लता मंगेशकर की जीवनी | Lata Mangeshkar Kee Jeevanee | Biography of Lata Mangeshkar in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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स्वर साम्राज्ञी, सुर-साधिका, सरस्वती की वरद् पुत्री, कोकिल कण्ठी सुश्री लता मंगेशकर भारत की सर्वश्रेष्ठ फिल्मी पार्श्व गायिका हैं । शताब्दी की सर्वश्रेष्ठ गायिका लता का गायन भारत के लिए ही नहीं, वरन् विश्व के लिए भी विस्मित कर देने वाला है । स्वर कोकिला लता मंगेशकर का एक-एक गीत सम्पूर्ण कलाकृति होता है ।

स्वर, लय और शब्दार्थ का एक ऐसा त्रिवेणी नाद सौन्दर्य उनकी सुर लहरियों में समाया होता है कि कानों में पड़ते ही मधुरता एवं मादकता की अनुभूति दिल की गहराइयों में उतरने लगती है । भारतीय संगीत को विलक्षणता तथा लोकप्रियता की चरम सीमा तक पहुंचाने वाली ‘लताजी’ के स्वरों में कोमलता और मधुरता का अनूठा समन्वय है ।

गायन में निर्मलता का ऐसा झरना फूट पड़ता है, जो अपने नादमय सौन्दर्य से सबको सिक्त कर देता है । संगीत की परिपूर्णता लताजी के गानों को सुनकर मिल जाती है । वे ‘दादा साहब फाल्के’, ‘पद्‌मश्री’, ‘भारत रत्न’ ही नहीं, कई पुरस्कारों और उपाधियों से सम्मानित हैं । प्रत्येक भारतीय को उन पर गर्व है ।

2. जन्म परिचय:

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का जन्म 29 सितम्बर सन् 1929 को इंदौर (म॰प्र॰) में हुआ था । इनके पिता स्व॰ दीनानाथ मंगेशकर एवं माता श्रीमती माई मंगेशकर थीं । लताजी अपने पांच भाई-बहिनों में सबसे बड़ी    हैं । इनकी छोटी बहिनें आशा भोंसले, उषा मंगेशकर व मीना मंगेशकर भी श्रेष्ठ गायिकाएं हैं ।

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इनके छोटे भाई हृदयनाथ श्रेष्ठ संगीतकार हैं । लताजी की अवस्था जब मात्र 13 वर्ष की थी, तो इनके पिता का देहावसान हो गया था । इनके पिता स्व॰ दीनानाथ मंगेशकर उच्चकोटि के शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार थे । उन्होंने लताजी और उनकी छोटी बहिनों को भी बचपन से ही संगीत की शिक्षा प्रदान की ।

पिता की मृत्यु के बाद घर की सारी जिम्मेदारियों के साथ आर्थिक बोझ लताजी के कन्धों पर आ पड़ा था । इनके पिता ने अपनी मृत्यु से पूर्व लताजी को बसन्त जोगलेकर की फिल्म ‘किती हसाल’ (मराठी) में पहला गीत गाने का अवसर प्रदान करवाया था ।

लताजी ने मास्टर विनायक द्वारा निर्देशित पहली फिल्म ‘मंगलागौर’ में अभिनय के साथ-साथ गायन भी किया था । इसके बाद लताजी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा । इन्होंने एक के बाद एक फिल्मों में गाते हुए 30 हजार से भी अधिक गीत गाये । हिन्दी के साथ-साथ कई भाषाओं में भी वे गीत गाती रही हैं ।

लताजी जब गायन के क्षेत्र में आयी थीं, तब नूरजहां, सुरैया, शमशाद बेगम व गीता दत्त जैसी गायिकाएं उनके लिए चुनौती थीं, किन्तु लताजी ने अपनी गायकी के अन्दाज से सभी को पीछे छोड़ दिया । इन्होंने हेमन्त कुमार, तलक महमूद, रफी, मुकेश, किशोर कुमार, उदित नारायण जैसे पुरुष गायकों के साथ गायन किया है ।

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इनके प्रिय संगीतकारों में सी॰ रामचन्द्र, मदनमोहन रहे हैं । इन्होंने फिल्म के लगभग सभी संगीतकारों के निर्देशन में गीत गाये हैं । लताजी को सन् 1958, 1962, 1965 में फिल्म फेयर अवार्ड भी मिले हैं । सन् 1965 में इनको ”पद्‌मभूषण” से अलंकृत किया गया ।

1997 में इन्हें ”महाराष्ट्र भूषण” सम्मान प्रदान किया गया । इसके अन्तर्गत इन्हें 5 लाख रुपये सहित मानपत्र भी प्राप्त हुआ । 1996 में ‘राजीव गांधी सदभावना’ पुरस्कार, 1997 में शान्ति एवं सद्‌भाव हेतु ”शष्ट्रपति पुरस्कार” मिला ।

1997 में ‘दिल तो पागल है’ के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का पुरस्कार प्रदान किया गया । 1997 में इन्हें ”आदित्य बिड़ला पुरस्कार”, 1990 में ”दादा साहब फाल्के” पुरस्कार मिला । कोल्हापुर के शिवाजी विद्यापीठ से लताजी को डॉक्टर की मानद उपाधि मिली ।

इन्होंने ”फूले वेचिता” शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी है । वर्ष 1999 में इन्हें ”सरस्वती सम्मान” भी प्रदान किया जा चुका है । म॰ प्र॰ सरकार ने लताजी के नाम से 1 लाख रुपये का पुरस्कार संगीत साधकों के लिए रखा हुआ है ।

लताजी को 2001 में ”भारत रत्न” के सर्वश्रेष्ठ अलंकरण से भी अलंकृत किया जा चुका है । आज भी लताजी की आवाज पूरे देश को मदहोश बनाये हुए है । लताजी ने लगभग आधी सदी से ज्यादा छोटी-बड़ी नायिकाओं के लिए गीत गाये हैं । इनके गीत सभी नायिकाओं पर एकदम फिट बैठते हैं ।

हर आयु, वर्ग के लिए उपयुक्त हैं । महाराष्ट्र लताजी की कर्मभूमि है । इन्हें कई चैनलों द्वारा ”लाइफ टाइम एचीवमेन्ट” पुरस्कार, सहस्त्राब्दी पुरस्कार भी प्रदान किये गये हैं । लताजीजी ने कई स्थानों पर अनाथालयों की स्थापना की है । वे आज भी उतनी ही शिद्दत के साथ गाती हैं ।

3. उपसंहार:

स्वर की सुर लहरियों में डुबो देने वाली लताजी की गायकी में एक ऐसा जादू है कि सभी को गीत की अनुभूतियों में उसके पूरे भावों सहित उतार ले चलता है । लताजी ने जब ‘प्रदीप’ का वह देशभक्ति से परिपूर्ण गीत ”ऐ! मेरे वतन के लोगों” गणतन्त्र दिवस के अवसर पर स्व॰ प्रधानमन्त्री नेहरूजी के समक्ष प्रस्तुत किया था, तो वे अपनी आंखों के आंसू नहीं रोक पाये थे ।

प्रेम, विरह, मिलन, भक्ति, देशप्रेम या फिर जीवन का कोई भी भाव हो, लताजी ने उसके साथ भरपूर न्याय किया है । महान संगीतकार इनके बारे में कहते हैं: ”कमबख्त! भूल से भी गलत नहीं गाती है ।”

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