तानसेन की जीवनी | Biography of Tansen in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. तानसेन और उनका जीवन ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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भारतीय संगीतकला अपने शास्त्रीय रचर माधुर्य की योजना के कारण विश्वविख्यात रही है । भारतीय संगीत का प्रभाव कुछ ऐसा रहा है कि वह आत्मा से परमात्मा का सम्बन्ध स्थापित करने में भी सक्षम है । मेघ मल्हार गाने पर वर्षा होने लगे, दीपक राग गाने पर दीपक जल उठें, ऐसी शक्ति हमारे देश के संगीत एवं संगीतकारों में थी ।

2. तानसेन और उनका जीवन:

तानसेन का जन्म 1531 में ग्वालियर से 43 कि॰मी॰ दूर बहिट नामक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । ग्वालियर के महाराजा मानसिंह तोमर ने एक संगीतशाला स्थापित की थी, जिस पर मुगलों का अधिकार होने पर भी वह चलती रही ।

संगीत में बचपन से ही रुचि रखने वाले तानसेन ने संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा इसी शाला से ग्रहण की । उन्होंने वृन्दावन के प्रसिद्ध सन्त गायक बाबा नरहरि दास से भी संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी । रीवा के राजा रामचन्द्र ने संगीतज्ञों को अपने दरबार में बहुत सम्मान दिया हुआ था । अत: तानसेन ने रीवा के महाराजा के यहां नौकरी कर ली । तानसेन को यहा बहुत यश, सम्मान और धन प्राप्त हुआ ।

कहा जाता है कि तानसेन की संगीतकला से प्रभावित होकर उन्होंने उन्हें उस समय 1 करोड़ चांदी की मुद्राओं से पुरस्कृत किया और ‘तानसेन’ की उपाधि प्रदान की । सन् 1562 में उप्थ उन्हें ज्ञात हुआ बादशाह अकबर एक सांस्कृतिक केन्द्र बनाना चाहता है, जिसमें संगीतकारसे के लिए शी काफी अच्छा स्थान है ।

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अकबर ने तानसेन की संगीतकला की काफी ख्याति सुन रखी थी । अत: उन्होंने रामचन्द्र के माध्यम से तानसेन को अपने दरबार में बुलवा भेजा । 1562 में वे अनिच्छापूर्वक भारी मन से रामचन्द्रजी से बिदा लेकर अकबर के दरबार में जा पहुंचे । अकबर की राजसभा  में  तानसेन ने संगीत की ऊंचाइयों को प्राप्त किया । लायन 27 वर्षो तक संगीतज्ञ के रूप में अकबर के दरबार में काफी सम्मान पाया ।

अकबर ने तो उन्हें अपने दरबार के नौ रत्नों में श्रेष्ठ स्थान दिया था । अकबर के दरतार में रही हुए उन्होने भारतीय गान विद्या को नयी दिशा दी । तानसेन ने थोड़े-बहुत परिवर्तन और संशोधन करके 12 नये रागों का नव-सृजन किया । वे दीपक और ध्रुपद राग में विशेष प्रवीण थे । तानसेन एक संगीतज्ञ ही नहीं थे, अपितु कवि शी थे ।

उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओ, मुरित्तम पीर-फकीरों के साथ-साथ राजा रामचन्द्र और बादशाह अकबर की स्तुति  में अनेक गीतो की रचना की । 26 अपैल सन् 1589 को लाहौर में तानसेन ने अपनी अन्तिम सारा ली । शाही सामान के साथ श्रेष्ठ गायकों ने उनके शव को कब्रिस्तान में दफनाया । तानसेन का मूल नाम गंगाधर पाण्डेय था ।

कहा जाता है कि अकबर के प्रभाव में आकर उन्होंने मुस्लिम धर्म ग्रहण कर लिया था । बाद में उनके शव को ग्वालियर लाकर मुस्लिम सच शेख गुहम्मद गौस के मकवरे के समीप दफना दिया गया । उनकी कब्र पर शानदार मकबरा बना दिया गया । उनके मकबरे पर आज भी प्रसिद्ध गायक और संगीतज्ञ राग्गल से सिर झुकाते हैं ।

3. उपसंहार:

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तानसेन सचमुच ही एक महान गायक थे । अबुलफजल ने उन्हें हजारों-लाखो में पैदा होने वाला एक महान गायक बताया । अकबर ने उनके निधन पर शोकाकुल होकर कहा था: “तानसेन के देहान्त से गाया की मधुरता का लोप हो गया ।” आज भी उनके मकबरे पर संगीतज्ञों को विशाल गेला लगता है, जहा पर संगीत समारोहों का समय-सामय पर आयोजन होता है ।

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