धातु और गैर-धातुएं | Metals and Non-Metals in Hindi. Read this article in Hindi to learn about:- 1. Introduction to Metals and Non- Metals 2. Availability of Metals and Non-Metals 3. Physical Properties 4. Chemical Properties 5. Use 6. Alloys of Metals 7. Corrosion of Metals.

Contents:

  1. धातुओं और अधातुओं का आशय (Introduction to Metals and Non- Metals)
  2. धातुओं और अधातुओं की प्राप्ति (Availability of Metals and Non-Metals)
  3. धातुओं और अधातुओं के सामान्य भौतिक  गुण (Physical Properties of Metals and Non- Metals)
  4. धातुओं और अधातुओं के रासायनिक गुण (Chemical Properties of Metals and Non- Metals)
  5. धातुओं और अधातुओं के उपयोग (Use of Metals and Non- Metals)
  6. मिश्र धातुएँ (Alloys of Metals)
  7. धातु संक्षारण (Corrosion of Metals)

1. धातुओं और अधातुओं का अर्थ (Introduction to Metals and Non- Metals):

पदार्थ को तत्व, यौगिक और मिश्रण में विभक्त किया गया है । इन तत्वों की संख्या बहुत अधिक है । तत्व वह पदार्थ है जो एक ही प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बनता है । लेवोइजर नामक विज्ञानी ने तत्वों को मुख्य रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया ।

धातुओं के गुण अधातुओं से भिन्न होते हैं । कुछ तत्व धातु और अधातु दोनों के गुण प्रदर्शित करते हैं जिन्हें उपधातु कहते हैं । दैनिक जीवन में आप अनेक धातुओं एवं अधातुओं का प्रयोग करते हैं ।

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उदाहरण:

 

धातु (Metals)- सोना (Au), चाँदी (Ag), लोहा (Fe), तांबा (Cu) एल्युमिनियम (Al) आदि ।

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अधातु (Non- Metals)- कार्बन (C), ऑक्सीजन (O) नाइट्रोजन (N), ब्रोमीन (Br), आयोडीन (I), सल्फर (S), फॉस्फोरस (P) आदि ।


2. धातुओं और अधातुओं की प्राप्ति (Availability of Metals and Non-Metals):

प्रकृति में धातुएँ एवं अधातुएँ स्वतंत्र अवस्था अथवा संयुक्त अवस्था में पाई जाती हैं । सोना तथा प्लैटिनम जैसी वस्तुएँ तत्व के रूप में स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती है । अन्य अधिकांश धातुएँ प्रकृति में यौगिकों के रूप में पाई जाती हैं । क्योंकि ये प्रकृति में क्रियाशील होती हैं । ये अधिकतर ऑक्साइड, कार्बोनेट, सिलिकेट, सल्फाइड और सल्फेट के रूप में पाए जाते हैं ।

अनेक धातुएँ ऑक्साइड के रूप में पाई जाती हैं जैसे- एल्युमीनियम, लोहा, मैंगनीज आदि । धातु और सल्फर के यौगिक सल्फाइड होते हैं । कॉपर, लेड, जिंक, ऐंटीमनी तथा निकिल जैसी धातुएँ सल्फाइड के रूप में पाई जाती हैं ।

वे प्राकृतिक पदार्थ जिनमें धातुएँ और उनके यौगिक पृथ्वी पर पाए जाते हैं खनिज कहलाते हैं । वह खनिज जिनसे धातुओं का आसानी से और लाभदायक तरीके से निष्कर्षण किया जाता है अयस्क कहलाते हैं । अयस्क से धातु कई प्रक्रिया के पश्चात् प्राप्त होती है । अयस्क से धातु प्राप्त करने की प्रक्रिया धातुकर्म कहलाती है । यह प्रक्रिया निन्नलिखित चरणों में पूर्ण होती है ।

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1. अयस्क का सान्द्रण:

अयस्क का सान्द्रण किया जाता है, यह प्रथम प्रक्रिया है । इसमें अशुद्धियों को अलग कर लिया जाता है और अयस्क सान्द्रित हो जाता है ।

2. सान्द्रित अयस्क का धातु के ऑक्साइड में परिवर्तन:

सान्द्रित अयस्क को उसकी प्रकृति के अनुसार वायु की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति में गर्म करने पर धातु के ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है ।

3. धातु के ऑक्साइड से धातु का निष्कर्षण:

इस प्रक्रिया में धातु ऑक्साइड, धातु में परिवर्तित हो जाते हैं ।

4. धातु शोधन:

अयस्क से प्राप्त धातु में अशुद्धियाँ होती हैं । इस प्रक्रिया में धातुको शुद्ध किया जाता है । अधातुएँ जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन और सल्फर मुक्त अवस्था में पाए जाते हैं लेकिन फॉस्फोरस और सिलिकान संयुक्त अवस्था में पाए जाते हैं ।


3. धातुओं और अधातुओं के सामान्य भौतिक  गुण (Physical Properties of Metals and Non- Metals):

धातुओं के सामान्य भौतिक  गुण (Physical Properties of Metals):

1. भौतिक अवस्था:

सामान्य ताप पर अधिकांश धातुएं ठोस होती हैं । पारा एक ऐसी धातु है जो द्रव अवस्था में होती है । इसका उपयोग थर्मामीटर, बैरोमीटर में किया जाता है । कुछ और धातुएँ भी द्रव अवस्था में होती है ।

2. रंग:

धातुएं अधिकतर रूपहली या धूसर (ग्रे) रंग की होती हैं सोना चांदी तांबा प्लेटिनम जैसी धातुएं इसके अपवाद हैं । इनके रंग अलग होते हैं जिनसे आप परिचिति हैं ।

3. चमक:

धातुओं में विशेष चमक होती है जिसे धात्विक चमक कहते हैं । चाँदी सोना सबसे ज्यादा चमकदार होते है । चाँदी एक बहुत अच्छा परावर्तक है यह अपने पर पड़ने वाले लगभग 90 प्रतिशत प्रकाश को परावर्तित कर देती हैं इसलिए इसका उपयोग दर्पण के पीछे की तरफ पालिश करने के लिए किया जाता है ।

4. कठोरता:

अधिकतर धातुएँ कठोर होती हैं । जिन्हें आसानी से नहीं काटा जा सकता है । सब धातुओं की कठोरता अलग-अलग होती हैं । हमने क्रियाकलाप (1) से निष्कर्ष निकाला कि मैग्नीशियम (Mg) धातु लोहा, ताँबा की तुलना में कम कठोर होती है ।

5. ध्वनिकता:

जब धातुएँ टकराती है या धातु पर किसी चीज से प्रहार किया जाता है तब विशेष धात्विक ध्वनि (आवाज) उत्पन्न होती है । इस प्रकार इस गुण के कारण इनका उपयोग घंटी वाद्ययंत्र आदि बनाने में किया जाता है ।

6. घनत्व:

सामान्यत: सभी धातुएँ पानी में डालने पर डूब जाती है अर्थात पानी से भारी होती है क्योंकि इनका घनत्व ज्यादा होता है । कुछ धातुओं का घनत्व कम होता है इसलिए ये पानी पर तैरती है जैसे Na (सोडियम) पोटेशियम (K), एल्युमिनियम (Al) आदि ।

7. गलनांक:

जिस ताप पर पदार्थ ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित होता है उसे पदार्थ का गलनांक कहते हैं । चूँकि अधिकतर धातुएँ कठोर होती हैं, इसलिए शीघ्रता से नहीं पिघलती और उनके गलनांक उच्च होते हैं । जैसे लोहे का गलनांक 1539C होता है । लेकिन गैलियम धातु इसका अपवाद हैं जहाँ धातुएँ उच्च ताप पर भी नहीं पिघलती वहां गेलियम धातु हथेली पर रखने से ही पिघल जाती है, क्योंकि इसका गलनांक बहुत कम होता है।

8. ऊष्मीय चालकता:

ऊष्मीय चालकता को समझने के लिए आइए एक क्रियाकलाप करें ।

9. विद्युत चालकता:

विद्युत चालकता से आप भली भाँति परिचित हैं जो पदार्थ अपने में से विद्युत धारा को प्रवाहित होने देते हैं विद्युत के सुचालक कहलाते हैं । यही कारण है कि घर, कारखानों आदि में बिजली की फिटिंग के लिए तार ताँबे अथवा एल्युमीनियम के बनाए जाते हैं । कादर में भी उत्तम विद्युतीय संपर्क हेतु सोने और चाँदी का प्रयोग किया जाता है ।

10. आघातवर्धनीयता:

आघातवर्धनीयता का अर्थ है: आघात-पीटना एवं वर्धन-बढ़ना अर्थात् पीटने पर फैलना या बढ़ना । यदि हम एक ताँबे के टुकड़े व एक कोयले के टुकड़े को हथौड़े की सहायता से पीटकर देखें तो क्या अंतर पाएंगे ।

कोयले का चूर्ण बन जाता है और तांबा फैलकर चपटी चादर में बदल जाता है । इसी गुण के कारण धातुओं की पतली चादरें बनाई जाती हैं । अर्थात् ”आघातवर्धनीयता- धातुओं का वह गुण हैं जिससे उन्हें पीटकर चादर बनाई जा सकती हैं ।”

मिठाई पर चाँदी के वर्क लगाए जाते हैं चाकलेट एवं अन्य भोज्य सामग्री दवाई आदि के पेकिंग में एल्युमिनियम धातु की पन्नी प्रयुक्त की जाती हैं । लोहे एवं एल्युमीनियम की चादरें मकान की छत बनाने में प्रयुक्त होती है । यह सभी आघातवर्धनयिता के उदाहरण हैं ।

11. तन्यता:

धातुओं का यह गुण अत्यंत महत्वपूर्ण है । “पदार्थ का वह गुण जिसमें उसे (धातु) खींचने पर वह तार में बदल जाता है तन्यता कहलाता है ।” तन्यता का गुण सबसे ज्यादा सोने में होता है । इसके पतले से पतले तार बनाए जा सकते हैं, लेकिन Na, K, Ca में यह गुण नहीं पाया जाता है ।

अधातुओं के भौतिक गुण (Physical Properties of Non-Metals):

उपर्युक्त वर्णित अधिकांश गुण धातुओं में पाए जाते हैं, जिन तत्वों में ये गुण नहीं पाए जाते हैं वे अधातु कहलाते हैं जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर, फॉस्फोरस, सिलिकॉन आदि ।

अधातुओं में सामान्यत: निम्नलिखित भौतिक गुण पाए जाते हैं:

1. भौतिक अवस्था:

सामान्य ताप पर अधातुएँ ठोस, द्रव, गैस तीनों अवस्था में हो सकती हैं ।

जैसे:

ठोस- कार्बन (C), सल्फर (S), आयोडीन (I)

द्रव- ब्रोमीन (Br)

गैस- ऑक्सीजन (O2), नाइट्रोजन (N2), हाइड्रोजन (H2) आदि ।

2. रंग:

ये कई रंगों की होती है, जैसे- सल्फर (पीला), Cl2 (क्लोरिन) गैस (हरीपीली) फॉस्फोरस (लाल, सफेद) हाइड्रोजन, ऑक्सीजन (रंगहीन)

3. चमक:

अधातुओं में चमक नहीं होती है हीरा (कार्बन), (आयोडीन इसका अपवाद है) ये सामान्यत: प्रकाश को अच्छी तरह से परावर्तित नहीं करते हैं ।

4. कठोरता:

अधातुएं कम कठोर होती हैं जैसे सल्फर को चाकू से काट सकते हैं । इसका अपवाद हीरा है, जो कार्बन का अपररूप है । यह सबसे कठोर पदार्थ के रूप में जाना जाता है तथा यह काँच को भी काट देता है ।

5. ध्वनिकता:

ये धातुओं के समान टकराने या पीटने पर विशेष ध्वनि उत्पन्न नहीं करते हैं ।

6. घनत्व:

अधातुओं का घनत्व कम होता है ।

7. गलनांक:

अधातुओं के गलनांक बहुत कम होते हैं, लेकिन ग्रेफाइट (कार्बन) इसका अपवाद है इसका गलनांक बहुत अधिक होता है ।

8. ऊष्मीय एवं विद्युत चालकता:

सामान्यत: अधातुएँ ऊष्मा एवं विद्युत की कुचालक होती हैं । लेकिन ग्रेफाइट इसका अपवाद है इसकी संरचना में स्वतंत्र इलेक्ट्रान होने के कारण यह विद्युत का सुचालक होता है ।

9. भंगुरता:

धातुओं के समान इसमें तन्यता एवं आघातवर्धनीयता का गुण नहीं पाया जाता है, अपितु पीटने पर ये टुकड़ों, चूर्ण में विभक्त हो जाता है । “पदार्थ के इस गुण को जिसमें वह हथौड़े से पीटने पर चूर्ण या टुकड़ों में बदल जाता है । भंगुरता कहते हैं ।” धातु एवं अधातुओं में कई अपवाद होने के बाद भी आप पदार्थ के बाहरी अवलोकन एवं धातु अधातु के गुणों के आधार पर अलग-अलग पहचान सकते हैं ।


4. धातुओं और अधातुओं के रासायनिक गुण (Chemical Properties of Metals and Non- Metals):

धातुओं के रासायनिक गुण (Chemical Properties of Metals):

घरों में रखे ताँबे या एल्युमिनियम के बर्तनों की चमक धीरे-धीरे खत्म हो जाती हैं चाँदी के आभूषण भी काले पड़ जाते हैं, लेकिन सोने की चमक हमेशा बनी रहती है । आपके यहाँ अचार भी चीनी की बर्नियों में भरकर रखा जाता है धातु के बर्तन में नहीं । इन सबका कारण है कि धातुएँ वायु जल, अम्ल आदि से अभिक्रिया कर रासायनिक पदार्थ बनाते हैं ।

वायु के साथ क्रिया:

सामान्य ताप:

धातुएँ वायु की ऑक्सीजन से क्रिया कर ऑक्साइड बनाती हैं ।

धातु + ऑक्सीजन → धातु ऑक्साइड

जैसे:

कॉपर (ताँबा) वायु की ऑक्सीजन से क्रिया कर कॉपर ऑक्साइड बनाता है । यह ऑक्साइड बर्तन की चमक कम कर देता है इसी प्रकार एल्युमिनियम ऑक्साइड बनने के कारण भी एल्युमिनियम के बर्तन मलिन दिखाई देते हैं ।

 

गरम करने पर (उत्त ताप) क्रिया:

मैग्नीशियम धातु गर्म करने पर वायु की ऑक्सीजन से क्रिया कर तेज प्रकाश उत्पन करती है तथा मैग्नीशियम ऑक्साइड का सफेद पाउडर बनाती है ।

यदि इस सफेद पदार्थ को पानी में घोलकर लिटमस पेपर से परीक्षण करें तो ज्ञात होता है कि ये ऑक्साइड क्षारीय होते हैं इसलिए लाल लिटमस को नीला कर देते हैं ।

जल के साथ क्रिया:

अधिकतर धातुएँ जल (ठंडे, गर्म या भाप) से क्रिया करके हाइड्रॉक्साइड बनाते हैं और हाइड्रोजन उत्पन्न करते हैं ।

जिंक व आयरन की जल वाष्प के साथ अभिक्रिया बहुत मंद होती है परन्तु ताँबा व चाँदी के साथ अभिक्रिया नहीं होती । सोना भाप से भी क्रिया नहीं करता है ।

अम्लों के साथ धातुओं की क्रिया:

आपने अपने रसोईघर में देखा होगा कि हम लोहे और एल्युमिनियम के बर्तनों में दही, चटनी, खट्टे फल और अचार रख देते हैं तो उनका स्वाद खराब हो जाता है तथा बर्तन भी खराब हो जाते हैं । इसका कारण इसमें उपस्थित अम्ल की उस पात्र की धातु से रासायनिक क्रिया करना है जिसके कारण विषैले लवण बन जाते हैं और हाइड्रोजन गैस उत्पन्न होती है ।

उदाहरणार्थ:

 

धातुओं की सक्रियता श्रेणी या क्रियाशीलता क्रम:

धातुएँ रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेती हैं । विभिन रासायनिक अभिक्रियाओं के अध्ययन से ज्ञात हुआ कि धातुओं की क्रियाशीलता समान नहीं होती । कुछ धातुएँ अधिक क्रियाशील होती हैं और कुछ कम । कुछ धातुओं को क्रियाशीलता के आधार पर निम्न क्रम में रखा गया है ।

सोना < चांदी < तांबा < लोहा < जस्ता < एल्युमिनियम < मैग्नेशियम < सोडियम

इस क्रम में सोडियम सर्वाधिक क्रियाशील धातु है और सोने की क्रियाशीलता सबसे कम होती है । जब एक अधिक क्रियाशील धातु को कम क्रियाशील धातु के लवण विलयन में रखते हैं तब अधिक क्रियाशील धातु विलयन में से कम क्रियाशील धातु को प्रतिस्थापित कर देती हैं ।

अधातुओं के रासायनिक गुण (Chemical Properties of Non- Metals):

1. वायु के साथ क्रिया:

अधातुओं को जब वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तब उनके ऑक्साइड बनते हैं । ये ऑक्साइड अम्लीय होते हैं ।

2. जल के साथ क्रिया:

सामान्य ताप पर अधातुएँ जल के साथ क्रिया नहीं करती है ।

3. अम्ल के साथ क्रिया:

अधिकांश अधातुएँ तनु अम्लों के साथ क्रिया नहीं करती लेकिन सल्फर सांद्र नाइट्रिक अम्ल के साथ क्रिया करती है ।


5. धातुओं और अधातुओं के उपयोग (Use of Metals and Non- Metals):

उत्कृष्ट धातुएँ:

सोने के आभूषण हमेशा चमकते रहते हैं क्योंकि ये बहुत कम क्रियाशील धातु हैं ऐसी धातुओं को जिन पर वायु, पानी, अम्ल, क्षार आदि का कोई प्रभाव नहीं होता है अर्थात ये इनसे कोई क्रिया नहीं करती हैं उत्कृष्ट धातुएं कहते हैं । सोना, चांदी, प्लेटिनम उत्कृष्ट धातुएं हैं ।

सोना अत्यधिक नरम होता है इसके आभूषण बनाने के लिए इसमें अन्य धातुएँ जैसे तांबा, चांदी आदि मिलाए जाते हैं । सोने की शुद्धता मापने की इकाई कैरेट हैं । 24 कैरेट सोना सबसे शुद्ध होता है । 23 कैरेट सोने में 4 प्रतिशत तथा 22 कैरेट में 8 प्रतिशत अन्य धातु मिलाई जाती है । जैसे-जैसे सोने में मिलाई गई धातु की मात्रा बढती है सोने के कैरेट का मान घटता जाता है ।

उत्कृष्ट धातुओं के उपयोग:

सोना:

आभूषण, सिक्के, मैडल, घड़ियां, आयुर्वेदिक दवाईयां आदि बनाने में ।

चाँदी:

आभूषण, बर्तन, इसके लवण फोटोग्राफी में, आयुर्वेदिक दवाइयाँ तथा मिठाई पर सजाने के लिए चांदी के वर्क बनाने में ।

प्लेटिनम:

गहने, घड़ियाँ, विद्युत उपकरण, उत्प्रेरक के रूप में और वाहनों में प्लेटिनम प्लग के रूप में ।

धातु एवं अधातु के कुछ महत्वपूर्ण उपयोग (तालिका):


6. मिश्र धातुएँ (Alloys of Metals):

सभी के घरों में स्टेनलेस स्टील और पीतल के बर्तनों का उपयोग होता है । इन स्टेनलेस स्टील के बर्तनों पर जंग लगते हैं । क्योंकि इसमें जंगरोधी गुण उत्पन्न करने के लिए लोहे के साथ क्रोमियम (Cr) और निकिल (Ni) धातु की निश्चित मात्रा भी मिला दी जाती है । इस प्रकार धातु में अन्य धातुओं या अधातुओं की निश्चित मात्रा मिलाकर उसमें वांछित (इच्छानुसार) गुण धर्म प्राप्त किए जा सकते हैं । ऐसे मिश्रण को मिश्रधातु कहते हैं ।

 

मिश्र धातु क्यों बनाई जाती हैं ? मिश्रधातु बनाए जाने के प्रमुख कारण निम्न हैं:

i. धातु की कठोरता बढ़ाने के लिए ।

ii. धातुओं के गलनांक को कम करने के लिए

iii. जंगरोधी और मजबूत बनाने के लिए

iv. स्थाई और अच्छे आकार, रंग की वस्तुएँ बनाने के लिए

v. तन्यता में वृद्धि के लिए आदि ।


7. धातु संक्षारण (Corrosion of Metals):

जब लोहे से बनी वस्तुओं को वायुमंडल में खुला छोड़ दिया जाता है तब लोहे पर भूरे रंग की पपड़ी जम जाती है । इसे जंग लगना कहते हैं । रासायनिक रूप से यह आयरन ऑक्साइड (Fe2O3 x H2O) होता है । इस क्रिया में लोहा नमी और वायुमंडलीय ऑक्सीजन से क्रिया करता है । इसी प्रकार ताँबे के बर्तन को कई दिनों तक खुला छोड़ देने पर आपने उस पर हरी परत देखी होगी ।

इसमें वायुमंडल में उपस्थित सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) गैस ताँबे से क्रिया कर हरे नीले रंग का क्षारीय कॉपर सल्फेट बनाती हैं । इसी प्रकार चाँदी एल्युमिनियम की परत भी मलिन होकर खराब हो जाती है । हम देखते हैं कि इस प्रक्रिया में धातु धीरे-धीरे नष्ट होती हैं जिसे धातु संक्षारण कहते हैं ।

कुछ उत्कृष्ट धातुओं (Ag, Au, Pt) को छोड़कर शेष अधिकतर धातुओं में संक्षारण की प्रबल प्रवृत्ति पाई जाती हैं ।

यदि हम लोहे को नम वायु से दूर रखें तो उसमें जंग नहीं लगती है अर्थात जंग लगने के लिए कुछ कारक आवश्यक होते हैं ।

संक्षारण से बचाव:

धातुओं के संक्षारण से देश की सम्पत्ति की बहुत हानि होती है । अत: संक्षारण की रोकथाम के उपाय आवश्यक है ।

कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित है:

(1) पेंट करना:

यह सबसे प्रचलित तरीका है जिसमें धातु की सतह पर पेंट कर दिया जाता है ।

(2) ग्रीस या तेल लगाना:

तेल या ग्रीस लगाकर भी धातु के संक्षारण को रोका जा सकता है । आपने देखा होगा कि नए औजार, कैंची और चाकुओं पर पीस लगाकर रखा जाता है जिससे उस पर जंग न लगे ।

(3) गैल्वनीकरण:

लोहे को जंग से बचाने के लिए लोहे या लोहे की चादर को साफ करके पिघले जस्ते (जिंक) में डुबोकर धातु चढ़ाने से संक्षारण नहीं होता । इस क्रिया को गेल्वेनीकरण कहते हैं ।

(4) विद्युत लेपन:

टिन, क्रोमियम व टाइटेनियम धातुएँ स्वयं संक्षारणरोधी होती है । लोहे को इन्हीं धातुओं के लेपन द्वारा संक्षारण से रक्षित किया जाता है । यह क्रिया विद्युत लेपन द्वारा की जाती है ।

(5) मिश्रधातु बनाकर:

कुछ धातुओं को जब अन्य धातुओं के साथ मिलाया जाता है तो वे संक्षारण रोधी हो जाती है । उदाहरण- स्टेनलेस स्टील ।


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