प्रजातान्त्रिक व्यवस्था और लोकमत पर निबंध । Essay on Democracy and Public Opinion in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. लोकमत की अवधारणा ।

3. लोकमत के तत्त्व ।

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4. लोकमत का महत्त्व ।

5. लोकमत निर्माण में बाधाएं: 1. अज्ञानता व अशिक्षा, 2. वर्गवाद और साम्प्रदायिकता, 3. दलगत राजनीति, 4. संकीर्णता, 5. दरिद्रता, 6. राजनीति व धर्म ।

6. लोकमत निर्माण और अभिव्यक्ति के साधन-समाचार पत्र/सार्वजनिक सभाएं/राजनीतिक दल/रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा एवं समाचार पत्र/शिक्षण संस्थाएं/निर्वाचन/धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्थाएं ।

7. लोकमत निर्माण हेतु आवश्यक शर्तें व परिस्थितियां-शिक्षित जनता/सामाजिकता/आवश्यक धन/व्यापक विचार/निष्पक्ष समाचार-पत्र/ शान्तिमय विचार/राजनैतिक दलों का गठन एवं आदर्शवादी विचार ।

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6. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

लोकतन्त्र में लोकमत का सर्वाधिक महत्त्व है । कोई भी सरकार लोकमत की अवहेलना नहीं कर सकती है; क्योंकि सरकार की समूची शासन प्रणाली जनता की प्रतिक्रिया पर ही निर्भर करती है । यदि लोकमत प्रबुद्ध है, जागरूक है, तो सरकार जनता के अधिकारों का अनादर करने का साहस कदापि नहीं कर सकती है । यदि सरकार जनता के विचारों को महत्त्व नहीं देगी, तो लोकतन्त्र तथा सरकार की सत्ता खतरे में पड़ सकती है ।

2. लोकमत की अवधारणा:

लोकमत शब्द ”लोक’ तथा ”मत” दो शब्दों के योग से बना है, जिसमें से लोक का अर्थ है-जनता और मत का अर्थ है: राय या विचार । इस तरह लोकमत का अर्थ है: जनता का विचार, अर्थात् जनता के बहुसंख्यक, जो सम्पूर्ण जनता के हित के अनुकूल हों और अल्पसंख्यक वर्ग उससे सहमत न होते हुए भी कम-से-कम अस्थायी रूप से उसे स्वीकार करने के लिए तैयार रहे ।

जनता के सामूहिक मत का यहां उद्देश्य है: जो स्वार्थरहित विवेकबुद्धि पर आधारित स्थायी विचार हो, जिसका उद्देश्य जनकल्याण हो । वह विवेकशील लोगों का मत है, जो सामान्य नागरिकों की स्वीकृति प्राप्त कर लेता है । लार्ड बाइस के अनुसार: ”लोकमत मनुष्यों के उन विभिन्न दृष्टिकोणों का योग है, जो सार्वजनिक हित से सम्बद्ध विषयों के बारे में विचार रखते हों ।”

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डॉ॰ बेनीप्रसाद के अनुसार: “वह मत वास्तव में लोकमत है, जो जनकल्याण की भावना से प्रेरित होता है ।” इस तरह लोकमत समाज द्वारा प्रचलित निर्णयों का ऐसा प्रतिपादित एवं स्थायी रूप होता है, जिसको मानने वाले लोग सामाजिक समझते हैं । लोकमत साधारण जनता का ऐसा तर्क पर आधारित मत है, जिसका उद्देश्य समस्त जनसमुदाय का कल्याण करना है ।

3. लोकमत के तत्त्व:

लोकमत का तात्पर्य यह नहीं है कि देश की सम्पूर्ण जनता किसी एक विषय पर एकमत हो, क्योंकि सार्वजनिक विषयों पर सम्पूर्ण जनता का एकमत हो जाना एक असम्भव बात है । किसी मत को तब तक लोकमत नहीं कहा जा सकता है, जब तक कि समाज का प्रधान भाग आधिकारिक रूप से उससे सहमत न हो । जिस मत को जितने अधिक लोग मानते हैं, वही लोकमत है ।

लोकमत का आधार सबका हित, अर्थात् सार्वजनिक हित होता है । किसी वर्ग विशेष पर आधारित मत को लोकमत नहीं कहा जाता । उसमें अल्पसंख्यकों का हित भी होना चाहिए । जिस मत का आधार अनैतिकता व अन्याय है, वह लोकमत नहीं है ।

4. लोकमत का महत्त्व:

लोकमत लोकतन्त्र में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण इसीलिए है; क्योंकि: 1. एक सबल विकसित एवं विचारपूर्ण तथा स्थायी लोकमत संगठित शासन की स्थापना करता है ।

2. सचेत और प्रबुद्ध लोकमत ही स्वस्थ लोकतन्त्र की प्रथम आवश्यकता है ।

3. जनता की इच्छा का दूसरा नाम लोकतन्त्र है । इसीलिए लोकतन्त्र लोकमत की अवहेलना नहीं कर सकता । निरंकुश शासकों ने भी लोकमत को महत्त्व दिया है । तभी तो नेपोलियन जैसे तानाशाह ने कहा था: “मुझे एक लाख तलवारों से भय नहीं लगता, परन्तु तीन समाचार-पत्रों से भय लगता है ।”

लोकमत सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है । समाज भी लोकमत से प्रभावित होता है । लोकमत राजनैतिक संस्थाओं के सदस्यों को जनहित विरोधी कार्य करने से रोकता है ।

4. लोकमत व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखता है । एक कानून का निर्माण करते समय लोकमत का विशेष ध्यान रखना पड़ता है ।

5. लोकमत प्रत्येक शासन को स्वेच्छाचारी होने से रोकता है ।

6. वह नागरिकों के अधिकारों एवं स्वतन्त्रता की रक्षा करता है । स्वस्थ लोकमत के लिए जनता का शिक्षित व जागरूक होना अत्यन्त आवश्यक है ।

5. लोकमत निर्माण में बाधाएं:

लोकमत निर्माण में सर्वप्रमुख बाधा अज्ञानता, अशिक्षा, वर्गवाद, साम्प्रदायिकता, जातीयता, राजनैतिक दलदल, गरीबी, धर्म में राजनीति का प्रवेश है ।

6. लोकमत निर्माण और अभिव्यक्ति के साधन:

लोकमत निर्माण करने में तथा उसके अभिव्यक्ति के साधन में सर्वप्रमुख समाचार-पत्र महत्त्वपूर्ण साधन है । इसके अन्तर्गत पत्र-पत्रिकाएं एव, अन्य प्रकार के साहित्य भी आते है । समाचार-पत्र स्वतन्त्र, निष्पक्ष और न्यायप्रिय होना चाहिए ।

सरकार की गलत नीतियों की आलोचना कर सत्य और न्याय के पथ पर चलकर अपने दायित्वों का भली-भांति निर्वाह कर सकते हैं । सार्वजनिक सभाएं भी अपने सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से लोकमत का निर्माण करती हैं । इसके लिए कुशल व प्रबुद्ध वक्ता का होना नितान्त आवश्यक है । लोकमत के निर्माण में स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय आदि शिक्षण संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है । पढ़ने के साथ-साथ विद्यार्थी अपने अध्यापकों से वाद-विवाद करते हैं ।

राजनैतिक दल भी लोकमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । रेडियो, सिनेमा तथा दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर प्रश्नोत्तरी, वाद-विवाद जैसे कार्यक्रमों में विषय विशेषज्ञों को बुलाकर स्वस्थ जनमत तैयार किया जा सकता है, जिसका प्रत्यक्ष लाभ लाख-करोड़ों जनता को एक साथ पहुंचता है । निर्वाचनों का परिणाम लोकमत के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है । साहित्य एवं अफवाहों का भी लोकमत निर्माण में विशेष स्थान है ।

7. लोकमत निर्माण हेतु आवश्यक शर्ते व परिस्थितियां:

इस हेतु सर्वप्रथम जनता का शिक्षित, योग्य, विवेकी होना आवश्यक है, तभी वह किसी भी विषय पर अपने स्वस्थ विचार व मत दे सेकते हैं । स्वस्थ जनमत हेतु सामाजिक व्यवस्था ऐसी हो, जिसमें संकीर्णता, जातिभेद तथा राष्ट्रविरोधी कुटिल भावनाओं का स्थान न हो ।

स्वरथ जनमत हेतु समाज में रहने वाले लोगों के पास इतनी सुविधा अवश्य हो कि वे अपने आपको न्यूनतम स्तर पर स्थापित कर सकें । अशान्तिमय वातावरण में जनमत नहीं पनप सकता । जनता के विचारों में क्रमबद्धता होनी चाहिए ।

साम्प्रदायिकता, द्वेषभाव, वर्गभेद लोकमत में बाधक हैं । समाचार-पत्रों को निष्पक्षता व निर्भीकता के साथ जनता की बातों को छापना चाहिए । लोकमत में जनता को अपने भावों, विचारों, भाषणों और लेखन की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रत्येक परिस्थिति में मिलनी चाहिए । लोकमत का आधार भारतीय सांस्कृतिक, उदारवादी दृष्टिकोण होना चाहिए ।

8. उपसंहार:

यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि लोकतन्त्र के निर्माण एवं सुदृढ़ीकरण में लोकमत सर्वप्रमुख है । लोककल्याण की भावना पर आधारित लोकमत के निर्माण में आने वाली बाधाओं का चुनौतीपूर्ण सामना करना

होगा । लोकतन्त्र की शक्ति है: लोकमत । जनता के हित के बिना लोकमत एवं लोकतन्त्र अप्रभावी है, निष्फल है, शक्तिहीन है, अस्तित्वविहीन है ।

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