भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य | Read this article in Hindi to learn about the five important functions of reserve bank of India. The functions are:- 1. नोटों का निर्गमन (Issue of Notes) 2. साख का नियमन एवं नियन्त्रण (Control of Credit) 3. सरकार का बैंकर (Banker to Government) 4. बैंकों का बैंकर (Banker’s Bank) 5. बैंकिंग व्यवस्था का नियमन एवं नियन्त्रण (Regulation and Control of Banking System).

रिजर्व बैंक के प्रमुख कार्य निम्नानुसार है:

Function # 1. नोटों का निर्गमन (Issue of Notes):

भारत में एक रुपये के नोट तथा सिक्कों (Coins) का निर्गमन भारत सरकर द्वारा तथा शेष नोटों (2 रु., 5 रु., 10 रु., 20 रु., 100 रु., 500 रु. तथा 1000 रु. वाले) का निर्गमन रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है । एक रुपये के नोट तथा सिक्के भी चलन में रिजर्व बैंक द्वारा ही डाले जाते हैं ।

इस प्रकार देश में मुद्रा के चलन पर रिजर्व बैंक का नियन्त्रण रहता है, जो अर्थव्यवस्था की मौद्रिक आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए व्यस्त एवं शिथिल काल (Busy and Slack Seasons) में साख एवं चलन का नियमन करते हैं ।

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चलन तिजौरिया (Currency Chests):

रिजर्व बैंक के 10 निर्गमन कार्यालय बम्बई, बाइकूला (बम्बई) बैंगलूर, कानपुर, कलकत्ता, हैदराबाद, मद्रास, नागपुर, पटना, नई दिल्ली में है तथा एक उप- कार्यालय गौहाटी में है । इसके अतिरिक्त स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, उसकी अन्य सहायक बैंकों तथा कुछ अन्य राष्ट्रीयकृत बैंकों की प्रमुख शाखाओं में देश भर में 3,534 स्थानों पर रिजर्व बैंक की चलन तिजौरियाँ हैं, जिनमें नोट जमा रहते हैं तथा जहाँ से व्यापारिक बैंकों की साख सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है ।

न्यूनतम कोष प्रणाली (Minimum Reserve System):

रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया न्यूनतम कोष प्रणाली के अन्तर्गत नोटों का निर्गमन करती है, जिसके अनुसार 200 करोड़ रुपये की विदेशी प्रतिभूतियों एवं स्वर्ण (जिनमें से 115 करोड़ रु. के स्वर्ण रखना अनिवार्य है) धरोहर के रूप में रखकर, आवश्यकतानुसार नोटों का निर्गमन किया जा सकता है ।

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विभाग:

रिजर्व के दो प्रमुख विभाग हैं:

(क) निर्गमन विभाग (Issue Dept.) तथा

(ख) बैंकिंग विभाग (Banking Dept.) ।

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नोट निर्गमन का कार्य निर्गमन विभाग द्वारा तथा अन्य बैंकिंग कार्य, बैंकिंग विभाग द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं ।

Function # 2. साख का नियमन एवं नियन्त्रण (Control of Credit):

केन्द्रीय बैंक के रूप में रिजर्व बैंक का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य देश की अर्थ-व्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुसार साख का नियमन करना है । रिजर्व बैंक केवल अनुसूचित बैंकों के ही ऋण देता है । इस नाते गैर-सूचित बैंक, एवं देशी बैंकरों तथा साहूकारों की साख पर इसका कोई नियन्त्रण नहीं है ।

रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया बैंक-दर नीति (Bank Rate Policy), खुले बाजार की क्रियाओं (Open Market Operation), नकद केषानुपात (Variable Reserve Ratio or Cash Reserve Ratio) चयनित साख नियंत्रण (Selective Credit Control) तथा नैतिक दबाव (Moral Pressure) आदि विभिन्न उपायों द्वारा साख का नियमन करता है तथा ‘स्थिरता के साख विकास’ (Growth with Stability) के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग देता है ।

Function # 3. सरकार का बैंकर (Banker to Government):

रिजर्व बैंक भारत के केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के बैंकर, प्रतिनिधि एवं परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है । यह बैंक केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों की समस्त आय जमा करता है, व्ययों का भुगतान करता है तथा सार्वजनिक ऋण (Public Debt) की व्यवस्था करता है ।

रिजर्व बैंक 8 स्थानों पर अपने सार्वजनिक लेखा विभाग कार्यालयों (Public Account Department) तथा अन्य स्थानों पर अपने प्रतिनिधि स्टेट बैंक के माध्यम से केन्द्र तथा राज्य सरकारों के कोषालय नियमों (Treasury Rules) तथा महालेखाकर (Account General) के आदेशों के अनुसार सरकारी राजस्व की प्राप्ति एवं भुगतानों का कार्य करता है तथा उसका हिसाब-किताब सम्बन्धित सरकारों को भेजता है, 1,000 अरब रुपयों से अधिक सरकारी लेन-देन रिजर्व बैंक निःशुल्क करता है किन्तु इसके बदले वह सरकारी जमा राशि पर कोई ब्याज नहीं देता है ।

रिजर्व बैंक सरकार के नियमित व्ययों को चलाने के लिए सामाजिक या अस्थाई कमी की पूर्ति कोषागार-विपत्र (Ways and Means) द्वारा करता है ।

रिजर्व बैंक सरकार के सार्वजनिक ऋण (Public Debts) की व्यवस्था भी करता है, जिसके अन्तर्गत वह सरकर के लिए जनता से ऋण लेने, ऋण का लेखा रखने तथा मूलधन एवं ब्याज का भुगतान करने का समस्त प्रबन्ध करता है, जिसके लिए उसे 2000 रु. प्रति करोड़ रुपये वार्षिक-शुल्क के प्राप्त होते है ।

रिजर्व बैंक केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों द्वारा सरकारी खाते में आयात किये गये माल के भुगतान हेतु विदेशी-विनिमय (Foreign Exchange) की व्यवस्था भी करता है । केन्द्रीय सरकार के परामर्शदाता के रूप में रिजर्व बैंक सरकार को मौद्रिक, वित्तीय एवं अन्य आर्थिक मामलों में परामर्श देने का महत्वपूर्ण कार्य भी करता है ।

Function # 4. बैंकों का बैंकर (Banker’s Bank):

रिजर्व बैंक देश के व्यापारिक, सहकारी एवं क्षेत्रीय बैंकों (Regional Rural Banks) के बैंकर का कार्य भी करता है । रिजर्व बैंक सभी अनुसूचित बैंकों को पुनर्वित्त (Refinance) की सुविधाएँ उपलब्ध करता है । रिजर्व बैंक अनुसूचित बैंकों के नकद-कोष (Cash Reserve) जमा रखता है, उनके विनिमय-विपत्रों को बट्टे पर भुनाता है तथा सरकारी प्रतिभूतियों की प्रत्याभूति पर उन्हें ऋण देता है ।

रिजर्व बैंक प्रथम श्रेणी के ऐसे व्यावसायिक, विनिमय-विपत्रों को क्रय-विक्रय एवं पट्टे पर भुनाने का कार्य करता है, जिनकी अवधि 90 दिनों की हो । व्यस्त मौसम (Busy Season) में समस्त व्यापारिक एवं सहकारी बैंकों की वित्तीय आवश्यकताएँ अधिकांशतः रिजर्व बैंक ही पूरी करता है ।

Function # 5. बैंकिंग व्यवस्था का नियमन एवं नियन्त्रण (Regulation and Control of Banking System):

देश की सम्पूर्ण बैंकिंग व्यवस्था रिजर्व बैंक के नियमन एवं नियन्त्रण के अन्तर्गत कार्य करती है ।

इस हेतु रिजर्व बैंक को भारतीय बैंकिंग अधिनियम के अन्तर्गत अत्यन्त व्यापक अधिकर प्राप्त हैं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण अधिकार अग्रांकित हैं:

(i) लाइसैन्स (License):

भारत में स्थापित होने वाले प्रत्येक बैंक को रिजर्व बैंक से लाइसैंस प्राप्त करना होता है, जिसके लिए उसे निर्धारित शर्तें पूरी करनी पड़ती है । लाइसैंस प्राप्त कर लेने के पश्चात् भी यदि बैंक कोई अनियमितता करे या शर्त-भंग करे तो पूर्व चेतावनी देकर, रिजर्व बैंक उसका लाइसैन्स निरस्त कर सकता है ।

(ii) प्रबन्ध (Arrangement):

रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की प्रबन्ध व्यवस्था पर सतत् निगाह रखता है तथा यदि वह किसी बैंक के संचालक या प्रबन्धक को अवांछनीय व्यक्ति समझता है तो वह बैंकिंग अधिनियम की धारा 10 द्वारा प्राप्त अधिकार के अन्तर्गत ऐसे व्यक्ति को उसके पद से हटा सकता है ।

(iii) तरल कोष (Liquid Reserve):

भारतीय बैंकिंग अधिनियम की धाय 24 के अन्तर्गत प्रत्येक बैंक के अपनी कुल जमाओं (Total Deposits) का 25% नकद कोष तथा अनुमोदित प्रतिभूतियों (Approved Securities) में रखना होता है । इस प्रकार अनुभूति बैंकों को अपने कुल दायित्वों का कम से कम 3% कोष रखना पड़ता है ।

अनुसूचित बैंकों को अपने कोष रिजर्व बैंक में तथा अन्य बैंकों से अपने पास अथवा यदि वे चाहें तो रिजर्व बैंक के पास रखने होते हैं । अनुसूचित बैंकों की जमा पूँजी पर तरल कोषों का प्रतिशत आवश्यकतानुसार बढ़ाया भी जाता रहता है ।

(iv) शाखा विस्तार (Branch Expansion):

किसी भी बैंक को भारत के किसी भाग में अपनी नई शाखा खोलने से पूर्व रिजर्व बैंक की अनुमति लेनी होती है । रिजर्व बैंक अनुमति देने से पूर्व प्रस्तावित शाखा के औचित्य का परीक्षण उस बैंक की प्रबन्ध एवं वित्तीय व्यवस्था तथा जनता एवं बैंक की दृष्टि से प्रस्तावित शाखा की उपादेयता का मूल्यांकन करता है ।

(v) निरीक्षण (Inspection):

भारतीय बैंकिंग अधिनियम की धारा 35 के अन्तर्गत रिजर्व बैंक को निरीक्षण सम्बन्धी व्यापक अधिकार प्राप्त हैं; जिनके अन्तर्गत रिजर्व बैंक किसी भी बैंक के पूँजी, कोष, नकद-राशि, ऋण एवं उनकी प्रतिभूतियों, प्रबन्ध एवं व्यवस्था आदि की पूर्ण जाँच कर सकता है तथा यदि कोई अनियमितताएँ हों तो उन्हें एक निर्धारित समय में दूर करने की चेतावनी दे सकता है ।

यदि फिर भी सुधार न हो तो रिजर्व बैंक उस बैंक के सुधार हेतु एक अधिकारी नियुक्त कर सकता है । यदि सुधार की कोई सम्भावना प्रतीत न हो, तो रिजर्व बैंक उस बैंक के अवसायन (Liquidation) अथवा विलयन (Merger) की व्यवस्था कर सकता है ।

(vi) अवसायन एवं विलियन (Liquidation and Merger):

रिजर्व बैंक बहुत अधिक बिगडी आर्थिक स्थिति वाले बैंकों के अवसायन हेतु बैंकिंग अधिनियम की धारा 38 के अन्तर्गत न्यायालय को आवेदन कर सकता है । जिनकी आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर हो, उनका नियमित व्यवसाय 6 माह के लिए बन्द करके (Moratorium) किसी सुदृढ़ बैंक के साथ उसके विलयन (Merger) की योजना बनाता है ।

इस प्रकार निर्बल एवं अलाभप्रद बैंकों को सुदृढ़ बैंकों के साथ विलयन की योजना द्वार रिजर्व बैंक देश की बैंकिंग व्यवस्था को बल प्रदान करना है । रिजर्व बैंक नियमित रूप से सभी बैंकों के अन्तिम खाते (Final Account) प्राप्त करता है तथा उनकी आर्थिक स्थिति एवं प्रगति पर सतत् निगाह रखता है ।

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