भारतीय रिजर्व बैंक की आवश्यकता और राष्ट्रीयकरण | Read this article in Hindi to learn about:- 1. इंपीरियल बैंक को केन्द्रीय बैंक न बनाने के कारण (Reasons for Making Imperial Bank as Central Bank) 2. भारत में रिजर्व बैंक की आवश्यकता (Need for Reserve Bank in India) 3. राष्ट्रीयकरण (Nationalization) 4. वर्तमान स्थिति (Present Status).

इंपीरियल बैंक को केन्द्रीय बैंक न बनाने के कारण (Reasons for Making Imperial Bank as Central Bank):

सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स ने देश में केन्द्रीय बैंक की स्थापना का प्रश्न उठाया तथा बैंक ऑफ बंगाल एवं बिहार में केन्द्रीय बैंक बनाने की सिफारिश की । 1913 में चैंबरलेन आयोग के सदस्य लार्ड कीन्स ने एक केन्द्रीय बैंक की स्थापना का प्रश्न उठाया और इसकी सिफारिशों के आधार पर उस समय तीनों प्रेसीडेंसी बैंकों को मिलाकर इंपीरियल बैंक की स्थापना की गई परन्तु उसे नोट निर्गमन का अधिकार नहीं दिया गया ।

1926 में हिल्टन यंग कमीशन ने भी देश में केन्द्रीय बैंक की स्थापना पर जोर दिया जिससे मुद्रा बाजार का व्यवस्थित एवं संगठित ढंग से विकास किया जा सके । आयोग का मत था कि भारतीय मुद्रा बाजार में साख नियमन करने की द्विशासन पद्धति का अंत किया जाना चाहिए ।

1931 में केन्द्रीय बैंकिंग जाँच समिति ने भी रिजर्व बैंक की स्थापना पर जोर डाला । 1933 में गोलमेज सम्मेलन में केन्द्रीय बैंक की स्थापना पर जोर दिया गया जिस पर 6 मार्च, 1934 को वाइसराय के हस्ताक्षर हो गए तथा 1 अप्रैल, 1935 से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना हो गई ।

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इंपीरियल बैंक को केन्द्रीय बैंक न बनाने के कारण:

उस समय इंपीरियल बैंक को ही रिजर्व बैंक बनाया जा सकता था, परन्तु निम्न कारणों से ऐसा संभव न हो सका:

(i) व्यापारिक कार्यों की समाप्ति:

इंपीरियल बैंक को रिजर्व बैंक में परिणित करने से उसे अपने समस्त व्यापारिक कार्य छोड़ने पड़ते जो देशहित में नहीं था ।

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(ii) चलन का दुरुपयोग:

चलन का प्रबन्ध अधिकार इंपीरियल बैंक को सौंपने से चलन के दुरुपयोग होने का होने का भय था ।

(iii) प्रतियोगिता:

इंपीरियल बैंक, एक व्यापारिक बैंक होने के कारण वह अन्य बैंकों से प्रतियोगिता करता जिससे जनता का विश्वास केन्द्रीय बैंक में नहीं रहता ।

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(iv) संचालक मण्डल:

बैंक का संचालक मण्डल भी केन्द्रीय बैंक के प्रस्ताव के विरुद्ध था ।

भारत में रिजर्व बैंक की आवश्यकता (Need for Reserve Bank in India):

भारत में रिजर्व बैंक की स्थापना की आवश्यकता निम्न कारणों से अनुभव की गई:

(1) रुपये के मूल्य में स्थायित्व:

देश में रुपये के आन्तरिक एवं बाह्य मूल्य में स्थिरता लाने के उद्देश्य से केन्द्रीय बैंक की स्थापना की आवश्यकता को अनुभव किया गया ।

(2) कृषि साख व्यवस्था:

देश में कृषि साख व्यवस्था का प्रबन्ध करने के लिए भी केन्द्रीय बैंक आवश्यक था ।

(3) विदेशों से मौद्रिक सम्पर्क:

विदेशों से मौद्रिक सम्पर्क बनाए रखने के लिए भी रिजर्व बैंक की स्थापना करना आवश्यक था ।

(4) इंपीरियल बैंक में कमियाँ:

इंपीरियल बैंक देश में केन्द्रीय बैंक के कुछ कार्यों को कर रहा था, परन्तु उसमें कुछ कठिनाइयों के कारण उसे देश का केन्द्रीय बैंक बनाना अनुपयुक्त समझा गया ।

(5) मुद्रा बाजार का संगठन:

देश में मुद्रा बाजार का उचित ढंग से संगठन करने के लिए रिजर्व बैंक की स्थापना पर जोर दिया गया ।

(6) बैंकिंग का विकास:

देश में बैंकिंग व्यवस्था का विकास करने एवं उसके सफल संचालन के लिए रिजर्व बैंक की आवश्यकता थी ।

(7) नकद कोषों का केन्द्रीयकरण:

भारत में केन्द्रीय बैंक की स्थापना से नकद कोषों का एकीकरण करके उसे बैंकों के लाभार्थ प्रयोग किया जा सकता था तथा मुद्रा व साख व्यवस्था में लोच बनी रहती ।

(8) मुद्रा एवं साख नीति में समन्वय:

रिजर्व बैंक की स्थापना से देश में मुद्रा एवं साख नीति में समन्वय स्थापित किया जा सकता था ।

रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण (Nationalization of Reserve Bank in India):

रिजर्व बैंक की स्थापना के समय से ही उसके राष्ट्रीयकरण का प्रश्न उठाया जाता रहा था । इसी बीच विश्व में केन्द्रीय बैंकों के राष्ट्रीयकरण की भावना प्रभावशाली हो गयी थी जिसके फलस्वरूप 1945 में बैंक ऑफ फ्रांस तथा कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया तथा 1 मार्च, 1946 से बैंक ऑफ इंग्लैण्ड को सार्वजनिक क्षेत्र में ले लिया गया । इस पृष्ठभूमि में भारत के स्वतंत्र होते ही रिजर्व बैंक के राष्ट्रीयकरण का प्रश्न जोर पकड़ गया ।

रिजर्व बैंक के राष्ट्रीयकरण के पक्ष एवं विपक्ष में अनेक तर्क दिए गए जो निम्न हैं:

पक्ष में तर्क:

राष्ट्रीयकरण के पक्ष में निम्न तर्क दिए गए:

(i) वैधानिकता:

युद्धकाल में रिजर्व बैंक को सरकारी बैंक की भाँति कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं थी, परन्तु राष्ट्रीयकरण से उसे अपनी स्थिति का वैधानिक रूप प्राप्त हो जाएगा ।

(ii) विस्तृत अधिकार:

केन्द्रीय बैंक के विस्तृत अधिकारों को निजी संस्था में रहना अनुचित एवं अनावश्यक समझी जाने से उसका राष्ट्रीयकरण करना ही उचित समझा गया ।

(iii) मुद्रा बाजार पर नियंत्रण:

रिजर्व बैंक के राष्ट्रीयकरण से मुद्रा बाजार पर पूर्ण रूप से नियंत्रण लगाया जा सकेगा तथा उसे संगठित करके उसके दोषों को दूर किया जा सकेगा ।

(iv) आर्थिक एवं मौद्रिक नीति की सफलता:

सरकार की आर्थिक एवं मौद्रिक नीति की सफलता भी रिजर्व बैंक के राष्ट्रीयकरण पर ही संभव हो सकेगी ।

(v) अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग:

देश की अनेक मौद्रिक समस्याओं के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त होना आवश्यक था जो रिजर्व बैंक के राष्ट्रीयकरण द्वारा ही संभव हो सकेगा ।

(vi) बैंकिंग विवरण प्राप्त करना:

एक व्यापारिक बैंक के रूप में कार्य करने से अन्य बैंकों का बैंकिंग सम्बन्धी विवरण प्राप्त करना कठिन होगा, परन्तु राष्ट्रीयकरण से यह समस्या समाप्त हो जाएगी ।

(vii) मूल्य स्तर पर नियंत्रण:

दोषपूर्ण नीति के कारण मुद्रा-स्फीति ने मूल्यों में वृद्धि की । मूल्य स्तर पर नियंत्रण लगाने के लिए रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण करना आवश्यक समझा गया ।

(viii) योजनाओं की सफलता:

देश के आर्थिक पुनर्निमाण के लिए जो योजनाएँ बनाई गईं उनकी सफलता भी रिजर्व बैंक के राष्ट्रीयकरण होने पर ही संभव हो सकती थी ।

(ix) अधिकारों का दुरुपयोग:

रिजर्व बैंक में अंशों का केन्द्रीयकरण बढ़ रहा था तथा अधिकारों के दुरुपयोग होने का भय था, जिसे राष्ट्रीयकरण द्वारा ही दूर किया जा सकता था ।

(x) अन्य राष्ट्रों में केन्द्रीयकरण:

विदेशों में केन्द्रीय बैंक का राष्ट्रीयकरण किया जा चुका था, अतः भारत में भी रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण करना आवश्यक समझा गया । इंग्लैण्ड जैसे देश ने, जहाँ निजी साहस को अधिक महत्व दिया जाता है, अपने केन्द्रीय बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया तो भारत में, जहाँ प्रजातांत्रिक व्यवस्था का प्रारंभ ही हुआ था वहाँ रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण करके सरकार से मुद्रा नियमन सम्बन्धी अधिकार दिए जाने चाहिए ।

विपक्ष में तर्क:

रिजर्व बैंक के राष्ट्रीयकरण के विपक्ष में निम्न तर्क दिए गए:

(i) राजनैतिक प्रभाव:

राजनैतिक प्रभाव के अभाव में ही रिजर्व बैंक सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है परन्तु राष्ट्रीयकरण में राजनैतिक प्रभाव पड़ने की संभावनाएँ अधिक बढ़ जाती हैं ।

(ii) नौकरशाही तथा लालफीताशाही:

राष्ट्रीयकरण से नौकरशाही एवं लालफीताशाही की बुराइयों के आने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं जिससे प्रबन्ध व्यवस्था में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं ।

(iii) जनता के धन की बर्बादी:

राष्ट्रीयकरण करने से जनता का धन बर्बाद होगा तथा जनता के हितों का ध्यान नहीं रखा जा सकेगा ।

(iv) तकनीकी योग्यता का अभाव:

केन्द्रीय बैंक तकनीकी संस्था है परन्तु राष्ट्रीयकरण होने से उसके संचालन में विशेष योग्यता वाले व्यक्ति प्राप्त नहीं हो सकेंगे व इनका कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न नहीं हो सकेगा ।

(v) स्वतंत्रता की समाप्ति:

राष्ट्रीयकरण करने से रिजर्व बैंक अपने कार्यों के स्वतंत्रतापूर्वक नहीं कर सकेगा क्योंकि कार्यों पर सरकार का नियंत्रण रहेगा तथा उस पर राजनीतिक प्रभाव अधिक पड़ेगा ।

(vi) औद्योगिक नीति के विरुद्ध:

रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण करना सरकर की औद्योगिक नीति के विरुद्ध था । राष्ट्रीयकरण के पक्ष में अधिक तर्क होने से 1949 में रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया । भारत सरकार ने 1948 में रिजर्व बैंक अधिनियम पास कर दिया और 1 जनवरी, 1949 से बैंक पर पूर्णतः सरकारी अधिकार हो गया । बैंक के प्रत्येक अंश के बदले में 100 रु. मूल्य के स्थान पर 118 रु. 10 आने हर्जाना देने का निश्चय किया गया ।

रिजर्व बैंक की वर्तमान स्थिति (Present Status of Reserve Bank in India):

रिजर्व बैंक की वर्तमान स्थिति में निम्न को सम्मिलित किया जाता है:

(1) पूँजी व्यवस्था:

इस बैंक की पूँजी 5 करोड़ रुपए है जो 100-100 रुपए के 5 लाख अंशों में विभाजित है । 1935 में इस बैंक ने एक अंशधारी बैंक के रूप में कार्य प्रारंभ किया था और उसकी संचालन शक्ति कुछ ही व्यक्तियों के हाथों में ही केन्द्रित थी । 5 अंशों पर 1 वोट देने का अधिकार था । राष्ट्रीयकरण के पश्चात् समस्त अंशों को सरकार ने 100 रुपए के अंश को 118 रुपए 62 पैसे में क्रय कर लिया । इस समय सभी अंश केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में है ।

(2) प्रबन्ध व्यवस्था:

रिजर्व बैंक का प्रबन्ध 15 सदस्यों वाली केन्द्रीय संचालक समिति द्वारा किया जाता है ।

इसकी प्रबन्ध व्यवस्था में निम्न व्यक्ति होते हैं:

(i) गवर्नर व उप-गवर्नर:

रिजर्व बैंक में 1 गवर्नर तथा 3 उप-गवर्नर होते हैं, जिनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा 5 वर्षों के लिए की जाती है । यह समस्त वेतन प्राप्त कर्मचारी होते हैं जिनके केन्द्रीय बोर्ड द्वारा नामित किया जाता है ।

(ii) संचालक:

केन्द्रीय बोर्ड में 6 संचालक केन्द्रीय सरकार द्वारा 4 वर्ष के लिए मनोनीत किए जाते है जो बारी-बारी से निवृत्त होते रहते हैं ।

(iii) बोर्डों के संचालक:

रिजर्व बैंक के 4 बोर्डों के लिए केन्द्रीय बोर्ड से 4 संचालक 5 वर्ष की अवधि के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा मनोनीत किए जाते हैं ।

(iv) सरकारी कर्मचारी:

केन्द्रीय बोर्ड में केन्द्रीय सरकर द्वारा एक सरकारी कर्मचारी भी मनोनीत किया जाता है जो सरकार की इच्छानुसार अवधि तक कार्य करता है, परन्तु उसे मतदान का कोई अधिकार नहीं होता ।

(3) केन्द्रीय बोर्ड:

इस बोर्ड में 1 वर्ष में कम से कम 6 तथा तीन माह में कम से कम 1 बैठक होना अनिवार्य है । रिजर्व बैंक का गवर्नर इस बोर्ड की बैठक को बुलाने का आयोजन कर सकता है । इसी प्रकार तीन संचालक भी गवर्नर से बैठक के लिए निवेदन कर सकते हैं, रिजर्व बैंक के 4 स्थानीय बोर्ड मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई व दिल्ली में है, जिसमें 5 सदस्य होते है और इनकी नियुक्ति 4 वर्ष के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा की जाती है ।

ये बोर्ड केन्द्रीय बोर्ड द्वारा सौंपे गए व्ययों में करते हैं । रिजर्व बैंक का गवर्नर बैंक का प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी होता है, जिसकी सहायता के लिए उप-गवर्नर नियुक्त किए जाते है ।

संचालक मण्डल के सदस्यों की अयोग्यताएँ:

निम्नलिखित व्यक्तियों को संचालक मण्डल के सदस्य के रूप में अयोग्य माना जाता है:

(i) जो कभी दिवालिए घोषित किए जा चुके हैं ।

(ii) जो किसी व्यापारिक एवं निजी बैंक के संचालक हैं ।

(iii) जो सरकारी वेतनभोगी अधिकारीगण हैं ।

(iv) जो पागल या अस्वस्थ मस्तिष्क के व्यक्ति हैं ।

(4) रिजर्व बैंक का कार्यालय (Office of Reserve Bank):

रिजर्व बैंक का प्रधान कार्यालय मुम्बई में है और उसने अपने कार्यों को संतोषप्रद ढंग से पूर्ण करने के लिए कलकत्ता, नई दिल्ली, कानपुर, नागपुर, मुम्बई, बंगलौर एवं मद्रास में स्थानीय प्रधान कार्यालय भी स्थापित किए है । रिजर्व बैंक अपनी शाखाएँ कही भी खोल सकता है, परन्तु इसके लिए केन्द्रीय सरकार की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक होगा ।

जिन स्थानों पर रिजर्व बैंक के कार्यालय नहीं है वहाँ पर एजेंट या प्रतिनिधि के रूप में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद तथा बैंक ऑफ मैसूर आदि कार्य करते हैं । इस बैंक के बैंकिंग विभाग की एक शाखा लंदन में भी खोली गई है । इस बैंक के नियंत्रण विभाग चार स्थानों नई दिल्ली, कलकत्ता, कानपुर एवं मद्रास में हैं ।

(5) प्रशासनिक विभाग (Administrative Department):

रिजर्व बैंक की प्रशासन व्यवस्था ठीक ढंग से चलाने के लिए कई विभाग स्थापित किए गए हैं, जिनमें से मुख्य विभाग निम्नलिखित हैं:

(i) बैंकिंग विभाग:

इसकी स्थापना 1 जुलाई, 1935 को हुई । यह विभाग एक ओर तो सरकारी कार्य करता है तथा दूसरी ओर बैंकों का धन अपने पास जमा करता है तथा उन्हें आवश्यकतानुसार धन देकर समाशोधन गृह का कार्य करता है ।

(ii) विनिमय नियंत्रण विभाग:

इसकी स्थापना सितम्बर, 1939 में हुई । विनिमय नियंत्रण के लिए 1947 में विनिमय नियमन अधिनियम पारित किया गया ।

(iii) औद्योगिक वित्त विभाग:

सितम्बर, 1957 में इसकी स्थापना की गई जो छोटे, मध्यम उद्योगों एवं राज्य वित्त निगम में वित्तीय व्यवस्था प्रदान करता है ।

(iv) विधि विभाग:

इसकी स्थापना 1951 में की गई । यह विभाग बैंकिंग कम्पनी अधिनियम, विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम आदि की धाराओं को समय-समय पर जारी करता है ।

(v) गैर-बैंकिंग कंपनियों का विभाग:

जनता से जमा प्राप्त करने वाली कंपनियों के व्ययों के अध्ययन एवं नियंत्रण के लिए इस विभाग की स्थापना की गई है ।

(vi) आर्थिक विभाग:

यह विभाग देश की विभिन्न आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है ।

(vii) अनुसंधान एवं समंक विभाग:

इस विभाग का मुख्य कार्य साख, मुद्रा वित्त आदि समस्याओं का अध्ययन एवं अनुसंधान करके सम्बन्धित आँकडों को एकत्रित एवं प्रकाशित करना है तथा रिजर्व बैंक को नीतियों के निर्धारण में सहायता करता है ।

(viii) बैंकिंग कार्यवाही एवं विकास विभाग:

1964 में बैंकिंग विकास एवं बैंकिंग कार्यवाही विभाग को मिलाकर बैंकिंग कार्यवाही एवं विकास विभाग बनाया गया जो दो कार्य करता है:

(a) बैंकों का समय-समय पर निरीक्षण करके बैंकों द्वारा भेजे गए विवरणों की जाँच करता है तथा पूँजी में वृद्धि एवं एकीकरण के सम्बन्ध में निर्णय लेता है तथा बैंकों के दोषों को दूर करने के उद्देश्य से सुझाव प्रस्तुत करता है ।

(b) यह विभाग ग्रामीण बचतों के प्रोत्साहित करके साख-सुविधाओं में वृद्धि करता है तथा व्यापारिक बैंकों के कर्मचारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है ।

(ix) कृषि साख विभाग:

अप्रैल, 1935 में इस विभाग की स्थापना की गई । यह विभाग कृषि साख समस्याओं का अध्ययन करता है तथा राज्य सहकारी बैंकों से समन्वय स्थापित करता है ।

(x) नोट निर्गम विभाग:

यह विभाग नासिक में स्थित इंडिया सिक्यूरिटी प्रेस (India Security Press) से नोट प्रकाशित करके सरकारी खजानों को वितरण के लिए भेजता है तथा उसका पूर्ण हिसाब रखता है । इस विभाग की शाखाएँ कोलकाता, मुम्बई, नई दिल्ली, बंगलुरू, नागपुर, कानपुर एवं मद्रास में हैं ।

रिजर्व बैंक और ग्रामीण (कृषि) साख:

ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सहायता विभिन्न अलग-अलग एजेन्सियों के माध्यम से देने में रिजर्व बैंक को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था । अतः जुलाई, 1982 में नाबार्ड नामक बैंक की स्थापना की गई । अब इसी के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र को सभी प्रकार की वित्तीय सहायता उपलब्ध होती है ।

नाबार्ड के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं:

(i) ग्रामीण क्षेत्रों में साख पूर्ति की संस्था के रूप में काम करना ।

(ii) सहकारी बैंकों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की दी जाने वाली साख की देख-रेख करना ।

(iii) राज्य सहकारी बैंक को 15 महिनों के लिए ऋण देना ।

(iv) भूमि विकास बैंक को दीर्घकालीन (25 वर्ष) ऋण देना ।

(v) सहकारी संस्थाओं का निरीक्षण करना ।

(vi) शीघ्र फल देने वाले कार्यक्रमों एवं योजनाओं के कोष उपलब्ध कराना ।

संक्षेप में, कृषि वित्त का अधिकांश दायित्व नाबार्ड के हाथ में आ गया है जो रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार कृषि वित्त की सुविधाओं का विस्तार कर रहा है ।

रिजर्व बैंक और अनुसूचित बैंक:

जो बैंक भारतीय बैंकिंग अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत होकर रिजर्व बैंक की दूसरी अनुसूची में शामिल होते है उन्हें अनुसूचित बैंक कहते हैं । अनुसूचित बैंकों को प्रदत्त पूँजी तथा कोषों का मूल्य 5 लाख रुपयों से कम नहीं होता है ।

अनुसूचित बैंकों को रिजर्व बैंक निम्नलिखित सुविधाएँ प्रदान करता है:

(i) अनुसूचित बैंक अनुमोदित प्रतिभूतियों की जमानत पर ऋण ले सकते हैं ।

(ii) रिजर्व बैंक इन बैंकों द्वारा प्रस्तुत बिलों की पुनर्कटौती करता है ।

(iii) इन बैंकों की रकम को रिजर्व बैंक निःशुल्क स्थानांतरित करता है ।

(iv) विशेष दशाओं में रिजर्व बैंक इनकी आर्थिक सहायता करता है ।

(v) अनुसूचित बैंक ही समाशोधन गृहों का लाभ लेते है ।

रिजर्व बैंक जहाँ अनुसूचित बैंकों को संरक्षण प्रदान करता है तथा अनेक प्रकार से सहायता भी प्रदान करता है, वही अनुसूचित बैंकों को भी अपने दायित्वों से पूरा करना पड़ता है ।

अनुसूचित बैंकों के प्रमुख दायित्व निम्न प्रकार है:

(a) अनुसूचित बैंक माँग एवं समय जमाओं का कम से कम 3 प्रतिशत भाग रिजर्व बैंक में केषानुपात के रूप में अवश्य जमा करते है । रिजर्व बैंक इसे 15 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है । वर्तमान समय में यह दर 9 प्रतिशत है ।

(b) अनुसूचित बैंकों से अपने लेन-देन का साप्ताहिक ब्यौरा रिजर्व बैंक को भेजना पड़ता है ।

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