हजरत मुहम्मद की जीवनी | Biography of Hazrat Muhammad in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

3. कुरान के धार्मिक सिद्धान्त ।

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4. उनके चमत्कार ।

5. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

मुस्लिम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद माने जाते हैं, जिन्होंने अपनी धार्मिक सहिष्णुता एवं श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों से इस धर्म को एक महान् धर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया था । मानवीय आधार पर इस धर्म की स्थापना करके उन्होंने आपसी सदभाव और मैत्री का सन्देश दिया था । सभी मनुष्यो को ईश्वर की सन्तान बताते हुए उन्होंने धार्मिक सदभाव व एकता का पाठ पढ़ाया ।

2. जन्म परिचय:

उनका जन्म व मृत्यु 571-632 ईसा   के बीच मानी जाती है । अरब देश के काबा नामक शहर में हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था । उनके पिता हजरत अब्दुल्लाह और माता बीबी आमना थीं । ये लोग कौरेश नाम के घरानों से थे ।  जब वे दो महीने के थे, तो उनके पिता का देहावसान हो गया था और उनकी माता भी कुछ ही दिनों में चल बसी थीं ।

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उनका लालन-पालन दादा हजरत अब्दुल मुत्तलिक ने किया । कुछ दिनों बाद उनका भी इंतकाल हो गया । अपने इंतकाल से पहले मोहम्मद साहब की जिम्मेदारी उनके चाचा अबू तालीब को सौंप दी, जिन्होंने बड़े ही प्रेम और चाव से उनकी देखभाल की ।

बचपन से ही हजरत गम्भीर स्वभाव के, कम तथा मीठा बोलने वाले थे, जबकि अरब के लोग दगाफरेब, झूठ बोलने में अपना जीवन बिताते थे । उनकी सचाई को देखकर लोग उन्हें अल-अमीन, अर्थात् सच्चा ईमानदार अथवा सत्यव्रती कहते थे । बचपन से उनमें सन्तों के समकक्ष गुण थे ।

उनके समय में अरब में स्त्रियों पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार हो रहे थे । झूठ, फरेब, आतंक का बोलबाला था । लोग अन्धविश्वासों में डूबे हुए थे । बड़े होने पर मोहम्मद साहब ने रोजगार, व्यापार करने का कार्य शुरू किया । धन्धे में ईमानदारी पर उन्हें बेहद विश्वास था ।

उनकी मेहनत और ईमानदारी की प्रशंसा इतनी फैली कि बीबी खदीजा नामक महिला ने उनको शीराज भेजा । वे तिजारत करने के लिए बाहर गये । व्यापार में उनको काफी लाभ हुआ । फिर वे मक्का आ गये । उनकी ईमानदारी से प्रभावित होकर बीबी खदीजा ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा ।

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उनकी अवस्था 24 वर्ष थी तथा बीबी खदीजा उनसे काफी बड़ी थीं । सुन्दर आदर्श विवाहित जीवन निभाते हुए उनके तीन लड़के और चार लड्‌कियां हुईं । हजरत मोहम्मद अपने घर-परिवार के लोगों तथा नौकरों के साथ भी बहुत नरमी का व्यवहार रखते थे ।

सादा भोजन, सादे कपड़े और अपना काम खुद करना तथा साफ-सफाई रखना उनके स्वभाव में शामिल था । सांसारिक जीवन जीते हुए भी वे यह सोचा करते थे कि लोगों को बुराई के रास्ते से कैसे हटाया जाये । कभी-कभी रेगिस्तान के एकान्त में घण्टों बैठे इस विषय पर गहन चिन्तन किया करते थे ।

उस समय वे खाने-पीने की सुध भी भूल बैठते थे । रेगिस्तान में गारे-हरा नामक एक खोह थी । वहां अकसर वे ध्यान लगाते थे । एक दिन गाहे-हरा में ध्यानमग्न अवस्था में खुदा के एक फरिश्ते ने दिव्य रूप धारण करके उनके समक्ष कहा: “ले पढ़ अपने पालन करने वाले खुदा के नाम से ।”

तब फरिश्ते ने उन्हें सीने से लगाया, तो उन्होंने फरिश्ते द्वारा कही गयी सभी आयतें सही-सही दोहरा दीं । तू ही खुदा का पैगम्बर है । जा, खुदा की एकता की बातें बता । इस तरह अनपढ़ पैगम्बर हजरत मोहम्मद ने अल्लाह के हुक्म से फरिश्ते जबरील के द्वारा दिये गये सन्देश को सातवें स्वर्ग से लाकर वर्तमान रूप में लोगों को सुनाया ।

मोहम्मद साहब ने जो सन्देश लोगों को सुनाया, उसका उन्हें काफी विरोध सहना पड़ा । अल्लाह से धर्म के प्रचार का आदेश मिला था । मक्का में उन्होंने यह सन्देश जनता में दिया । इस सन्देश को सुनकर जनता ने तो उन्हें अपना पैगम्बर मान लिया, किन्तु कुरैशी के लोग ईर्ष्या करने लगे ।

विरोध इतना बढ़ा कि मोहम्मद साहब को मदीने की ओर प्रस्थान करना पड़ा । मक्का से मदीना तक की यात्रा की यह घटना 20 जून 822 ई॰ को हुई । उनके दो पुत्र और चार पुत्रियां विरोधियों से संघर्ष में मारे गये । उस रेगिस्तान की भरी गरमी में अन्तिम लड़ाई में उनका एक बेटा और एक बेटी फातिमा ही बच पायीं ।

भूखे-प्यासे बच्चों के लिए बार-बार पानी मांगने पर भी लोगों ने उन्हें पानी नहीं दिया । बेटी फातिमा वहां शहीद हो गयी । अपने बेटे की कुरबानी के समय उन्होंने कहा: “ ऐ मेरे बच्चे, मैं ख्वाब देख रहा हूं और तुम्हें जिबह कर रहा हूं । तुम्हारी क्या राय है ? अल्लाह ने चाहा, तो मुझे सब्र करने वालों में ही पाइयेगा ।”

बाप ने बेटे को माथे के बल लिटाया । यह परीक्षा खुदा ने पैगम्बर मोहम्मद की ली थी । इब्राहीम ने अपने बच्चों को जिबह करने के लिए छुरी चलायी थी, किन्तु कुछ ऐसा हुआ कि वहां एक बकरा था, जो उनके बेटे की जगह खड़ा था । आकाशवाणी हुई कि तुम मेरी परीक्षा में सफल हुए ।

इस तरह इस्लाम धर्म का प्रचार करते  हुए उन्हें बहुत से अत्याचार भी झेलने पड़े । जैसे-जैसे मुसलमानों की जमात बढ़ती गयी, वैसे-वैसे उनके खिलाफ जुल्म बढ़ता  गया । लोगों ने उनके रास्ते में कांटे बिछाये । बुरी-बुरी गालियां दीं । सिर पर कूड़ा-करकट फेंक दिया ।

नमाज पढते समय उनकी गर्दन पर पाखाना तक रख दिया जाता था । अरब की जलती रेत पर लिटाकर सीने पर भारी तपे चट्टान तब तक उनके अनुयायियों पर भी लादे जाते, जब तक वे मर नहीं जाते । कई आदमियों के टुकड़े-टुकड़े कर डाले । जुल्म सहकर भी उनके साथी नये धर्म पर दृढ़ता से डटे रहे ।

हज के समय जब वे इस्लाम का उपदेश सुनाकर मक्का जा रहे थे, तो दुश्मन उनको मारने की फिराक में थे । वहां से 52 वर्ष की अवस्था में जब वे मदीना पहुंचे, तो मक्के में रहने वाले उनके विरोधियों ने मदीने पर हमला कर दिया । सुलह की कोशिश के बाद भी लड़ाई छिड़ी और घमासान युद्ध हुआ ।

करबले के मैदान में उनके नवासे ने शहादत पायी । करबला की जंग में अपने 72 साथियों के साथ लड़ते हुए उन्होंने जालिमों से समझौता नहीं किया । 6 माह का मासूम असगर हजरत अबास, कासिम आदि न जाने कितने जानिशां इस्लाम के लिए कुरबान हुए । इस तरह अल्लाह के घर काबा का निर्माण हुआ ।

एक लाख चौबीस हजार मुसलमानों के साथ हज गये । काबा के लोगों ने भी हार मानकर इस्लाम कबूल कर लिया । इस तरह अरब में मुसलमान धर्म की ज्योति जगमगा उठी । 63 वर्ष की उम्र में मक्के का आखिरी हज करते हुए वे सख्त बीमार हो गये, किन्तु नमाज अदा करनी नहीं छोड़ी । मरते समय एक आदमी के तीन दिरहम पैसे चुकाना नहीं भूले ।

3. कुरान के धार्मिक सिद्धान्त:

इस्लाम धर्म की मुख्य किताब कुराने पाक है । यह आज से 1400 वर्ष पहले लिखी गयी थी । इसमें इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का व्यावहारिक रूप पता चलता है । अरबी, फारसी, उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच आदि भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है । कुरान में हजरत मोहम्मद साहब की आयतें लिखी गयी हैं ।

यह पुस्तक पैगम्बर साहब तथा उनके चेलों के द्वारा 23 वर्षों में खुदा की सुनी हुई आकाशवाणी के आधार पर कुरान में उतारी गयी । यह पुस्तक इस्लाम की बुनियाद है । इस धर्म के मुख्य सिद्धान्तों में ईश्वर की एकता, भाईचारा रखना, स्त्रियों और गुलामों की मदद करना, दिन में पांच बार मक्के की ओर मुंह करके नमाज पढ़ना, शुक्रवार के दिन सामूहिक रूप से नमाज में भाग लेना, अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत हिस्सा दान देना, जीवन में एक बार हज जाना प्रमुख रूप से हैं ।

मुस्लिम धर्म के सिद्धान्तों में खुदा को एक मानते हुए सभी पैगम्बरों को एक मानना, हजरत मोहम्मद को आखिरी पैगम्बर मानना प्रमुख है । इस्लाम धर्म का सार है: “खुदा या ईश्वर की मर्जी पर अपने आपको समर्पित कर देना ।”

4. हजरत मोहम्मद साहब के चमत्कार:

मोहम्मद साहब ने अपने जीवन में बहुत-से चमत्कार किये, जिसमें उन्होंने बुराई को अच्छाई में परिणित कर दिया था । इस प्रकार उन्होंने एक दुष्ट महिला का हृदय परिवर्तन किया । जब हजरत मोहम्मद साहब उसके घर के पास से होकर नित्य गुजरते थे, तब वह महिला उनके सिर पर कूड़ा-करकट फेंक देती थी ।

एक बार जब वे वहां से गुजरे, तो उनके सिर पर कूड़ा-करकट नहीं गिरा । ऐसे में हजरत साहब यह सोचने लगे कि आखिर बात क्या है ? उन्हें बुढ़िया की बीमारी के बारे में पता चला, तो वे उसकी खैर-खबर पता करने उसके घर गये ।

मोहम्मद साहब का इतना अच्छा बरताव देखकर बुढ़िया इस कदर लज्जित हुई कि उसने मुसलमान धर्म ग्रहण कर लिया । उसका नाम अजमद था । इस तरह बदर के युद्ध में अनेक कुरैश युवक मोहम्मद का सिर काटकर लाने का संकल्प कर चुके थे ।

दासुर नामक एक कुरैशी जब पेड़ के नीचे सोये हुए हजरत मोहम्मद पर चुपके से हमला करने के प्रयास में था, तब अचानक हजरत के मुख से अल्लाह का ऐसा स्वर निकला कि दासुर उनके पैरों पर गिर पड़ा और उनका शिष्य बन गया ।

एक उद्दण्ड व्यक्ति उनके घर इस आशय से आया था कि वह हजरत को पूरी तरह से परेशान करके छोड़ेगा । इसलिए उसने इतना खाना खाया कि हजरत तो क्या, घर के किसी भी सदस्य के लिए खाना नहीं     बचा । सभी भूखे पेट ही सो गये थे ।

इधर अधिक खाना खा लेने की वजह से उस व्यक्ति को इतनी अधिक बदहजमी हुई कि उसने सोते-सोते ही बिस्तर खराब कर दिया । उसके बाद वह उस स्थान से भाग खड़ा हुआ । सुबह जब हजरत साहब उसके कमरे में गये, तो उन्हें वह व्यक्ति नदारद मिला ।

कमरे की ऐसी बुरी दशा देखकर वे कमरे की सफाई में लग गये । वह युवक अपनी तलवार लेने जब वापस आया, तो हजरत साहब को अपनी गन्दगी साफ करते पाया । उनके चेहरे पर जरा-सी शी शिकन तक नहीं थी । वह उद्दण्ड युवक शर्मिन्दा होकर उनके चरणों पर गिर पड़ा और अपने किये की माफी मांगी ।

5. उपसंहार:

इस्लाम धर्म विश्व के कोने-कोने में फैला हुआ है । इस धर्म के अनुयायी हमारे देश में भी काफी संख्या में हैं । मुसलमानों में राजपूत तथा पंजाब और राजस्थान की कुछ जातियां भी हैं, जो इस बात का प्रतीक हैं कि इस धर्म के कुछ शासकों ने सामूहिक रूप से बलपूर्वक धर्म परिवर्तन करवाया था ।

हिन्दू और इस्लाम हमारी भारतीय संस्कृति में इस तरह रच-बस गये हैं कि दोनों के कुछ रीति-रिवाजों की छाप एक-दूसरे पर पडी हुई है । शिया और सुन्नी दो समुदायों में बंटे हुए इस धर्म में कुछ रूढ़िवादी मुसलमान हैं, तो कुछ उदरवादी । यह धर्म शिक्षा, संस्कृति के क्षेत्र में भी अपनी उन्नति की बाट जोह रहा हैं ।

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