एडम स्मिथ की जीवनी | Biography of Adam Smith in Hindi

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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आर्थिक विचारों में एडमस्मिथ के योगदानों की विवेचना के आधार पर उन्हें अर्थशास्त्र का ”जनक” या ”जन्मदाता” भी कहा जाता है । एडमस्मिथ प्रकृतिवादी एवं आशावादी अर्थशास्त्री थे, जिनके आधार पर उन्होंने अर्थशास्त्र की लाभदायक प्रवृति पर विस्तार से अपने विचार दिये ।

द्रव्य के सिद्धान्त, श्रम विभाजन, स्वतन्त्रवाद, प्रकृतिवाद तथा आशावाद में वैज्ञानिकता का पुट समाहित करने वाले एडमस्मिथ ही प्रथम अर्थशास्त्री थे । उन्होंने अपनी विचारधारा में तत्कालीन विचारधारा का भी सुन्दर समन्वय किया ।

आर्थिक विचारों के साथ-साथ उनका राजनैतिक दर्शन भी विशेष महत्त्वपूर्ण है । एडमस्मिथ ने धन को अधिक महत्त्व देते हुए यह सत्य दर्शन दिया कि धन ही समस्त आर्थिक क्रियाओं को संचालित करता है । अत: अर्थशास्त्र ‘धन का शास्त्र’ है, जिसके बिना मानव जीवन की कल्पना कठिन है ।

2. जीवन चरित्र:

प्रोफेसर एडमस्मिथ का जन्म 5 जून, 1723 को स्काटलैण्ड के एक छोटे करने किरकेल्डी में हुआ था । उनके पिता एक करटम अधिकारी थे, जो एडमस्मिथ के जन्म के 3 माह पूर्व ही परलोक सिधार गये थे ।

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स्थानीय स्तर पर अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् उन्होंने ग्लासगो विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहां वे फ्रांसिस हचेसन के विचारों से बेहद प्रभावित हुए ।

1751 में एडमरियरथ न्याय के प्राध्यापक नियुक्त हुए । बाद में वहीं नैतिक दर्शन के प्राध्यापक नियुक्त किये गये । सन् न 759 में उनकी प्रथम पुस्तक ‘द थ्योरी ऑफ मॉरल सेंटीमेंट’ प्रकाशित हुई । इस पुस्तक द्वारा उनकी विद्वता की धाक जम गयी थी तथा अंग्रेज दार्शनिकों की अग्रिम पंक्ति में उनको स्थान मिल गया ।

सन् 1776 में उनकी महान् पुस्तक ‘वैल्थ ऑफ नेशन्स’ यह एक क्रान्तिकारी रचना थी । इस पुरचक में अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों और आर्थिक नीति दोनों का ही विश्लेषण किया गया था । इस पुस्तक में उस युग के प्रचलित विचारों को भी कगबद्ध उघैर वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषित किया गया था, जिसकी शैली अत्यन्त सरल, रोचक व मनोरंजक थी ।

900 पृष्ठों की इस पुस्तक का प्रारम्भ श्रम से होता है, जिसमें राष्ट्र की सम्पत्ति का वार्षिक स्त्रोत बताया गया है । श्रम विभाजन, विनिमय, वितरण के विभिन्न तत्त्व, वाणिज्यवाद एवं प्रकृतिवाद तथा राजस्व की विवेचना भी की गयी । इसगें राज्य के कार्य क्या होने चाहिए ? राज्य को किस प्रकार कोष प्राप्त करना चाहिए ?

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आदि के साथ-साथ करारोपण के 4 अतिरिक्त सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये, जो आज भी मौलिक महत्त्व रखते हैं । यह पुस्तक अपनी कुछ सीमाओं के बाद भी अनूठी है । एडमस्मिथ का प्रकृति एवं उघशावाद का सिद्धान्त यह कहता है कि आर्थिक संस्थाओं का जन्म स्वयं होता है । सरकार एवं आर्थिक संस्थाओं को इसके उदय के लिए कुछ नहीं करना पड़ता है ।

इस प्रकार आर्थिक संस्थाएं उन आर्थिक प्रयत्नों का परिणाम होती हैं, जो व्यक्ति स्वहित से प्रेरित होकर करता है । प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हुई आर्थिक संस्थाएं हितकारी प्रवृत्ति की होती हैं । इस व्यक्तिगत स्वार्थ से आर्थिक संगठनों का उदय सरक्षण होने के साथ-साथ राष्ट्रीय सम्पत्ति और वैभव की उन्नति भी निश्चित हो जाती है ।

श्रम विभाजन मनुष्य के स्वहित का परिणाम है । मुद्रा या द्रव्य का जन्म भी किसी राजकीय आइग से नहीं, वरन् मनुष्यों की सामूहिक अन्तःप्रेरणा से हुआ है । राजकीय हस्तक्षेप तो उसको नियमित करने के उद्देश्य से हुआ है । स्मिथ का कहना है कि समाज में जितनी द्रव्य की माग होती है, मानव स्वहित से द्रव्य की पूर्ति कर देता है ।

यदि किसी देश में द्रव्य की पूर्ति अधिक है और मांग कम है, तो उस देश के निवासी द्रव्य का निवेश दूसरे देश में करके या जमीन में गाड़कर करते हैं । इस प्रकार द्रव्य उतना ही चलन में रह जाता है । पूंजी तथा उसका विनियोग भी मनुष्य स्वहित की प्रेरणा से करता है ।

रिगथ का कहना है कि सरकार को जनसंख्या वृद्धि एवं कमी करने के लिए कोई प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि जनसंख्या की पूर्ति स्वमेव ही अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुरूप हो जायेगी । जनसंख्या पर प्राकृतिक नियन्त्रण लाभदायक है ।

एडमस्मिथ के आर्थिक विचारों पर व्यक्तिवादिता, सीमितता और अस्पष्टता के आरोप लगते रहे हैं । उत्पादन में वृद्धि के लिए पूंजी की मात्रा में वृद्धि आवश्यक बताई है । स्मिथ ने सभ्य समाज का विभाजन तीन प्रकार से बताया है: 1 जमींदार, 2. श्रमिक, 3. उद्यगी । उन्होंने राज्य के तीन कार्य बताये हैं: 1. विदेशी आक्रमण से सुरक्षा,  2. जनहितकारी कार्य और 3. कानून व न्याय अनुसार शासन ।

राजस्व आय के दो साधन बताये, जिसमें भूमि, पूंजी, सरकारी कोष तथा प्रजा से कर वसूली । कर वसूली में भुगतान योग्यता का सिद्धान्त, निश्चितता का सिद्धान्त, सुविधा का सिद्धान्त, मितव्ययता का सिद्धान्त को आवश्यक बताया है । स्मिथ ने राज्य तथा सरकार को व्यक्ति के कार्यकलापों में अनावश्यक हस्तक्षेप की आवश्यकता से परहेज करने को कहा है । जब तक कि कोई मनुष्य न्याय के नियमों की अवहेलना न करता हो । अपने ढंग से दूसरे मनुष्यों से प्रतिस्पर्द्धा में उद्योग तथा पूंजी लगाने के लिए उसे स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिए ।

पूंजी एवं वितरण सम्बन्धी सिद्धान्तों में उन्होंने लगान, मजदूरी, लाभ और ब्याज के सिद्धान्तों के साथ-साथ उत्पादन में पूंजी को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया । उद्योग-धन्धों का विकास पूंजी की मात्रा पर निर्भर करता है । पूंजी की मात्रा देश के लोगों की मितव्ययता की प्रवृत्ति पर निर्भर है । पूंजी को चल और अचल दो भागों में बांटा गया है ।

3. उपसंहार:

एडमस्मिथ एक महान् आर्थिक विचारक थे । उनके ही आर्थिक सिद्धान्तों का भावी अर्थशास्त्रियों ने अनुकरण किया, जिसमें रिकार्डो का लगान सिद्धान्त, माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त, कार्ल मार्क्स का समाजवादी अर्थशास्त्र का सिद्धान्त प्रमुख है । स्मिथ के पहले अर्थशास्त्र एक प्रणाली मात्र था, जिसको विज्ञान का रूप स्मिथ ने ही दिया ।

अर्थशास्त्र के प्रत्येक क्षेत्र में उनका योगदान उात्यन्त प्रशंसनीय है । प्रकृति निश्चित तौर पर निरन्तर अपना कार्य करती रहती है । कभी उदारता, तो कभी प्रकोप करके वह सन्तुलन को बनाये रखती है । यह उनका प्राकृतिक विधान तथा आर्थिक मानव सम्बन्धी सिद्धान्त है ।

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