संयंत्र रोगों को नियंत्रित करने के उपाय | Read this article in Hindi to learn about the curative, prophylactic and biological measures to control plant diseases.

पादप रोग नियंत्रण (Plant Disease Control) के लिए अनेक प्रकार के उपाय किए जाते है ।

इन्हें निम्न तीन (3) वर्गों में विभक्त किया जा सकता है:

(1) रोगहार उपाय (Curative Measures),

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(2) रोग निरोधी उपाय (Prophylactic Measures),

(3) जैविक उपाय (Biological Measures) ।

(1) रोगहार उपाय (Curative Measures):

इन उपायों का उद्देश्य रोग जनक (Pathogen) को परपोषी (Host) के सम्पर्क में आने से रोकना है ।

इन उपायों में निम्नलिखित प्रकार के अभियान (Operations) सम्मिलित है:

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रोगहार उपायों (Curative Measures) द्वार रोग (Disease) का नियंत्रण (Control) बहुत कम सफल होता है । ये उपाय लक्षण प्रकट होने के पश्चात प्रयोग किए जाएं और अधिकांश पौधों में रोग के लक्षण प्रकट होने से पूर्व बहुत क्षति हो चुकी होती है ।

अत: इस अवस्था में रोगहर उपाय (Curative Measures) प्रभावकारी सिद्ध नहीं होते है । स्वस्थ पौधों की रक्षा के लिए रोगिल पौधों (Diseased Plant) का उन्मूलन (Eradication) आवश्यक है ।

रोगहर उपाय (Curative Measures) Seeds व कंद में उपस्थित संरोप (Inoculation) से रोग के प्रसार को रोकने में प्रभावशाली है । Infected Seed कंद को कुछ समय तक गरम पानी में रखने से इनमें उपस्थित कवक जाल नष्ट हो जाता है । स्मट (Smut) व अंगभारी रोगों को रोकने में ये उपाय प्रभावी है ।

(2) रोग निरोधी उपाय (Prophylatic Measures):

रोग निरोधी उपाय को निम्न प्रकार से किया गया है:

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(a) क्वारन्टाइन (Quarantine),

(b) स्वच्छता (Sanitation),

(c) क्राप रोटेशन (Crop Rotation),

(d) वैकल्पिक परपोषी का उन्मूलन (Eradication of Alternate Host),

(e) रासायनिक रोग निरोध (Chemical Prophylaxis) ।

(a) क्वारन्टाइन (Quarantine):

रोग (Disease) के फैलाव को रोकने की दृष्टि से Propagating Materials जैसे Seeds, Roots कंद आदि के आयात अथवा निर्यात में कानूनी प्रतिबंध (Legal Restriction) Quantine कहलाता है । इस प्रकार के नियम विदेशों में बनाए गए थे ।

परन्तु भारत में भी ये नियम जिसे विनाशकारी कीट एवं नाशक रोग कानून (Destructive Insect and Pest Act, DIP Act) जो 1914 में बनाया गया । जिसमें समय-समय पर परिवर्तन भी किए गए ।

इस नियम के अनुसार किसी भी देश से बीज (Seeds) कंद आदि प्रवर्धी पदार्थों के आयात की अनुमति तभी है, जबकि निर्यात करने वाले देश के कृषि मंत्रालय द्वारा नियुक्त अधिकारी से प्रमाण-पत्र प्राप्त किया जाता है, जिसमें प्रवर्धी पदार्थ रोगाणु मुक्त हो ।

भारत में इस प्रकार के 16 केन्द्र क्वारन्टाइन है, जिनमें दो केन्द्र थल मार्गों, छ: हवाईअड्डो तथा आठ केन्द्र बन्दरगाहों पर है । हमारे देश में DIP Act लागू होने से पूर्व तथा उसके पश्चात् अनेक रोग पुन:स्थापित (Introduce) हुए है । जिनमें काफी का Leaf Rust of Coffee, जो Hemilela Vestatrix के द्वारा प्रभावित होता है । ये Srilanka से Introduced हुआ ।

आलू की विलंबित अंगभारी (Late Blight of Potato), जो Phytophthora Infestans के द्वारा Europe से Introduced हुआ । इसी प्रकार आलू का मस्सा रोग, Wart Disease of Potato जो Synchytrium Endobioticum के द्वारा होता है । ये Netherlands से Introduced हुआ ये प्रमुख रोग है ।

(b) स्वच्छता (Sanitation):

रोग नियंत्रण (Diseased Control) के लिए खेत की स्वच्छता (Sanitation) का भी ध्यान रखना बहुत आवश्यक होता है । अनेक रोगाणु (Pathogens) पौधों के भूमिगत व सड़े गले भागों तथा मिट्टी (Soil) में सुप्तावस्था (Dormant Condition) में पाए जाते हैं और संरोप (Inoculum) के रूप में कार्य करते हैं ।

अत: खेत से रोगिल पौधों (Diseased Plants) को हटाना आवश्यक है । जैसे गेहूँ व मटर की चूर्णिल आसिता (Powdery Mildew of Wheat and Peas), मक्का व मटर की मृदुरोमिल आसिता (Downy Mildew of Maize and Peas), कपास की म्लानी (Wilt of Cotton) आदि के नियंत्रण में सफलता प्राप्त हुई है । ग्रीन हाउस (Green House) में Soil Born Diseased का नियंत्रण निर्जमीकृत मृदा (Sterilized Soil) के प्रयोग से किया जा सकता है ।

(c) सस्य आर्वतन क्रापरोटेशन (Crop Rotation):

किसी एक फसल को एक ही खेत में कई वर्षों तक लगातार बोने से खेत में Soil Borne Pathogens की वृद्धि होती रहती है । जिसके फलस्वरूप ऐसे रोगों का संक्रमण बढ़ जाता है तथा कुछ समय बाद यह मिट्टी (Soil) उस जाति के पौधों के लिए अनुपयुक्त हो जाती है ।

परन्तु खेतों में भिन्न-भिन्न जाति की फसलें (Crops) उगाने पर रोगजनक (Pathogens) को उपयुक्त परपोषी के न मिलने से उनकी जीवन क्षमता कम होती जाती है । जब इन रोगजनक (Pathogens) के लिए सुग्राही फसल को कुछ समय के अंतर के बाद पुन: बोया जाता है तो Soil Borne Pathogens की सम्भावना कम हो जाती है ।

(d) वैकल्पिक परपोषी का उन्मूलन (Eradication of Alternate Host):

Alternate Host प्रायः प्रतिकूल परिस्थितियों में रोगजनक (Pathogens) को आश्रय (Shelter) प्रदान करते है । उदाहरण पक्सीनिया ग्रैमिनिस ट्रिटिसाइ (Puccinia Graminis Tritici) का वैकल्पिक परपोषी बरबेरिस (Berberis) है । इसका जीवन-चक्र (Life Cycle) की कुछ प्रवस्थाएँ (Stages) वैकल्पिक परपोषी में पूरा होती है । अत: वैकल्पिक परपोषी को नष्ट कर देने से इस रोग के नियंत्रण में सफलता प्राप्त की जा सकती है ।

(e) रासायनिक रोगनिरोध (Chemical Prophylaxis):

पौधों की रक्षा (Protection) के लिए जो रसायन (Chemicals) प्रयोग किये जाते हैं । वे पीड़कनाशी (Pesticide) कहलाते हैं । इनमें कवकनाशी (Fungicide) जीवाणुनाशी (Bactericide), कीटनाशी (Insecticide) सूत्र कृमिनाशी (Nematocide), शाकनाशी (Herbicide) आदि सम्मिलित है ।

यहाँ पर कुछ रासायनिक कवकनाशी (Fungicide Chemicals) का वर्णन निम्न प्रकार से है:

अवशिष्ट कवकनाशी (Residual Fungicide):

ये कवकनाशी (Fungicide) पौधों पर रोगजनक कवक के संक्रमण से पूर्व प्रयोग किये जाते है । ये संक्रमण से पहले ही पौधे की सतह पर एक रक्षी आवरण (Protective Cover) बनाते हैं ।

कवकनाशी (Fungicide) का प्रयोग अनेक प्रकारों से किया जाता है । जैसे खेत में खड़ी फसल (Crop) पर ये फुहार (Spray) या धूलि (Dust) के रूप में प्रयोग किया जाता है । Seed Borne Pathoens के लिए इनसे Seeds का उपचार (Treatment) किया जाता है ।

कुछ Fungicides Seeds में शुष्क पाउडर Dry Powder के रूप में मिलाये जाते है अथवा बीजों को उनके घोल में उपयुक्त समय पर उपचार किया जाता है । मिट्टी अथवा पौधे के भूमिगत भागों में उपस्थित रोग जनक कवकों (Fungus) से पौधों की रक्षा के लिए इन Chemicals का प्रयोग भूमि में किया जाता है ।

रसायन को तीन भागों में बाँटा गया है:

(I) अकार्बनिक यौगिक (Inorganic Compounds):

(a) बोर्दो मिश्रण (Bordeaux Mixture):

यह कॉपर सल्फेट (CuSO4) चूना (Lime) व पानी का 10:10:100 अथवा 1:6:100 के अनुपात में मिश्रण है । यह मृदुरोमिल आसिता (Downy Mildews), अंगमारी (Blights), ऐन्थ्रेक्नोज, श्वेत किट्ट रोग आदि के नियंत्रण में उपयोगी है ।

(b) बर्गन्डी मिश्रण (Burgundy Mixture):

यह बोर्दो मिश्रण का एक सुसंस्कृत रूप है । इसमें चूने के स्थान पर सोडियम कार्बोनेट का प्रयोग किया जाता है । यह बोर्दो मिश्रण की तुलना में कम पादप आविषालु (Phytotoxic) है अत: इसका प्रयोग कोमल पत्तियों वाले पौधों में किया जाता है ।

(c) चेसहन्ट यौगिक (Cheshunt Compound):

यह कॉपर सल्फेट एवं अमोनियम कार्बोनेट का 2:1 के अनुपात में मिश्रण है । इसका उपयोग आर्द्र पतन रोग (Damping off Disease) के नियंत्रण में किया जाता है ।

(d) मर्क्यूरिक एवं मर्क्यूरस क्लोराइड (Mercuric and Mercurous Chloride):

इन दोनों यौगिकों का उपयोग 1:1,000 तुलना के घोल में किया जाता है ।

(e) चूना गंधक (Lime Sulphur):

यह कैल्सियम थायोसल्फेट (Calcium Thiosulphate) तथा कैल्सियम पॉलिसल्फाइड (Calcium Polysulphide) का मिश्रण है । यह चूर्णिल आसिता (Power Mildews) के नियंत्रण में अत्यन्त प्रभावकारी है ।

(II) कार्बनिक यौगिक (Organic Compounds):

(a) थाइरैम (Thiram-Tetramethyl Thiuram Disulphides, TMTD):

यह बाजार में आरासेन (Arasan), टुण्डास (Tundas), टुलीसेन (Tulisan) आदि व्यापारिक नामों से बिकता है । यह पिथियम (Pythium), फ्यूजेरियम (Fusarium), प्रोटोमाइसिस (Protomyces), आदि रोगजनक कवकों के नियंत्रण में प्रयोग किया जाता है ।

(b) फेरबाम (Ferbam-Ferric Dimethyl Dithiocarbamate):

यह फेरमेट (Fermate), फेरबाम (Ferbam), कोरोमेट (Coromet), आदि व्यापारिक नामों (Trade Names) से मिलता है । यह आलू की अगेती व विलंबित अंगमारी (Early and Late Blight of Potato) के नियंत्रण में प्रभावी है ।

(c) मेनब (Maneb-Manganese-Ethylene Bisodium-Dithiocarbonate):

यह डायथेन (Dithane M-22) अथवा मेनजेट (Manzate) के नाम से बिकता है तथा मुख्यतः अनेक सब्जियों की पत्तियों व फलों के रोग नियंत्रण में सहायक होता है ।

(d) जिरेम (Ziram-Zinc Dimethyl Dithiocarbonate):

भारतवर्ष में इस यौगिक का व्यापारिक नाम क्यूमेन (Cuman) है । यह बागों में पर्णिल रोगों के नियंत्रण में उपयोगी है ।

(III) ऐन्टिबायोटिक (Antibiotics):

अनेक प्रकार के ऐन्टिबायोटिक्स भी पादप रोग नियंत्रण में सहयोगी सिद्ध हुए है ।

इनमें से कुछ प्रमुख निम्न प्रकार है:

(a) स्ट्रैप्टोमाइसिन (Streptomycin):

यह रोगजनक जीवाणुओं (जैसे जैन्थोमोनास सिट्राइ, जै॰ जुगल जै॰ वेसिटेकोरिया, स्यूडोमोनास फेसियोलाक्यूलस) व कवकों फाइटोफ्थोरा पैरासिटिका, फा इन्फेस्टेनस के नियंत्रण में उपयोग किया जाता है ।

(b) साइक्लोहैक्सीमाइड (Cycloheximide):

कोकोमाइसिस हाइमेलिस, एरीसाइफी पॉलिगोनाइ, अस्टिहार्डिआइ, स्क्लेरोटिनिया फ्रूटिकोला, राइजोपस व बोट्राइटिस जातियों से उत्पन्न रोगों के नियंत्रण में प्रभावकारी है ।

(c) ग्रिजिओफुल्बिन (Griseofulvin):

यह बीट्राई फेबी, आल्टर्नेरिया सोलेनाई, यूसेमाइसिस ऐपेडिक्यू स्क्लेरोटिनिया, फ्राक्टिजिना, आदि रोगजनक कवकों के प्रभावशाली है ।

(d) ट्रेट्रासाइक्लीन (Tetracycline):

यह माइकोप्लेस्मा से उत्पन्न होने वाले रोगों के नियंत्रण में प्रयोग किया जाता है ।

(3) जैविक उपाय (Biological Measures):

जैविक उपाय (Biological Measures) को निम्न तीन भागों में बाँटा गया है:

(i) प्रतिरोधी किस्मों का प्रजनन (Breeding Resistant Varieties),

(ii) पाश सस्य एवं विरोधी द्वारा नियंत्रण (Control through Trap Crops and Antagonistic Plants),

(iii) परात्परजीविता (Hyperparasitism) ।

(i) प्रतिरोधी किस्मों का प्रजनन (Breeding Resistant Varieties):

आर्थिक एवं व्यवहारिक दृष्टि से यह रोग नियंत्रण की श्रेष्ठ विधि है । इसे रोग नियंत्रण (Diseased Control) की पीड़ाहीन विधि (Painless Method) भी कहा जाता है । प्रत्येक Plant Group में कुछ प्रतिरोधी (Resistant) तथा कुछ सुग्राही (Susceptible) किस्में होती है ।

Breeding विधि द्वारा इस प्रकार की किस्मों से उच्च उत्पाद (Products) की प्रतिरोधी किस्में (High Yielding Resistant Varieties) तैयार की जाती है । जैसे गेहूँ (Wheat) के विभिन्न रोगों के लिए तैयार की गई कुछ प्रतिरोधी किस्मों के नाम है ।

ये किस्में आर्थिक दृष्टि से भी उपयोगी है । गेहूँ की प्रतिरोधी किस्में Lerma Rojo 64A, Kalyan Sona, HD 1918 (Protap), HD 2009 (Arjun), 4.P.262 JNK (4-W-184) गेहूँ की स्मट प्रतिरोधी किस्में NP4, NP710 NP 770 आदि ।

(ii) पाश सस्य एवं विरोधी पौधों द्वारा नियंत्रण (Control through Trap Crops and Antagonistic Plants):

बहुत पौधे ऐसे होते हैं जो कुछ कवकों (Fungus) व सूत्रकृमि (Nematodes) द्वारा ग्रसित (Infestation) हो सकते है परन्तु इसके बाद परपोषी (Host) द्वारा ऐसे पदार्थ स्रावित (Secrete) किये जाते है । जो इन रोग जनकों की वृद्धि का प्रतिरोध करते है । इस प्रकार के परपोषी (Host) पाश सस्य (Trap Crops) कहलाते है ।

जैसे सोलेनम नाइग्रम (Solanum Nigrum) द्वारा मिट्टी में हेटेरोडेरा (Heterodera) नामक Nematodes की संख्या कम की जा सकती है । इस प्रकार की पाश सस्य (Tracrops) के सस्य आवर्तन (Crop Rotation) से अनेक प्रकार के Pathogen Micro Organisms की संख्या कम की जा सकती है ।

(iii) परात्परजीविता (Hyper Parasitism):

यह Pathogens Microorganisms का अन्य Micro Organisms द्वारा Control की प्रक्रिया है । Bacteriophages; Mycophages व Nematophagous, Hyper Parasitism के सामान्य उदाहरण है ।

पिथियम (Pyhthium), फ्यूजेरियम (Fusarium), हेल्मिन्थोस्पोरियम (Helminthosporium) आदि Pathogens Fungi को मिट्टी में उपस्थित अन्य Fungus Parasite के रूप में ग्रसित (Infest) करते है । इनका परपोषी पर कोई बुरा प्रभाव नहीं होता है । इसी प्रकार Bacteriophages द्वारा अनेक Bacterial रोगों के Control में सफलता प्राप्त की गई है ।

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