भिकईजी काम की जीवनी | Bhikaiji Cama Kee Jeevanee । Biography of Bhikaiji Cama.

1. प्रस्तावना ।

2. उनका आदर्श जीवन चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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भारत में पुरुष क्रान्तिकारियों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन की शुरुआत की थी, किन्तु महिला क्रान्तिकारियों की भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है । इन महिला क्रान्तिकारियों में देवी चौधरानी, रानी चेन्नमां, कल्पना दत्त, शान्ति घोष, उज्ज्वला मजूमदार, लीला नाग, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, श्रीमती एनीबेसेन्ट आदि प्रसिद्ध हैं ।

कुछ महिलाओं ने तो भूमिगत रहकर क्रान्तिकारियों का साथ दिया । कुछ महिलाएं तो अनाम शहीद हो गयीं । इन क्रान्तिकारी महिलाओं में वीर प्रसविनी माताएं, बहिनें, पत्नियां आदि शामिल थीं । ऐसी ही क्रान्तिकारी, देशभक्त पारसी महिला थीं-मैडम भीकाजी कामा ।

2. उनका आदर्श जीवन चरित्र:

मैडम भीकाजी कामा का जन्म एक पारसी परिवार में सन् 1861 में हुआ था । सन् 1885 में उनका विवाह रूस्तमजी के साथ हुआ । वह अत्यन्त देशभक्त महिला थीं । जब वीर सावरकरजी को काले पानी की सजा हुई थी, उस दौरान वीर सावरकरजी के परिवार को आर्थिक सहायता उन्होंने प्रदान की थी ।

कामा ने बंबई के एलेक्जांड्रा गर्ल्स स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की । कामा ने कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं का अध्ययन अपने घर पर रहकर किया । 1902 में जब वह लंदन गयीं, तो वहां पर उन्होंने भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों का जमकर विरोध किया और अंग्रेज सरकार की आलोचना की ।

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वहां उन्होंने लंदन के हाइड पार्क में अपने जोशीले भाषण से जागृति का मन्त्र फूंका । 1907 में कामाजी ने स्टुटगाई के समाजवादी सम्मेलन में शामिल होकर वीर सावरकर के सहयोग से तिरंगा झण्डा फहराया था । यह पहली महिला थीं, जिन्होंने भारत के झण्डे को विदेश की धरती पर फहराया था ।

हरे, पीले, लाल रंग के इस झण्डे के बीच ”वंदेमातरम्” लिखा था, जिसमें हरा रंग-मुसलमान धर्म का, पीला-सिक्ख और बौद्ध का और लाला रंग-हिन्दू धर्ग का प्रतीक था । उसमें जो 8 सितारे बने हुए थे, वे भारत के 8 राज्यों के प्रतीक थे । भारत से दूर रहकर उन्होंने आजादी की लड़ाई को जारी रखा । 1935 में जब वे भारत लौटीं, तो अंग्रेज सरकार ने उनके भाषण देने पर पाबन्दी लगा दी । भारत में रहते हुए 1936 में उनका निधन हो गया ।

3. उपसंहार:

मैडम कामा ने पारसी महिला होते हुए भी स्वतन्त्रता के यज्ञ में अपना अंशदान देकर राष्ट्रीयता एवं साम्प्रदायिक एकता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया । अन्याय के प्रतिकार को उन्होंने ईश्वरीय आदेश माना

था ।

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