मलिक मुहम्मद जयसी की जीवनी | Malik Muhammad Jayasi Kee Jeevanee | Biography of Malik Muhammad Jayasi in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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हिन्दी के तीन श्रेष्ठ महाकवियों-कबीरदास, सूरदास और तुलसीदासजी के साथ मलिक मोहम्मद जायसी की गणना की जाती है । जायसी सूफी काव्य विचारधारा के भी श्रेष्ठतम कवि हैं । उनकी प्रेम की तीव्रता, गहनता, सूफी पद्धति पर ही विकसित हुई है ।

हिन्दू धर्म के प्रेमानाख्यानक महाकाव्यों के आधार पर उन्होंने न केवल हिन्दु-मुस्लिम एकता का सन्देश दिया, वरन् उर्दू के स्थान पर अवधी भाषा को अपनाकर मानवीय एकता का परिचय दिया । जायसी की प्रेम पद्धति में लौकिक एवं आध्यात्मिक प्रेम, इश्क मजाजी एवं इश्क हकीकी दोनों का सफल सम्मिश्रण है ।

2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म:

मलिक मोहम्मद जायसी का जन्म संवत 1550 में गाजीपुर में हुआ था । बाद में वे जायस {रायबरेली} में रहने लगे । वहीं से उनका नाम जायसी प्रसिद्ध हुआ । वेद, पुराण, कुरान आदि धर्ममश्वों का उन्होंने अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था । सैप्यद अशरफ शरीफ उनके धार्मिक  गुरु थे ।

कहा जाता है कि बाल्यावस्था में शीतला माता के प्रकोप से उनकी बायीं आख और बायां कान जाता रहा । वे अत्यन्त काले और कुरूप लगते थे । एक दिन दरबार में उनकी कुरूपता को देखकर शेरशाह हंसने लगा, तो उन्होंने कहा:

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“मोहि का हंससि कि कोहरहि……”

अर्थात् तुम मुझ पर हंसे कि मुझे बनाने वाले कुम्हार {ईश्वर} पर हंसे ? यह सुनकर शेरशाह बड़ा ही लज्जित हुआ और उनका भक्त बन गया । जायसी बड़े ही उदार, भाबुक, आडम्बरहीन जीवन जीने वाले व्यक्ति थे । एक मुस्लिम होते हुए भी वे हिन्दू धर्म के संस्कारों में विश्वास रखते थे । उनकी रचनाओं का मुख्य आधार हिन्दू धर्म की कथाएं ही हैं । उनकी मृत्यु सन् 1562 में अमेठी के निकट मगरावन में हुई ।

रचनाएं:

जायसी द्वारा रचित अन्यों की संख्या 2 बताई जाती है, किन्तु अभी तक उनकी तीन ही रचनाएं प्रसिद्ध हैं:

1. पदमावत, 2. अखरावट, 3. आखिरी कलाम आखिरी कलाम में प्रलय वर्णन है । अखरावट में वर्णमाला के वर्णो के क्रमानुसार तत्वज्ञान की चौपाइयां लिखी गयी हैं । पदमावत उनकी प्रेममार्गी शाखा का प्रतिनिधि यन्थ है ।

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जायसी ने पदमावत महाकाव्य में रानी पदमावती को अलौकिक रूप देकर परमात्मा एवं आत्मा के विरह-मिलन को रहस्यवाद के माध्यम से चित्रित किया है । जायसी ने निराकार ब्रह्म की प्राप्ति प्रेम से ही मानी है । उनकी भक्ति-भावना में प्रेम ही प्रमुख है । उनका ईश्वर घट-घट वासी है, निर्गुण सृष्टिकर्ता है, जो अगम्य तथा अगोचर है । साधनात्मक रहस्यवाद के साथ-साथ हठयोगी साधना उनके काव्य की विशेषता है ।

नव पौरी बाकी नव खंडा नवो जो चढ़े जाई बरम्हडा के माध्यम से उन्होंने साधनात्मक एवं भावात्मक रहस्यवाद पर बल दिया है । जायसी ने कार के दोनों पक्षों-संयोग एवं वियोग-का अत्यन्त सजीव  मार्मिक चित्रण किया है । जायसी ने पदमावत में लोक-संस्कृति का सुन्दर रूप वर्णित किया है ।

उन्होंने हिन्दू-धर्म की पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक एवं संस्कृतियों का उदारतापूर्वक चित्रण किया है । जायसी का प्रकृति वर्णन बारहमासा, षडऋतु वर्णन भी अत्यन्त हृदयग्राही है । जायसी ने भारतीय सूफी प्रभाव के साथ-साथ फारसी प्रभाव को भी अपनाया है ।

लौकिक तथा अलौकिक प्रेम कथाओं के साथ-साथ ऐतिहासिक एवं काल्पनिक प्रेम कथाओं का चित्रण किया है । जायसी की भाषा अवधी है । अवधी के साथ उसमें अरबी, फारसी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है । भाषा में पूर्वी तथा पश्चिमी का समागम है । समग्र रूप में उनकी भाषा भावपूर्ण एवं सरस है ।

जायसी ने फारसी की मनसबी शैली का प्रयोग किया है । उन्होंने प्रबन्धकाव्य शैली को अपनाया है, जिसमें समासोक्ति और अन्योक्ति तथा प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है । जायसी ने अंगार रस के दोनों पक्षों का प्रभावशाली वर्णन किया है । वहीं वीर, करुण, वीभत्स, शान्त, अदभुत रस का प्रयोग भी आवश्यकतानुसार किया है ।

जायसी ने उपमा, रूपक, उपेक्षा, समासोक्ति, अन्योक्ति, प्रतीक व्यतिरेक, भ्रांतिमान का प्रयोग प्रमुख रूप से किया है । छन्द योजना के अन्तर्गत उन्होंने दोहा, चौपायी, छन्द का प्रयोग भी किया है । सात या आठ चौपायी के बाद दोहा रखा है ।

3. उपसंहार:

जायसी सूफी काव्यधारा के प्रेमानाख्याक काव्य-परम्परा में प्रमुख स्थान रखते हैं । वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक कवि थे । वे एक मानवतावादी कवि भी थे ।

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