होम्योपैथी के जनक-डॉ॰ हैनीमैन की जीवनी । Biography of Dr. Hahnemann in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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विश्व में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन मानव के हितार्थ हुआ है, किन्तु अत्यन्त अल्प समय में जिस अनूठी चिकित्सा पद्धति ने प्रसिद्धि प्राप्त की तथा उपवार की सरल, चमत्कारपूर्ण पद्धति विश्व को दी, वह होम्योपैथी ही है । इसके जन्मदाता डॉ॰ हैनीमैन रहे हैं, जिन्होंने मानव सेवा की भावना से ही इस चिकित्सा पद्धति की खोज की ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:

डॉ॰ हैनीमैन का जन्म पुर्तगाल के लिस्बन में एक निर्धन परिवार में हुआ था । डॉक्टरी की उच्च शिक्षा इंग्लैण्ड में पूर्ण कर वे सर्वप्रथम तो एलोपैथी के डॉक्टर बनकर जर्मनी आये । वहां आकर एक सरकारी अस्पताल में सिविल सर्जन बन गये । डॉ॰ हैनीमैन ने अपने अध्ययन एवं शोध द्वारा यह पाया कि प्रत्येक रोग मन के दोष से ही उत्पन्न होता है ।

मन एक अत्यन्त सूक्ष्म शक्ति है और उसी के विकार से शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं । अत: मन की सूक्ष्मता की तरह ओषधियां भी सूक्ष्मतम रूप में होनी चाहिए । स्वारस्य खराबी के तीन प्रमुख कारण-चर्मरोग, सुजाक तथा प्रमेह बताये हैं ।

भारतीय आयुर्वेद का अध्ययन करते हुए उन्होंने मलेरिया में दी जाने वाली कुनैन की गोली के मानव शरीर पर दुष्प्रभावों का परीक्षण करना चाहा । कुनैन संसार की एकमात्र ऐसी दवा है, जिसे रोगी के अलावा सामान्य स्वस्थ आदमी को देने पर वह बीमार हो जाता है ।

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स्वयं पर प्रयोग करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि मनुष्य शरीर के अनुकूल कोई भी प्रयोग निर्दोष जीव-जन्तुओं पर करने की अपेक्षा मनुष्यों में करने पर वास्तविक ज्ञात होता है । डॉ॰ हैनीमैन ने दवा को इतना हल्का डायस्कूट किया कि उसकी शक्ति को और बढ़ा दिया ।

इस तरह परमाणु शक्ति की तरह दवा को एक पौटेन्सी की तरह सूक्ष्म किया । 100 बूंद रेक्टीफाइट स्पिट में 1 बूंद घुली हुई दवा डालकर पिलाया जाये और उससे एक क्य दवा ली जाये, तो वह एक पौटेन्सी होती

है ।

यदि एक बूंद पौटेन्सी को फिर 100 बूंद रेक्टीफाइड स्पिट में डालकर हिलायें और उसमें से एक बूंद भी निकाल लें, तो यह 2 पौटेन्सी दवा (1 लाख पौटेन्सी शक्ति) एक स्वस्थ व्यक्ति को दे, तो उसकी शक्ति असीमित होती है ।

3. उपसंहार:

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डॉ॰ हैनीमैन ने यह साबित किया कि रभूलता शक्ति का आधार न होकर सूक्ष्मता ही शक्ति का अधार है, जो भारतीय दर्शन का मूलाधार है । मानव स्वास्थ्य की खराबी का मूल कारण मन और मनुष्य का स्वभाव व आचरण है । अत: दवा देने से पूर्त उसके मनोभावों व आचरण सुधार की शिक्षा देनी चाहिए ।

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