गन्ना में खरबूजे कैसे नियंत्रित करें? | Read this article in Hindi to learn about how to control weeds in sugarcane.

खरपतवार गन्ने की फसल में विशेष रूप से बुआई के बाद 60 से 120 दिन तक सभी आवश्यक वृद्धि संसाधनों जैसे प्रकाश, पोषक तत्व, जल एवं स्थान के लिए प्रबल प्रतिद्वदी साबित होते हैं ।

शरदकालीन गन्ने में यह समयावधि 180 दिन तक होती है गन्ने की पंक्तियों के बीच अंतःफसल न होने, गन्ने का धीमा जमाव, खेत में पर्याप्त पोषक तत्वों एवं नमी की मौजूदगी इन अनचाहे मेहमानों की तीव्र वृद्धि के लिए अनुकूलतम दशा बना देती है ।

परिणामस्वरूप खरपतवारों के पौधे गन्ने के पौधों से पहले ही खेत में अपना आधिपत्य जमा लेते हैं, इससे किल्लों के मिल में भेजने योग्य गन्ने के रूप में परिवर्तित न हो पाने से गन्ना उपज में भारी कमी आती है । इसलिए खरपतवारों के नियंत्रण तथा पौधे के जमीनी भाग के समुचित विकास हेतु मृदा की ऊपरी पपडी तोडकर मृदा मल्च तैयार करना एवं बढती फसल की विभिन्न अवस्थाओं में आवश्यकतानुसार मिट्टी चढाना व फसल सुरक्षा संबंधी अन्य कर्षण क्रियाएँ महत्वपूर्ण हैं । यहाँ पर इन्हीं प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित वैज्ञानिक विधा का उल्लेख किया गया है ।

गन्ने के प्रमुख खरपतवार:

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उतर भारत में गन्ने की बुआई के तुरत पश्चात् पाये जाने वाले खरपतवारों में मोथा, पथरचटा, वनचरी, कृष्णनील, बथुआ, जंगली गोभी, दुखी आदि प्रमुख हैं । वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही गन्ने के खेत में घासकुल के खरपतवारों जैसे दूबघास, सांवा, काकुन, पैस्पेलम आदि की संख्या बढ जाती है । कटाई के समय दूबघास, वनचरी, महकुआ आदि खरपतवार मुख्य रूप से पाये जाते हैं ।

प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि:

फसल एवं खरपतवारों की प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि अनेक कारकों जैसे बुआई का समय, विधि, बुआई की ऋतु जैसे शरदकालीन, बसंतकालीन या फिर देरी से (15 अप्रैल के बाद) बोई जाने वाली फसल, खरपतवारों की सघनता तथा भूमि एवं सिंचाई के तरीके आदि से प्रभावित होती है ।

गन्ने के जमाव एवं तीव्र वृद्धि अवस्था के समय खरपतवारों से अधिक हानि नहीं होती परंतु ब्यांत की अवस्था के दौरान गन्ने की फसल को खरपतवारों द्वारा अधिकतम हानि पहुँचती है । इस अवस्था में खरपतवारों होने वाली हानि की भरपाई नहीं हो पाती ।

बसंतकालीन गन्ने में यह अवस्था सामान्यतः बुआई के 60 दिन बाद से लेकर 120 दिन तक तथा शरदकालीन गन्ने में 180 दिन तक रहती है । गेहूँ काटने के बाद बोये गये गन्ना एवं खरपतवारों के बीच अधिक स्पर्धा बुआई के 30 दिन बाद से लेकर 75 दिन तक देखी गई है ।

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इसी प्रकार पेडी गन्ने में यह दौर 30 से 90 दिनों के बीच रहता है । यह भी देखा गया है कि गन्ने की फसल में अनियंत्रित खरपतवारों द्वारा लगभग 162 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 24 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 203 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर का ह्रास हो जाता है ।

खरपतवारों की रोकथाम:

गन्ने के खेत में पाये जाने वाले खरपतवारों को निम्नलिखित विधियों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है:

1. उचित फसल चक्र:

उन क्षेत्रों में जहां लगातार गन्ने की खेती की जाती है, 3 से 5 वर्षीय फसल चक्र में धान एवं गेहूँ की फसल लेने से मोथा, वनचरी एवं दूब जैसे बहुवर्षीय खरपतवारों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त हरी खाद या चारे की फसलें काफी घनी बोई जाती हैं तथा इनकी बढवार भी शीघ्रता से होती है जिसके कारण फसलों के समावेश से खरपतवार कम पनपते हैं ।

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2. भू-परिष्करण तथा प्रतिस्पर्धा फसलें:

ग्रीष्म ऋतु में खेत की गहरी जुताई करके परती छोड़ने से खरपतवार सुख जाते हैं । इसके अतिरिक्त लोबिया, बरसीम, ढेंचा, सनई आदि प्रतियोगी फसलें खरपतवारों को मिलने वाले प्रकाश पानी तथा पोषक तत्वों के लिए बाधा उत्पन्न करती हैं । गन्ने से पहले या गन्ने के साथ इन फसलों को अंतःफसल के रूप में शामिल करने से खरपतवारों के कुप्रभाव को कम किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त इन फसलों को भूमि में ही पलट देने से हरी खाद का भी लाभ मिलता है ।

गुडाई:

गुडाई करने से भूमि में वायु संचार तथा जल धारण क्षमता बढ जाती है और इससे खरपतवारों के नियंत्रण में भी सहायता मिलती है । सामान्यतौर पर प्रत्येक सिंचाई के बाद गुडाई की जाती है । ऐसा करने से छिडकाव की गयी खाद मिट्टी में भलीभाँति मिल जाती है ।

तीन गुडाइयां, बुआई के 30,60 एवं 90 दिनों के पश्चात कर देनी चाहिए इससे खरपतवारों का प्रभावशाली नियंत्रण हो जाता है । पंक्तियों के अंदर तथा पंक्तियों के बीच में की जाने वाली गुडाई बहुत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है । यदि खेत में पताई बिछा दी है तो भी हल्के पतले ब्लेड वाली कुदाल से पंक्ति के अंदर गुडाई करना चाहिए तथा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नए तने क्षतिग्रस्त न हो ।

आच्छादन (ढकना):

गन्ने की दो पंक्तियों के मध्य तेजी से बढकर स्थान घेरने वाली फसलों के बोने से खरपतवारों की बढवार पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है, जिसे आच्छादन कहते हैं । इसे अपनाकर भी खरपतवार नियंत्रित किये जा सकते हैं ।

पताई बिछाना:

गन्ने की पंक्तियों के बीच खाली स्थानों में सूखी पतियों की अथवा किसी अन्य जैविक पदार्थ की 7 से 10 सें.मी. मोटी परत बिछाना काफी प्रभावकारी पाया गया है । बिछाई जाने वाली सूखी पतियों अथवा जैविक पदार्थ को 10 प्रतिशत गामा बी.एच.सी. से उपचारित कर लेना चाहिए ताकि उसमें उपस्थित सेनाकृमि (आर्मी वर्म) और दीमक आदि नष्ट हो जाए ।

एक हैक्टर खेत में पताई बिछाने हेतु 10 टन सूखी पत्तियों की आवश्यकता पडती है । बावक फसल की अपेक्षा पेडी फसल में पताई बिछाना ज्यादा सुविधाजनक एवं लाभदायक होता है । वर्षाकाल में पताई का अपघटन होता है जिसके फलस्वरूप सडने-गलने के पश्चात् भूमि में पोषक तत्व मिल जाते हैं । जलाने की अपेक्षा भूमि में पताई बिछा देना अधिक लाभप्रद है रोगों और नाशीकीटों के प्रकोप से बचने हेतु (जैसा कि शल्क कीटों की स्थिति में होता है) पताई को जला दिया जाता है ।

मिट्टी बिछाना:

पताई बिछाने की अपेक्षा गुडाई के बाद मिट्टी की तह बनाना ज्यादा लाभप्रद नहीं है किंतु सिंचित अवस्थाओं में यह कार्य करना आवश्यक हो जाता है । ऐसा करने से जल पारगम्यता बढ जाती है और पानी भूमि में नीचे तक पहुँच जाता है ।

रासायनिक विधि:

खरपतवारों के निकलने से पूर्व एट्राजीन 2.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्त्व/फैक्टर की दर से डालने पर वार्षिक एकबीजपत्री एवं द्विबीजपत्री खरपतवारों की रोकथाम हो जाती है । इसके अतिरिक्त रोपण के 60 दिनों के बाद 1 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से 2,4-डी दवा डालने से तथा 90 दिनों की फसल होने पर एक गुडाई करने से खरपतवारों की वृद्धि रुक जाती है ।

गन्ना उपज में कमी आर्थिक क्षतिकारक स्तर तक नहीं पहुँच पाती है । जिन स्थानों पर मोथा घास (साइप्रस रोटंडस) बहुतायत में पाई जाती है वहाँ घास निकलने के पूर्व 48 कि.ग्रा. (सक्रिय तत्व)/हैक्टर की दर से सिमाजीन दवा का प्रयोग तथा घास निकलने के बाद आइसोप्लानोटाक्स नामक दवा 3.0 कि.ग्रा. (सक्रिय तत्व)/हैक्टर की दर से प्रयोग काफी प्रभावशाली पाया गया है ।

नेट सेज नामक घास को नष्ट करने में एक नयी दवा सल्फेंट्राजोन को घास के जमाव से पूर्व 1 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से अथवा एट्राजीन के साथ मिलाकर 2 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से डालने पर इसके नियंत्रण में काफी सफलता मिलती है । अन्य खरपतवारनाशी दवाएं जैसे पेंडीमेथालीन 2 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से तथा अमेट्रिन 3 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से खरपतवार निकलने के पूर्व प्रयोग करने पर प्रयोग करने पर खरपतवारों के नियंत्रण में काफी सहायता मि.ली. है ।

समेकित विधि:

खरपतवारों के नियंत्रण के लिए प्रयुक्त की गई किसी एक विधि में संतोषजनक परिणाम नहीं मिलने की दशा में अनेक विधियों को समेकित करने से उनकी प्रभावशीलता बढ जाती है तथा आर्थिक लाभ में भी बढोत्तरी होती है । गन्ने में अंकुरण पूर्व एट्राजीन का प्रयोग करने के पश्चात् 60 दिन की अवस्था पर गुडाई करने अथवा पताई बिछाने से केवल रासायनिक नियंत्रण की अपेक्षा अधिक लाभप्रद परिणाम प्राप्त किए गये हैं ।

गन्ने पर मिट्टी चढाना:

मिट्टी चढाने का प्रमुख उद्देश्य जडों की वृद्धि हेतु अनुकूल दशाएँ उपलब्ध कराना, अवांछित किल्लों का प्रस्फुटन रोकना तथा गन्ने को गिरने से बचाना है । मिट्टी चढाने से नालियां मेडें बन जाती हैं और मेडें, नालियों का रूप ले लेती हैं, जिससे वर्षाकाल में जल की निकासी हेतु एक उपयुक्त रास्ता बन जाता है । मिट्टी चढाने का कार्य किल्ले फूटने की अवस्था में करना चाहिए ।

गन्ने की बंधाई:

गन्ने की अच्छी बढवार (2.5 मी. से ज्यादा) हो जाने पर फसल के गिरने की आशंका बढ जाती है । फसल गिर जाने से रसोगुण पर विपरीत प्रभाव पडता है साथ ही उपज में भी कमी आ जाती है । इसलिए इसकी बधाई आवश्यक हो जाती है ।

गन्ने की बधाई की निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जाती हैं:

(i) गन्ने के थान बांधना:

बंधाई की यह विधि भारत के उपोष्ण जलवायु वाले भागों में अधिक प्रचलित है । थानों को नीचे से सूखी पतियों से बांध देते हैं । गन्ने की बढवार की प्रारंभिक अवस्था (लगभग 150-180 सें.मी. लंबाई होने पर) में एक-एक थान को एक साथ बांध देते हैं ।

(ii) पत्ती की फांद से बंधाई करना:

यह विधि भारत के उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले भागों में अपनाई जाती है ।

इस विधि में तने के निचले भाग की सूखी पत्तियों को बटकर पत्तियों की दो रस्सियों से थानों को क्रिस-क्रास पद्धति से निम्न प्रकार से बांध देते हैं:

(a) एक पंक्ति की बंधाई वर्षा ऋतु की प्रारंभिक अवस्था में की जाती है ।

(b) निकटवर्ती दो पंक्तियों की बधाई गन्ने की पूर्ण बढवार होने के बाद की जाती है ।

(c) ऐसी दशाओं में जबकि फसल की बढवार बहुत अच्छी है जैसा कि पूर्वी तटवर्ती प्रदेशों में होता है, तब फसल की आवश्यकतानुसार बधाई दो अथवा तीन स्तरों पर की जाती है । तेज आधी तूफान से फसल को क्षतिग्रस्त होने से बचाने में यह विधि अत्यंत उपयोगी है ।

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