महान सर्जन आर्द्रे विसेलियस की जीवनी | Andrea Vesalius Kee Jeevanee | Biography of Andrea Vesalius in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार

1. प्रस्तावना:

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आर्द्रे विसेलियस चिकित्सा विज्ञान के उन महान् वैज्ञानिकों में से एक थे, जिनको आज चिकित्सा विज्ञान में सर्जन कहा जाता है । युगों पहले जब शरीर विज्ञान का पूरी तरह से विकास नहीं हुआ था, उस समय आर्द्रे विसेलियस ने शल्यक्रिया के विभिन्न प्रयोगो द्वारा मानव शरीर सम्बन्धी सटीक सत्य एवं सार्थक जानकारियां प्रदान की थीं । अपने जीवनकाल में अपनी महान् उपलब्धियों से सम्मानित होने का सौभाग्य उन्हें नसीब नहीं हुआ, किन्तु मरणोपरान्त वे अपने नाग को अमर कर गये ।

2. जीवन परिचय एत उपलब्धियां:

आर्द्रे विसेलियस का जन्म दिसम्बर 1614 में बेल्लियम के ब्रुसेल्स शहर में हुआ था । उनका परिवार चिकित्सा में न केवल रुचि रखता था, बल्कि दवाएं भी तैयार करता था । यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लेन में उन्होंने अरबी चिकित्सा के क्षेत्र में अध्ययन प्राप्त किया था और वहां से स्नातक की परीक्षा पास कर वे इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में विज्ञान की उच्च शिक्षा के लिए आये ।

जब वे सर्जरी के व्याख्याता बने, तो उस समय विद्यार्थियों को पढाने के लिए उनके पास एक ही पुस्तक थी, ग्लैडियस गैलन की, जो सर्जरी के पिता कहलाते थे । मानव शरीर के बारे में गैलन ने जो कुछ लिखा था, सब उसे ही पूर्ण सत्य मानते थे ।

गैलन ने अपनी पुस्तक में सर्जरी के सम्बन्ध में जो जानकारियां दी थीं, वह मरे हुए पशुओं की चीरफाड़ करके प्राप्त की हुई जानकारियां ही थीं; क्योंकि उस समय मानव शरीर की चीरफाड़ करना धर्म विरुद्ध माना जाता था ।

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आर्द्रे हमेशा यही सोचा करते थे कि एक घोडे, एक कुत्ते, एक गाय की तुलना में मानव का शरीर बाहर से कितना भिन्न है, तो भीतर भी कितना भिन्न होगा ? अब उन्होंने मानव शरीर की चीरफाड़ करके सही जानकारी देने का दृढ़ निश्चय किया ।

उन्हें धर्म विरुद्ध स्वप से मानव शरीर की चीरफाड़ करने पर मिलने वाले दण्ड की आशका तो थी, फिर भी उन्होंने यह जोखिम उठा ही लिया और अपने मित्र के साथ चल पड़े भयानक अंधेरी रात में एक कब्रिस्तान में । उन्होंने तथा उनके मित्र ने दफनाये गये एक ताजे शव को कब्र की मिट्टी हटाकर बाहर निकाला ।

चीरफाड़ करने वाले कुछ औजार निकाले और मोमबत्ती जलाकर अपनी नोटबुक में लिखते गये । रात बीतने से पहले शव को पुन: उसी जगह पर जस का तस रख वे बाहर आ गये । इस तरह दिनों, महीनों वे इस खतरनाक, किन्तु मानवोपयोगी शोधकार्य में लगे रहे । अब तो आर्द्रे के पास गैलेन के मानव शरीर सम्बन्धी दिये गये तकों का पुष्ट प्रमाण था ।

उन्होंने और लुइस ने मानव शरीर की संरचना सम्बन्धी जो प्रामाणिक जानकारी एकत्र कर पुस्तक लिखी, उसका नाम था: ‘फेब्रिका’ । डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और विद्वानों की एक सभा आयोजित कर उन्होंने उनके बीच यह घोषणा कर ही दी कि पिछले 1300 वर्षों से गैलन ने जो जानकारियां शरीर विज्ञान के सम्बन्ध में दी हैं, वह पशुओं के शरीर के मामले में उचित हो सकती हैं, किन्तु मानव शरीर के मामले में अप्रमाणिक हैं । आर्द्रे के ऐसा कहते ही लोग पागल और मूर्ख कहकर उन पर टूट पड़े ।

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वे पूछने लगे कि तुम्हारे पास इस बात का क्या सबूत है ? मृत्युदण्ड के भय से आर्द्रे चुप हो गये । जूते-चप्पल खाकर वे वहां से भाग निकले । उन्होंने पादुआ विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया । स्वीटजरलैण्ड उमकर आर्द्रे ने अपनी मानव शरीर के समस्त अंगों का परिचय देती हुई सचित्र पुस्तक गोपनीय ढंग से छपवायी और रोग के बादशाह चार्ल्स पचम को भेंट करके सभी बातें सच-सच बता दीं ।

चार्ल्स पचम ने आर्द्रे की बात का आदर रखते हुए उसे सुरक्षित रखवा दिया । 1553 में आद्रे पुन: ब्रुसेल्स लौट आये । अपनी दुविधापूर्ण मनरिथति को सन्तुलित करने के लिए वे धार्मिक स्थानों के भगण पर निकल पड़े ।

इसी दौरान गम्भीर रूप से बीमार होने के कारण वह संसार से चल बसे । उनकी मृत्यु के 200 वर्षो बाद जब मुरदों के चीरफाड़ की इजाजत मिली, तो आद्रें विलेसियस की पुस्तक “फेब्रिका” पड़ी गयी । लोगों ने यह पाया कि उसमें लिखी गयी बातें अक्षरश: सत्य थीं ।

3. उपसंहार:

आर्द्रे विलेसियस 15वीं रादी के उन महानतम चिकित्सकों में सर्वप्रमुख तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, जिन्होंने मानव शरीर के सम्बन्ध में सर्वाधिक दुलकर एवं महान शोधकार्य करके सम्पूर्ण मानव जगत् को उपकृत किया है ।

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