कीटों के कारण नुकसान | Losses Caused by Pests in Hindi!

कीटों के बारे में सोचने पर अथवा उनकी चर्चा करने पर प्रायः यह सोचा जाता है कि ये अत्यन्त हानिकारक है मगर वास्तव में ऐसा नहीं है । हानिकारक होने के साथ-साथ कीटों के कुछ वर्ग ऐसे भी होते हैं जो मानव समाज के लिये अत्यन्त उपयोगी है ।

इस कीट वर्ग की अनुपस्थिति के बारे में हम सोचें तो पाएंगे की इनके बिना हमारे दैनिक उपयोग में काम आने वाली वस्तुएँ जैसे कपड़ा (रेशम) मोम, शहद, लाख, औषधि एवं अन्य प्रकार की वस्तुएँ इन्हीं से प्राप्त होती हैं । इसके अतिरिक्त विश्व के अनेक देशों में कीटों की विभिन्न प्रजातियों जैसे रानी दीमक, दिखी, सूँडियाँ आदि को भोजन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है ।

अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि कीटों के आर्थिक पहलुओं के समझने के लिये इनके सभी आयामों को सविस्तार समझा जाए ।

A. कीटों द्वारा पौधों को प्रत्यक्ष हानियाँ (Direct Losses of Plants Caused due to Insects):

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जब पौधे के विभिन्न अंगों पर कीटों का आक्रमण हो तथा कीट उन्हें नष्ट करते हों ।

(1) जड़:

प्रायः भूमिगत कीट पौधे की जड़ों को हानि पहुँचाते है । इसके अन्तर्गत दीमक, भृंग व उनके ग्रब, चीटियाँ एवं इल्लियाँ प्रमुख हैं । ये कभी-कभी समस्त पौधे की जड़ों को ही काट कर नष्ट कर देती हैं । जिसके कारण पौधे पूर्णरूप से सूख जाते हैं मगर यदि जड़ों का कुछ भाग ही काटा गया है तो इसका प्रभाव भी उपज पर पड़ता है क्योंकि पौधे अपनी आवश्यकता के अनुसार भोजन ग्रहण नहीं कर पाते हैं फलस्वरूप कमजोर पड जाते हैं ।

(2) तना:

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पौधे जब छोटे होते हैं तो उनके तने कोमल होते है तथा उन पर विभिन्न प्रकार के कीटों का प्रकोप होता है कीट उन्हें नष्ट कर देते हैं जैसे सूँडी दीमक, झींगुर, टिड्‌डा व मक्खियाँ आदि । इसी प्रकार बड़े पौधों के तनों पर ‘तना बेधक’ नामक कीट का प्रकोप होता है ।

(3) पत्ती:

पत्ती को नुकसान पहुँचाने वाले कीट भी कई प्रकार के होते हैं:

(अ) पत्ती खाने वाले कीट – टिड्‌डे मृग, घुन व सुंडियां ।

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(ब) पत्तियों के अन्दर रहने वाले कीट – मटर का पर्ण सुरंगक, नीबू का पर्ण सुरंगक ।

(स) पत्तियों को लपेटने वाले कीट – कपास का पत्ती लपेटक, ज्वार का पत्ती लपेटक ।

(द) पत्तियों का रस चूसने वाले कीट – माह सफेद मक्खी ।

ये सभी कीट पत्तियों को खाकर या उनका रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं फलस्वरूप पौधों की भोजन बनाने की किया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है एवं पौधों की वृद्धि रुक जाती है एवं अन्ततः उपज पर कुप्रभाव पड़ता है ।

(4) फल व फूल:

कुछ कीट फलों व फूलों को नुकसान पहुँचाते है इनमें से कुछ इन्हें काटकर नष्ट कर देते है जबकि कुछ इनका रस चूसकर उन्हें कमजोर बना देते है जोकि तेज हवा के साथ गिर जाते हैं । इसके फलस्वरूप पैदावार में भारी कमी आ जाती है । उदाहरण – कद्‌दू का लाल कीट, फलमक्खी आदि ।

(5) बीज:

अनाज व बीजों को संग्रहित कर गोदामों में रखा जाता है एवं इनकी उचित देखभाल न हो तो भण्डारित कीटों का प्रकोप आरम्भ हो जाता है जो कि पूरे वर्ष भर चलता है जिससे अनाज व बीजों की गुणवत्ता पर कुप्रभाव पड़ता है ।

उदाहरण- दालों की घुन, चावल की घुन, अनाज का पतंगा आदि ।

(6) लकड़ी व छाल:

कुछ कीटों के भृंग (बीटिल्स) एवं घुन (वीविल्स) पौधों की छाल तथा लकड़ी को खाते हैं इनके प्रकोप से इमारती लकड़ी को काफी भारी नुकसान होता है । छाल खाने वाले कीट पौधों के इन भागों को नग्न कर देते हैं जिससे उन पर अन्य प्रकार के कीटों व सूक्ष्मजीवों का प्रकोप होने लगता है ।

उदाहरण – छाल भक्षी सूँडी, दीमक इत्यादि ।

B. कीटों द्वारा पौधों को अप्रत्यक्ष हानियाँ (Indirect Losses of Plants Caused due to Insects):

कीट पौधों को सीधे नुकसान पहुँचाने के साथ-साथ कई प्रकार की बीमारियों जैसे वायरस व माइकोप्लाजमा जैसे रोगकारकों का संचारण एक पौधे से दूसरे में करते हैं । माह, फुदका, सफेद मक्खी आदि इस प्रकार के कीट । इसी प्रकार ये अन्य सूक्ष्म जीवों द्वारा नुकसान पहुँचाने के लिये अनुकूल वातावरण भी पैदा करते हैं जैसे माहू पत्तियों का रस चूसते समय मधुरस उत्सर्जित करते हैं जो कि पत्तियों पर एकत्रित होता है तथा काली फफूंदी के प्रकोप को बढ़ाता है ।

कीटों द्वारा प्रत्यक्ष लाभ (Direct Advantages):

कुछ कीट इस प्रकार के होते हैं जो कृषि या कृषकों को प्रत्यक्ष लाभ पहुँचाते हैं इसके अन्तर्गत रेशम कीट, मधुमक्खी व लाख का कीट शामिल है ।

कीटों द्वारा अप्रत्यक्ष लाभ (Indirect Advantages):

 

कीटों द्वारा कृषि को अनेक अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं जोकि निम्नलिखित हैं:

(i) परागण:

परपरागण किया द्वारा कीट फसल के उत्पादन को बढाने में सहायक होते हैं । प्रकृति में 85 प्रतिशत फूलों में कीटों द्वारा परागण क्रिया सम्पन्न करायी जाती है । मधुमक्खी इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है ।

(ii) जैविक नियन्त्रण में:

प्रकृति में परभक्षी व परजीवी कीट पाये जाते हैं जोकि हानिकारक कीटों के परजीवी के रूप में जीवन व्यतीत करते हैं । कुछ कीट हानिकारक कीटों का शिकार करते हैं इस प्रकार से हानिकारक कीटों को कम करने से महत्ती भूमिका निभाते हैं ।

(iii) औषधियों व दवा के रूप में:

कुछ कीटों का उपयोग विभिन्न प्रकार की दवा व औषधि बनाने में किया जाता है जैसे फफोला भृंग से कैन्थ्रैडीन नामक रसायन प्राप्त होता है जो कि जानवरों के बांझपन को समाप्त करने के लिये पिलाया जाता है ।

(iv) सफाई के लिये:

कुछ कीट गन्दी, सड़ी गली वस्तुओं को खाकर सफाई में अपना योगदान देते हैं ।

(v) खरपतवार नष्ट करके:

कुछ कीट खरपतवारों को नष्ट कर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जैसे लेटाना नामक खरपतवार को प्लैटीप्टीलिया मूसिलिडैक्टीला नामक कीट खाकर उसका नियंत्रण करता है ।

(vi) भोजन के रूप में:

कुछ लोग टिड्‌डियों व दीमक का भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं । इस प्रकार स्पष्ट होता है कि कीट हमारे लिये दोनों ही भूमिका निभाते हैं जहाँ एक ओर ये नुकसानदायक होते हैं तो दूसरी तरफ ये अपने लाभदायक गुणों से मानवता के लिये काफी उपयोगी भी हैं ।

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