सेंट झुलेलाल की जीवनी | Biography of Saint Jhulelal in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय व उनके चमत्कारिक कार्य ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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प्रत्येक मानव अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए महापुरुषों, सन्त-महात्माओं के जीवन का अध्ययन करता है । साथ ही अपने जीवन में उनके आदर्शो को आत्मसात करने का प्रयास भी करता है । सिन्ध की भूमि में एक ऐसे ही दानी, मानवसेवी, ईश्वर भक्त, योगी, साधक का जन्म हुआ था, जिसे सिन्ध समाज झूलेलाल के नाम से पूजता है ।

2. जन्म परिचय व उनके चमत्कारिक कार्य:

सन्त झूलेलाल का प्रादुर्भाव अवतारी पुरुष के रूप में संवत् 1007 चैत्र दूज शुक्रवार को ठठा नगर {नसरपुर} सिन्ध प्रान्त में हुआ था । उस सगय मुसलमान बादशाहों का आतंक जोरों पर था । कई कट्टरपंथी बादशाह हिन्दुओं को जोर-जबरदस्ती मुरालमान बना रहे थे । ऐसे ही सिन्ध प्रान्त के ठठा नगर में एक बादशाह मरख था, जिसने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने  पर जोर-जबरदस्ती करना शुरू कर दिया ।

कुछ तो आतंकित होकर मुसलमान बन गये । कुछ शहर छोड़कर भाग गये । कुछ ने तो अपने प्राण ही त्याग डाले । किन्तु शेष बचे हुए हिन्दुओं ने विचार किया कि बादशाह से मिलकर इस आदेश को  रद्द करवा दें । बादशाह ने एक न सुनी । हजारों-लाखों की संख्या में हिन्दू  सिन्धु नदी के किनारे जाकर भगवान् वरुण देव से प्रार्थना करने लगे और तीन दिनों तक भूखे-प्यासे रोने लगे ।

उनकी इस कराण पुकार को सुनकर भगवान वरुण ने कहा: “तुम्हारा उद्धार करने के लिए एक सच का जन्म नसरपुर में मेरे परमभक्त ठाकुर रतनराई और उनकी पत्नी देवकी के यहां होने जा रहा है ।” हिन्दुओं ने जाकर बादशाह से कहा कि ”वे उन्हें सात दिनों का समय सोचने के लिए दें; क्योंकि उनके एक सच का जन्म होने वाला है ।”

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बादशाह खूब जोर से हंसा और बोला: ”तुम सब पागल हो । सात दिन में कोई हिन्दू पीर आकर मेरे सामने विनती नहीं करेगा, तो तुम सभी मारे जाओगे ।” आकाशवाणी के द्वारा वरुण देव ने देवकी से भगवान् के जन्म लेने की बात बतायी । लोगों के साथ-साथ बादशाह मरख का मन्त्री भी यह सोचकर वहां जा पहुंचा कि जन्म लेते ही वह बालक को मार डालेगा ।

उसने ठाकुर रतनराई से बालक को देखने की इच्छा जाहिर की । बालक रूप में देखते-ही-देखते उस मन्त्री को यह दिखाई पड़ा कि एक सोने-चांदी से जडे हुए सुन्दर सिंहासन और मखमली गद्दे पर एक युवक बैठा है, जिसके सिर पर चांदी का छत्र तथा शरीर पर सुन्दर वस्त्र हैं और वह काली दाढ़ी से सुशोभित है ।

हाथ में धर्मध्वजा, सिर पर सोने की कलगी धारण किये उस सुन्दर रूप को देखकर मन्त्री के मुख से अचानक ही जय अमरलाल निकल पड़ा । उदयचन्द को अब “अमरलाल” कहा जाने लगा । उसने देखा कि सभी कीर्तन कर रहे हैं, यहां तक कि बादशाह मरख भी सिजदा कर रहे हैं ।

मन्त्री का सारा अभिमान नष्ट हो गया । उसने देखा कि उस सिंहासन पर एक बूढा सफेद दाढ़ी वाला बैठा है, जिसका सिर हिल रहा था । इस कारण उन्हें झूलेलाल कहा जाने लगा । सिन्धी समाज आज इसी नाम से उनकी पूजा करता है । मन्त्री ने झूलेलाल से प्रार्थना कर कहा कि: ”बादशाह से इस्लामी फितूर निकाल दे ।”

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झूलेलाल ने कहा: “बादशाह को यह समझा दें कि हिन्दू धर्म के विरुद्ध कोई ऐसा कार्य न करे ।” बादशाह ने उलटे झूलेलाल को लड़ने हेतु चुनौती दे डाली । बादशाह उनके अलौकिक स्वरूप को देखकर दंग रह

गया । उसने देखा कि झूलेलाल नीले घोड़े पर अपने साजो-सामान सहित सुसज्जित हैं ।

उनके पीछे सिपाही अस्त्र-शस्त्रों से साकात चल रहे हैं । कुछ भक्तों की टोली श्रद्धापूर्वक उनका पूजन करती हुई आ रही है । इस पर भी बादशाह को कोई आश्चर्य न हुआ । उनके उपदेशों से वे असर बादशाह ने झूलेलाल को कैद कर लिया । झूलेलाल ने जेल में कैद सभी हिन्दुओं को आजाद कराया और स्वयं भी पुगर नाम के भक्त को लेकर नदी किनारे चले गये ।

क्षणभर में वहां सुन्दर दिव्य मन्दिर बना डाला, जिसमें सुन्दर रत्नजडित हिंडोला {झूला}  झूल रहा था और उसमें झूल रहे थे: भगवान् झूलेलाल । बादशाह ने जब जेल खाली देखा, तो हिन्दुओं से कहा: ”तुम्हारा पैगम्बर भाग गया है ।

अत: तुम सभी मुस्लिम धर्म स्वीकार करो ।” लोगों ने पुन: सिन्धु नदी के तट पर जाकर देखा, तो पाया कि झूलेलाल तो सोने के सिंहासन पर मखमली गद्दे पर विराजमान एक हाथ में धर्मध्वजा और दूसरे हाथ में गीता लेकर उसका पाठ कर रहे हैं ।

लोगों की भीड़ देखकर उन्होंने कहा: “जाओ अग्निदेव व पवनदेव! बादशाह के साम्राज्य को जला दो ।” डरकर बादशाह रोता-गिड़गिड़ाता, रहम की भीख मांगता हुआ झूलेलाल भगवान् के चरणों पर गिरकर अपने किये की माफी मांगने लगा । उसे शरणागत पाकर झूलेलाल ने अग्नि और पवन को शान्त कर दिया ।

मरख बादशाह को यह नसीहत दी कि मजहबी पाबन्दी छोड़ दो । ईश्वर ने जिसे जिरा धर्ग में जन्म दिया है, उसी का पालन करने दो । हिन्दू और मुसलमानों को एक ही समझो । मरख बादशाह ने हाथ जोड़कर कहा: ”हे पीरों के पीर । जिंदह पीर आपके चरणों में मेरा अनन्त बार नमस्कार है ।”

वह तो झूलेलाल का परमभक्त बन गया । झूलेलाल ने अब जल समाधि ले ली । उनके दर्शन के बिना बादशाह उतावला होकर जय जिंदहलाल जय निदहलाल पुकारता- पुकारता पानी में डूबने लगा । कृपालु झूलेलाल ने प्रकट होकर मरखशाह के कन्धे पर ओढ़ी हुई नीली चादर को पकड़कर उसे बाहर निकाला । आज भी मुसलमानों की नीली चादर पर पांच उंगलियों के सफेद निशान विद्यमान रहते हैं ।

3.उपसंहार:

सन्त झूलेलाल का अवतरण सचमुच में हिन्दुओं का परित्राण करने के लिए हुआ था । उनका जीवन इसी बात का उदाहरण है । आज विश्व का समस्त सिन्धी समुदाय प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल दूज {चेतीचंड} को बड़ी धूमधाम से उनके जन्मदिवस का पर्व मनाता है । नदी, समुद्र, तालाबों के किनारे ज्योति जलाकर मीठे चावलों का प्रसाद बांटते हैं, जहां मेले भी लगाये जाते हैं । इस दिन श्रद्धालुगण दान-पुण्य भी करते हैं ।

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