भागिनी निवेदिता की जीवनी | Bhagini Nivedita Kee Jeevanee | Biography of Bhagini Nivedita in Hindi

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

ADVERTISEMENTS:

भारतभूमि ऐसी कर्मभूमि रही है, जो विदेशियों के लिए भी हमेशा आकर्षण का केन्द्र रही है । विदेशियों ने न केवल यहां की संस्कृति को प्रभावित किया है, वरन् वे यहां की संस्कृति से बेहद प्रभावित हुए हैं । ऐसे लोगों में श्रीमती एनीबेसेन्ट, मदर टेरेसा आदि महिलाओं का नाम अग्रगण्य है ।

इन महिलाओं ने भारतभूमि को ही अपनी कर्मभूमि मान लिया और अपना सम्पूर्ण जीवन इसकी सेवा में समर्पित भी कर दिया । वे शरीर से विदेशी होकर भी आत्मा से भारतीय बनी रहीं और भारतीयता के रंग में पूरी तरह से रंग गयीं । ऐसी महिलाओं में एक और नाम आता है, वह है: भगिनी (सिस्टर) निवेदिता का ।

भगिनी निवेदिता स्वामी विवेकानन्दजी के आदर्शों से प्रभावित होकर भारत आयी थीं । स्वामीजी ने उन्हें ”सिस्टर निवेदिता” का नाम दिया । किन्तु भारत आकर वे सभी की ‘सिस्टर’ बन गयीं । त्याग, समर्पण, सेवा, करुणा, मानवता व देशभक्ति का अनुपम उदाहरण थीं भगिनी निवेदिता ।

2. जन्म परिचय:

भगिनी निवेदिता का जन्म 28 अक्टूबर 1867 को उत्तरी आयरलैण्ड में हुआ था । उनके बचपन का नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल था । उनके पिता सेमुअल रिचमंड नोबल एक पादरी थे, अत: बालिका मार्गरेट पर अपने पिता की धार्मिक आस्थाओं एवं, संस्कारों का विशेष प्रभाव पड़ा ।

ADVERTISEMENTS:

अपने पिता से उन्हें गरीबों की सेवा करने का गुण विरासत में ही मिला था । वे अपने पिता के साथ ऐसे ही सेवा कार्य हेतु गरीबों के यहां जाया करती थीं । अपनी माता से उन्हें मिष्ठभाषिता तथा संवेदनशीलता विरासत में ही मिली थी ।

1895 में जब लंदन में स्वामी विवेकानन्दजी से उनका प्रथम साक्षात्कार हुआ, तो वे उनके आध्यात्मिक एवं मानवतावादी विचारों से बेहद प्रभावित हुईं । भारत में जागृति लाने के पुनीत कार्य हेतु वे उनके साथ 28 जनवरी 1898 को भारत आयीं ।

भारत से प्यार व भारत की सेवा करना ही उनके जीवन का व्रत था । यहां आकर उन्होंने अनपढ़ भारतीयों की दुर्दशा देखी । वहीं महिलाओं की दयनीय स्थिति देखकर वे बेहद दुखी हो गयीं । उन्होंने अनपढ़ महिलाओं से सम्पर्क साधकर न केवल यहां की भाषा सीखी, वरन शिक्षा द्वारा उनमें जागृति लाने का प्रयास भी किया ।

पर्दापथा, सतीप्रथा तथा नाना प्रकार के अन्धविश्वासों में जकड़ी हुई भारतीय नारियों की दुर्दशा देखकर उनका हृदय चीत्कार कर उठा था । 1907 में उन्होंने निवेदिता गर्ल्स स्कूल की स्थापना की और भारतीय महिलाओं में शैक्षिक तथा सामाजिक जागृति लाने का कार्य प्रारम्भ किया ।

ADVERTISEMENTS:

गुलाम भारत में जब प्लेग जैसी भयंकर महामारी फैली थी तथा भयंकर बाढ़ ने कहर ढाया था, तब भगिनी निवेदिता ने गांव-गांव की पैदल यात्रा कर पीड़ितों की सेवा की । भारतीय परिधान साड़ी को धारण कर उन्होंने बाढ़ से भरे हुए गांवों के कीचड़-पानी, गन्दगी की भी परवाह नहीं की । पीड़ितों की दिन-रात सेवा-सुश्रुषा के साथ-साथ उनके उपचार हेतु हर सम्भव प्रयास किये । दिन में 18 घण्टे कार्य करते हुए भी वे थकती नहीं थीं ।

उन्होंने अपने कार्यों से भारतीय नारियों में एक नया आत्मविश्वास पैदा किया । भगिनी निवेदिता ने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के कार्य में भी अपना अप्रत्यक्ष रूप से महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । वे सच्ची देशभक्त थीं ।

भगिनी निवेदिता के व्यक्तित्व का एक आकर्षक गुण उनकी साहित्यिक अभिरुचि भी थी । उन्होंने ”मास्टर एज आयी साँ हिम” जैसी श्रेष्ठतम कृति की रचना भी की थी । इसमें उन्होंने स्वामी विवेकानन्द के सम्बन्ध में अपने संस्मरण लिखे हैं ।

उनके अन्य ग्रन्थों में ‘ए पिलग्रिम्स डायरी’, ‘काली द मदर’, ‘केदारनाथ एण्ड बदरीनाथ’ हैं । इन ग्रन्थों में उन्होंने भारत तथा भारत दर्शन की महानता को पाश्चात्य देशों तक पहुंचाया । उनका मुख्य मिशन हिन्दू धर्म-दर्शन एवं संस्कृति पर आधारित जन-जागरण, महिलाओं में जागृति लाना, उनका शैक्षिक एवं सामाजिक सुधार करना था ।

ऐसी महान् व्यक्तित्व का निधन 13 अक्टूबर, 1911 को दार्जिलिंग में हो गया । उनका अन्तिम संस्कार हिन्दू शास्त्रीय विधि से किया गया था । दार्जिलिंग में आज भी उनका स्मारक उनकी महान् सेवा की याद दिलाता है ।

3. उपसंहार:

विदेशी होकर भी भारतभूमि को तन, मन, कर्म से अपनी भूमि मानने वाली सिस्टर निवेदिता ने भारतीयों के जीवन में एक नयी जागृति पैदा की । अपना सम्पूर्ण जीवन उनकी सेवा में होम कर दिया । भारतवर्ष उनका हमेशा ऋणी रहेगा ।

Home››Biography››