Read this article in Hindi to learn about the five main problem faced by farmers in rural areas. The problems are:- 1. ग्रामीण स्रोतों का असमान वितरण (Unequal Distribution of Rural Resources) 2. बेकारी तथा अर्द्ध-बेकारी (Unemployment and Quasi Unemployment) and a Few Others.

Problem # 1. ग्रामीण स्रोतों का असमान वितरण (Unequal Distribution of Rural Resources):

भारतीय ग्रामों में दो शक्तिशाली श्रेणियों के लोग मिलते हैं जिनमें से एक में साहूकार और व्यापारी आते हैं और दूसरी में बड़े भूस्वामी और आर्थिक किसान आते हैं । यद्यपि ये लोग ग्रामीण जनसंख्या का 10 से 15 प्रतिशत भाग बनाते है परन्तु ये आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक दृष्टि से काफी सबल हैं ।

स्रोतों के असमान वितरण का सीधा सम्बन्ध आय की असमानता और जीवन की भौतिक दशाओं से हैं । जिन लोगों के पास भूमि नहीं है और जो या तो दूसरों की भूमि जोतते हैं या जो भूमिहीन श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं, वे आर्थिक दृष्टि से अभावमय जीवन व्यतीत करते हैं ।

अनेक भूमि-सुधार अधिनियमों के बावजूद भी काश्तकारी और बटाईदारी में खेती करने वालों को अनिश्चितता और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है । इन लोगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के अधिकांश भाग पर भूस्वामियों और साहूकारों का अधिकार हो जाता है । अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इनके पास उपज का बहुत थोड़ा भाग ही शेष बचता है ।

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कृषि श्रमिकों की हालत तो इनसे भी खराब है । उपज का अधिकांश भाग उन लोगों के लिए सुरक्षित रहता है जिनका कृषि कार्यों में किसी भी रूप में कोई सक्रिय योगदान नहीं होता । स्वयं भूमि पर काम करने वाले किसान के पास इतना नहीं बच पाता कि वह उन्नत किस्म के उपकरण, खाद और बीज आदि खरीद सके ।

अत: उसे उत्पादन बढ़ाने की कोई वास्तविक प्रेरणा नहीं मिलती जहाँ कृषकों में अपनी कार्य क्षमता या कुशलता को बढ़ने के लिए कोई प्रेरणा नहीं पायी जाती है । स्पष्ट है कि आय के स्रोतों के असमान वितरण के कारण मालिक या भूस्वामी तथा किसान और भूमिहीन श्रमिक की आय और जीवन की भौतिक दशाओं या रहन-सहन के स्तर में भारी अन्तर पाये जाते हैं । यह परिस्थिति कृषक असन्तोष के लिए उत्तरदायी है ।

Problem # 2. बेकारी तथा अर्द्ध-बेकारी (Unemployment and Quasi Unemployment):

ग्रामीण क्षेत्रों में कृषक असन्तोष का अन्य कारण बेकारी एवं अहं-बेकारी है । पिछले 70 या 80 वर्षों में भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ा है । जनसंख्या जिस गति से बड़ी है, उस गति से देश में व्यापार और उद्योग-धन्धों का विकास नहीं हुआ है ।

परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि पर लोगों की निर्भरता बड़ी है । कृषकों को पूरे वर्ष कठिनता से ही काम मिल पाता है । वर्ष में कई महीनों तक इन्हें बेकार रहना पड़ता हैं अतः ग्रामों में जनसंख्या के एक बहुत बड़े भाग के लिए कार्य की सुविधाएँ या नौकरी के अवसर प्राप्त करना कठिन है ।

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ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक निर्योग्यताओं को दूर करने की प्रक्रिया उस समय तक आशिक और अधूरी ही रहेगी जब तक काम करने के सभी इच्छूक व्यक्तियों के लिए रोजगार की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करा दी जातीं ।

Problem # 3. कृषकों में जागरूकता (Awareness among Peasants):

कृषि क्षेत्र में व्याप्त असन्तोष का एक अन्य प्रमुख कारण निम्न, दलित या शोषित वर्ग के लोगों में अपने जीवन की भौतिक दशाओं और सामाजिक क्षेत्र में व्याप्त निर्योग्यताओं के प्रति जागरूकता है । अधिकतर भूमिहीन श्रमिक पिछड़ी या अनुसूचित जातियों या जनजातियों से सम्बन्धित हैं ।

इनमें से काफी लोग हरिजन जातियों के सदस्य है । अभी तक समाज में यह विश्वास प्रचलित था कि लोग जन्म से ही असमान पैदा होते है । अपने पूर्वजन्म के कर्मों के कारण कुछ लोग ब्राह्मण, ठाकुर, राजपूत, भूस्वामी और पूँजीपति हैं । अन्य लोग शोषित हैं, और उनके पूर्व जन्म के कर्म के कारण ही दलित, हरिजन, भूमिहीन श्रमिक ही हैं ।

आज लोगों के इस विश्वास में अनार आया है । वे लोग महसूस करने लगे हैं कि इस स्थिति में परिवर्तन सम्भव है और परिवर्तन किया जाना चाहिए । राजनैतिक संगठनों के प्रयत्नों से लोगों में जागरूकता आयी है ।

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ग्रामीण क्षेत्रों में जो लोग आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से निम्नतम स्थिति में हैं, उनमें असन्तोष बढ़ा है । पिछले 40 वर्षों में उनकी आकांक्षाएँ काफी बड़ी हैं परन्तु उनके अनुरूप उनकी भौतिक दशाओं में कोई उल्लेखनीय या महता परिवर्तन नहीं लाया जा सका है ।

Problem # 4. राजनैतिक कारक (Political Factors):

आन्दोलनात्मक राजनीति ने लोगों के दृष्टिकोण को बदलने में विशेष योगदान दिया । आज बहुत से लोग यह मानने को तैयार नहीं कि उन्हें पूर्व जन्म के कर्मों के कारण इस जन्म में निम्न स्थिति प्राप्त हुई है । अब वे समझते हैं कि उनकी इस स्थिति के लिए स्वयं समाज-व्यवस्था उत्तरदायी है जिसे बदला जा सकता है ।

अस्तु भूमिहीन लोगों में अधिकाअधिक भूमि प्राप्त करने की मांग बढ़ती जा रही है । यद्यपि देश में भूमि सुधार के प्रयत्न हुए हैं परन्तु इससे सम्बन्धित अधिनियमों का उल्लंघन भी हुआ है । भूमि सुधार के द्वारा जो कुछ इच्छित और सम्भव था तथा जो कुछ वास्तव में प्राप्त किया जा सका उसके बीच काफी खाई है ।

वर्तमान में भूमि हड़प आन्दोलन की ओर लोगों का झुकाव बढ़ा है । यद्यपि इससे भूमि वितरण से सम्बन्धित असमानताएँ कम नहीं हुई हैं । इसके लोगों की अपेक्षाओं को ओर बढ़ा दिया है जिनका निकट भविष्य में पूर्ण होना सम्भव प्रतीत नहीं होता ।

Problem # 5. हरित क्रान्ति (Green Revolution):

हरित क्रान्ति के अन्तर्गत कृषि में उत्पादन के परम्परागत साधनों एवं यन्त्रों के स्थान पर नवीन साधनों जैसे ट्रैक्टर, हल आदि तथा नवीन खादों एवं कीटनाशक औषधियों का उपयोग किया जाता है । इससे उत्पादन में वृद्धि होती है ।

हरित क्रान्ति का लाभ गांवों में बड़े भूस्वामियों एवं किसानों को हुआ है । छोटे किसान एवं भूमिहर मजदूरों को इससे लाभ नहीं मिलता है । हरित क्रान्ति ने गांवों की आर्थिक असमानता को और बढ़ा दिया है । इससे भी कृषक असन्तोष में वृद्धि हुई है ।

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