माल के खिलाफ बैंक ऋण (सावधानियों के साथ) | Read this article in Hindi to learn about the bank loans that are granted against goods. Also learn about the precautions to be taken by the banker.

एक बैंकर माल अथवा माल के अधिकार-पत्रों की जमानत के विरुद्ध अग्रिम स्वीकार कर सकता है ।

जिन विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के विरुद्ध बैंकरों द्वारा अग्रिम स्वीकृत किए जाते है उन्हें 4 श्रेणियों में बाटा जा सकता है:

(i) खाद्य पदार्थ (Food Articles),

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(ii) औद्योगिक कच्चा माल (Industrial Raw Materials)

(iii) बागान-उत्पादन (Plantation Products) तथा

(iv) निर्मित माल एवं सामग्री (Manufactures and Materials) ।

बैंकर उपर्युक्त वर्णित किसी प्रकार के माल की जमानत पर अग्रिम स्वीकार करते है । ये अग्रिम प्रायः कार्यशील पूंजी सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कृषि उत्पादन, औद्योगिक कच्चा माल तथा निर्मित माल को संग्रह करने हेतु इनकी जमानत पर लिए जाते हैं ।

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गुण एवं दोष (Merits and Demerits):

(1) माल एवं वस्तुएँ मूर्त-सम्पतियां (Tangible Assets) होती हैं जिन्हें आसानी से बेचकर बैंकर अपने ऋण की वसूली कर सकता है ।

(2) बैंकर को प्रभारित माल की मात्रा (Quantity), गुण (Quality) आदि की जाँच करने में कठिनाई होती है ।

(3) माल को नष्ट होने अथवा संग्रहण के करण उसमें खराबी आने या क्षतिग्रस्त हो जाने की जोखिम भी रहती है । माल की उपयुक्त संग्रहण व्यवस्था आवश्यक होती है ।

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(4) विभिन्न प्रकार के माल एवं वस्तुओं के मूल्यों में उच्चावचन होते रहते है । आवश्यक-वस्तुओं (Essential Commodities) के मूल्यों में विलासिता की वस्तुओं (Luxury Goods) अपेक्षा कम एवं सीमित परिवर्तन होते हैं ।

(5) स्थायी सम्पत्तियों की तुलना में माल को आवश्यकता पड़ने पर आसानी से बेचा जा सकता है । बैंकर ऐसी वस्तुओं से आसानी से जमानत स्वरूप स्वीकार कर लेते हैं जिनकी वर्ष भर नियमित एवं व्यापक माँग रहती है ।

बैंकर द्वारा ली जाने वाली सावधानियाँ (Precautions to be Taken by Banker):

(1) चूंकि माल की मात्रा, गुण, संख्या आदि के सम्बन्ध में सही जांच करना बैंकर के लिए सदैव सम्भव नहीं हो पाता, अतः बैंकर को माल की जमानत पर केवल ईमानदार एवं अच्छी ख्याति वाले ग्राहकों को ही ऋण देना चाहिए जिनके बारे में बैंकर जानता है कि ये बैंक को धोखा नहीं देंगे ।

(2) जमानत के रूप में माल स्वीकार करने से पूर्व बैंकर से उस वस्तु की प्रकृति, उसकी माँग एवं बाजार की स्थिति आदि के बारे में पूर्ण जानकारी होनी चाहिए । केवल ऐसे माल को ही स्वीकार करना चाहिए जिसकी वर्ष पर्यन्त नियमित एवं व्यापक माँग बनी रहती है ।

(3) बैकर को माल के संग्रहण की उचित व्यवस्था तथा उसकी किस्म आदि में क्षय या हानि की सम्भावनाओं पर भी विचार कर लेना चाहिए । माल के सुरक्षित भण्डारण की व्यवस्था आवश्यक है ।

(4) सम्बन्धित माल के बाजार की परिस्थितीयां तथा मूल्यों में होने वाले सम्भावित परिवर्तनों को भी दृष्टिगत् रखा जाना चाहिए ।

(5) माल के विरुद्ध ऋण स्वीकृत करने से पूर्व माल की वास्तविक अथवा रचनात्मक (जैसे माल के गोदाम की चाबी प्राप्त करके) सुपुर्दगी ले लेनी चाहिए ।

(6) माल के मूल्य का अनुमान सावधानीपूर्वक लगाया जाना चाहिए ।

(7) माल की जोखिमों का बीमा करा लेना चाहिए । माल के कुल मूल्य का बीमा कराया जाना चाहिए चाहे अग्रिम की राशि कम ही क्यों न हो ।

(8) ऋणी जितना-जितना ऋण अदा करता जाए उसी अनुपात में बैंकर को माल भी मुक्त (Release) करते जाना चाहिए । माल बैंक प्रबन्धक सुपुर्दगी-अंदेशा (Delivery Orders) द्वारा मुक्त किया जाना चाहिए ।

माल के अधिकार-पत्रों के विरुद्ध अग्रिम (Advances against Documents to Title to Goods):

माल विक्रय अनुबन्ध की धारा 2(4) के अनुसार माल के अधिकर-पत्रों के अन्तर्गत् जहाजी बिल्टी, डॉक-वारंट, गोदाम वाले या घाट का प्रमाण-पत्र, रेलवे बिल्टी, वारण्ट या माल की सुपुर्दगी का आदेश अथवा अन्य किसी ऐसे दस्तावेज का समावेश होता है जिसका उपयोग व्यवसाय के सामान्य उपक्रम में, माल के कब्जे या नियन्त्रण के सबूत के रूप में किया जाता है तथा जो उस दस्तावेज पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को उस माल की सुपुर्दगी प्राप्त करने या उसका हस्तान्तरण करने के अधिकार प्रपत्र की सुपुर्दगी या पृष्ठांकन द्वारा प्रदान करता है ।

इस प्रकार अधिकर-पत्र उस माल का प्रतिनिधित्व करता है जो अन्य किसी व्यक्ति के कब्जे में है । इस अधिकार-पत्र की सुपुर्दगी या पृष्ठांकन द्वारा उस माल को प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है । इन अधिकार-पत्रों के माध्यम से माल पर वैधानिक स्वत्वाधिकार प्राप्त हो जाता है, भले ही माल किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे में हो ।

बैंक ऋण देते समय माल की वास्तविक सुपुर्दगी प्राप्त न करके केवल इनके अधिकार-पत्र ही प्राप्त कर लेते है तथा इन अधिकार-पत्रों की जमानत पर ऋण-अग्रिम स्वीकृत कर दिये जाते है ।

गुण-दोष (Merits-Demerits):

अधिकार-पत्र माल का ही प्रतिनिधित्व करते हैं तथा माल पर कानूनी स्वत्वाधिकार प्रदान करते हैं ।

अतः इन्हें अग्रिम की जमानत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है किन्तु ऐसा करने में निम्नलिखित जोखिमें (Risks) रहती हैं:

(1) परिवहनकर्ता की रसीद या गोदाम वाले की रसीद उनको सौंपे गए माल की स्वीकृति मात्र होती है । माल के पैंकिंग में रखे गए माल (Contents of the Packages) के बारे में कोई गारण्टी नहीं होती । अतः यदि कोई व्यापारी धोखा देने के उद्देश्य से माल भेजे और रसीद में कुछ और वर्णन कर दे तथा उसके आधार पर बैंक से अग्रिम स्वीकृत कण ले तो बैंक को हानि उठानी पड़ सकती है ।

(2) दस्तावेजों में जालसाजी करके बैंक को धोखा दिया जा सकता है ।

(3) ये दस्तावेज विनिमयसाध्य विलेख (Negotiable Instruments) नहीं होते अतः इसके हस्तांतरिती (Transferee) को हस्तांतरणकर्ता (Transferor) से श्रेष्ठ स्वत्वाधिकार प्राप्त नहीं होता ।

(4) यह भी हो सकता है कि रेलवे रसीद की जमानत पर अग्रिम प्राप्त कर लिया जाये तथा बाद में क्षतिपूर्ति बॉण्ड (Indemnity Bond) भरकर माल छुड़ा लिया जाये ।

बैंकर द्वारा ली जाने वाली सावधानियां (Precautions to be Taken by the Banker):

(1) अधिकार-पत्रों के सम्बन्ध में धोखाधड़ी एवं जालसाजी की सम्भावनाओं को दृष्टिगत् रखते हुए, बैंकर को केवल ईमानदार एवं विश्वसनीय ग्राहकों से ही अधिकार-पत्रों की जमानत स्वीकार करनी चाहिए ।

(2) इस बात का सावधानीपूर्वक परीक्षण कर लेना चाहिए कि अधिकार-पत्र वास्तविक हैं, उनमें कोई जालसाजी नहीं की गई है ।

(3) बैंकर को ऋणी से इस आशय का प्रभार-पत्र (Memorandum of Charge) प्राप्त कर लेना चाहिए कि अग्रिम का भुगतान न किए जाने की दशा में माल बेचा जा सकता है ।

(4) अधिकर-पत्रों में बैंक के पक्ष में पृष्ठांकित करा लेना चाहिए ।

(5) अधिकार-पत्र में साख का पूर्ण-विवरण दिया हुआ होना चाहिए तथा माल का बीजक भी संलग्न करा लेना चाहिए ।

(6) माल के पूर्ण मूल्य का बीमा करा लेना चाहिए ।

(7) अधिकार-पत्र निर्गमित करने वाला व्यक्ति/फर्म विश्वसनीय होना चाहिए ।

(8) बैंक को अधिकार-पत्र सद्‌भावनापूर्वक असावधानी के बिना प्राप्त करना चाहिए ।

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