बैंकों की निवेश नीति: उद्देश्यों और सिद्धांतों | Read this article in Hindi to learn about:- 1. विनियोग नीति का अर्थ (Meaning of Investment Policy of Banks) 2. बैंकों की विनियोग नीति के उद्देश्य (Objectives of Investment Policy of Banks) 3. सिद्धान्त (Principles).

विनियोग नीति का अर्थ (Meaning of Investment Policy of Banks):

किसी बैंक की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी आस्तियों (Assets) से अधिकतम् लाभ प्राप्त करे । लेकिन अधिकतम् लाभ के उद्देश्य के साथ-साथ बैंकर को अपनी आस्तियों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा । अतः बैंक को ऐसी विनियोग नीति (Investment Policy) बनानी चाहिए जो एक ओर उसे अधिकतम् लाभ तथा दूसरी ओर जमाकर्ताओं को अधिकतम् सुरक्षा प्रदान करे ।

बैंक को यह ध्यान रखना चाहिए कि विनियोग नीति से जमाकर्ताओं द्वारा माँगने पर उनकी नकदी को लौटने की बैंक की शक्ति में कमी न हो । दूसरे यह भी जरूरी है कि बैंक के पास आवश्यकता से अधिक कोष बेकार न पड़े रहे ।

बैंकों की विनियोग नीति के उद्देश्य (Objectives of Investment Policy of Banks):

बैंकों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य अपने अंशधारियों (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के सम्बन्ध में सरकार) को अधिकतम् लाभ (Maximum Profit) प्रदान करना है । अतः विनियोग नीति का निर्धारण करते समय बैंकर लाभ के उद्देश्य से प्रभावित होता है । यदि बैंक के विनियोग से अधिक प्रतिफल मिले तो बैंक को लाभ भी अधिकतम होगा ।

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लेकिन जैसा कि आप पद चुके है कि एक बैंक अपनी आस्तियां मुख्यतः जनता से प्राप्त जमाओं से ही प्राप्त करता है । अतः बैंक की क्रियाशीलता तथा उसका अनवरत् अस्तित्व जमाकर्ताओं के बैंक पर विश्वास पर निर्भर करता है । बैंकों की विनियोग नीति का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य बैंकों कोषों तथा स्वयं की सुरक्षा का होता है ।

इस उद्देश्य की पूर्ति निम्नांकित दो बातों पर निर्भर करती है:

(1) बैंक कोषों की तरलता (Liquidity of Bank Funds)

(2) विनियोग की विवर्तनशीलता (Shiftability)

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किसी बैंक का व्यवसाय जमाकर्ताओं के विश्वास पर निर्भर होता है । प्रत्येक जमाकर्ता यह मानकर चलता है कि बैंक किसी भी समय उसकी माँग पर नकदी दे देगा । अतः प्रत्येक बैंक को इस विश्वास को बनाये रखने के लिए अपने पास पर्याप्त मात्रा में रोकड़ रखनी चाहिए ताकि माँग पर जमाकर्ताओं के भुगतान किया जा सके ।

विवर्तनशीलता (Shiftability) से तात्पर्य यह है कि बैंक की अधिकांश आस्तियां ऐसी होनी चाहिए कि वे केन्द्रीय बैंक (RBI) अथवा अन्य बैंकों को आसानी से विवर्तित की जा सकें । सकट के समय बैंक विवर्तनशील कोषों के द्वारा नकद राशि प्राप्त करके अपने जमाकर्ताओं व लेनदारों भुगतान कर सकता है । कोई प्रतिभूति तभी विवर्तित की जा सकती है जब वह कुछ शर्तों की पूर्ति कर सके ।

प्रायः एक बैंक ऐसी प्रतिभूतियों में ही विनियोग करता है जो आसानी से खरीदी व बेची जा सके तथा जिन्हें बिना किसी हानि के वितरित किया जा सके, चाहे उनसे अधिक लाभ न हो ।

संक्षेप में, बैंकों में अपनी निवेश नीति बनाने एवं उसके क्रियान्वयन में निम्नांकित दो प्रमुख उद्देश्यों को दृष्टिगत् रखना चाहिए:

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(1) विनियोग ऐसी आस्तियों/प्रतिभूतियों में किया जाए जिससे बैंक तथा अंशधारियों को अधिकतम् लाभ प्राप्त हो ।

(2) बैंक के पास सदैव पर्याप्त मात्रा में रोकड़ रहे अथवा विनियोग ऐसी प्रतिभूतियों में किया जाये जिसे आसानी से तुरन्त रोकड़ में परिवर्तित किया जा सके ताकि जमाकर्ताओं की रोकड़ की माँग की पूर्ति हो सके ।

विरोधाभासी उद्देश्य (Paradoxical Objectives):

उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि बैंकों की निवेश नीति के दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं- लाभदायकता (Profitability) एवं सुरक्षा (Safety) । लेकिन ये दोनों उद्देश्य एक-दूसरे के परस्पर विरोधाभासी हैं । इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है- चूँकि व्यापारिक बैंक जमाकर्ताओं के विश्वास के आधार पर ही अपना अस्तित्व बनाये रख सकते है, अतः यह आवश्यक है कि जमाकर्ताओं के इस विश्वास को बनाये रखने के लिए उनके पास हमेशा पर्याप्त नकद कोष रहे ।

इससे वह जमाकर्ताओं की रोकड़ की मांग को सन्तुष्ट 1 कर सकेगा । दूसरे शब्दों में, अधिकतम् सुरक्षा तभी प्राप्त की जा सकती है जबकि बैंक अपनी जमाओं के समर्थन में ऊँचे अनुपात में रोकड़ शेष रखें । लेकिन येल्ड शेष एक अनुपार्जक आस्ति (Barren Asset) है जिससे बैंक को कोई आय प्राप्त नहीं होती ।

अतः बैंक अपने विनियोग के प्रमुख उद्देश्य के रूप में सुरक्षा को अपनाता है, तो उसे आय (लाभ) का परित्याग करना पड़ता है । इसके विपरीत, यदि बैंक अपने समस्त कोषों को ऋण एवं अग्रिम तथा अन्य प्रकार की आस्तियों में विनियोजित कर देता है तो वह लाभदायकता के उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रहेगा क्योंकि इससे उसे ब्याज एवं लाभांश के रूप में काफी आय प्राप्त होगी ।

लेकिन ऐसी स्थिति में हो सकता है कि बैंक अपने जमाकर्ताओं की रोकड़ सम्बन्धी माँग को पूरा न कर पाये । इससे बैंक के प्रति जन-विश्वास में कमी आयेगी तथा वह फेल (Fail) भी हो सकता है ।

अतः बैंक के लिए यह आवश्यक है कि वह बैंक कोषों की विनियोग सम्बन्धी नीति को लागू करते समय उपर्युक्त उद्देश्यों में समन्वय स्थापित करे । बैंक कोषों की विनियोग सम्बन्धी नीति को लागू करते समय बैंकर को यह ध्यान रखना चाहिए कि विनियोग नीति के दोनों उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके ।

इन दोनों उद्देश्यों की प्राप्ति तभी हो सकती है जबकि बैंक अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पर्याप्त मात्रा में रोकड़ कोष रखे तथा अपने अतिरिक्त कोषों को इस प्रकार की प्रतिभूतियों में विनियोजित करे जो सुरक्षित भी हों तथा साथ ही अच्छी आय भी प्रदान करें ।

बैंकों की विनियोग नीति के सिद्धान्त (Principles of Investment Policy of Banks):

व्यापारिक बैंक पूंजी बाजार के विनियोक्ताओं में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते है । चूँकि बैंक अपने जमाकर्ताओं द्वारा प्रदान किये गये कोषों को विनियोजित करते हैं अतः विनियोजित कोषों की सुरक्षा में उनकी विशेष दिलचस्पी होती है । अतः एक बैंकर विनियोग करते समय स्कन्ध विपणि की प्रतिभूतियों का बहुत सावधानी से चुनाव करता है । यद्यपि किसी बैंक की निवेश नीति पर देश की आर्थिक, मौद्रिक, राजनीतिक, औद्योगिक एवं व्यापारिक परिस्थितियों का व्यापक प्रभाव पड़ता है ।

ऋण एवं अग्रिम (Loans and Advances):

भारत में अधिकांश बैंक कोषों का वितरण ऋण एवं अग्रिम (Loans and Advances) के रूप में किया जाता है । ऋण एवं अग्रिमों पर बैंकों द्वारा ऊँची दर से ब्याज वसूल किया जाता है क्योंकि इनमें जोखिम अधिक होती है, जबकि इनकी तरलता बहुत कम होती है ।

ऋण एवं अग्रिमों का विवर्तन भी कठिन होता है । ऋण एवं अग्रिम अधिविकर्ष (Overdraft) अथवा विनिमय बिलों की कटौती के द्वारा प्रदान किये जाते हैं । बैंक कोषों की सुरक्षा एवं तरलता की दृष्टि से ऋण एवं अग्रिमों को अच्छी आस्ति नहीं माना जाता । लेकिन इनसे प्राप्त होने वाली अधिक आय, इनसे पैदा होने वाली कठिनाइयों की क्षतिपूर्ति कर देती है । ये आस्तियां नीची तरलता (Lower Liquidity) एवं ऊँची आय (Higher Income) प्रदान करती हैं ।

विनियोग (Investment):

प्रायः ऋण एवं अग्रिम अल्पकालीन एवं मध्यम-कालीन प्रकृति के होते हैं । भारत में गत् कुछ वर्षों से बैंक दीर्घकालीन ऋण भी देने लगे हैं । बैंक अपने कोषों का विनियोग के रूप में वितरण करते हैं । बैंक प्रायः सरकारी ऋणपत्रों (Debentures) में विनियोग करते हैं । लेकिन अच्छी साख वाली वित्तीय एवं व्यापारिक संस्थाओं द्वारा जारी किये गए ऋणपत्रों में भी बैंकों द्वारा विनियोग किया जाता है ।

बैंकों द्वारा इस प्रकार के विनियोग को प्राथमिकता देने के दो प्रमुख कारण हैं:

(i) ये आसानी से विवर्तित किये जा सकते हैं तथा

(ii) ऋणपत्रों से अच्छी आय प्राप्त होती है ।

लेकिन ऋणपत्रों में विनियोग की जोखिम भी होती है । कई बार आवश्यकता के समय ऋणपत्रों को क्रय मूल्य से भी कम दर पर बेचना पड़ सकता है । यदि व्यापारिक बैंकों के पास निवेश योग्य ऐसे कोष है जिन्हें कई वर्षों तक रोकड़ में परिवर्तित नहीं करना पड़े तो दीर्घकालीन ऋणपत्रों में किया गया विनियोग आदर्श होता है।

बैंकों को अपने कोषों का वितरण करते समय देश में प्रचलित कानूनों एवं परम्पराओं को ध्यान में रखना पड़ता है । भारतीय बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 के अनुसार अनुसूचित बैंकों के लिए अपनी कुल जमाओं का कम से कम 20 प्रतिशत तरल रूप में रखना अनिवार्य किया गया था ।

एक संशोधन के द्वारा 1962 में सांविधिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) में बढाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया । सितम्बर, 1990 में SLR शुद्ध माँग और मियादी देयताओं के 38 प्रतिशत से 1/2 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 38.5 प्रतिशत कर दिया गया जिसे 30 सितम्बर, 1994 को घटाकर 31.5 प्रतिशत तथा बढी हुई देयताओं पर 25 प्रतिशत कर दिया गया । मार्च, 1995 में बैंकों में SLR की प्रभावी दर 28.5 प्रतिशत थी । वर्तमान में यह दर 21.5 प्रतिशत है ।

बैंकिंग क्षेत्र में बदलते हुए परिदृश्य (Changing Scenario of the Banking Sector) दृष्टिगत रखते हुए व्यापारिक बैंकों को अपनी आस्तियों के ढांचे (Asset Pattern) में बदलाव लाना होगा । बैंकों को जहाँ अपनी प्रतिभूतियों की ईल्ड कर्व (Yield Curve on Securities) पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा ।

वहीं बढ़ती हुई बाजार जोखिमों (Market Risks) के ध्यान में रखते हुए आस्तियों का वितरण करना होगा । भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ने सरकारी प्रतिभूतियों पर बाजार आधारित ब्याज दर की नीति को अपनाया है । इस नीति ने बैंकों में विनियोग प्रबन्ध (Investment Management of the Banks) की संभावनाओं को जन्म दिया है ।

इससे बैंकों के आस्ति ढाँचे में व्यापक परिवर्तन आयेगा । अब बैंकों द्वारा किया जाने वाला विनियोग जोखिम-प्रतिफल बोध (Risk-Reward Perception) से प्रभावित होगा ।

संक्षेप में, व्यापारिक बैंकों द्वारा अपनी आस्तियों के वितरण हेतु निम्नांकित मॉडल अपनाने का सुझाव दिया जा सकता है:

I. तरल आस्तियां (Liquid Assets):

(1) रोकड़ (Cash) – 10%

(2) अल्प सूचना ऋण तथा विनिमय बिल – 15%

कुल तरल आस्तियां – 25%

II. अन्य आस्तियां (Other Assets):

(1) विनियोग – 15%

(2) ऋण एवं अग्रिम – 60%

योग – 75%