Read this article in Hindi to learn about:- 1. महिलाओं  के विकास का परिचय (Introduction to Development of Women) 2. महिलाओं के विकास को प्रभावित  करने वाले परिवर्तन (Changes that Affects the Development of Women) 3. वर्तमान कार्यक्रम (Current Events).

महिलाओं  के विकास का परिचय (Introduction to Development of Women):

विकास वह दशा है जिसे लोगों के जीवन की परिवर्तन प्रक्रिया में उनके कल्याण का उच्चतर जीवन स्तर आदि उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रयुक्त किया जाता है विकास एक ऐसी बहुआयामी प्रक्रिया है जो प्रजातांत्रिक विकासशील राष्ट्र के लोगों की आशा आकांक्षाओं से संबंध रखती है ।

यदि इसे मानव कल्याण के रूप में उनके पूरे सांस्कृतिक वातावरण से संबद्ध किया जाए तो विकास का अर्थ जन सामान्य हेतु सार्थक हो जाएगा अर्थात विकास का तात्पर्य सदैव समाज के द्वारा उनकी सांस्कृतिक धरोहर व प्रतिमानों व दूसरों की रुचियों को नष्ट किए बिना ही उच्चता की और परिवर्तन से है ।

शोधकर्ताओं का मानना है कि महिला व पुरुष पर विकास के प्रभाव में भिन्नता दिखाई गई है । उनके अध्ययनों से विदित हुआ है कि विकास प्रभावों की डस भिन्नता के कारण समाज व परिवार में महिलाओं का विशिष्टीकरण हुआ है ।

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यह प्रभाव साधनहीन परिवारों तथा जनसंख्या के उन वर्गों में दृष्टिगोचर होता है जहां महिलाएं अभी तक परिवार के लिए आर्थिक क्रियाओं के संपादन के बावजूद भोजन बनाना, सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना आदि से संबंधित कार्यों का संपादन करती हैं । ऐसे में कार्यक्रमों की क्रियान्विति का अर्थ भी केवल परिवार की आय में वृद्धि माना जा सकता है न कि अनिवार्य रूप से महिलाओं की स्थिति में सुधार ।

यद्यपि यह निर्विवाद सत्य है कि महिलाएं उत्पादन प्रक्रिया में अनेक प्रकार से काम लेती हैं । तथापि विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षण व समर्थन सेवाएं प्रदान की जाएं तो उन्हें अधिक उत्पादक बनाया जा सकता है । चूंकि विकास परिवर्तनों का ही पर्याय है ।

अत: किसी क्षेत्र अथवा वर्ग के विकास संबंधी मुद्दे का आकलन करने हेतु परिवर्तन से पूर्व अथवा पश्चात् की सभी सकारात्मक व नकारात्मक परिवर्तनों की स्थितियों का अवलोकन करने हेतु भी उन सभी सकारात्मक एवं नकारात्मक घटकों की ओर दृष्टिपात करना होगा । जिनके कारण नीति-निर्माता, योजक, प्रशासक तथा कार्यकर्ता उनकी संपूर्ण स्थिति को प्रदर्शित करने हेतु निरन्तर प्रयास कर रहे हैं ।

महिलाओं के विकास को प्रभावित  करने वाले परिवर्तन (Changes that Affect the Development of Women):

a. सकारात्मक परिवर्तन (Positive Change):

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महिलाओं की स्थिति व विकास को प्रभावित करने वाले सकारात्मक परिवर्तनों पर नीचे प्रकाश डाला जा सकता है:

1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1980) की क्रियान्विति के कार्यक्रम में महिलाओं की समानता पर बल दिया गया और पहली बार विशेष ध्यान देने हेतु तीन क्षेत्रों का चुना गया:

(अ) लिंगानुसार पक्षपात हटाने हेतु विद्यालय की पुस्तकों का अवलोकन तथा विद्यालय के पाठ्यक्रम में समानता को बढ़ावा देने हेतु विकासशील अभिगम प्रयुक्त किया जाना ।

(ब) अध्यापन में लिंगानुसार समानता का बढ़ावा देने हेतु अध्यापकों का रि-ओरिएन्टेशन ।

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(स) उच्च शिक्षा की अध्यापन गतिविधियों तथा शोध अनुसंधानों में महिलाओं का उत्साहित करना ।

2. भारत सरकार के व्यक्तिगत विभाग द्वारा वरिष्ठ प्रशासकों के लिए संचालित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में महिला सम्बन्धी तत्वों का परिचय देने के रूप में विकास कार्यक्रमों में महिलाओं के मुद्दे को प्रशासन में सुग्राह्म करने की एक कोशिश की गई ।

3. महिलाओं के कार्यक्रमों की योजना निर्माण से लेकर क्रियान्विति व प्रयोग तक की सभी प्रक्रियाओं के सभी स्तरों में महिलाओं को सम्मिलित करने का विशेष प्रयास किया गया है ।

4. जन्म के समय जीवन अवधि की प्रत्याशा 1961-71 में 44.7 प्रतिशत थी जो 1971-81 में 52.9 वर्ष रह गई है । 1986-91 की अवधि में यह 57.1 तक हो गई ।

5. यह मामूली सा परिवर्तन लिंग अनुपात की दृष्टि से भी देखने को मिलता है 1971 में प्रति हजार पुरुषों पर यह अनुपात 930 था 1981 में 934 हो गया था तथा 1991 में यह 929 हो गया ।

6. महिलाओं के कार्यक्रमों में धन कल्याण की अपेक्षा विकास पर बल दिया जाने लगा है । इस परिवर्तन का परिणाम महिला विकास हेतु पृथक् विभाग की स्थापना के रूप में भी देखा जा सकता है ।

7. महिलाओं की विवाह के समय आयु 1971 में 17.2 वर्ष की तुलना में 1981 में 18.3 वर्ष हो गई, इस दृष्टि से प्रथम बार औसत से अधिक लक्ष्य को प्राप्त किया गया ।

8. प्रधानमंत्री के कार्यालय से महिलाओं हेतु 27 लाभदायक योजनाएं प्रारम्भ की गई । यद्यपि इन परियोजनाओं का संचालन विभिन्न मंत्रालयों तथा महिला व बाल-विकास विभाग, मानव संसाधन विभाग आदि द्वारा किया जाता है ।

9. समाज में चेतना तथा व्यवहारगत परिवर्तन लाने हेतु विद्यार्थी व अध्यापकों को स्रोत के रूप में प्रयुक्त करने के उद्देश्य से अनेक विश्वविद्यालयों के संघटक महाविद्यालयों में महिला अध्ययन व विकास केन्द्रों को स्थापित किया गया ।

10. महिलाओं की स्थिति व रुचियों के संरक्षण हेतु कई विधेयक तथा संशोधन तैयार किए गए ।

11. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में महिलाओं के लिए एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति की स्थापना की गई है ।

12. आजादी प्राप्त होने के बाद सर्वप्रथम संसद में निर्वाचित महिलाओं का प्रतिनिधित्व कुल सदस्यों का लगभग 10 प्रतिशत तक हो गया है ।

उपरोक्त सकारात्मक तत्वों के अतिरिक्त कुछ नकारात्मक बदलाव भी देखने को मिलते हैं । जो महिलाओं के विकास को अवरुद्ध करते हैं ।

b. नकारात्मक परिवर्तन (Negative Change):

इसके अंतर्गत जो नकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलते हैं वे निम्न प्रकार हैं:

1. 1981 में उत्पादकता दर में नगण्य मात्रा का अंतर दिखाया गया । एक महिला द्वारा उसके जीवन काल में औसतन 4.6 प्रतिशत बच्चों को जन्म दिया जाता है । इसमें उनका अपूर्ण मातृत्व भी शामिल है । 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएँ मातृत्व धारण काल में एनीमिया से ग्रस्त हो जाती हैं जिससे प्रत्यक्षत: कुल प्रसवकालीन मृत्यु का 15-20 प्रतिशत तक इसी वजह से होती है ।

2. 1981 की संगणना के मद्देनजर 75 प्रतिशत महिलाएं अशिक्षित हैं । इसमें 55.5 प्रतिशत महिलाएँ प्राथमिक स्तर पर तथा 33.3 प्रतिशत उच्चतर शिक्षा के लिए महिलाओं का पंजीकरण 1975 से 1985 की अवधि तक लगभग स्थिरता बरकरार रही है ।

विश्वविद्यालय स्तर तथा तकनीकी व व्यावसायिक प्रशिक्षण, महाविद्यालयों में महिलाओं व पुरुषों के पंजीकरण में काफी अंतर देखने को मिलता है । 1991 में भी महिला साक्षरता दर मात्र 39.42 प्रतिशत ही रहा ।

3. जन्म लेन से पहले ही बच्चे के लिंग का पूर्वानुमान करने, कमी का दुरुपयोग कर जांच में महिला संतान का अनुमान होने पर उसका जन्म ही नहीं होने दिया जाता, जन्म लेने के पूर्व उसे नष्ट कर दिया जाता है ।

4. यद्यपि लिंग अनुपात में सीमान्त रूप से बदलाव की स्थिति है तथापि A.D. के लिए नियोजित अनुपात घटकर मात्र 480 महिलाएं प्रति 500 पुरुष ही रह जाएगा ।

5. पंजीकृत व्यापार संघों का सहयोग सिर्फ 7.5 प्रतिशत महिलाएं तथा लगभग एक प्रतिशत तथा कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं ।

6. सभी भारतीय सेवाओं में वरिष्ठ प्रबंध तथा प्रशासनिक पदों पर 15,993 पुरुषों की तुलना में सिर्फ 994 महिलाएं पदासीन हैं जो कि मात्र पुरुषों की संख्या का 5.8 प्रतिशत है । भारतीय पुलिस सेवाओं में 2418 पुरुषों के मुकाबले मात्र 21 महिला अधिकारी हैं जो कि केवल 0.9 प्रतिशत है । भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में 4209 पुरुषों के मुकाबले उनका केवल 7.5 प्रतिशत अर्थात् 339 महिलाएं पदासीन हैं ।

7. कुछ सर्वेक्षणों से जानकारी प्राप्त हुई है कि 30-35 प्रतिशत तक ग्रामीण गृहस्थियां, पुरुषों के प्रवासन, उनकी उपेक्षा तथा परित्याग के कारण महिलाओं द्वारा संचालित हैं ।

8. महिलाओं द्वारा उनके घर से बाहर के औसत घंटों का अनुमान 6.1 से 7.5 घंटे तक किया गया है । कुछ महिलाओं के लिए यह घंटे 10 अथवा इससे भी अधिक हैं ।

घरेलू कार्य निपटाने के पश्चात् महिलाएं कृषि कार्यों में लगभग 12 घंटे प्रतिदिन तक जुटी रहती हैं । इसके बावजूद भूमि पर उनका अधिकार, उनकी प्रतिष्ठा तथा उत्पादकता स्रोतों में उनका प्रवेश शून्य है ।

9. अध्ययन दर्शाते हैं की आधुनिकीकरण का मशीनीकरण कई क्षेत्रों में महिलाओं के सीमान्तीकरण के बढ़ावा दे रहे हैं । वे या तो कार्य से निकाल दी जाती हैं अथवा इससे संबंधित कार्य नहीं करने दिया जाता है । यह भी संकेत मिलते हैं कि कृषि आधुनिकीकरण औद्योगिक वृद्धि नीतियों में अत्यधिक लिंग विषमताओं की प्रवृत्ति देखने को मिलती है ।

10. 1975 में रोजगार सूचना केन्द्रों में रोजगार चाहने वाली महिलाओं की संख्या 11.2 लाख के लगभग थी जो 1986 में 51 लाख हो गई, 1975 से 1982 तक की अवधि में इस बढ़ोत्तरी के बावजूद परवर्ती वर्षों 1983-86 में महिलाओं की रोजगार के प्रतिशत में काफी गिरावट देखने को मिलती है ।

11. असंगठित क्षेत्रों में लगभग 90 प्रतिशत महिला श्रमिक अपनी सेवा प्रदान कर रही हैं । इसमें 80 प्रतिशत से अधिक महिलाएं कृषि व उससे संबद्ध क्षेत्रों में कार्यरत हैं । संगठित क्षेत्रों में कुल महिला रोजगार का सिर्फ 13.3 प्रतिशत ही लगा हुआ है । सार्वजनिक क्षेत्र में कुल रोजगार का केवल 11 प्रतिशत तथा निजी क्षेत्रों में 17.8 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत हैं ।

12. महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है । 1987 में बलात्कार के 6668 अपराध तथा दहेज की वजह से जलाकर मारने के 1517 अपराध दर्ज किये हैं ।

13. आयु निर्दिष्ट मृत्यु दरें बाल-महिलाओं हेतु अत्यधिक उच्च दरों की ओर संकेत करती है और महिलाओं के लिए 35 वर्ष की आयु का संकेत करती है ।

14. पिछले दशक में चयनित कार्यालयों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में काफी गिरावट देखने को मिलती है अथवा स्थिरता बरकरार है । यह आम चुनावों में उनके मतों में वृद्धि का प्रतिरोध नहीं है ।

भारत में आजादी प्राप्त करने के पश्चात से ही विभिन्न वर्गों व क्षेत्रों को अधिक उत्पादक बनाने, उनके संतुलित एवं शीघ्रतापूर्वक विकास करने के उद्देश्य से पंचवर्षीय योजनाओं का प्रावधान रखा गया जिनकी सफल क्रियान्विति के फलस्वरूप ही आज हमारे देश की गणना विकास के पथ पर तेजी से बढ़ने वाले चंद विकासशील राष्ट्रों में की जाने लगी है ।

इन योजनाओं में विकास से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के सहित एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण व आवश्यक मुद्दे के विषय में भी अप्रत्यक्ष व प्रत्यक्ष रूप से विभिन्न कार्यक्रम तैयार किये गये हैं ।

महिल विकास के वर्तमान कार्यक्रम (Current Events for Development of Women):

वर्तमान में भारत सरकार द्वारा महिलाओं के विकास हेतु 27 से भी अधिक योजनाओं की शुरुआत की गई है, कुछ विशेष रूप से केवल महिलाओं हेतु तथा अन्य महिला व पुरुष दोनों के लिए हैं । ये योजनाएं भारत सरकार के विभिन्न विभागों तथा मंत्रालयों जैसे ग्रामीण विकास, श्रम, शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान व तकनीकी कल्याण महिला व बाल विकास इत्यादि के द्वारा चलाये जाते हैं ।

सातवीं पंचवर्षीय योजना में इन महिला प्रधान योजनाओं पर कुल व्यय राशि का 2.4 प्रतिशत व्यय करने का प्रावधान है जबकि सामान्य योजनाओं में लाभों व उद्देश्यों को मुहैया कराने में किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं किया गया है । जैसे RLEGP, NREP इत्यादि में । 1985 में भारत सरकार ने महिला व बाल विकास हेतु मानव संसाधन विकास मंत्रालय में पृथक् विभाग की स्थापना की गई है ।

यह विभाग केन्द्रीय सामाजिक कल्याण ब्यूरो के कोष से संचालित किया जाता है जिसके द्वारा महिलाओं के लिए कई विकासात्मक व कल्याणात्मक कार्यक्रम संचालित किये जाते हैं । यह विभाग अन्य मंत्रालयों तथा विभागों का भी भार वहन करता है ।

इनमें से अधिकांश कार्यक्रमों यथा महिला विकास निगम प्रशिक्षण व रोजगार हेतु समर्थन (STEP), महिलाओं के लिए प्रशिक्षण जनित उत्पादन केन्द्र, ग्रामीण व निर्धन महिलाओं के लिए चेतना-निर्माण शिविर, संकट काल में महिलाओं के पुनर्वासन हेतु महिला प्रशिक्षण केन्द्र तथा संस्थाएँ, महिलाओं व बालिकाओं हेतु अल्पकालीन आवास, स्वैच्छिक कार्य ब्यूरो, परिवार परामर्श केन्द्र, मुफ्त वैधानिक सहायता व वैधानिक प्रशिक्षण तथा कामकाजी महिलाओं हेतु आवास आदि विषयों पर छठी व सातवीं योजना की अवधि में विचार-विमर्श किया गया ।

महिला व बाल विकास के अंतर्गत जिन महिला प्रधान कार्यक्रमों का क्रियान्वयन को शामिल किया गया ।

वे हैं:

1. एक सिद्ध आधार पर प्रशिक्षण तथा रोजगार के रूप में समाज के कमजोर वर्गों से महिलाओं का आर्थिक पुनर्वासन ।

2. राष्ट्रीय विकास की मुख्य धारा में महिलाओं को लाने हेतु बेहतर रोजगार के प्रयास ।

3. क्रूरता व शोषण की शिकार महिलाओं व बालकों हेतु पुनर्वासन की व्यवस्था तथा उसके रोकथाम के उपाय ।

4. कृषि लघु पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय, मछली-पालन, हैण्डलूम, हस्तकला, खादी व ग्रामोद्योग तथा रेशम उद्योग में महिलाओं की भूमिका व रोजगार में बदलाव व दृढ़ता ।

5. महिलाओं व बालिकाओं को नैतिक खतरों से सुरक्षित रखने के लिए उन्हें विभिन्न सुविधाओं, यथा- परामर्श स्वास्थ्य सुविधा, आत्मिक पथ-प्रदर्शन, उपचार व सुविधाएं तथा दक्षताओं के विकास सहित अल्पकालीन आवास व्यवस्था ।

इन अनेक कार्यक्रमों द्वारा शीघ्रतापूर्वक से लक्ष्यों की पूर्ति हेतु निम्नलिखित पाँच प्रकार की सेवाएं प्रदान की जाती हैं:

(क) समर्थन सेवाएं,

(ख) रोजगार व आयजनित सेवाएं,

(ग) शिक्षण व प्रशिक्षण सेवाएं,

(घ) वैधानिक समर्थन सेवाएं,

(ङ) सामान्य चेतना जागृति की सेवाएं ।