चीनी यात्री-हवेनसांग की जीवनी | Biography of Hiuen Tsang in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्तांत ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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भारत भूमि सदा ही विदेशियों के आकर्षण एवं कौतूहल का केन्द्र रही है । धर्म, दर्शन और आध्यात्म तथा विभिन्न संस्कृतियों के अद्‌भुत सम्मिश्रण की भूमि भारत ने विदेशियों को मन्त्रमुग्ध ही नहीं किया, अपितु यहां आने हेतु प्रेरित भी किया । यहां की शिक्षा और संस्कृति ने तो चीनी, जापानी, अरबी, इटली, पुर्तगाली तथा यूरोप से लेकर संसार के समस्त द्वीपों-महाद्वीपों के लोगों को प्रभावित किया है ।

इस प्रभाव से प्रेरित होकर जो यात्री यहां पर आये, उनमें चीनी यात्री द्दवेनसांग का नाम विशेष प्रसिद्ध रहा है । इस यात्री ने उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के दुर्गम मार्गो को भी अपने बाद आने वाले यात्रियों के लिए सुगम कर दिया । बौद्ध ग्रन्थ एव यहां के दर्शन को वे अपने देश चीन ले गये ।

2. जीवन वृत्तांत:

हवेनसांग का जन्म 630 ईसा के लगभग एक सामान्य परिवार में हुआ था । 3 भाइयों में सबसे छोटे होने पर भी उनका स्वभाव उनसे कुछ भिन्न ही था । युवावस्था में आते ही वौद्ध धर्म का आकर्षण उनमें ऐसा जागा कि उन्होंने बौद्ध भिक्षु बनने का संकल्प ले लिया ।

20 वर्ष की अवस्था में बौद्ध भिक्षु बनने के बाद उन्होंने चीनी बौद्धविहारों में इस धर्म-दर्शन को गम्भीरता से जानना चाहा, किन्तु उनकी ज्ञानपिपासा वहां शान्त न हो सकी । अत: उन्होंने निश्चय किया कि वह भारतवर्ष जाकर वहां के मूल अन्यों का अध्ययन करेंगे । वह मध्य एशिया के रास्ते ताशकन्द, समरकन्द तथा काबुल होते हुए भारत 1 वर्ष में पहुंचे ।

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यहां कपिशा की राजधानी शलोका के विहार में ठहरे । 2 वर्ष कश्मीर में रहते हुए बौद्धगश्वों का गहन अध्ययन किया । थानेश्वर पहुंचकर जयगुज नामक विद्वान् के यहां अध्ययन करते रहे । कन्नौज के शासक हर्षवर्द्धन से उनका अच्छा परिचय हुआ । हर्षवर्द्धन उत्तरी भारत का सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न राजा था ।

लगभग सम्पूर्ण भारत का भ्रमण करते हुए वे मगध की राजधानी पाटलीपुत्र पहुंचे, जो उस समय ज्ञान, शिक्षा व संस्कृति का केन्द्र थी । यहां पर उनकी ज्ञान पिपासा शान्त हुई । वहां के मन्दिरों, स्तूपों उघैर विहारों का दर्शन किया । बोधगया जाकर महात्मा बुद्ध के दर्शन की अनुभूति उन्हें प्राप्त हुई । तत्पश्चात् वह ज्ञान के सबसे बडे केन्द्र नालदा विश्वविद्यालय पहुंचे ।

बौद्धग्रन्थों का गम्भीर अध्ययन करके वहां की शिक्षा व संस्कृति से प्रभावित हुए । आसाम के शासक भास्करवर्मन के निमन्त्रण पर वे आसाम पहुंचे, जहां उनका भव्य स्वागत हुआ । वहीं से हर्षवर्द्धन उन्हें अपने साथ प्रयाग ले गया और उनका समुचित सम्मान कर उन्हें बहुमूल्य उपहार भी दिये ।

लगभग 15 वर्षो तक भारत में रहने के बाद उन्होंने 74 बौद्धग्रन्थों का न केवल अनुवाद किया, वरन् कुछ ग्रन्थ अपने साथ चीन भी ले गये । इस चीनी यात्री की 669 में सियान में मृत्यु हो गयी ।

3. उपसंहार:

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हवेनसांग एक ऐसे चीनी यात्री थे, जिन्होंने अपने यात्रा-वर्णन में भारत की तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक स्थिति तथा उसके प्रत्येक पहलू का विस्तार से वर्णन किया, जो अब एक ऐतिहासिक विश्वकोष कहा जा सकता है । भारतीय धर्म-दर्शन की विशेषताओं को उन्होंने अन्य देशों तक भी प्रचारित करने का कार्य कर भारत का गौरव बढ़ाने का कार्य किया ।

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