फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जीवनी | Florence Nightingale Kee Jeevanee | Biography of Florence Nightingale in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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रोगियों की सेवा को अपने जीवन की सार्थकता मानने वाली, नर्सों का सेवा-भाव रखने वाली, मानवता के लिए समर्पित व्यक्तित्व का नाम फ्लोरेंस नाइटिंगल है । नर्सों द्वारा अस्पतालों में रोगियों की जाने वाली सेवा उन्हें बीमारी से मुक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । ऐसी ही सेवाभावी नर्स विश्व इतिहास में हुईं, जिन्होंने सम्पूर्ण मानव-समाज को अपने इस कार्य से एक सच्चा मार्गदर्शन एवं आदर्श दिया । उस महान् सेवाभावी नर्स का नाम था-फ्लोरेंस नाइटिंगल ।

 

2. जन्म परिचय:

फ्लोरेंस नाइटिंगल का जन्म इटली के फ्लोरेंस में 12 मई सन् 1820 को हुआ था । वह एक अत्यधिक सम्पन्न व समृद्ध परिवार की महिला थीं । वयस्क होने पर उनके मन में नर्स बनकर सेवा करने की ऐसी चाह जागी कि माता-पिता के तीव्र विरोध के बाद भी उन्होंने अपनी यह जिद नहीं छोड़ी । उन्होंने रोम जाकर नरशों को दिये जाने वाले प्रशिक्षण का लाभ उठाया ।

उसके बाद वह पारिवारिक विरोध के बावजूद एक सामाजिक रूढ़िग्रस्त को तोड़ते हुए उन्होंने सेवाभावी संस्था को ज्वाइन कर लिया । वह सम्पूर्ण यूरोप की यात्रा पर गयीं । वहां उन्होंने स्थान-स्थान पर ऐसे लोगों से सम्पर्क किया, जो सेवा की तीव्र इच्छा रखते थे ।

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सन् 1853 को फ्लोरेंस को जब रोगी महिलाओं की एक संस्था के प्रबन्धन का दायित्व सौंपा गया, तो उन्होंने अपने परिश्रम, लगन एवं कुशल प्रबन्धन से इसे इतना विकसित एवं सुविधायुक्त किया कि उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी । सन् 1954 में युद्ध छिड़ गया । अखबारों में इस आशय की खबरें आने लगीं कि युद्ध में वीर घायल सैनिकों की चिकित्सा के लिए वहां चिकित्सकों व नर्सों की आवश्यकता है ।

उस समय के युद्ध मन्त्री ने फ्लोरेंस की संस्था की मदद मांगी । फ्लोरेंस ने न केवल अपनी स्वीकृति भेजी, वरन् स्वयं सेविकाओं, नर्सों और आवश्यक उपचार सामग्री के साथ वह तुर्की के लिए रवाना हो गयीं । अपनी सेवाकार्य सम्बन्धी योग्यता के लिए वह इतनी अधिक प्रसिद्ध हो गयी थीं कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में अनुदान भी मिला ।

हालांकि उनके कार्यों की आलोचना भी हुई । तथापि इस कार्य में फ्लोरेंस का कर्तव्यनिष्ठा से किया गया सेवाभाव काम आया । युद्ध में आये घायल सिपाहियों की संख्या 600 से अधिक थी । वहां सरकारी अफसरों का भ्रष्टाचार नाइटिंगल के कार्य में एक बड़ी बाधा बन रहा था ।

तथापि फ्लोरेंस ने इन सबकी चिन्ता न करते हुए खाना बनवाने, सफाई, कपड़े धुलवाने, सामानों की देखभाल सहित लगभग 20 घण्टे प्रतिदिन काम किया । सब कार्य खत्म होने के बाद वह रात्रि के समय एक बार मरीजों के पास जाकर उनका हालचाल जरूर पूछती थीं ।

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उनकी मृदुल वाणी उपचार का काम करती थी । लैम्प लेकर वह अपनी सफेद टोपी और काली फ्रॉक में सेवा की साक्षात मिसाल लगती थीं । सैनिकों ने उन्हें ”लेडी आफॅ द लैम्प” की उपाधि दी । उन्होंने उस समय घायल सैनिकों के मनोरंजनार्थ पुस्तकों, खेलों आदि की भी व्यवस्था करवायी ।

उन्होंने युद्ध के घायल सैनिकों के लिए ताजे भोजन आदि की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा । वह युद्ध के मैदान में जाती थीं । अत्यधिक मेहनत के कारण वह भयंकर ज्वर से पीड़ित हो गयी थीं, जिसकी वजह से वह दुर्बल भी हो गयी थीं । वह दुबारा स्वस्थ हुईं, तो महारानी विक्टोरिया ने उन्हें व्यक्तिगत तौर पर धन्यवाद दिया । पूरे राष्ट्र ने उनका अभिनन्दन किया ।

इस तरह फ्लोरेंस ने अपने इस कार्य को आजीवन जारी रखा । युद्ध में उनकी महत्त्वपूर्ण सेवाओं के लिए इंग्लैण्ड के निवासियों ने उनके नाम पर 50,000 पाउण्ड एकत्र किये थे । उस राशि को उन्होंने सेंट टॉमस अस्पताल में नर्सों को प्रशिक्षण देने के लिए ”नाइटिंगल होम” की स्थापना की ।

फ्लोरेंस नाइटिंगल ने युद्ध के घायल सैनिकों के तुरन्त उपचार की जो परम्परा स्थापित की, उसके लिए उन्हें इंग्लैण्ड की महारानी द्वारा 1907 को ”आयीर ऑफ मेडिट” का अलंकरण प्रदान किया गया । 1908 में उन्हें फ्रीडम ऑफ द सिटी ऑफ लंदन की उपाधि प्रदान की गयी । फ्लोरेंस ने नर्सों के प्रशिक्षण के लिए सेंट टॉमस अस्पताल में नाइटिंगल होम के अलावा 800 पृष्ठों की एक रिपोर्ट 1850 में प्रकाशित की ।

नोट्‌स ऑर मेट्‌स अफेटिंग द हेल्थ, ”इफिंक्टिसिटी एण्ड हॉस्पिटल एडमीनिस्ट्रिशन ऑफ द ब्रिटिश आर्मी”, इसमें ब्रिटिश के स्वारथ्य सम्बन्धी जानकारी के लिए स्वतन्त्र आयोग का गठन किया गया । फ्लोरेंस भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान भारत आना चाहती थीं, जिसकी अनुमति उन्हें नहीं मिल पायी । 13 अगस्त, 1910 को वह परलोक सिधार गयीं ।

3. उपसंहार:

फ्लोरेंस नाइटिंगल का जीवन समाज सेवा, मानव सेवा का अनुपम उदाहरण है । आकर्षक व्यक्तित्व की धनी, नाइटिंगल ने अविवाहित रहकर जिस निःस्वार्थ भाव से मानव सेवा की, वह अमूल्य है । नर्सों का सेवा-भाव एक प्रकार से कहा जाये, तो फ्लोरेंस नाइटिंगल की ही देन है । सही अर्थों में मानव-धर्म क्या है, किसे कहा जाना चाहिए, यह हमें फ्लोरेंस नाइटिंगल का जीवन प्रेरणा देता है ।