Read this article in Hindi to learn about the fifteen major limitations of credit creation by banks. The limitations are:- 1. मुद्रा की मात्रा (Volume of Currency in Circulation) 2. मुद्रा स्फीति एवं संकुचन (Inflation and Deflation) 3. मुद्रा को नकद रखने की प्रवृत्ति (Habit to Keep Money in Cash) 4. नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio) and a Few Others.

बैंक गुणक रीति से साख का निर्माण करते है, अर्थात् बैंक के पास जितनी जमायें होती है उसके तुलना में कई गुना अधिक साख का निर्माण करते हैं किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि बैंक असीमित मात्रा में साख का निर्माण कर सकते हैं । वास्तव में बैंक एक सीमा तक साख का निर्माण कर सकते है, उससे अधिक नहीं ।

प्रो. बेनहम ने साख निर्माण की तीन सीमायें बताई हैं:

(i) विधिग्राह्य मुद्रा की मात्रा,

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(ii) मुद्रा की तरलता तथा

(iii) मुद्रा दायित्वों का नकद कोष से अनुपात ।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी भी बैंक द्वारा साख निर्माण की सीमा अथवा साख निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं:

(1) मुद्रा की मात्रा (Volume of Currency in Circulation):

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बैंकों की साख निर्माण शक्ति को विधिग्राह्य मुद्रा की कुल मात्रा प्रभावित करती है । जिस देश में जितना अधिक विधिग्राह्य मुद्राओं का निर्गमन और प्रचलन होता है वहाँ बैंकों की साख निर्माण की शक्ति उतनी अधिक होती है । इसके विपरीत विधिग्राह्य मुद्रा की मात्रा कम होने पर साख का निर्माण भी कम होता है ।

(2) मुद्रा स्फीति एवं संकुचन (Inflation and Deflation):

मुद्रा स्फीति की दशा में विधिग्राह्य मुद्रा बैंकों के पास अधिक जमा होती है जिससे बैंकों की साख निर्माण क्षमता भी अधिक हो जाती है । इसके विपरीत, मुद्रा संकुचन की दशा में नकद कोष कम हो जाते हैं जिससे बैंकों की साख निर्माण क्षमता कम हो जाती है ।

(3) मुद्रा को नकद रखने की प्रवृत्ति (Habit to Keep Money in Cash):

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जिस देश में जनता की नव्य धन रखने की प्रवृति कम से कम होती है, उस देश में बैंक की नकद जमाएँ अधिक हो जाती है । जिससे बैंक की साख निर्माण की शक्ति अधिक हो जाती है । इसके विपरीत जिन देशों में जनता अपने पास अधिक से अधिक मुद्रा रखती है वहाँ बैंक जमाएँ कम हो जाती हैं जिससे बैंक की साख निर्माण क्षमता कम हो जाती है ।

(4) नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio):

बैंकों को अपने पास कुल जमा का एक निश्चित भाग नकद कोष के रूप में रखना पड़ता है ताकि वे अपने जमा कर्ताओं की नकद मुद्रा की माँग को पूरा कर सके । यदि बैंक अपने पास कम नकद कोष रखती है तो साख निर्माण की क्षमता अधिक हो जाती है ।

इसके विपरीत यदि बैंक को अपने पास अधिक नकद मुद्रा रखनी पड़ती है तो उनकी साख निर्माण शक्ति कम हो जाती है । उदाहरणार्थ यदि बैंक अपने पास 5 प्रतिशत नकद कोष रखती है तो वह 95 प्रतिशत धन साख के रूप में दे सकता है । ऐसी दशा में उसकी साख निर्माण क्षमता बहुत अधिक होगी । इसके विपरीत, यदि बैंक 20 प्रतिशत नगद धन रखता है तो साख निर्माण क्षमता घटकर 80 रह जाती है ।

(5) साख नीति (Credit Policy):

देश का केन्द्रीय बैंक साख मुद्रा का नियंत्रण एवं नियमन करता है । जब केन्द्रीय बैंक या सरकार द्वारा सस्ती मुद्रा नीति अपनायी जाती है तो साख निर्माण अधिक होता है । इसके विपरीत स्थिति में केन्द्रीय बैंक महँगी मुद्रा नीति को अपनाकर साख को नियंत्रित करता है ।

महँगी मुद्रा नीति के अन्तर्गत केन्द्रीय बैंक, बैंक दर, खुले बाजार की क्रियाओं, न्यूनतम बैंक आरक्षित अनुपात आदि के द्वार साख संकुचन करता है । अतः बैंकों की साख निर्माण शक्ति केन्द्रीय बैंक की साख नियंत्रण नीति से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित होती है ।

(6) जमानतों की उपलब्धता (Availability of Securities):

प्रत्येक बैंक जमानत के आधार पर ही ऋण देता है । जिस बैंक के जमानत जितनी अधिक श्रेष्ठ प्राप्त होगी उतनी ही अधिक साख का निर्माण वह बैंक करेगा ।

प्रो. क्राउथर के अनुसार – ”वस्तुतः बैंक उसी समय ऋण देता है जबकि उसे अच्छी प्रतिभूतियाँ या सम्पत्तियाँ जमानत के रूप में मिलती हैं ।”

प्रो. सेयर्स के अनुसार – ”बैंक अपनी मुद्रायें तत्काल किसी को भी नहीं देते है बल्कि केवल उन्हीं को देते है जो बैंक को इस प्रकार की सम्पत्तियाँ प्रस्तुत करते हैं जिन्हें बैंक आकर्षक समझता है ।”

इसके विपरीत उचित जमानत न होने पर बैंक कम साख का निर्माण करता है ।

(7) व्यापार एवं उद्योग की प्रगति (Progress of Trade and Industry):

जिस देश में व्यापार उद्योग का जितना अधिक विकास होता है वहाँ के उद्योगपति, व्यापारी और अन्य लोग उतनी ही अधिक साख की माँग करते हैं । अतः वहाँ बैंकों की साख निर्माण क्षमता अधिक होती है । इसके विपरीत उद्योग और व्यापार की कम प्रगति होने पर साख की माँग कम रहती है जिससे साख का निर्माण कम होता है ।

(8) केन्द्रीय बैंक के पास बैंकों के सुरक्षित कोष (Cash Reserves of Banks with Central Bank):

प्रत्येक देश में केन्द्रीय बैंक सम्बद्ध बैंकों की माँग जमा एवं समय जमा तथा चालू और निश्चितकालीन जमाओं का एक भाग सुरक्षित कोष के रूप में अपने पास रखता है । केन्द्रीय बैंक द्वारा यदि अधिक मात्रा में सुरक्षित कोष अपने पास रखा जाता है तो व्यापारिक बैंकों की साख निर्माण क्षमता कम होती है । कारण यह है कि अधिक मात्रा में सुरक्षित कोष रखने से बैंकों की तरलता में कमी हो जाती है ।

(9) प्राथमिक जमाओं की मात्रा (Volume of Primary Deposits):

प्रो. कींस का मत है कि बैंक साख निर्माण शक्ति उनकी प्रारम्भिक जमाओं की मात्रा पर निर्भर करती है । यदि प्रारंभिक जमायें अधिक हैं तो बैंकों की साख निर्माण शक्ति अधिक होती है । इसके विपरीत प्रारम्भिक जमायें कम होने पर बैंकों की साख निर्माण की शक्ति कम हो जाती है ।

(10) अन्य बैंकों की साख निर्माण की नीति (Credit Policy of Other Banks):

देश में काम करने वाला प्रत्येक बैंक अपनी साख निर्माण नीति का निर्धारण अन्य बैंकों की साख निर्माण नीतियों के आधार पर करता है । यदि कोई बैंक अन्य बैंकों की नीति का अनुसरण नहीं करता है तो वह असफल हो जाता है ।

(11) आर्थिक विकास का स्तर (Level of Economic Growth):

आर्थिक दृष्टि से जो देश व्यापार, उद्योग, कृषि, खनिज आदि की दृष्टि से जितना अधिक उन्नत होता है, वहाँ साख निर्माण की प्रवृत्ति उतनी ही अधिक होती है । यदि कोई देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है तो वहाँ साख की कम आवश्यकता होती है । अतः वहाँ साख निर्माण भी कम होता है । यही करण है कि विकसित देशों में व्यापारिक बैंकों अधिक मात्रा में साख निर्माण करने में सफल रहती हैं ।

(12) राजनैतिक दशाएँ (Political Condition):

यदि देश में राजनैतिक अस्थिरता है और दंगे-फसाद होते हैं तो इस अशांति के करण बैंकों की साख निर्माण की क्षमता कम हो जाती है । इसके विपरीत राजनैतिक शांति, सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता है तो साख निर्माण की प्रवृत्ति अधिक होती है ।

(13) सट्टे की प्रवृत्ति (Speculative Tendency):

यदि देश में सट्टे की प्रवृत्ति अधिक है तो अधिक साख की माँग होती है, जिससे बैंक अधिक से अधिक साख का निर्माण करते है । इसके विपरीत सट्टे की प्रवृत्ति कम या सीमित होने पर साख माँग कम होती है, जिससे साख का निर्माण भी कम होता है ।

(14) लोगों की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति (Psychological Tendency of People):

लोगों की मनोवैज्ञानिक दशा भी साख निर्माण को प्रभावित करती है । यदि लोग आशावादी दृष्टिकोण रखकर उज्जवल भविष्य की कामना से कार्य करते हैं तो भी साख का निर्माण अधिक होता है । यदि लोग निराशावादी हैं और भविष्य को अंधकारपूर्ण मानते हैं तो साख निर्माण कम होता है ।

(15) अंतर्राष्ट्रीय ऋण (International Debts):

जब कोई देश विदेशों से ऋण लेकर उसमें उपयोग उद्योग, कृषि, व्यापार आदि के विकास के लिए करता है तो साख की मात्रा में वृद्धि होती है । इसके विपरीत दशा में साख का निर्माण कम होता है ।

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