बैंकों में कर्मचारियों को कैसे नियंत्रित और प्रबंधित करें? | Read this article in Hindi to learn about how to control of staff in banks.

बैंक में कार्यरत् कर्मचारियों-अधिकरियों पर नियंत्रण प्रक्रिया विभिन्न विभागों द्वारा निर्धारित नियम शर्तों के आधीन की जाती हैं । शाखा में कार्यरत कर्मचारियों-अधिकारियों पर शाखा प्रबंधक द्वारा नियंत्रण किया जाता है जबकि शाखा कार्यालयों का नियंत्रण क्षेत्रीय कार्यालयों तथा क्षेत्रीय कार्यालयों का नियंत्रण मंडल कार्यालय द्वारा एवं समस्त बैंकिंग व्यवस्था का पूर्ण नियंत्रण बैंक, के केन्द्रीय कार्यालय द्वारा किया जाता है ।

इस हेतु विभिन्न विभागों को विशेष अधिकर प्रदत्त हैं । उन्हीं अधिकारों के तहत ये विभाग-स्टाफ पर नियंत्रण करते हैं । संचालक मण्डल द्वार निर्मित नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए बैंक के संचालक मण्डल अथवा अध्यक्ष अपने अधीनस्थ अधिकारियों से उत्तरदायित्व सौंप देते है, जिससे नियन्त्रण व्यवस्था बनी रहती है ।

जनरल मैनेजर कुछ अधिकारों का हस्तांतरण संचालक मण्डल को कर देते हैं, जैसे- ऋण तथा अग्रिम प्रदान करने का अधिकार, कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानांतरण आदि से संबंधित अधिकर । उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने अधिकारों का उपयोग बिना पक्षपात की भावना के निर्भय होकर करे । यह एक तरह से वरिष्ठ अधिकारियों तथा कर्मचारियों के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है ।

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जनरल मैनेजर प्रायः यह निरीक्षण करता रहता है कि विभागीय अधिकारी तथा शाखा प्रबन्धक सभी मामलों में विशेषतया ऋण तथा अग्रिमों के सम्बन्ध में योग्य नीति का अनुसरण कर रहे हैं या नहीं । वह यह भी प्रयास करता है कि बेकार की जोखिम न ली जाए तथा अप्राप्य ऋण न के बराबर हों ।

उसके द्वारा यह भी प्रयास किए जाते हैं कि अनियमितताएँ, कपट, जालसाजी तथा अन्य गडबडियां न हों या कम से कम हों तथा उन्हें रोकने के भी उपाय किए जाए । जनरल मैनेजर द्वारा बनाई गई नीतियों का अनुसरण मुख्य कार्यालय तथा शाखाएँ सभी करते हैं ।

उप तथा सहायक जनरल मैनेजर (Deputy and Assistant General Manager):

जनरल मैनेजर के लिए अकेले सारे कार्य करना तथा उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना सम्भव नहीं हो पाता है, अतः उसकी सहायता के लिए साधारणतः कई उप तथा सहायक जनरल मैनेजरों की नियुक्ति की जाती है । विशेषतया बड़े आकार के बैंकों में इनकी संख्या और भी अधिक हो सकती है ।

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प्रत्येक उप तथा सहायक जनरल मैनेजर को जनरल मैनेजर के कुछ अधिकर प्रदान कर दिए जाते हैं और उन्हें अलग-अलग विभाग सौंप दिए जाते हैं तथा उन्हें उन विभागों का प्रमुख बना दिया जाता है । साथ ही जनरल मैनेजर की ओर से उप तथा सहायक जनरल मैनेजर किसी विशेष क्षेत्र की शाखाओं की भी कार्यवाही कर निरीक्षण कर सकते हैं या फिर प्रधान कार्यालय में ही किसी विशिष्ट विभाग का कार्य संभाल सकते हैं ।

प्रादेशिक प्रबन्धक (Regional Manager):

प्रशासन में सुविधा तथा अच्छे पर्यवेक्षण के लिए बड़े आकार के बैंक प्रादेशिक प्रबन्धक की नियुक्ति करते हैं । इनका कार्य अपने-अपने प्रदेश की शाखाओं की देखरेख करना तथा एक निश्चित सीमा तक ऋण तथा अग्रिम स्वीकृत करना है । इन शाखाओं पर इनका पूर्ण नियंत्रण रहता है तथा इनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के प्रति यह उत्तरदायी होता है । इसके द्वारा प्रादेशिक कार्यालयों तथा प्रधान कार्यालय के मध्य समन्वय स्थापित करने का पूर्ण प्रयास किया जाता है ।

शाखा प्रबन्धक (Branch Manager):

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प्रादेशिक प्रबन्धक के पश्चात शाखा प्रबन्ध में का क्रम आता है । शाखा प्रबन्धक अपने बैंक का स्थानीय प्रतिनिधि भी होता है । यही वह व्यक्ति होता है जो ग्राहकों के सर्वाधिक प्रत्यक्ष सम्पर्क में आता है । वास्तव में बैंक का अधिकांश व्यवसाय शाखा प्रबन्धकों की कुशलता, व्यक्तिगत व्यवहार तथा सम्बन्धों पर निर्भर करता है ।

इस दृष्टि से एक शाखा प्रबन्धक को अनुभवी व्यक्ति होना चाहिए जो कि ग्राहकों का बैंक के प्रति विश्वास तथा कर्मचारियों में बैंक के प्रति निष्ठा उत्पन्न कर अपने व्यवहार से बैंक का नाम गौरवान्वित कर सके ।

शाखा प्रबन्ध के कर्तव्य:

एक शाखा प्रबन्धक के कर्तव्यों का दो दृष्टिकोणों से अध्ययन किया जा सकता है, प्रथम प्रधान कार्यालय के प्रति तथा द्वितीय ग्राहकों के प्रति कर्तव्य ।

(1) प्रधान कार्यालय के प्रति कर्तव्य:

प्रधान कार्यालय वह स्थान होता है जहां से समस्त शाखाओं से नीति सम्बन्धी आदेश प्रदान किए जाते हैं तथा शाखाओं से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है । अतः शाखा प्रबन्धक का यह कर्तव्य है कि वह प्रधान कार्यालय से प्राप्त समस्त आदेशों का यथावत् पालन से तथा उसे शाखा की प्रगति विशेषतया निक्षेपों (जमाओं) तथा ऋण एवं अग्रिमों के सम्बन्ध में सूचना देता रहे । यदि उसे किसी समस्या का निराकरण करना है तो उसे इस हेतु प्रधान कार्यालय से ही मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए ।

बैंकिंग अधिनियम के अधीन की सामयिक विवरण शाखा प्रबन्धक द्वारा प्रधान कार्यालय को भेजने पड़ते हैं । इनके आधार पर ही प्रधान कार्यालय अपना विवरण तैयार कर रिजर्व बैंक को भेजता है । अतः शाखा प्रबन्धक का यह भी कर्तव्य है कि वह अपने प्रधान कार्यालय को यथासमय विवरण तथा अन्य सूचनाएं प्रेषित करता रहे ।

(2) ग्राहकों के प्रति:

शाखा प्रबन्धक ग्राहकों की विभिन्न समस्याओं को हल करने का अन्तिम समाधानकर्ता होता है ।

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