संगठन: विशेषताएं और आधार | Read this article in Hindi to learn about:- 1. संगठन का परिभाषाएँ (Definitions of Organisation) 2. संगठन के लाक्षणिक विशेषताएँ (Features of Organisation) 3. संगठन के आधार (Bases of Organisation).

संगठन का परिभाषाएँ (Definitions of Organisation):

प्रशासन एक समान उद्देश्य की लिए लोगों के एक समूह का सहकारी प्रयास है । यह जरूरी है कि वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह समूह संगठित हो । दूसरे शब्दों में, संगठन प्रशासन एक अनिवार्य तत्त्व है ।

एक निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति के यह मनुष्यों, सामग्रियों और धन के उचित उपयोग में सहायता करता है । इस प्रकार, संगठन के बिना कोई प्रशासन नहीं हो सकता । डिमॉक व डिमॉक कहते हैं- ”संगठन वह बुनियादी औजार है जिसके जरिए प्रशासनिक प्रक्रिया को चालू हालत में रखा जाता है ।”

शब्द ‘संगठन’ शब्द ‘Organicism’ से निकला है जिसका अर्थ है- ‘साझी गतिविधि में लगे परस्पर निर्भर अंगों का एक संगठित निकाय’ ।

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संगठन की विभिन्न परिभाषाएँ हैं:

मूनी- ”एक साझा उद्देश्य की पूर्ति के प्रत्येक मानव सभा संगठन का रूप संघ का रूप ही संगठन है ।”

साइमन- ”संगठन से हमारा आशय सहकारी प्रयोग की एक सुनियोजित व्यवस्था से है जिसमें हर प्रतिभागी की एक भूमिका कर्त्तव्य और जिम्मेदारियाँ होती है ।”

गुलिक- ”संगठन सत्ता का वह निर्धारित औपचारिक ढाँचा है जिसके जरिए परिभाषिक उद्देश्य के लिए कार्य के उपविभागों को व्यवस्थित, परिभाषित और संयोजित किया जाता है ।”

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ग्लैडेन- ”संगठन का सरोकार एक उपक्रम में व्यक्तियों के बीच संबंधों के प्रतिरूप से होता है जो इस प्रकार निर्मित होता है कि उद्यम के काम को पूरा किया जा सके ।”

फिफनर- “संगठन में सुव्यवस्थित श्रम विभाजन लाने के लिए संबद्ध व्यक्तियों और समूहों के बीच के संबंध शामिल होते हैं ।”

एल. डी. व्हाइट- ”एक संगठन के कार्यों और जिम्मेदारियों के बँटवारे के जरिए किसी आम सहमति के उद्देश्य की पूर्ति का रास्ता सुगम बनाने के लिए कर्मचारियों की व्यवस्था है ।”

चेस्टर बर्नार्ड- ”संगठन दो या अधिक व्यक्तियों की गतिविधियों या शक्तियों के सोचे-समझे तालमेल की एक व्यवस्था है ।”

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जे. एम. गॉस- “संगठन एक साझा उद्देश्य में लगे व्यक्तियों और समूहों के प्रयासों और क्षमताओं को इस रूप में जोड़ना है कि उन लोगों के बीच न्यूनतम मतभेद और अधिकतम संतोष के साथ वांछित उद्देश्य की पूर्ति की जा सके, जिनके लिए काम हो रहा है और जो इस काम में लगे हैं ।”

अरविक- ”संगठन किसी उद्देश्य के लिए जरूरी-गतिविधियों को निर्धारित करने और उन्हें समूहों में व्यवस्थित करने का काम है, ताकि उन्हें व्यक्तियों को सौंपा जा सके ।”

यह शब्द ‘प्रशासन’ अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग अर्थों का बोध कराता है । यह तीन भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है, यानि प्रशासन ढाँचे को निर्धारित करने, काम और स्वयं प्रशासनिक ढाँचा ।

ये तीनों दृष्टिकोण इन अर्थों में संगठन के एक यांत्रिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं कि वे मानव संबंधों का बोध नहीं देते । फिर भी, संगठन एक संरचना भी है और मानव संबंधों का एक समुच्चय भी ।

एल. डी. व्हाइट के अनुसार- एक संगठन के तीन प्रमुख संघटन अंग होते हैं, व्यक्ति, संबंद्ध, प्रयास और एक साझा उद्देश्य ।

सी.ई. बर्नाड के अनुसार, एक संगठन के संघटक अंग हैं- (क) सामान्य उद्देश्य, (ख) परस्पर संचार और (ग) सेवा करने की इच्छा ।

हरबर्ट ए. साइमन के अनुसार एक संगठन के कामों में सदस्यों के बीच कामों का बँटवारा करना, मानक प्रथाओं को निर्धारित करना, एक संचार व्यवस्था प्रदान करना, निर्णयों को संप्रेषित करना और सदस्यों को प्रशिक्षित करना शामिल हैं ।

संगठन के लाक्षणिक विशेषताएँ (Features of Organisation):

निकोलस हेनरी ने संगठनों की लाक्षणिक विशेषताओं को निम्न प्रकार से संक्षेपित किया है:

1. संगठन उद्देश्यपूर्ण, जटिल मानवीय समूह होते हैं ।

2. इनकी पहचान द्वितीयक सम्बन्धों के द्वारा की जाती है ।

3. इनके विशेषीकृत और सीमित लक्ष्य होते हैं ।

4. संवहनीय सहकारी गतिविधि इनकी एक विशेषता है ।

5. ये एक बड़े सामाजिक तंत्र के भीतर एकीकृत होते हैं ।

6. ये अपने पर्यावरण को सेवाएँ और उत्पाद उपलब्ध कराते हैं ।

7. ये अपने पर्यावरण के साथ आदान-प्रदान पर निर्भर रहते हैं ।

एल डी व्हाइट के अनुसार एक संगठन में तीन प्राथमिक तत्व होते हैं, जैसे कि- व्यक्ति, साझा प्रयास और सामान्य उद्देश्य ।

सी आई बरनार्ड के अनुसार एक संगठन के तत्व हैं:

(i) सामान्य उद्देश्य,

(ii) संचार,

(iii) सेवा करने की इच्छा ।

हरबर्ड ए साइमन के अनुसार एक संगठन के कार्यों में सदस्यों के बीच कार्य विभाजन, मानक व्यवहारों का निर्माण, एक संचार प्रणाली की उपलब्धि, निर्णयों का पारेषण और सदस्यों का प्रशिक्षण शामिल है ।

संगठन के आधार (Bases of Organisation):

लूथर गुलिक ने संगठन के चार आधारों की पहचान की है ।

ये हैं:

1. उद्देश्य,

2. प्रक्रिया,

3. व्यक्ति और

4. स्थान ।

इनकी निम्न रूप से व्यवस्था की गई है:

1. उद्देश्य:

इसका अर्थ है संगठन द्वारा किया जाने वाला काम । काम पर आधारित संगठन उदाहरण हैं- रक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, श्रम विभाग, मानव संसाधन विकास विभाग इत्यादि ।

उद्देश्य सिद्धांत या कार्यात्मक सिद्धांत के गुण निम्न हैं:

(1) यह संगठन को एक सुसंबद्ध मिशन देता है ।

(2) यह कर्मों के परस्पर आच्छादन और दोहराव को खत्म करता है ।

(3) यह समन्वित नीतियों के विकास में सहायता करता है ।

(4) यह असफलताओं की जिम्मेदारी तय करने में सक्षम बनाता है ।

(5) यह सामान्य आदमी द्वारा भी आसानी से समझा जा सकता है ।

उद्देश्य सिद्धान्त या कार्यात्मक सिद्धांत के दुर्गुण निम्न हैं:

1. यह अधीनस्थों के कामों की उपेक्षा करता है ।

2. यह नवीनतम तकनीकों की उपेक्षा करता है ।

3. यह चिंतन में विभागीयता की ओर ले जाता है ।

हाल्डेन कमेटी ब्रिटेन (1918-19) फर्स्ट हूवर-कमीशन ऑफ यू.एस.ए. (1949-50) और एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कमीशन ऑफ इंडिया की अध्ययन टीम (1966- 1970) ने इसी सिद्धांत का सुझाव दिया था ।

2. प्रक्रिया:

इसका अर्थ काम को पूरा करने में संगठन द्वारा प्रयोग में लाई तकनीक या विशिष्ट कौशल से है । इस प्रक्रिया पर आधारित संगठनों की मिसालें हैं- अंतरिक्ष विभाग, कानून विभाग, समुद्र विकास विभाग, इलैक्ट्रांनिक्स विभाग इत्यादि ।

प्रक्रिया सिद्धांत के गुण हैं:

(1) यह सर्वाधिक विशिष्टीकरण में सहायता करता है ।

(2) यह आधुनिकतम तकनीक के अधिकतम उपयोग द्वारा अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करता है ।

(3) यह श्रम बचाने वाले यंत्रों के अधिकतम उपयोग द्वारा अर्थव्यवस्था को सुरक्षा प्रदान करता है ।

(4) यह तकनीक कामों में तालमेल को प्रोत्साहन देता है ।

(5) यह कैरियर सेवा के विकास के लिए अनुकूल होता है ।

प्रक्रिया सिद्धांत के दुर्गुण इस प्रकार हैं:

(1) इसका सीमित उपयोग होता है क्योंकि इसे गैर-तकनीकी गतिविधियों में नहीं लागू किया जा सकता ।

(2) यह लक्ष्य से ज्यादा महत्व माध्यमों को देता है ।

(3) यह पेशेवर घमंड को विकसित कर देता है और मतभेद की ओर ले जाता है ।

(4) यह सामान्यज्ञ प्रशासकों की सेवाओं की उपेक्षा करता है ।

3. व्यक्ति:

इसका अर्थ है- संगठन की सेवा प्राप्त कर रहे लोगों का समूह (ग्राहक गण) । ग्राहकों पर आधारित संगठन के उदाहरण हैं- पुनर्वास विभाग, आदिवासी कल्याण विभाग, स्त्री कल्याण विभाग इत्यादि ।

ग्राहक सिद्धांत के गुण हैं:

(1) यह एक समूह की सभी आवश्यकताओं के लिए एक एजेंसी को जिम्मेदार बनाता है ।

(2) यह लाभ प्राप्तकर्ताओं को दी जाने वाली विभिन्न सेवाओं के तालमेल में सहायता करता है ।

(3) यह लक्ष्य समूह और एजेंसी के बीच एक करीबी रिश्ता कायम करता है ।

(4) यह समस्याओं के प्रति एक पूर्णतावादी दृष्टिकोण को सक्षम बनाता है ।

ग्राहक सिद्धांत के दुर्गुण हैं:

(1) यह छोटे-छोटे विभागों की विशाल संख्या को पैदा कर देता है और इस तरह से एक ऐसे प्रशासन में परिणामित होता है जिसे हाल्डेन कमेटी ‘लिलीपुट प्रकार का प्रशासन’ कहती है ।

(2) यह विभागों के बीच न्यायिक विवाद पैदा करता है ।

(3) यह बहु-कार्यात्मक चरित्र के कारण विशिष्टीकरण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है ।

(4) यह दबाव समूहों के अनुचित प्रभावों के समक्ष संगठन को कमजोर बनाता है ।

4. स्थान:

इसका अर्थ हैं- संगठन के अंतर्गत आनेवाला भूभागीय क्षेत्र । स्थान पर आधारित संगठन के उदाहरण हैं- बाहरी मामलों का विभाग और इसके अंतर्गत क्षेत्रीय विभाजन, दामोदर घाटी विभाग, रेलवे के क्षेत्रीय कार्यालय इत्यादि ।

स्थान सिद्धांत के गुण हैं:

(1) यह एक निश्चित क्षेत्र में दी जाने वाली विभिन्न सेवाओं के बीच तालमेल में सहायता करता है ।

(2) यह संबंधित क्षेत्रों की जरूरतों के अनुसार राष्ट्रीय नीतियों के अनुकूल की इजाजत देता है ।

(3) यह लंबी दूरी और संचार में होने वाले खर्चों को कम करके अर्थव्यवस्था को सुरक्षा प्रदान करता है ।

स्थान सिद्धांत के दुर्गुण हैं:

(1) यह राष्ट्रीय नीतियों के प्रशासन में एकरूपता के विपरीत जाता है ।

(2) यह राष्ट्रीय दृष्टिकोण और एकता की कीमत पर स्थानीयवाद को बढ़ावा देता है ।

(3) यह सह बहुकार्यात्मक चरित्र के कारण विशिष्टीकरण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है ।

(4) यह संगठन को स्थानीय हितों और दबाव समूहों के अनुचित प्रभाव के समक्ष कमजोर बना देता है ।