Read this article in Hindi to learn about how to produce raw silk.

वैज्ञानिक आधार पर शहतूत बागान विकसित करने तथा रेशम कीट पालन कर कोया की पैदावार को लेने के लिए एक मुश्त कार्य प्रणालियों का अपनाया जाना जरूरी है । इसके लिये शहतूत के पौधों का रोपण करना जरूरी होता है ।

इसके लिए निम्नलिखित कार्य प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं:

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शहतूत की खेती:

शहतूत बामिबक्स मोराई रेशम कीट का एकमात्र खाद्य पौधा है जिसकी पत्तियों को वह खाता है । बेहतर आर्थिक लाभ के लिये विभिन्न कृषि प्रणालियों के प्रति संवेदी ज्यादा उपज वाले शहतूत की किस्मों को लगाकर प्रति यूनिट क्षेत्रफल में पत्तों की गुणवत्ता और मात्रा को बढ़ाना अनिवार्य है ताकि कृषकों के स्तर पर उनका उपयोग रेशम उत्पादन के लिये किया जा सके ।

भूमि की तैयारी:

शहतूत को बलुई दोमट या काली कपास मृदा जिसका पी-एच. मान 6.2 से 7.5 हो, में उगाया जा सकता है । वर्षा ऋतु के शुरू होते ही भूमि की 12 से 15 इंच तक की गहराई तक जोताई की जाती है एवं इसके बाद खेत में 90 से. मी. की दूरी पर 15-20 से.मी. ऊँची मेडे बनाई जाती है ।

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शहतूत की किस्में:

शहतूत की कनवा-2 मांडलें व उदयपुर सलेक्शन किस्में उपयुक्त होती है । असिंचित परिस्थितियों में इनकी पत्तों की उपज 10-12 टन/हैक्टर वार्षिक है जबकि सिंचित परिस्थितियों में इनकी उपज 18-20 टन/हैक्टर/वर्ष तक बढ़ती है ।

पौधशाला:

शहतूत का प्रवर्धन कलमों और पौधों से किया जा सकता है पौधे रोपण के लिए हमेशा कलमों से पौधे तैयार करना बेहतर रहता है । 8×4 वर्ग फीट की रोपण-क्यारियाँ तैयार की जानी चाहिए । सिंचित पद्धति के पौधे रोपण के लिये 3-4 स्वस्थ कलियों वाली 15-18 से.मी. लम्बाई की कलमों को चुना जाता है ।

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पौधे उगाने के लिए अति परिपक्व और कोमल कलमों को नहीं लेना चाहिए । कलमों के ऊपरी भाग को सीधा तथा आधारीय सिरे को तिरछा काटना चाहिए । इन तैयार कलमों को 6”-6” अंतराल पर एक कली को ऊपर रखते हुए रोपना उपयुक्त है ।

जरूरत के मुताबिक इसकी सिंचाई करनी चाहिए तथा खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए तथा आधारीय खुराक के रूप में गोबर की खाद का 15 कि.ग्रा./क्यारी छिड़काव तथा 5-6 सप्ताह बाद जब अच्छी तरह अंकुरण हो जाए तो नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश को 25:25:25 कि.ग्रा./प्रति हैक्टर की दर से देना चाहिये । कीट या किसी बीमारी के लगने पर रोगर या डेमिक्रोन (0.02 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिये ।

प्रतिरोपण करना:

कलमों में लगभग 30 दिनों बाद जड़ आ जाती है तथा पौध (सेप्लिंग) 120 दिनों बाद प्रतिरोपण के लिये तैयार हो जाती है । प्रतिरोपण, गोबर की खाद (आधारीय खुराक) तथा अकार्बनिक-उर्वरकों को मृदा में अच्छी तरह मिलाने के बाद किया जाता है । प्रतिरोपण मानसून की शुरुआत में करना चाहिए ।

झाड़ीनुमा वृक्षारोपण 3×3 फीट के फासले पर किया जाता है । झाड़ीदार वृक्षारोपण के लिये भूमि से 6 इन्च ऊपर कटाव तथा ऊपरी हिस्सा विकसित होने के बाद ऊपर की 3-4 शाखाओं को उगने के लिये छोड देना चाहिए ।

छंटाई:

छंटाई प्रक्रिया को मानसून के प्रारम्भ में और दिसम्बर माह के दौरान वर्ष में दो बार करना चाहिये । प्रतिरोपित पौध (वालवृक्ष) 5-6 महीने बाद डेढ़ मीटर से अधिक ऊँचाई का हो जाता है तथा छंटाई क्रिया को दिसम्बर माह के दौरान 2 फीट ऊँचाई से तथा मानसून के प्रारम्भ में 1 फीट ऊँचाई से काटना चाहिये ।

उर्वरक:

पौधों की समग्र वृद्धि तथा पत्ती उत्पादन के लिये गोबर की खाद तथा रासायनिक उर्वरकों का अनुप्रयोग जरूरी है । वार्षिक खुदाई के समय में गोबर की खाद को 20 टन/है./ वर्ष उपयोग करनी चाहिये ।

रासायनिक उर्वरकों का निम्नलिखित सारणी के अनुसार अनुसरण करना चाहिये:

उर्वरकों का प्रयोग छंटाई करने के बाद करना चाहिये । पोटाश की मात्रा जरूरत के मुताबिक मिट्टी में मिलानी चाहिए ।

सिंचाई:

सिंचाई मृदा के प्रकार, ऋतु तथा अन्य जलवायु दशाओं पर निर्भर है । मानसून काल में उगाये गए पौधों को, जून से सितम्बर तक, पानी की कमी नहीं रहती है । यदि वर्षा कम हो तो सिंचित तरीके के अंतर्गत वर्ष में 6 बार सिंचाई करनी चाहिए ।

सिंचाई जून माह के दौरान (छंटाई के बाद) अकबर-दिसम्बर (छंटाई के बाद) मध्य फरवरी, मध्य अप्रैल, मध्य मई में करनी चाहिए । तथापि अर्धसिंचित दशा में अक्टूबर-दिसम्बर (छंटाई के बाद) तथा फरवरी में कम से कम 3 बार सिंचाई करनी चाहिए ।

पत्ती की उपज:

प्रथम पत्ती उत्पादन 6-8 महीने के बाद शहतूत के पौधों से प्राप्त किया जा सकता है । पत्ती को सूखने से बचाने के लिये इन्हें प्रातः काल या संध्या के समय तोड़ना चाहिए ।

अन्तरा सस्य फसलें:

सामान्यतः शहतूत उत्पादन एक फसल के रूप में किया जाता है लेकिन शहतूत पौधा रोपण स्थापित होने के बाद दो पंक्तियों के बीच उपलब्ध खाली स्थान के उपयोग के लिए का या उड़द को अन्तरा सस्य (बीच की फसल) के रूप में उगाया जा सकता है ।

शहतूत के रोग:

स्थापित शहतूत पौध रोपण को आमतौर पर कवक सम्बन्धी रोग जैसे (पूर्ण चित्ती) तथा चूर्णित आसिता (पाऊडरी मीलड्‌य) प्रभावित करते हैं । इसको नियंत्रित करने के लिए बैवास्टिन (0.2 प्रतिशत) तथा कैराथीन (0.2 प्रतिशत) का 2-3 बार छिड़काव करना चाहिये ।

फसल लेने की पद्धति:

पत्तियों की उपलब्धता को ध्यान में रखने हुए व्यावसायिक कीटपालन के लिए निम्नलिखित ऋतुओं का चयन किया जाता है:

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