Read this article in Hindi to learn about the two methods of credit creation by banks. The methods are:- 1. कागजी मुद्रा का निर्गमन (Issue of Paper Currency) 2. जमा राशियों से साख का निर्माण (Credit Creation through Deposits).

सामान्यतः एक साधारण व्यक्ति में यह जानकर आश्चर्य होता है कि यदि एक बैंक के पास एक हजार रुपया जमा हो तो वह बैंक पाँच हजार तक साख निर्माण कैसे कर सकती है । अन्य शब्दों में, बैंक में जितनी पूँजी जमा खेती है उससे कई गुना अधिक साख का निर्माण वह कर देती है ।

साख निर्माण की मुख्य  रितियाँ हैं:

Method # 1. कागजी मुद्रा का निर्गमन (Issue of Paper Currency):

19वीं शताब्दी में प्रायः सभी बैंकों में पत्र मुद्रा निर्गमन का अधिकार था । ये पत्र मुद्रायें ही साख मुद्रा के रूप में प्रचलित थीं । वर्तमान समय में मुद्रा निर्गमन का एकाधिकार केवल केन्द्रीय बैंक को है । केन्द्रीय बैंक भी मुद्रा के निर्गमन से ही साख का निर्माण करती है, क्योंकि आजकल वह पत्र मुद्रा के पीछे शत-प्रतिशत धातुकोष नहीं रखता ।

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सम्पूर्ण पत्र मुद्रा के बदले में ”निश्चित धातु आड़” या ”आनुपातिक धातु आड़” रखी जाती है तथा शेष पत्र मुद्राओं के लिये केवल प्रतिभूतियों की आड़ ही रखी जाती है । अतः कागजी मुद्रा का वह भाग जिसके पीछे धात्विक आड़ नहीं होती केन्द्रीय बैंक की साख पर ही बाजार में प्रचलित रहती है । इस प्रकार केन्द्रीय बैंक द्वारा निर्गमित नोट एक प्रकार के साख पत्र ही होते हैं, किन्तु ये सभी मुद्रायें विधिग्राह्य होती हैं । अतः इन्हें पूर्णतः बैंक साख नहीं माना जा सकता है ।

Method # 2. जमा राशियों से साख का निर्माण (Credit Creation through Deposits):

आधुनिक समय में बैंक अपने पास दो प्रकार की राशियाँ जमा के रूप में रखता है:

(i) प्राथमिक जमा राशियाँ और

(ii) व्यूत्पन्न जमा राशियाँ ।

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(i) प्राथमिक जमा राशियां (Primary Deposits):

जब कोई ग्राहक बैंक में जमा खाता खोलकर नकद या चैक जमा कराता है तो उसे प्राथमिक या निष्क्रिय जमा राशि कहते हैं । बैंक अपने अनुभव से यह जानता है कि जमाकर्ता एक समय में अधिक से अधिक कितनी राशि को निकालते हैं, वह उतनी ही राशि को अपने पास रखकर शेष राशि ग्राहकों को ऋणों या पेशगियों के रूप में उधार देता है ।

(ii) व्यूत्पन्न अथवा सक्रिय जमा राशियाँ (Derived Deposits):

जब कोई ग्राहक बैंक से ऋण लेता है तब बैंक उसे नकद राशि न देकर उसके नाम का एक खाता खोलकर ऋण राशि उसमें जमा कर देता है । ऋणी सम्पूर्ण राशि अथवा छोटी-छोटी राशियों के रूप में बैंक से ऋण ली गई राशि निकल सकता है । बैंक जैसे ही ग्राहक के ऋण का खाता खोलकर ऋण शशि उसमें जमा करता है ।

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वैसे ही जमा राशि के बराबर साख का सृजन हो जाता है । यह जमा राशि सक्रिय जमा राशि कहलाती है । चूँकि ऋण द्वारा जमा राशि से साख का निर्माण होता है, इसलिए इसे व्यूत्पन्न जमा राशि भी कहते हैं । करण यह है कि इसमें ऋण ली गई राशि सक्रिय मुद्रा की तरह से बैंक से निकाली जा सकती है ।

ये सक्रिय जमा राशियाँ अर्थव्यवस्था की कुल मुद्रा पूर्ति में विशुद्ध वृद्धि करती है । ऋणी जैसे ही ऋण राशि लौटाता है बैंक के द्वारा व्यूत्पन्न जमा शशि स्वतः समाप्त हो जाती है और मुद्रा की कुलपूर्ति में विशुद्ध राशि के बराबर कमी हो जाती है ।

संक्षेप में, बैंक द्वारा ग्राहक में ऋण देने से साख मुद्रा का निर्माण होता है, लेकिन ग्राहक द्वार बैंक को मुद्रा लौटा देने से साख मुद्रा में कमी हो जाती है ।

जमा राशि से साख निर्माण की प्रक्रिया को दो प्रकार से समझा जा सकता है:

(A) एक ही बैंक के द्वारा साख का निर्माण और

(B) विभिन्न बैंकों के द्वारा साख का निर्माण ।

(C) अन्य रीतियों से साख निर्माण ।

इनका विस्तृत विवरण निम्न प्रकार से है:

(A) एक ही बैंक द्वारा साख का निर्माण (Credit Creation by Single Bank):

माना कि किसी स्थान पर केवल एक ही बैंक है जिसमें लोग अपनी नकद राशियां जमा करते हैं । ऐसी दशा में व्यक्ति A व्यक्ति ने अपने खाते में 100 रुपये की राशि जमा की है । यद्यपि वह अपने खाते से यह राशि कभी भी निकाल सकता है, तथापि बैंक अपने अनुभव से यह जानता है कि जमाकर्ता यह समूची राशि एक बार में नहीं निकलेगा ।

अतः बैंक इस जमा राशि का निश्चित प्रतिशत नकद रूप में रखकर शेष रकम जरूरतमंद व्यक्ति के ऋण के रूप में दे देता है । मान लीजिए कि बैंक ने A व्यक्ति की जमा राशि का 20 प्रतिशत भाग या 20 रुपये नगद रख लिये तथा शेष 80 रुपये B व्यक्ति को ऋण के स्वरूप में दे दिये ।

इस प्रकार बैंक में जमा धन में 80 रुपये की वृद्धि हो गई । कारण यह है B व्यक्ति प्राप्त ऋण की राशि नकद नहीं लेता । बैंक उस व्यक्ति का खाता खोलकर ऋण की राशि उस व्यक्ति के खाते में जमा कर देता है । यह जमा व्यूत्पन्न जमा कहलाती है ।

पुनः बैंक यह समझकर कि 80 रुपये का जो ऋण B व्यक्ति को दिया गया है वह एक साथ न निकालकर समय-समय पर अपनी आवश्यकतानुसार ऋण निकलेगा । अतः उसके 80 रुपये का 20 प्रतिशत या 16 रुपये नकद रखकर 64 रुपये C व्यक्ति के ऋण स्वरूप दे देगा ।

इस प्रकार बैंक का यह क्रम चलता ही जायेगा और बैंक 100 रुपये के प्रारम्भिक जमा के आधार पर 400 रुपये का ऋण प्रदान करने में समर्थ हो जायेगा । एक ही बैंक में विभिन्न व्यक्ति ऋण लेते समय नया खाता खोलकर बैंक ऋण की राशि को बैंक में जमा कर देते हैं । ऐसी दश में एक ही बैंक की साख निर्माण क्षमता में वृद्धि होती रहती है ।

(B) विभिन्न बैंकों के द्वारा साख का निर्माण (Credit Creation by the Different Banks):

यदि उक्त उदाहरण में विभिन्न व्यक्तियों में विभिन्न बैंक मानकर देखा जाये तो उक्त उदाहरण का विश्लेषण इस प्रकार होगा- माना कि A बैंक में 100 रुपये की राशि जमा की है । यद्यपि वह अपने खाते से यह राशि कभी भी निकाल सकता है, तथापि बैंक अपने अनुभव से यह जानता है कि जमाकर्ता यह समूची राशि एक ही समय में वापस नहीं माँगेगा वरन् वह सम्पूर्ण जमाराशि का थोड़ा भाग ही वापस लेगा ।

अतः बैंक इस जमाराशि का एक निश्चित प्रतिशत नकद रूप में रखकर शेष रकम जरूरतमंद व्यक्तियों को ऋण के रूप में दे देगा । मान लीजिए कि बैंक व्यक्ति 100 रुपये की जमा राशि में से 20 रुपये नकद रखकर 80 रुपये का ऋण दूसरे व्यक्ति में देता है ।

दूसरा व्यक्ति इस राशि को B बैंक में जमा रखता है । B बैंक 16 रुपये रखकर 64 रुपये तीसरे व्यक्ति को उधार दे देता है । तीसरे व्यक्ति ने 64 रुपये C बैंक में जमा कर दिये । C बैंक ने भी 20 प्रतिशत राशि को रखकर शेष राशि चौथे व्यक्ति को उधार दे देता है ।

इस प्रकार बैंकिंग प्रणाली के द्वारा कुल 400 रुपये के ऋण दिये जायेंगे और 500 रुपये के कुल जमा (सभी बैंकों को मिलाकर) प्राप्त होंगे । स्मरण रहे, कि यह प्रक्रिया गुणक आकार में बढ़ती है और तब तक इसकी पुनरावृत्ति होती रहती है जब तक सभी बैंकों के द्वारा निर्मित व्यूत्पन्न जमाराशियों की कुल मात्रा प्रथम बैंक द्वारा निर्मित प्रारंभिक जमा मात्रा का गुणक नहीं हो जाती । व्यूत्पन्न जमा राशियों में को मात्रा से विभाजित करके साख गुणक ज्ञात किया जा सकता है ।

उपरोक्त उदाहरण में साख गुणक = 400/80 = 5 है ।

साख निर्माण के सन्दर्भ में यह विशेष उल्लेखनीय है कि जिस देश के जितने लोग बैंक में खाते रखने और बैंक के माध्यम से भुगतान करने के अभ्यस्त होंगे वहाँ उतना ही अधिक साख का निर्माण होगा ।

(C) अन्य रीतियों से साख निर्माण (Other Methods of Credit Creation):

(i) नकद कोष के प्रतिशत में कमी (Reducing Cash Reserve Ratio):

यदि बैंक अपने नकद कोष के प्रतिशत में बैंक कमी कर दे तो बैंक की साख निर्माण क्षमता बढ़ जाती है, जैसे उक्त उदाहरण में 20 प्रतिशत के स्थान पर केवल 10 प्रतिशत नकद राशि रखने लगे तो बैंक की साख निर्माण क्षमता और भी अधिक बद जायेगी ।

(ii) अधिविकर्ष द्वारा साख का निर्माण (Credit Creation through Over Draft):

इस रीति में बैंक अपने ग्राहक के द्वारा जितनी शशि जमा की गई उससे अधिक राशि निकलने की अनुमति दे देती है जिसके परिणामस्वरूप जितनी राशि अधिविकर्ष के रूप में चलन में आती है उतनी ही मात्रा में साख का निर्माण होता है । अधिविकर्ष की सुविधाएं प्रतिष्ठित ग्राहकों को ही दी जाती हैं । अतः इसका प्रयोग सीमित होता है ।

(iii) चैंकों द्वारा भुगतान (Payments through Cheques) से साख का निर्माण:

जब बैंक खरीदी गई प्रतिभूतियों का भुगतान चैक से करते है तब प्रतिभूति बेचने वाला व्यक्ति चैक को तुरन्त न भुनाकर आवश्यकता पड़ने पर ही उसे भुनाता है । ऐसी दशा में जितने समय तक चैक नहीं भुनाया जाता है, वह साख का काम करता है ।

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