कीटनाशकों: मतलब, प्रकार और लाभ | Read this article in Hindi to learn about:- 1. पेस्टीसाइड  का अर्थ (Meaning of Pesticides) 2. पेस्टीसाइड के प्रकार (Types of Pesticides) 3. लाभ और हानियाँ (Benefits and Hazards).

पेस्टीसाइड का अर्थ (Meaning of Pesticides):

पादप रोग (Plant Disease) सूक्ष्म जीवों के द्वारा फैलते हैं या दूसरे Animal के द्वारा इनमें विभिन्न प्रकार के रोग फैलते हैं । हमारे जीवन में उपयोग के पदार्थों की उपलब्धता तथा उनकी कीमतों पर अवांछित प्रभाव डालते हैं, जो अधिक रोग फैलने में फसलों की पैदावार कम होती है, जिससे कीमतें बढ़ जाती है ।

कृषि उत्पादन का लगभग 30% भाग इनसे नष्ट हो जाता हैं । अत: इनके रोग नियंत्रण (Diseased Control) के लिए कृत्रिम रसायनों (Artificial Chemicals) का उपयोग करके इनको रोगों से Protect किया जाता है और इनका प्रयोग दिन व दिन बढ़ता जा रहा है ।

कोई भी जीवधारी जो मनुष्य को आर्थिक या भौतिक नुकसान (हानि) पहुँचाए Pest कहलाता है तथा वे रासायनिक पदार्थ जो Pest को मार देते हैं, उन्हें Pesticide कहते है ।

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सूक्ष्मजीवों का Pest Control हेतु उपयोग जैविक नियंत्रण कहलाता है तथा उपयोग में लिये जाने वाले कारक एजेन्ट (Agent) कहलाते है । सामान्यतः Pest Control Bacteria, Fungus, Virus, Protozoa आदि का उपयोग करके किया जाता है । इनमें से कुछ का उपयोग व्यापारिक स्तर पर भी किया जाता हैं Micro Organism का उपयोग Insect Control, Weeds Control और Diseased Control में किया जाता है ।

वर्तमान समय में बहुत से Synthetic Insecticides व Pesticides का उपयोग Agriculture में Crop Rotation पर किया जा रहा है लेकिन इनके उपयोग से कुछ Non Targate Pathogens भी मर जाते हैं जो Soil के लिए लाभदायक होते हैं तथा खेती (Agriculture) के लिए भी लाभदायक होते है । कुछ पेस्टीसाइड जैविक कीटों (Insects) को भी मार देते हैं जैसे Viruses (Vaculovirule), Bacteria (Basillus) Fungi (Aspergillus) नष्ट कर देते हैं ।

पेस्टीसाइड के प्रकार (Types of Pesticides):

पेस्टीसाइड निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं:

(1) चयनित हुए जीव के आधार पर,

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(2) रासायनिक संरचना के आधार पर,

(3) माइक्रोबियल पेस्टीसाइडस ।

(1) चयनित जीव के आधार पर (On Basis of Target Organisms):

(i) कवकनाशी (Fungicides) – मृदा तथा फसल में कवक के प्रभाव को समाप्त करने के लिए कवकनाशी का उपयोग किया जाता है ।

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(ii) खरपतवारनाशी (Weedicides)- फसलों व पानी आदि में खरपतवार उत्पन्न हो जाती है, उसे जिस रसायन या कीटनाशक से नियंत्रित किया जाता है, उसे खरपतवारनाशी कहते हैं ।

(iii) कीटनाशी (Insecticides) – कीटों को नियंत्रित करने के लिए जिन Chemicals या Animals का उपयोग किया जाता है । उन्हें Insecticides कहते हैं ।

(iv) सूत्रकृमिनाशी (Nematicides)- सूत्रकृमी (Nematodes) हानिकारक होते हैं । सूत्रकृमिनाशी (Nematicides) का प्रयोग कर इन्हें नियंत्रण किया जाता है ।

(v) कृंतकनाशी या चूहा-नाशी (Rodenticides) – कृंतक वर्ग (Rodent Class) जिसमें चूहे व अन्य चूहे की जातियाँ आती है, उन्हें नियंत्रित करने के लिए कृंतकनाशी (Rodenticides) का उपयोग किया जाता है ।

(2) रासायनिक संरचना के आधार पर (On Basis of Chemical Structure):

इसके अन्तर्गत रासायनिक अर्थात् Chemicals से बने उत्पादों को प्रयोग किया जाता है । इनका Side Effects Animal तथा Human Being पर भी पड़ता है, परन्तु अधिक मात्रा में फिर भी Pest Control के लिए इनका उपयोग किया जाता है ।

यह निम्न प्रकार के होते हैं:

(a) Organochlorine → B.H.C., D.D.T.

(b) Organophosphates → Malathion, Parathion

(c) Carbonates → Carboryl

(d) Pyrithoirides → Pyrethrin

(e) Triazines → Simazines

(a) आर्गेनोक्लोरीन (Organochlorine):

ये Organic Compounds है जिनमें Chlorine के कई परमाणु होते हैं जैसे D.D.T., BHC. Aldrine तथा Endosulphonol आदि इसी श्रेणी में आते हैं । ये वसा स्नेही होते हैं जो वसा Tissue के साथ Interaction करते है, जिसके कारण ये Human Being के लिए बहुत हानिकारक होते हैं ।

(b) आर्गेनोफास्फेट (Organophosphate):

ये Phosphoric, Thiophosphoric तथा Phosphoric Acid के कार्बनिक Ester होते है । ये Liver System पर अधिक असर डालते है ।

(c) कार्बेनेट (Carbonate):

ये Organic Acid के Organic Ester होते है जिनके Organic संरचना Acetyline Colour से मिलती-जुलती है तथा ये Estarase नामक Enzyme से काफी आकर्षित होते है । ये त्वचा (Skin) के किसी भी Part में अवशोषित (Absorb) हो जाते है ।

(d) (Pyrithorides):

ये क्रिसेन्पीयस नामक वार्षिक पौधे से निकलने वाले Pyrithin Chemical से प्राप्त किया जाता है ।

(e) ट्राइजीन (Trizene):

यह Pesticides Weeds को Control करने के लिए उपयोग किया जाता है जिससे यूरिया (Urea) प्राप्त करते हैं । ये चाय, तम्बाकू तथा कपास की फसलों में खरपतवार खे नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है ।

(3) माइक्रोबियल पेस्टीसाइड (Microbial Pesticides):

इसे निम्न तीन भागों में बाँटा जा सकता है:

(a) बैक्टीरियल पेस्टीसाइड (Bacterial Pesticides),

(b) वायरल पेस्टीसाइड (Viral Pesticide),

(c) माइकोपेस्टीसाइड (Mycopesticide) ।

(a) बैक्टीरियल पेस्टीसाइड (Bacterial Pesticides):

Bacterium Tharingiensis एक बहुत अधिक पाये जाने वाला Bacteria है जिसे Soil Diterus तथा Death Insects से Isolate किया जा सकता है । यह एक Spore Forming Bacteria है जो बहुत से Toxins जैसे α, β तथा δ Exotoxin तथा Andotoxin Produced करता है जिसे Crystal रूप में भी प्राप्त किया जा सकता है ।

β Exotoxin में Ribose और Glucose आदि पाए जाते हैं जबकि β Endotoxin में Glyco Protein Subunit का बना होता है । इस Toxin में Insecticides के गुण पाए जाते हैं ।

इसके अतिरिक्त बेसिलस थूरिजिंएसिस फरमेंटर (Fermenter) में अन्य जीवाणुओं (Bacteria) के साथ उत्पन्न होते है । इसके व्यापारिक संघटक में बीजाणु (Spores) क्रिस्टल प्रोटीन (Crystal Protein) तथा अक्रिय वाहक पाये जाती है ।

यह संघटक पानी में विलेय Powder के रूप में पायसीकृत पदार्थ के रूप में कणों के रूप में धूल के कणों के रूप में पाए जाते है । आवश्यकता पड़ने पर इसे रासायनिक इंसेक्टीसाइड (Chemical Insecticide) के साथ भी मिश्रित किया जा सकता है ।

Crystal Protein की क्रियाशीलता उपयोग करने के 24-40 घंटे बाद समाप्त हो जाती है । लेकिन बीजाणु (Spores) लम्बे समय तक बने रहते है व लाभदायक कीटों (Insects) को भी नष्ट कर देते हैं । इस समस्या से बचने के लिए Bacteria के कुछ ऐसे उत्परिवर्तित (Mutant) प्रतिरूप बनाये गये हैं, जो Crystal Protein का निर्माण करते है ।

परन्तु Spores का निर्माण नहीं करते है । इस प्रकार के उत्परिवर्तित प्रतिरूप भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा निर्मित किए गए है । कुछ Bacteria के Spores करते हैं । ये Spores युक्त कायिक कोशिका में Crystal Protein का निर्माण करती है ।

यह Crystal Protein एक Prototoxin है, जो कीट (Insects) की मध्य आहार नाल में Toxin में परिवर्तित हो जाती है । Toxin के कण मध्य आहार नाल की उपकला कोशिकाओं में स्थित विशिष्टग्राही के साथ बाधित हो जाते हैं व अन्त में कीट की मृत्यु हो जाती है ।

विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया द्वारा विभिन्न प्रकार के Crystal Protein का निर्माण किया जाता है । प्रत्येक प्रोटीन (Protein) Insect के लिए विशिष्ट होता है । जबकि रासायनिक कीटनाशी व्यापक प्रकार के कीटों का नियंत्रण करता है ।

(b) वायरल पेस्टीसाइड (Viral Pesticide):

Pesticides के लिए बहुत से Virus की खोज हो चुकी है, जिसमें Cytoplasmic Polyhdrolysis Viruses शामिल है । Virus तथा इससे बने दूसरे Products Effective तथा Biopesticides के रूप में तैयार किए जा चुके हैं तथा इनका Agriculture Forest तथा Hoticulture से Insect Pests को Control करने के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता है ।

यह Method Pollution Free होता है तथा Plant और Animal दोनों की Health के लिए Toxic नहीं होते हैं और ना ही Hazordous होते है । ये Virus Specific होते है तथा इनका उपयोग Insects के Poly Hacters पर कोई बुरा प्रभाव नहीं डालते हैं ।

साथ ही इन Insects की उपयोगी Product की Yield बढ़ाने की क्षमता बढ़ जाती है । ये Human Being के लिए भी हानिकारक नहीं होते है । ये Insect Paste के मुँह से जाकर Digestive Tract में पहुंच कर इन्हें मार देते है ।

अमेरिका में Nuclear Polyhydrocysis Virus (NPV) को Insect के Control हेतु उपयोग में लाया जाता है । भारत में NPV का उपयोग हेलिको वेरपा आर्मिजेरा के नियंत्रण हेतु किया जाता है ।

इसी प्रकार ग्रेनृलोसिस वाइरस (GV) का उपयोग Pseudoptera Litrura के Control हेतु किया जा रहा है । व्यापारिक स्तर पर इन वायरस (Virus) का उत्पादन कीटों के Larva पर किया जाता है । इसी प्रकार हिर्सूटेला थोम्पसोनाई, वटिर्सिलियम जैसे कवकों (Fungi) का उपयोग भी कीटों के नियंत्रण (Control) में किया जाता है ।

(c) माइकोपेस्टीसाइडस (Mycopesticides):

वर्तमान समय में हुए अध्ययन में रोगजनक कवक का उपयोग Insect Pest को नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा है । इसमें Fungal Pesticides को व्यावसायिक उत्पादन किया जा रहा है । इसका प्रभाव बैक्टीरिया तथा वायरस के प्रभाव से बिल्कुल अलग होता है । ये Cestius Phycitis नामक कीटों से फैलता है, जो कवक से नियंत्रित किया जाता है ।

इन सूक्ष्मजीवों (Micro Organisms) को इनके द्वारा की जाने वाली क्रिया के आधार पर दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है:

(a) आमाशयी सूक्ष्मजीवी कीटनाशी (Stomach Microbial Insecticides),

(b) सम्पर्क सूक्ष्मजीवी कीटनाशी (Contact Microbial Insecticides) ।

(a) आमाशयी सूक्ष्मजीवी कीटनाशी (Stomach Microbial Insecticides):

इस समूह के Bacteria, कीटों (Insects) की देह (Body) तथा Tissues ऊतकों में प्रवेश करके Toxic पदार्थों क उत्पादन कर देते है, जिससे Pest की मृत्यु हो जाती है ।

(b) सम्पर्क सूक्ष्मजीवी कीटनाशी (Contact Microbial Insecticides):

इस समूह के सूक्ष्मजीवी कीटों (Insects) की त्वचा (Skin) के सम्पर्क में आने पर उसकी देह (Body) में प्रवेश कर जाते है । इस नियंत्रण (Control) में भौतिक कारक भी सहायक होते है । अत: पीड़क नियंत्रण के लिए सूक्ष्मजीव कीट तथा वातावरण का सामंजस्य (Adjustment) भी सहायक होता है ।

इन सूक्ष्मजीवों (Micro Organisms) की वृद्धि तथा Culture प्रयोगशाला में की जाती है तथा आवश्यकता पड़ने पर इन्हें वायुमंडल में छोड़ देते है । इस युक्ति का उपयोग उस समय किया जाता है । जब Pest को अस्थाई रूप से Control करना हो तब भी इसका उपयोग किया जाता है ।

पेस्टीसाइडस से लाभ और हानियाँ (Benefits and Hazards of Pesticides):

इससे मुख्य दो लाभ होते हैं:

(1) इससे फसल (Crop) की उपज में आशातीत वृद्धि हुई ।

(2) अनेक मानव रोग जैसे मलेरिया, डेंगू, फाइलेरिया आदि में कमी हुई है ।

पेस्टीसाइडस से हानियाँ (Hazards of Pesticides):

पेस्टीसाइडस (Pesticides) के अधिक मात्रा में प्रयोग करने से फसली पौधों व भूमिगत जल भी दूषित होता है । इन उपयोग से गहन विषाक्तता भी उत्पन्न हो जाती है तथा लम्बी अवधि तक इनका उपयोग पशुओं की जीव वैज्ञानिक प्रणाली पर भी अपना प्रभाव डालता है ।

पीड़क नाशक (Pesticide) सामान्यतः कार्सिनोजोनिक (Carcinogenic) कैंसर उत्पन्न करने वाले, टैरटाजेनिक (Tartragenic) विकृति उत्पन्न करने वाले टयूमराजेनिक (Tumaragenic, Tumour) तथा Cysts उत्पन्न करने वाले प्रभाव के लिए जाने जाते है । इनका अनियमित उपयोग Pest के प्राकृतिक शत्रु जीवों (Natural Enemies) की विविधता में कमी लाती है ।

जिससे Secondary Pests का महामारी फैलाने का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि इससे:

(a) पर्यावरणीय प्रदूषण,

(b) जैव आवर्धन,

(c) खाद्य पदार्थों का विषाक्तीकरण,

(d) पीड़कनाशियों के प्रति प्रतिशेध,

(e) नए Pest का उद्भवन आदि होता है ।

इसमें से मुख्य रूप से:

जैव आवर्धन:

इसके अन्तर्गत प्रकृति में असंख्य जीवधारी होते है । अनेकों कीट (Insect) पौधों पर निर्भर होते है । इसमें से कुछ ऐसे हैं जो फसलों के लिए खतरा है । कीटनाशकों (Insecticides) के छिड़कने पर सभी प्रकार के कीट मर जायेंगे । Toxication of Food Products में चूंकि अधिकांश रासायनिक पीड़कनाशी बहुत कम विषहीन होते है ।

ये खाद्य पदार्थों में धीरे-धीरे संचित हो जाते है । भारत में मिलने वाले खाद्य पदार्थों में 91.7% पीड़कनाशी पाए जाते है । एक आम भारतीय भोजन में प्रतिदिन लगभग 0.27 mg DDT या दूसरा Pesticide लेता है और भोजन या खाद्य पदार्थों में अक्सर D.D.T की मात्रा पायी जाती है ।

मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता पर पेस्टीसइड का प्रभाव (Effects of Pesticides on Soil Fertility and Productivity):

Soil के अन्दर विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव पाए जाते है । जो लाभदायक भी होते है । परन्तु पेस्टीसाइड के उपयोग से इनको हानि पहुंचती है । जैसे कुछ प्रोटोजोआ मिट्टी (Soil) के अन्दर रहते हैं, जो मिट्टी में उपस्थित नाइट्रोजन (Nitrogen) को स्थापित करने वाले बैक्टीरिया को खा जाते है ।

इस प्रकार इन बैक्टीरिया की सक्रियता एवं मिट्टी में नाइट्रोजन (N2) की मात्रा में कमी हो जाती है । कभी-कभी मिट्टी में उपस्थित रोगजनक एवं निमाटोड्‌स (Nimatodes) को निष्क्रिय करने के लिए विभिन्न प्रकार की भौतिक एवं रासायनिक विधि का प्रयोग किया जाता है ।

निमाटोड्‌स (Nimatodes) के नियंत्रण के लिए वाष्पशील मृदा घुमक (Soil Fumigants) का मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है । ये Fumigant Soil Particles को आपस में बाँध देते है, जिससे मृदा की उर्वरता कम होती है ।

कुछ पीड़कनाशी चक्रिय हाइड्रोकार्बन के होते है, जिनमें Chlorine Compound होते हैं तथा Pest Control के उपयोग में आते है । परन्तु ये तत्व Oxidation Ring को अवरूद्ध कर देते है । जैविक अपघटन के प्रतिरोधी होने के कारण इनकी उपस्थिति दीर्घकाल तक परिवेश में विद्यमान रहती है ।

ऐसे पदार्थों का Concentration वर्ष दर वर्ष बढ़ता रहता है । ये पदार्थ मिट्टी में जमा होते चले जाते है । यहाँ से इनका प्रवेश Food Chain के Producer के माध्यम से होता है । अर्थात् ये जितने भी Pest होते हैं वो किसी न किसी रूप में Soil उत्पादकता को भी प्रभावित करते है ।

Pesticides का Soil Fertility तथा Productivity पर निम्न प्रभाव पड़ते है:

(1) ये केवल इच्छित पीड़क (Pest) को ही निर्जमीकरण नहीं कराते है बल्कि दूसरे विभिन्न प्रकार के अनचाहे सूक्ष्मजीवों (Micro Organisms) को भी निर्जमीकरण कर देते है ।

(2) इनमें क्षत से पीड़कनाशी (Pesticides) निरन्तर चिपके रहते है तथा शीघ्रता से अलग नहीं होते है । ये अपघटित होने में 3-5 माह का समय लेते है । Tropical Condition में कुछ Pesticide 10 माह तक स्थायी बने रहते है ।

(3) ये अनचाहे प्रभावों जैसे रोगजनक में प्रतिरोध, मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव का विस्थापन तथा उनके संख्या में परिवर्तन करते है, क्योंकि pH तथा पोषक की उपलब्धि में परिवर्तन हो जाते है जिससे मृदा उर्वरकता प्रभावित होती है ।

(4) इनका जहाँ प्रयोग किया जाता है । वहाँ से पानी के द्वारा बहकर दूसरे स्थान तक पहुँच जाते हैं अर्थात पीड़कनाशी को निश्चित मात्रा में प्रयुक्त करते है । परन्तु ये मिट्टी में दूर तक फैलकर अनचाहे परिवर्तनों को उत्पन्न कर देते है ।

(5) इनकी सांद्रता तथा आवर्धन से Biological System में अचानक अनचाहे हानिकारक परिणाम उत्पन्न करते है ।

(6) पीड़कनाशी की अधिक मात्रा का निरन्तर उपयोग करने से Soil Microflora के परिवर्तन स्थायी हो जाते है जिससे मृदा की उर्वरकता सीमा तथा उत्पादन क्षमता प्रभावित होने लगती है ।

(7) पीड़कनाशी से मृदा में पाये जाने वाले कीट, केंचुआ एवं अन्य अकशेरुकी (Invertebrates) प्रोटोजोआ तथा मृदा जीवों पर घातक प्रभाव डालते है ।

(8) पीड़कनाशी का अपघटन विभिन्न मृदा कारक जैसे pH तथा ताप (Temperature) पर भी निर्भर करता है । इसलिए पीड़कनाशी के अंधाधुन्ध उपयोग द्वारा मृदा-विष को उपचारित करना सम्भव नही है ।

(9) इसके अपघटन में लगने वाला समय Tropical Condition में अपेक्षाकृत कम होता है ।

(10) ये रासायनिक मिट्टी (Soil) में उपस्थित जैविक तथा रासायनिक कारकों के द्वारा Phytatoric रसायन में बदल जाते हैं तथा पौधों की वृद्धि को रोक देते है ।

(11) पीड़क अधिक होने से मृदा में उपस्थित जैविक उर्वरकता धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है, जिससे फसल की पैदावार पर प्रभाव पड़ता है ।

(12) Soil में Toxic प्रभाव होने से दूसरे प्रकार के प्रभाव जैसे Seeds Germination पर भी प्रभाव पड़ने लगता है ।

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