देव की जीवनी | Biography of Dev in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत एवं कृतित्व ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

ADVERTISEMENTS:

रीतिकालीन, रीतिबद्ध काव्यधारा के श्रेष्ठ कवि ‘देव’ संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे । उनकी कविताओं में उनके पाण्डित्य की छाप मिलती है । काव्य-कौशल की दृष्टि से वे महाकवि बिहारी के समकक्ष आते हैं । बिहारी की तुलना में उनकी रचनाओं की संख्या बहुत अधिक है ।

ये परिमाण की दृष्टि से बिहारी से श्रेष्ठ ठहरते हैं; ऐसा सुविज्ञ मानते हैं । अपने भावाभिव्यक्ति की श्रेष्ठ शैली के कारण वे रीतिकाल  के श्रेष्ठ कवि माने जाते रहे हैं ।

2. जीवन वृत्त एवं कृतित्व:

देव इटावा के रहने वाले सनाढ्‌य ब्राह्मण थे । उनका जन्म संवत् 1730 को हुआ था । उन्होंने 16 वर्ष की अवस्था में ”विलास” नामक ग्रन्थ की रचना कर डाली थी । उन्होंने लगभग 75 पुस्तकें लिखीं । शुक्लजी ने 55 स्वीकार की हैं, किन्तु 25 पुस्तकें ही उनकी उपलब्ध हो पायी हैं । उन को प्रसिद्ध पुस्तकों में अष्टयाम, भाव विलास, भवानी विलास, कुशल विलास, रस चन्द्रिका, प्रेम चन्द्रिका, सुजान विनोद, जाति विलास प्रमुख हैँ ।

यद्यपि वे स्वछन्द स्वभाव के कारण बहुत दिनों तक किसी राजा के आश्रय में नहीं रहे । अष्टयाम व भावविलास उन्होंने औरंगजेब के पुत्र आजमशाह के लिए लिखी, किन्तु उनके आश्रय में रहना उन्होंने स्वीकार नहीं किया । उन्होंने भवानी दत्त वैश्य के नाम पर ‘भवानी विलास’ लिखा ।

ADVERTISEMENTS:

कुशलसिंह के लिए कुशल विलास लिखा । राजा भोगीलाल के लिए ‘रस विलास’ की रचना की सुजानसिंह के लिए सुजानविनोद लिखा । प्रेम चन्द्रिका की रचना राजा उद्योत के लिए की । जाति-विलास अपने भ्रमण पर आधारित पुस्तक है । कुछ पुस्तकें वैराग्य पर भी आधारित हैं ।

उनके विषय में यह भी कहा जाता है कि वे पूर्वरचित पुस्तकों को अदल-बदलकर लिख दिया करते थे । गिनती में भले ही उनकी पुस्तकों की संख्या अधिक हो, किन्तु भावों की ऊंचाई पर वे बिहारी से उन्नीस ही माने जाते रहे है । उनका पूरा नाम देवदत्त था ।

उनकी मृत्यु संवत 1834 के आसपास मानी जाती है । कवि देव को बहुत-से आलोचक आचार्य भी मानते हैं; क्योंकि उन्होंने संस्कृत के साहित्य-शास्त्रीय आधारों पर अपने अन्यों की रचना की । उनका प्रिय रस श्रुंगार है, जिसके संयोग एवं वियोग दोनों पक्षों का उन्होंने श्रेष्ठ चित्रण किया है ।

प्रकृति की सुकुमारता, सरसता, रमणीयता, माधुर्य के सुन्दर चित्र उन्होंने खींचे हैं । प्रकृति के उद्दीपन रूप का सफल चित्रण उनकी कविताओं में हुआ है । अलंकारों के प्रयोग पर ध्यान दिया है, जिसके बोझ तले कविता दब सी गयी है । अनुप्रास की छटा का सायास प्रयोग होते हुए भी उनकी कविता में पायल की झंकार !

ADVERTISEMENTS:

पायनि नुपूर मंजु बजै कटि

किंकिनि की धुनि की मधुराई ।

सांवरे अंग लसै पट पीत हिए,

हुलसी वनमाल सुहाई ।।

माथे किरीट बड़े दृग चंचल मन्द हंसी

मुखचन्द जुन्हाई है ।

जग-जग मन्दिर दीपक सुन्दर

श्री ब्रजदूलह ‘देव’ सहाई है ।

3. उपसंहार:

कवि देव रीतिकाल के निश्चित ही श्रेष्ठ कवि हैं । देव और बिहारी दोनों की कविताओं को तुलनात्मक स्तर पर बहुत वर्षों तक समकक्ष माना गया । यहां तक कि किसी ने देव को बिहारी से श्रेष्ठ बताया, तो किसी ने बिहारी को देव से श्रेष्ठ घोषित किया ।

आचार्य शुक्ल ने तो गुणात्मक दृष्टि से बिहारी को ही देव से श्रेष्ठ बताकर इस विवाद को विराम-सा लगा दिया । देव की भाषा ब्रज है, जिस पर उनका अच्छा अधिकार था । वे ब्रज के ही नहीं, संस्कृत के भी अच्छे ज्ञाता कवि थे ।

Home››Biography››