में बतायी है वह प्रमाणिक नहीं मानी जा सकतीं ।

iv. विकास की प्रक्रिया का आकस्मिक रूप से सम्भव होना तर्क संगत नहीं है:

आलोचकों के अनुसार- रोस्टव द्वारा वर्णित स्वयं स्फूर्ति अवस्था में विकास हेतु आकस्मिक छलांग की मान्यता स्वीकार की गयी है, जबकि विकास एक नियमित सतत् एवं समन्वित प्रक्रिया है ।

v. अग्र क्षेत्रों का विचार उचित नहीं है:

प्रो. केअरनक्रास के अनुसार- रोस्टव द्वारा अग्र क्षेत्रों के विकास का क्रम ऐतिहासिक अनुभव से प्रभावित नहीं होता बल्कि विकास को प्राप्त होने वाली गति किसी उद्योग विशेष द्वारा प्राप्त होती है ।

vi. स्वनिर्भर विकास का विचार भ्रमात्मक है:

कुजनेट्‌स ने कहा कि रोस्टव द्वारा वर्णित स्वनिर्भर या आत्मनिर्भर विकास का भ्रम उत्पन्न करता है । वास्तव में आर्थिक विकास की प्रक्रिया अनेक असन्तुलनों से परिपूर्ण होती है । अत: उसका स्वयं संचालित होना सम्भव नहीं होता ।

उपर्युक्त सीमाओं के होते हुए भी रोस्टव का विश्लेषण किसी सीमा तक अल्प विकसित देशों के विकास हेतु आवश्यक दशाओं को स्पष्ट करता है । यह इन देशों के औद्योगीकरण की आवश्यकताओं की सूचना देता है तथा यह बताता है कि स्वयं स्फूर्ति विकास हेतु राष्ट्रीय आय के 10 प्रतिशत भाग का विनियोजन आवश्यक है । यह विकास हेतु पूँजी निर्माण के महत्व को रेखांकित करता है । सबसे मुख्य बात यह है कि रोस्टव का विश्लेषण औद्योगीकरण हेतु वांछित सामाजिक परिवर्तनों के महत्व पर प्रकाश डालता है ।