तुलना: संगठन के ब्यूरो और आयोग प्रणाली | Read this article in Hindi to learn about the comparison between bureau and commission system of organisation.

विभाग की संरचना में उपरोक्त समस्याएँ तो उसकी आंतरिक बनावट से संबंधित है जबकि यह समस्या विभाग के शीर्ष से संबंधित है कि विभाग का प्रबंध एक व्यक्ति के हाथ में हो या व्यक्तियों के समूह के हाथ में । इसी से ब्यूरो और आयोग प्रणाली का जन्म होता है ।

Comparison # ब्यूरो प्रणाली (Bureau System of Organisation):

चूँकि अमेरिका में विभागों का अध्यक्ष एक ही व्यक्ति होता है और वहां विभाग को ब्यूरो कहा जाता है अतः प्रत्येक स्थान पर उस प्रणाली को ब्यूरो प्रणाली कहा जाने लगा जहां विभाग का अध्यक्ष एक ही व्यक्ति हो । अधिकांश देशों में यही प्रणाली अपनाई जाती है । यद्यपि प्रत्येक देश में आयोग प्रणाली के चिन्ह भी दृष्टिगत होते है ।

भारत में राजनैतिक दृष्टि से विभाग का अध्यक्ष मंत्री तथा प्रशासनिक दृष्टि से सचिव होता है । अमेरिका की स्वतंत्रता के समय वहां यह मामला उठा था कि आयोग प्रणाली अपनाई जाये या ब्यूरो प्रणाली । तब प्रथम वित्त मंत्री हैमिल्टन ने आयोग प्रणाली का जोरदार विरोध और ब्यूरो प्रणाली की जबरदस्त वकालत की थी ।

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उनके अनुसार ब्यूरो प्रणाली में एक व्यक्ति का शासन होने से निर्णय शीघ्र होते है, उत्तरदायित्व निश्चित होता है तथा कार्यकुशलता बनी रहती है । स्टालिन ने भी रूसी कारखानों में प्रचलित आयोग प्रणाली को समाप्त करते समय कहा था कि हम अपने कारखानों को पार्लियामेंट नहीं बनने देंगे ।

ब्यूरो के गुण:

1. शीघ्र निर्णय ।

2. अनुशासन की सुनिश्चितता, पर्याप्त सक्षम नियन्त्रण द्वारा ।

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3. आदेश की एकता का पालन ।

4. गुटबंदी का अभाव ।

5. उत्साह और लगन- एक व्यक्ति में अधिक होता है ।

6. उत्तरदायित्व तय करने में आसानी ।

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7. आपातकाल में श्रेष्ट व्यवस्था ।

ब्यूरो के दोष:

1. अप्रजातांत्रिक ।

2. निर्णयों में त्रुटि की संभावना ।

3. तानाशाही प्रवृत्ति का उदय ।

4. भ्रष्टाचार की संभावना ।

5. अधिक कार्यभार से निर्णयों में विलंब की संभावना ।

Comparison # मंडल या आयोग प्रणाली (Commission System of Organisation):

जब विभाग के शीर्ष पर सस्ता का उपभोग एक से अधिक व्यक्ति सामूहिक रूप से करते है तो इसे मंडल या आयोग प्रणाली की संज्ञा दी जाती है ।

इसका उपयोग वहां अधिक आवश्यक होता है जहां:

1. किसी नवीन नीति को निर्मित करना हो ।

2. विरोधी हितों में समन्वय स्थापित करना हो ।

3. विभिन्न गुटों को प्रतिनिधित्व देना हो ।

गुण:

1. श्रेष्ठ निर्णय हेतु विचार-विमर्श की सुविधा ।

2. विरोधी हितों में समन्वय ।

3. सर्वदलीय भावना का प्रतिनिधित्व ।

4. प्रजातांत्रिक भावना के अनुरूप ।

5. न्यायिक प्रकृति के कार्यों में श्रेष्ठ- अर्ध न्यायिक, अर्ध विधायी प्रकृति के कार्यों के लिए श्रेष्ठ ।

6. भ्रष्टाचार पर अंकुश ।

दोष:

1. निर्णयों में विलंब क्योंकि विचार विमर्श में ही समय निकल जाता है ।

2. गुटबंदी का बोलबाला ।

3. चापलूसी और चाटुकारिता का प्रवेश ।

4. उत्तरदायित्व तय करने में परेशानी ।

5. आदेश की एकता का अभाव ।

6. अनुशासनहीनता ।

आयोग और बोर्ड में अंतर:

बोर्ड और आयोग सामान्यतया पर्यायवाची रूप में प्रयुक्त होते है तथापि इनमें अंतर है । बोर्ड सदैव सामूहिक रूप से ही कार्यवाही करते हैं । उनके किसी भी सदस्य को पृथक् रूप से अंतिम निर्णय करने की शक्ति प्राप्त नहीं होती । आयोग सामूहिक रूप से तो कार्य करते ही है उनके प्रत्येक सदस्य को एक यूनिट या इकाई के रूप में अंतिम निर्णय करने का अधिकार भी मिलता है ।

आयोग या बोर्ड के प्रकार:

बोर्ड प्रशासनिक कार्य करने के लिए किसी नीति को अंतिम रूप देकर उसे क्रियान्वित करने के लिए भी स्थापित किये जाते है । ये पदसोपान में भी स्थापित हो सकते है और उसके बाहर भी ।

जैसे रेलवे बोर्ड, रेल मंत्री के अधीन पद सोपान में व्यवस्थित रहता है जबकि लोक सेवा आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग आदि पदसोपान से बाहर रहकर कार्य करते है जो स्वायत्त बोर्ड या आयोग है । राज्य के बिजली बोर्ड राज्य की बिजली नीति को बनाते और क्रियान्वित करते हैं । समाज कल्याण बोर्ड सामाजिक नीतियों का प्रशासन करने वाला प्रशासकीय बोर्ड है ।

आयोग या बोर्ड प्रणाली की आलोचना:

अलेक्जेडर हेमिल्टन के अनुसार- ”मंडल या आयोग में बड़ी सभाओं के सभी दोष पाये जाते है इसका उत्तरदायित्व विकेन्द्रित होता है, शक्ति कमजोर होती है और निर्णय विलंब से होता है ।” अधिकांश विद्वान ब्यूरो प्रणाली को ही श्रेष्ठ प्रणाली मानते है तथापि कतिपय मामलों में आयोग प्रणाली अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होती है जैसे कार्मिकों की भर्ती को निष्पक्ष ढंग से करने हेतु तथा मानवाधिकारों की सुनवाई हेतु आदि ।