बटन मशरूम के लिए उर्वरक कैसे तैयार करें? | Read this article in Hindi to learn about the methods used for preparing fertilizers for button mushroom.

खुंभी के खाद बनाने की 2 प्रमुख विधियाँ है:

(1) दीर्घकालीन विधि व

(2) अल्पकालीन विधि ।

(1) दीर्घकालीन विधि:

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इस विधि में 4 हफ्ते लगते हैं और इसमें पास्तरीकरण सुविधा नहीं अपनायी जाती । जबकि अल्पावधि विधि से खाद तैयार करने में 14-18 दिन लगते हैं और इस विधि में पास्तरीकरण सुविधा अपनायी जाती है । मेंटल और सहयोगियों (1972) ने लंबी अवधि विधि का अविष्कार किया । यह पूर्ण रूपेण घर के बाहर की विधि है ।

इसमें याद को साफ सुथरे पक्के फर्श पर तैयार किया जाता है । इस फर्श का स्तर ऊंचा होना चाहिये, जिससे बहता पानी ढेर के पास इकट्‌ठा न हो । फर्श के ऊपर छत भी आवश्यक है । यह स्थान चारों तरफ से खुला होना चाहिये ।

सस्ते खाद बनाने वाले प्लेटाफार्म का फर्श सीमेंट या ईंट का बना रहता है और छत सस्ती. अधिक घनत्व वाली प्रोपाइलिन की चादर की बनी रहती है, जिसके नीचे लोहे की बनी नालियाँ का बना आधार रहता है ।

खाद के ढेर को किसी भी परिस्थिति में बरसात से बचाने के लिए पॉलीथीन की चादर से नहीं ढकना चाहिये, क्योंकि इससे खाद के ढेर में अवायवीय किण्वन प्रारंभ हो जायेगा और खाद बनने की प्राकृतिक प्रक्रिया खत्म हो जायेगी ।

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अगर कमरे के अंदर खाद बनाते है तो कमरा पूर्णत: हवादार होना चाहिये । मध्यम आकार का फार्म जिसमें एक बार में 20 टन खाद तैयार होती हो, उसके लिए 100’x40’x15′ फीट का फर्श होना चाहिये । फर्श का हल्का सा ढ़ाल गुडी पिट की तरफ होना चाहिये तथा इसमें एक पानी खींचने वाला पम्प और होज का प्रावधान होना चाहिये । खाद बनाने की जगह के अतिरिक्त कच्चे माल के भण्डारण के लिए भी जगह होना चाहिये ।

(i) खाद तैयार करने की विधि:

खुंभी की खाद बनाने के प्रत्येक सोपान पर आरोग्य संबंधी सावधानियाँ महत्वपूर्ण हैं । सबसे पहले खाद बनाने वाले फर्श को खाद बनाने के एक दिन पहले 2 प्रतिशत फार्मेलिन के घोल से अच्छी तरह धोया जाता है । गेहूँ के डंठल के तह की मोटाई 9-12 इंच होना चाहिये । खाद बनाने के भूसे को एक दिन अच्छी तरह से पानी से गीला करते हैं, बीच-बीच में कांटों द्वारा इसे पलटते हैं जिससे यह आवश्यक नमी ग्रहण कर ले । इस स्थिति में नमी 75 प्रतिशत तक होना चाहिये ।

एक टन सूखे भूसे को अच्छी तरह गीला करने के लिए लगभग 2000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है । यह सावधानी रखना चाहिये कि डंठल का हर भाग उचित मात्रा में पानी सोंख ले । खुले फर्श पर या गर्मी में खाद बनाने पर भूसे के ढेर पर अतिरिक्त पानी का छिडकाव करना चाहिये क्योंकि ऊपरी व बाहरी किनारे का डंठल सूर्य की गर्मी और हवा के कारण सुख जाता है ।

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भीगे डंठलों को इकट्‌ठा करके छोटे-छोटे देर बनाकर 24 घण्टे के लिए छोड़ देते हैं । जिप्सम और कीट नाशक दवाईयों के अलावा अन्य सामग्री को मिलाकर पानी डालकर गीला किया जाता है और छोटी-छोटी ढेरियाँ बना लेते है ।

बाद में इसे भीगे बोरों से ढक दिया जाता है । इस विधि को ऋण एक दिन कहा जाता है जबकि अगला दिन, जब डंठल का देर बनाते है तो उसे शून्य दिन कहा जाता है ।

(ii) शून्य दिन:

पहले से भीगे डंठल और रासायनिक खाद को काटे की सहायता से अच्छी तरह मिलाया जाता है । इस मिश्रण को लकडी या लोहे के 3 तख्तों से बने आयताकार खाचों में भर देते है । एक अंत वाले तख्त का माप 5x5x5 फीट और किनारे वाले तख्ते 6 फीट लंबे और 5 फीट ऊँचे होते है ।

इनको क्लेम्प की सहायता से कसकर एक आयताकार कक्ष बनाते हैं । जब मिश्रण तख्ते की ऊँचाई तक भर जाये तब किनारे वाले तख्तों को आगे खिसकाकर और जगह बना ली जाती है । इसके बाद फिर से इस खांचे में मिश्रण भरा जाता है ।

इस प्रकार खाद का एक लंबा ढेर बनता जाता है । इस देर को अत्यधिक दबाना नहीं चाहिये नहीं तो अवायुजीवी स्थिति बनने के कारण खाद का सडना रूक जायेगा । अतः वायुजीवी स्थिति रखने के लिए ढेर को धीरे-धीरे दबाना चाहिये । डंठल की नाप और तापक्रम के अनुसार ढेर की लंबाई, चौडाई और ऊंचाई तय की जाती है ।

लंबे डंठल का बड़ा ढेर बनता है । ठंड के महीनों में या पहाडों में जहाँ तापक्रम 7-200 से.ग्रे. रहता हैं, वहां ढेर 5x5x5 फुट नाप का होना चाहिये । दूसरी तरफ छोटे ढेर में नमी और गर्मी रूक नहीं सकती और खाद असंतोषजनक और पैदावार न देने वाली बन जाती है ।

ट्रॉपीकल और सब ट्रॉपीकल भागों में गर्मी के मौसम में ढेर के अंदर और बाहर के तापक्रम में इतना कम अतर रहता है कि खाद में हवा के बहाव का चिमनी जैसा प्रभाव नहीं बन पाता । अपर्याप्त हवा के बहाव के कारण देर के मध्य में अवायुजीवी स्थिति बन जाती है ।

(iii) 1-5 वां दिन:

ढेर बनाने के 1-2 दिन बाद तापक्रम बढने लगता है और मध्य में 65-700 से.ग्रे. तक पहुँच जाता है । यदि ढेर में नमी कम रहती है तो पानी का छिडकाव करना चाहिये । जब पानी ढेर के नीचे बहने लगे तब पानी का छिड़काव बंद कर देते है ।

(iv) 6 वाँ दिन (पहली पलटाई):

इस ढेर को पहली बार पलटते हैं । पलटने की क्रिया का मुख्य उद्देश्य है कि सब भागों को बराबर हवा और नमी मिले. जिससे ढेर का उचित अपघटन हो जाये । अगर ढेर को पलटा नहीं गया तो अवायवीय दशा उत्पन्न हो जाती है और अतत: अपघटित खाद तैयार हो जाती है ।

ढेर के बाहरी 6-12 इंच का तापमान 300 से.ग्रे. अधिक नहीं रहता और नमी की कमी के कारण अपूर्ण अपघटन होता है, जबकि मध्य भाग में तापक्रम काफी अधिक रहता है और अपघटन भी होता है । ढेर के भीतरी भाग का तापमान तो अधिक रहता है पर अवायुजीवी स्थिति के कारण अपघटन पूरा नहीं होता । काटे की सहायता से ढेर को काटकर पलटा जाता है ।

उस समय उर्वरक मिश्रण को खाद की सारी सामग्री में अच्छी तरह मिला लिया जाता है । इस मिश्रण को 12-24 घटे पहले बना लेते है । ढेर को बनाने की विधि पहले के समान रहती है । नया ढेर इस प्रकार बनाया जाता है कि बाहरी भाग मध्य में, मध्य भाग भीतर तथा भीतर भाग बाहर आ जाये । देर बनाते समय नमी की जरूरत होने पर पानी दिया जाता है ।

(v) 10 वां दिन:

इस दिन दूसरी पलटाई करते है तथा सूखे भाग को फिर से पानी से तर कर ढेर बना लेते हैं ।

(vi) 13 वां दिन (तीसरी पलटाई):

ढेर को तोडकर उसमें जिप्सम मिलाकर फिर ढेर बना लेते हैं ।

(vii) 16 वाँ दिन (चौथी पलटाई) ।

(viii) 19 वाँ दिन (पाँचवीं पलटाई) ।

(ix) 22 वाँ दिन (छठवीं पलटाई) ।

(x) 26 वाँ दिन (सातवीं पलटाई):

लिंडेन की आवश्यक मात्रा पलटाई के समय मिला देते हैं या ढेर बनाते समय 0.1 प्रतिशत मैलाथियान का छिडकाव किया जाता है ।

(xi) 28 वां दिन:

इस दिन खाद का परीक्षण अमोनियम व पानी के लिए किया जाता है । यदि ढेर से अमोनिया जैसी गंध नहीं आती तो ढेर को खोलकर स्पान मिला दिया जाता है । अगर खाद में अब भी अमोनिया रह जाये तो खाद को एक दिन खुला छोड देना चाहिये, जिससे आवश्यकता से अधिक अमोनिया उड़ जायेगी और खाद बीजाई योग्य हो जायेगा ।

खाद में पानी की मात्रा का सीधा सबध खुंभी की पैदावार से होता है । अगर ज्यादा पानी डाल दिया जाये तो आवश्यक तत्व बह जायेंगे और खुंभी की पैदावार कम आया।। । खाद में पानी की मात्रा जानने के लिए खाद को मुठ्‌ठी में लेकर दबाया जाता है । दबाने पर हाथ या उगलियों गीली हो जायें पर पानी नीचे न बहे, पानी की यही मात्रा सबसे उत्तम मानी गई है जो कि आम तौर पर 68 से 76 प्रतिशत तक होती है ।

धर और कपूर (1988) को खाद बनाने का समय 28 दिन से घटाकर 16-20 दिन करने पर अच्छे परिणाम मिले । इस रूपान्तरित विधि से खाद की हानि ऊपर दी गई विधि से कम होता है और खाद भी जल्दी बनती है ।

इसमें पलटाई का क्रम निम्न प्रकार से रहता है:

0 दिन- ढेर बनाना

5 वाँ दिन- पहली पलटाई

8 वाँ दिन- दूसरी पलटाई

10 वाँ दिन- तीसरी पलटाई

12 वाँ दिन- चौथी पलटाई

14 वाँ दिन- पाचवी पलटाई (कीटनाशी मिलाना)

16 वाँ दिन- यदि अमोनिया गध नहीं आती है तो ढेर को तोडकर थैलियों या ट्रे में भर देना चाहिये । यदि अमोनिया की गध आती है तो एक पलटाई और करनी चाहिये ।

(xii) अच्छी खाद के गुण:

a. खाद का रंग गहरा भूरा होना चाहिये । यह चिकना और चिपकने वाला नहीं होना चाहिये ।

b. खाद में अमोनिया गैस नहीं होना चाहिये ।

c. इससे विशेष मीठी महक आनी चाहिये ।

d. खाद का पी.एच. मान थोडा क्षारीय (7.2 से 7.8) होना चाहिये ।

e. खाद में नमी 68 से 72 प्रतिशत होना चाहिये ।

f. खाद में किसी प्रकार के कीड़े-मकोड़े, सूत्र कृमि तथा प्रतियोगी कवक नहीं होना चाहिये ।

(xiii) दीर्घकालीन विधि से तैयार खाद में सुधार:

I. रासायनिक पास्तरीकरण:

दीर्घकालीन विधि से तैयार खाद में ऐसे हानिकारक जीव होते है जो अगेरिकस बाइस्पोरस के कवकजाल से प्रतिस्पर्धा करते हैं । इसके कारण कम पैदावार होती है ।

बीजाई के एक या दो दिन पहले 0.5 प्रतिशत फार्मेलिन और 0.15 प्रतिशत बेविस्टिन खाद में मिलाने से इन जीवों का नियंत्रण हो जाता है और अच्छी पैदावार होती है । तीन क्विंटल आधार पदार्थ से तैयार खाद के लिए 1.5 लीटर फार्मेलिन तथा 50 ग्राम बेविस्टिन की आवश्यकता पडती है ।

II. सौर पास्तरीकरण:

इसमे तैयार खाद को साफ फर्श पर कड़ी धूप में 2.5 से.मी. मोटी तह में बिछाकर 8 घण्टे के लिए छोड देते है । खाद को सूखने से बचाने के लिए इसे साफ पॉलीथीन की चादर से ढक देते हैं ।

(2) खाद बनाने की अल्प विधि:

यह विधि सारे संसार में खाद बनाने की सबसे प्रचलित विधि है । इस विधि में खाद बनाने के समय 28 दिन से घटाकर 16-18 दिन का होता है और यह दीर्घअवधि से श्रेष्ठ है । इस विधि से खाद को दो अवस्थाओं में तैयार किया जाता है ।

अवस्था एक: बाहर खाद बनाना ।

अबस्था दो: नियंत्रित वातावरण वाले पास्तरीकरण कमरे में या बल्क पास्तरीकरण सुरंग के अंदर खाद बनाना ।

भारत में अल्प विधि से खाद बनाने का सूत्रीकरण और विधि शान्डिल्य (1976) और हेज और शान्डिल्य (1977) ने दी । भारत में पहली बार टनी (1980) ने बल्ब पास्तरीकरण के बारे में बताया ।

अवस्था 1- बाहर खाद बनाना:

इस विधि द्वारा खाद बनाने के लिए प्रायः गेहूँ के डंठल और मुर्गी की खाद का प्रयोग किया जाता है । दीर्घविधि के अनुसार ही इस विधि में गेहूँ के डंठल और मुर्गी की खाद को तब तक गीला करते हैं जब तक कि ये काफी मात्रा में पानी सोख लें ।

निथरकर बहते हुए पानी को पुन: इकट्‌ठा करके मिश्रण पर छिडकने के काम लाते हैं । इस मिश्रण के छोटे ढेर बनाये जाते हैं जिनको कडाई से दबा देते है । जिससे अवायुजीवी किण्वन प्रारंभ हो जाये । दो दिन बाद ढेर को तोड़कर उसमें और पानी भली प्रकार से मिलाते हैं और फिर से अवायुजीवी ढेर बना लिया

जाता है ।

शुन्य दिन- (वायुजीवी ढेर) इस दिन ढेर को तोडकर उसमें यूरिया की पूरी मात्रा मिलाकर दीर्घ विधि के समान ही 5×5 फुट ऊंचा ढेर बना दिया जाता है आवश्यकतानुसार और पानी डाला जाता है ।

2 दिन- पहली पलटाई

4 दिन- दूसरी पलटाई

6 दिन- तीसरी पलटाई तथा आवश्यक मात्रा में जिप्सम मिलाया जाता है ।

8 दिन- खाद पास्तरीकरण के लिए तैयार है ।

अवस्था एक में खाद के अवयवों को बिना नियंत्रण के बाहर सडाया जाता है । इस अवस्था में खाद अपूर्ण रूप से विघटित रहती है ।

अवस्था 2- अंदर खाद बनाना:

अंदर खाद बनाने के मुख्य दो उद्देश्य है:

I. अनुकूलन (कंडीशनिंग):

इसमें अमोनिया को सूक्ष्मजीवी प्रोटीन में परिवर्तित किया जाता है ।

II. पास्तरीकरण:

प्रतिस्पर्धी सूक्ष्म जीवों को नष्ट करना और खाद को खुंभी के कवकजाल के विकास के लिए अनुकूल बनाना । भाप पास्तरीकरण की प्रक्रिया नियत्रित वातावरण वाले पास्तरीकरण कक्ष में पूरी की जाती है ।

यह क्रिया ट्रे पीक हीटिंग कक्ष) या टनल बल्क पास्सरीकरण वक्ष में पूरी की जाती है । इन दोनों अवस्थाओं में ताप नियंत्रित कक्ष की आवश्यकता होती है । जहाँ दिवारें, छत, भाप ले जाने वाले पाइप और दरवाजे ताप अवरोधी पदार्थों के बने रहते हैं ।

भाप उत्पन्न करने के लिए बायलर और हवा फेंकने के लिए ब्लोअर की जरूरत होती है । उष्मस्नेही सूक्ष्मजीवों की वृद्धि के लिए ताप सही होना चाहिये तथा सही वायवीय अवस्था के लिए वातायन और हवा एवं अमोनिया के पुन: संचरण की जरूरत पडती है । अमोनिया का पुन: संचरण करके इसे सूक्ष्मजीवी प्रोटीन में बदल दिया जाता है ।

(अ) ट्रे पास्तरीकरण:

अवस्था एक से प्राप्त खाद को ट्रे में हल्के से भरते हैं । पेटियों को एक दूसरे के ऊपर इस प्रकार रखते हैं जिससे दो पेटियों के बीच 20 से.मी. जगह खाली बचे और पास्तरीकरण कक्ष में वाष्पित हवा स्वतंत्र रूप से घूम सके । पेटियाँ लगाने के पहले कक्ष 480 से.ग्रे. तक गर्म किया जाता है ।

हवा के एक समान बहाव के लिए उल्टे निष्कासन पंखो की सहायता से 2 घंटे के लिए ताजी हवा प्रवेश करायी जाती है । दूसरे दिन खाद के तापमान के अनुसार भाप या ताजी हवा (0.5 मी. ताजी हवा/मिनट/टन खाद) द्वारा कमरे का तापमान 1-2 दिन के लिए 40-500 से.ग्रे. तक ले आते हैं ।

इसके पश्चात भाप की मात्रा बढाकर यह तापमान 570 से.ग्रे. पहुंचा दिया जाता है । प्रभावी पास्सरीकरण के लिए यह तापमान 6 घण्टे तक रखा जाता है । इसके बाद भाप बंद कर करके ताजी हवा देने से तापमान नीचे गिरने लगता है । इस समय हवा का तापमान 450 से.ग्रे. और खाद का तापमान 52-550 से.ग्रे रहता है । यह स्थिति 24 घंटे तक रहने दी जाती है ।

फिर खाद का तापमान 45-500 से.ग्रे पर 3-4 दिन तक स्थिर रखा जाता है । इस तापमान पर खाद को तब तक रखा जाता है जब तक कि अमोनिया का उत्पादन बद न हो जाये ।

इसके पश्चात ताजी हवा देकर खाद के तापमान को 24-250 से.ग्रे. तक लाया जाता है । इस तापमान पर पहुँचने के बाद खाद में बीजायी की जा सकती है । इसका रंग गहरा भूरा हो जाता है और इससे विशिष्ट मीठी गंध आती है । डंठल टूटने लगते है ।

(ब) बल्क पास्तरीकरण:

इस विधि में खाद को विशिष्ट प्रकार के बने पास्तरीकरण कमरे (टनल) में 6-7 फुट ऊँचाई तक हल्के से भर दिया जाता है । कमरे में विभिन्न जगहों पर तापमान नापने के लिए ऊष्मा ताप संवेदक लगा दिया जाते हैं । एक संवेदन ग्रेटेड फर्श के नीचे प्लेनम में उपस्थित वातायन नलिका में लगाया जाता है । दो या तीन संवेदक खाद के अंदर और हवा का तापमान नापने के लिए 2 संवेदन को खाद के ऊपर लगाया जाता है ।

खाद भरने के पश्चात दरवाजे, खिडकी और रोशनदान बंद करके पूर्णत: वायुरोधी बना देते है । ब्लोअर पंखे से ताजी हवा द्वारा खाद का तापमान 450 से.ग्रे. पर रखा जाता है । कमरे के तापमान और खाद के तापमान के बीच 30 से.ग्रे. से अधिक अतर नहीं रखना चाहिये ।

जब तापमान 450 से.ग्रे. तक पहुंच जाता है तो ताजी हवा देना बंद कर दिया जाता है । इस समय खाद का तापमान 1.20 से.ग्रे. प्रति घंटे की दर से बढने लगता है । दस से बारह घंटे में खाद का तापमान 570 से.ग्रे. तक पहुंच जाता है । इस तापमान को हवा या भाप द्वारा 6-8 घंटे के लिए स्थिर रखते है, जिससे प्रभावी पास्तरीकरण हो जाये ।

कम्पोस्टिंग की अवस्था- 2 में पूरे समय ब्लोअर को उपयोग में लाया जाता है । इसके कारण से अवांछित कीडे, परजीवी जैसे सूत्र कृमि, प्रतिस्पर्द्धी कवक, रोगकारक जीवाणु जल्दी मर जाते है, साथ ही साथ खाद के पोषक गुण बने रहते हैं । जब पास्तरीकरण पूरा हो जाता है, तब खाद अनुकूलन के लिए तैयार हो जाती है ।

अनुकूलन के लिए ब्लोअर के साथ लगी वातायन प्रवेशिका को आशिक खोलकर ताजी हवा प्रवेश करायी जाती है । तथा निकास वातायन को बद कर देते है । खाद का तापमान 45-500 से.ग्रे. लगभग 3-5 दिन तक रखा जाता है, जब तक कि अमोनिया का उत्पादन बंद न हो जाए ।

अनुकूलन के बाद और ताजी हवा द्वारा खाद 25-280 से.ग्रे. तक ठण्डी हो जाती है । पास्तरीकरण और अनुकूलन के दौरान खाद का 25-30 प्रतिशत भार कम हो जाता है ।

बल्क पास्तरीकरण से लाभ:

(i) इसमें पेटी पास्तरीकरण की अपेक्षा अधिक खाद का पास्तरीकरण किया जाता

(ii) पेटी पास्तरीकरण के लिए बनाये गये कक्षों की अपेक्षा कम्पोस्टिंग अवस्था 2 और अनुकूलन छोटे कमरे में भी किये जा सकते हैं ।

(iii) इस विधि में महंगी लकडी की पेटियों की आवश्यकता नहीं रहती ।

(iv) यह विधि पेटी पास्तरीकरण विधि से सस्ती है ।