आर्थिक विकास में पूंजी और इसकी उपयोगिता | Read this article in Hindi to learn about the capital and its utility in economic development.

संक्षेप में पूंजी को उत्पादन के उत्पादित साधनों के रूप में परिभाषित किया जाता है ।

”पूंजी वस्तुएं पुनरुत्पादन योग्य है, उत्पादन कार्य के लिये उपयुक्त धन एक संयुक्त राष्ट्रीय अध्ययन अनुसार- ”आर्थिक गतिविधि से परिणामित वे वस्तुएं जिनका प्रयोग भविष्य में अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिये होता है ।” पूंजी का मौलिक लक्षण यह है कि यह आदमी द्वारा निर्मित है तथा इसके भण्डार मानवीय प्रयत्नों द्वारा बढ़ाये जा सकते हैं । किसी अर्थव्यवस्था में पूंजी का कुल भण्डार सभी निर्माणों और भूमि से जुड़े हुये सुधारों, उत्पादकों के हाथों में मशीनरी और साजो-सामान, व्यापारियों के हाथों में निजी और सार्वजनिक माल सूचियां और समय के किसी बिन्दु पर विदेशी देशों के विरुद्ध दावों के शुद्ध शेष द्वारा निर्मित होता है ।” –कोलिन क्लार्क

वास्तव में पूंजी को उपक्रम, साजो-सामान और माल की सूचियों तक सीमित रहना चाहिये । यह आर्थिक विकास को बढ़ाने का एक उपकरण है और बढ़ी हुई उत्पादकता को निवेश में, जनसंख्या के तकनीकी ज्ञान में और शिक्षा निपुणताओं में सम्मिलित किया जाये ।

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इसी प्रकार दीर्घकालिक आर्थिक विकास कई प्रक्रिया में, पूंजी की उत्पादकता बढ़ाने वाला कार्य केवल उपक्रमों और मशीनरी द्वारा नहीं बल्कि मानवीय पूंजी द्वारा भी किया जाता है । एक उदार रूप में साइमन कुज़नेटस (Simon Kuznets) ने अवलोकन किया कि पूंजी में अधिकतया उपभोग व्यय सम्मिलित होगा ।

इसलिये, इसमें, मानवीय जीवों में पूंजी निवेश और समग्र रूप में, आर्थिक और सामाजिक संरचना, जो उपक्रम और साजो-सामान के प्रयोग का अनुकूलन करती है सम्मिलित होनी चाहिये ।

आर्थिक विकास में पूंजी की उपयोगिता (Utility of Capital in Economic Development):

साइमन कुज़नेटस और रैगनर नर्कस का विश्वास है कि पूंजी आर्थिक विकास के सिद्धान्त में एक केन्द्रीय स्थान रखती है ।

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उन्होंने इसकी बहुमुखी भूमिका को निम्नलिखित अनुसार स्वीकार किया:

1. प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़ाने में सहायक (Helpful in Raising Productivity Per Capita):

पूंजी प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़ाने में सहायक है क्योंकि किसी अर्थव्यवस्था में पूंजी का संग्रह उत्पादन की तकनीकों के मापक्रम में परिवर्तन लाने की सम्भावनाओं के साथ घनिष्ठता से सम्बन्धित है । वास्तव में अर्थव्यवस्था बड़े स्तर के उत्पादन और बढ़े हुये उत्पादन के लाभों का आनन्द उठाने की बेहतर स्थिति में होती है ।

2. उत्पादन के ढंग (Methods of Production):

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भोम बावरेक (Bohm Bawrek) अनुसार, पूंजी उत्पादन के चक्करदार ढंगों को सरल बनाती है क्योंकि इन ढंगों के प्रयोग के परिणामस्वरूप उत्पादकता में शुद्ध लाभ होता है । तीव्र पूंजी संचय, प्रति श्रमिक अधिक उपकरण तथा मशीनरी की पूर्ति कर सकता है तथा उन्हें उत्पादों के उत्पादन में यांत्रिक उपकरणों के प्रयोग के योग्य बनाता है ।

3. उत्पादन के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक (Necessary for Implementation of Production):

जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के साथ, बढ़ा हुआ पूंजी संचय उत्पादन के विस्तार और बढ़ती हुई श्रम शक्ति को रोजगार उपलब्ध करवाने की एक पूर्वापेक्षा है ।