अब्राहम लिंकन का भाषण जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए: Speech on “ of the People, by the People, for the People” in Hindi Language!

सन 1863 में 19 नवम्बर को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने यह प्रसिद्ध भाषण दिया था, जिसका आखिरी वाक्य लोकतन्त्र की परिभाषा बन गया :

‘चौथी सदी ई॰पू॰ एवं सात साल पहले हमारे पूर्वजों ने इस महाद्वीप पर एक नये राष्ट्र की स्थापना की थी ।

अपनी स्वतन्त्रता की अवधारणा के साथ यह इस तर्क को समर्पित थी कि सभी मनुष्य एक समान हैं ।’ ‘आज हम एक बहुत बड़े गृहयुद्ध में फंसे हुए हैं । इस बात का परीक्षण करते हुए कि क्या ऐसी अवधारणा और समर्पण देर तक रहने वाला हो सकता है । हम यहां उस गुहयुद्ध के एक बड़े युद्ध क्षेत्र में इकट्‌ठे हुए हैं ।

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इसके एक भाग को हम उन लोगों के आखिरी विश्राम स्थान के रूप में समर्पित करने आये हैं, जिन्होंने इसलिए अपनी देह त्यागी ताकि राष्ट्र जीवत रहे । ऐसा हम पूरी मर्यादा के साथ करेंगे ।  लेकिन व्यापक अर्थों में हम इस धरती को समर्पित नहीं कर सकते । हम इसका शुद्धिकरण नहीं कर सकते इसे महिमायुक्त नहीं कर सकते ।

जिन जीवित या अब वीरगति को प्राप्त बहादुरों नेऊ यहां संघर्प किया वे इसे इतना पवित्र कर गये हैं कि हमारी साधारण क्षमता उसमें न कुछ बढ़ोतरी कर सकती है, न उसे कम कर सकती है । हम आज यहां जो कुछ कह रहे हैं, विश्व उस पर कम ही ध्यान देगा और उसे ज्यादा दिनों तक स्मरण भी नहीं रखेगा । लेकिन उन्होंने यहां जो कारनामे किये, उन्हें वह सदैव स्मरण रखेगा ।’

‘वास्तव में हम जो जीवित हैं, यह उनका कर्तव्य है कि खुद को उस अधूरे महान् काम के लिए समर्पित करें जिसके लिए इन शहीदों ने अपनी देह त्यागी । उन्होंने खुद को इसके लिए आखिरी रूप से सम्पूर्णत: समर्पित कर दिया था ।

अब हमें पूर्ण संकल्प लेना चाहिए ताकि उनका बलिदान बेकार न जाये ताकि इस राष्ट्र में स्वतन्त्रता का नया सूत्रपात हो ताकि जनता की सरकार जनता द्वारा संचालित सरकार जनता के लिए सरकार इस धरा से नष्ट न हो जाये ।’