Read this article in Hindi to learn about the biting and chewing, piercing and sucking type mouthparts of insects.

1. काटने और चबाने वाले मुखांग (Biting and Chewing Type Mouthparts):

इन्हें प्राथमिक मुखांग भी कहा जाता है । इस प्रकार के मुखांग गण-आर्थेप्टेरा, आइसोप्टेरा व कोलियोप्टेरा के कीटों में पाये जाते हैं । इनके अतिरिक्त ये सभी प्रकार की सूंडियों यथा ग्रब, इल्ली व मैगेट में भी पाये जाते हैं । इस प्रकार के मुखांग वाले कीट पौधे की पत्तियों को काटते हैं या उनमें छिद्र बनाते हैं ।

ये मुखांग निम्नलिखित अंगों से मिलकर बनते हैं:

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(i) लेब्रम (Labrum):

इसे ऊपरी होठ भी कहते हैं । यह एक चौड़ी एवं चपटी पट्टिका के रूप में मुख के सबसे ऊपर रहता है एवं क्लायपिओ-लेबल सीवन के द्वारा क्लायपियस से जुडा होता है । निचले तल पर यह एपिफैरीक्स से जुड़ा होता है इसमें स्वाद ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं । लेब्रम के मध्य में थोड़ा सा कटाव होता है जिससे भोजन को मेन्डिबल्स द्वारा चबाने में मदद मिलती है ।

(ii) मेंडिबल्स (Mandibles):

भोजन को कतरने या काटने के लिये मुखांग में एक जोड़ी मेडिबल्स पाये जाते हैं । ये खण्डहीन, मजबूत, कठोर व त्रिभुजाकार होते हैं जो कि लेब्रम के पीछे की ओर स्थित होते हैं । इनकी अन्दर की सतह पर आरी के समान मजबूत दांत होते हैं जो आपस में चिपक कर भोजन को काटते हैं । इनको चलायमान करने के लिये शक्तिशाली माँसपेशियां होती हैं जिन्हें फैलाने वाली (एबडक्टर) व सिकुड़ने वाली (एडक्टर) मांसपेशियां कहते हैं ।

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(iii) मेक्सिली (Maxillae):

ये भी दो होते हैं ये मेंडिबल के ठीक नीचे पीछे की ओर लगे होते हैं । ये भी भोजन को पकड़कर रखते हैं जिससे भोजन को मेडिबल्स द्वारा आसानी से काटा जा सके । प्रत्येक मेक्सिला 4 खण्डों में विभक्त होती हैं । ये खण्ड कार्डो, स्टाईप्स लैसीनीया व गेलिया कहलाते हैं ।

(iv) लेबियम (Labium):

यह मुखांग का निचला होंठ है ये द्वितीय मैक्सिला भी कहा जाता है । यह भोजन को मुखगुहा तक फेंकने का कार्य करता है । इसका आधार भाग सिर से जुड़ा रहता है एवं सबमेन्टम कहलाता है । इसके बाद मध्यवर्ती खण्ड होता है जो मेन्टम कहलाता है ये छोटा व मोटा होता है । सबसे अग्रवर्ती खण्ड प्रिमेंटम कहलाता है ।

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(v) हायपोफेरिक्स (Hypopharynx):

मुखगुहा के मध्य में जीह्वा के समान संरचना होती है जो हायपोफेरिंक्स कहलाती है । इसके आधार पर लार ग्रन्थियाँ स्थित होती हैं ।

2. चुभाने एवं चूसने वाले मुखांग (Piercing and Sucking Type Mouthparts):

इस प्रकार के मुखांगों में अंगों का रूपान्तरण इस प्रकार से होता है कि कीट अपना भोजन द्रव के रूप में ग्रहण कर सके । इस प्रकार के मुखांग दो रूप में होते हैं प्रथम मत्कुण (बग) प्रकार के तथा द्वितीय मच्छर में पाये जाने वाले ।

(अ) मृत्कुणाकार मुखांग (Bug Type Mouth Parts):

इस तरह के मुखांग मत्कुण में पाये जाते हैं जो कि पौधों की कोशिकाओं में चुभाकर रस चूसने के काम आते हैं ।

इस प्रकार के मुखांगों में निम्नलिखित अंग पाये जाते हैं:

(i) लेब्रम (Labrum):

यह छोटा, संकरा, आगे की ओर नुकीला तथा त्रिभुजाकार होता है । ये अखण्डित होता है । इसका आधारभाग क्लायपियस से जुड़ा होता है तथा अगला भाग लेबियम के आधार को ढके रखता है । ये केवल अवशेष मात्र होता है ।

(ii) मेंडिबल्स (Mandibles):

यह काफी रूपान्तरित होता है एवं लम्बी पतली सूई के आकार के समान होता है । यह सूई अंदर की तरफ दबी व बाहर की ओर उभरी हुई होती है । इसकी नोक पर मुड़े हुए दांत भी पाये जाते हैं जिनकी सहायता से कीट पौधों के ऊतकों को काटता है ।

(iii) मेक्सिली (Maxilla):

यह भी सुई के आकार की होती है तथा कुछ चपटी होती है । इसमें अंदर की तरफ दो खांचे तथा बाहर की तरफ एक उभार होता है । जो मेडिबल की खांच में जुड़ जाता है । इस प्रकार मेडिबल व मैक्सिली की सुइयाँ लम्बवत् सटकर भोजन एवं लार नलिका की रचना करती है । इन दो नलिकाओं में एक से भोजन चूसने का कार्य व दूसरी नलिका से भोजन में लार मिलाने का कार्य किया जाता है ।

(iv) लेबियम (Labium):

ये अंग चोच के समान हो जाता है तथा रोस्ट्रम कहलाता है । ये 3 से 4 खंडीय होता है । रोस्ट्रम सबसे बडा, सख्त व मुख्य मुखांग होता है । इसके आखिरी खण्डों पर रोम पाये जाते हैं ।

(v) हाययोफेरिक्स (Hypopharyx):

यह विशिष्ट रचना होती है । यह छोटा तथा मेक्सिलरी सुई के आधार पर मध्य में स्थित होता है । इसके नीचे सेलिवेरियम स्थित होता है जिसके मध्य में लार नलिका निकलती है । हायपोफेरिंक्स व एपिफेरिक्स मिलकर चूषक पंप की रचना करते हैं जो कि भोजन का शोषण व लार जमा करने का कार्य करती है ।

भोजन विधि:

रोस्ट्रम के सिरे पर स्थित रोमों से भोजन की उचित स्थिति का ज्ञान होते ही भोजन क्रिया दो चरणों में सम्पन्न होती है प्रथम चरण में भेदन किया होती है जिसमें मेडिबुलर सुइयों के दातों द्वारा भोजन को काटा जाता है इसके उपरान्त मेक्सिलरी सुइयाँ अंदर धंसती है ।

अधिक अंदर धसने के लिये लेबियम मुड़ जाता है । इसी के साथ लार नलिका से लार का स्रवण होता है तथा ये भोजन में मिल जाती है । दूसरे चरण में माँसपेशियों के फैलने व सिकुड़ने की क्रिया द्वारा संचालित चूषण पंप सीधा ईसोफेगस में खुलता है जिससे होकर द्रव भोजन क्राप में चला जाता है ।

(ब) मच्छराकार मुखांग (Mosquito Type Mouth Parts):

इस तरह के मुखांग डिप्टेरा गण के कीटों प्रमुखतः मादा मच्छरों में बहुतायात से पाये जाते हैं । इन मुखांगों की सहायता से ये कीट मानव व पशुओं के शरीर से रक्त चूसते हैं ।

इस प्रकार के मुखागों में निम्नलिखित भाग उपस्थित होते हैं:

(i) लेब्रम-एपिफेरिक्स (Labrum Epipharynx):

इस प्रकार के मुखांगों में लेब्रम तथा एपिफेरिक्स आपस में मिलकर एक मजबूत तथा लम्बी भोजन नाल बनाते हैं । इसका सिरा नुकीला होता है एवं काफी मोटी होती है । ये अंग्रेजी के ‘U’ आकार के समान दिखाई देता है । इसी की सहायता से कीट रक्त का चूषण करता है ।

(ii) मेंडिबल्स (Mandibles):

यह अंग लम्बी व पतली सुइयों में बदल जाता है इसे मेंडिबुलर सुई भी कहा जाता है । यह नर मच्छरों में अपेक्षाकृत कमजोर होती है ।

(iii) मेक्सिली (Maxillae):

यह भी सुइयों में परिवर्तित हो जाती हैं तथा मेक्सिलरी सुई कहलाती है यह आकार में पतली एवं कठोर होती हैं । इनके अग्र भागों पर आरी के समान दांत पाये जाते हैं जिनकी सहायता से पोषी जन्तु की त्वचा पर घाव बनाया जाता है ।

(iv) हाययोफेरिक्स (Hypo Pharynx):

यह लम्बाकार पतला और दुधारी तलवार के समान होता है । इसके मध्य में अत्यन्त सूक्ष्म व पतली लार नलिका पायी जाती है । ये भोजन नलिका की रचना करता है ।

(v) लेबियम (Labium):

ये पूर्ण विकसित मोटा एवं लम्बाकार होता है इसके ऊपरी भाग में चारों सुइयाँ व हाइपोफेरिक्स स्थित होते है । इन्हें ऊपर से लेब्रम-एपिफेरिंक्स ढक कर रखता है । इनके आधार पर दोनों ओर तीन खंडीय पेल्प पाये जाते हैं जो लैबेला कहलाते हैं ।

भोजन विधि:

इस प्रकार के मुखांगों में भोजन ग्रहण करते समय लैबियम केवल सहारा देने का कार्य करता है । त्वचा पर घाव बनाने का कार्य मेक्सिलरी सुई द्वारा किया जाता है और मेन्डिबुलर सुइयाँ तथा हाइपोफेरिक्स त्वचा के अन्दर धंस जाते हैं । इनका संचालन मांसपेशियाँ करती हैं तथा लेबियम का कमान की भांति झुकाव इनके अन्दर धंसने में सहायता करता है ।

इसके पश्चात् हाइपोफेरिक्स की लार नलिका भोजन में मिल जाती है एवं रक्त तथा लार के मिश्रण को चूसक पंप की सहायता से लेब्रम-एपिफेरिक्स के मध्य स्थित आहार नलिका द्वारा ईसोफेगस के माध्यम से काँप में पहुँचाया जाता है ।

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