तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा ।  Speech of Subhas Chandra Bose on “Give Me Your Blood, I will Give You Freedom” in Hindi Language!

दोस्तो ! 12 माह पूर्व भारतीयों के समक्ष पूर्वी एशिया में ‘सम्पूर्ण सैन्य संगठन’ या  ‘अधिकतम बलिदान’ का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया था । मैं आज आपको पिछले वर्ष की हमारी उपलब्धियों का ब्योरा दूंगा तथा आने वाले वर्ष की हमारी मांगें आपके समक्ष रहुंगा ।

परन्तु ऐसा करने से पूर्व मैं आपको एक बार फिर यह अनुभव कराना चाहता हूं कि हमारे पास स्वतन्त्रता प्राप्त करने का कितना सुनहरा मौका है । अंग्रेज एक विश्वव्यापी संघर्ष में उलझे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्होंने कई मोर्चों पर शिकस्त खायी है ।

इस प्रकार शत्रु के बहुत कमजोर हो जाने से स्वतन्त्रता के लिए हमारी लड़ाई उससे बहुत आसान हो गयी है, जितनी वह पांच साल पहले थी । इस प्रकार का अनूठा और ईश्वर-प्रदत्त मौका सौ सालों में एक बार आता है । इसीलिए अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश दासता से मुक्त करने के लिए हमने इस मौके का पूरा फायदा उठाने की कसम खायी है ।

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हमारे संघर्ष की कामयाबी के लिए मैं इतनी ज्यादा आशा रखने वाला हू क्योंकि मैं केवल पूर्व एशिया के 30 लाख भारतीयों के प्रयासों पर निर्भर नहीं हूं । भारत के अन्दर एक विशाल आन्दोलन चल रहा है तथा हमारे असंख्य देशवासी स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए अधिक दु:ख सहने और बलिदान देने के लिए तत्पर हैं ।

दुर्भाग्यवश सन् 1857 के महान् संघर्ष के पश्चात् से हमारे देशवासियों के पास हथियार नहीं हैं, जबकि दुश्मन हथियारों से लदा हुआ है । आज के इस आधुनिक युग में बिना हथियारों वाले लोगों के लिए हथियारों और एक आधुनिक सेना के बिना स्वतन्त्रता प्राप्त करना असम्भव है ।

भगवान् की कृपादृष्टि और उदार नियम की मदद से पूर्वी एशिया के भारतीयों के लिए यह सम्भाव हो गया है कि एक आधुनिक सेना के निर्माण के लिए हथियार प्राप्त कर सकें । इसके अलावा स्वतन्त्रता प्राप्त करने के प्रयासों में पूर्वी एशिया के भारतीय एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा धार्मिक और अन्य भिन्नताओं का-जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने भारत के भीतर हवा देने का प्रयास किया-यहां पूर्वी एशिया में नामोनिशान तक नहीं है ।

इसी के परिणामस्वरूप आज हालातों का ऐसा आदर्श संयोजन हमारे पास है, जो हमारे संघर्ष की सफलता के पक्ष में है: अब आवश्यकता केवल इस बात की है कि अपनी स्वतन्त्रता का मूल्य चुकाने के लिए भारतीय खुद आगे आयें । मैंने ‘सम्पूर्ण सैन्य संगठन’ के कार्यक्रम के अनुसार आपसे जवानों धन और सामग्री की माग की थी ।

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जहां तक जवानों का सम्बन्ध है, मुझे आपको बताने में हर्ष का अनुभव हो रहा है कि हमें पर्याप्त संख्या में रंगरूट मिल गये हैं । हमारे पास पूर्वी एशिया के प्रत्येक कोने से रगरूट आये हैं: जापान, चीन, फिलीपींस, इण्डोचीन, जावा, बोर्नियो, सेलेबस, सुमात्रा, मलाया, थाईलैण्ड और बर्मा से ।

आपको और ज्यादा उमंग एवं क्षमता के साथ जवानों धन तथा सामग्री का इन्तजाम करते रहना चाहिए, विशेषतौर से आपूर्ति और यातायात की कठिनाइयों का सन्तोषजनक समाधान होना चाहिए । हमें आजाद किये गये क्षेत्रों के प्रशासन और दोबारा निर्माण के लिए सभी श्रेणियों के पुरुषों और महिलाओं की आवश्यकता होगी ।

हमें उस स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें शत्रु किसी विशेष क्षेत्र से पीछे हटने से पहले निर्दयता से  ‘घर-फूंक-नीति’ अपनायेगा तथा नागरिक आबादी को अपने शहर या गांव खाली करने के लिए विवश करेगा जैसा उन्होंने बर्मा में किया था । सबसे बड़ी कठिनाई युद्धस्थल में जवानों और सामग्री की कुमुक पहुंचाने की है ।

यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम मोर्चों पर अपनी जीत को जारी रखने की उम्मीद नहीं कर सकते न ही हम भारत के अन्दरूनी भागों तक पहुंचने में सफल हो सकते हैं । आपमें से उन लोगों को जिन्हें स्वतन्त्रता के पश्चात् देश के लिए कार्य करना जारी रखना है, यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वी एशिया विशेष रूप से बर्मा हमारे स्वतन्त्रता संग्राम का आधार है ।

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यदि यह आधार दृढ़ नहीं है, तो हमारी लड़ाकू सेनाएं कभी नहीं जीत पायेंगी । स्मरण रखिये कि यह एक ‘सम्पूर्ण युद्ध’ है, केवल दो सेनाओं के मध्य युद्ध नहीं है ।  इसीलिए पिछले पूरे एक साल से मैंने पूर्व में ‘सम्पूर्ण सैन्य संगठन’ पर इतना जोर दिया मेरे यह कहने के पीछे कि आप घरेलू मोर्चे पर और ज्यादा ध्यान दें एक और भी कारण है ।

आने वाले माह में मैं और मन्त्रिमण्डल की युद्ध समिति के मेरे सहयोगी युद्ध के मोर्चे पर और भारत के भीतर क्रान्ति लाने के लिए भी अपना सारा ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं । इसीलिए हम इस बात को पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आधार पर हमारा कार्य हमारी गैरहाजरी में भी सुचारु रूप से और र्निविप्न चलता रहे ।

साथियो ! एक साल पहले जब मैंने आपके समक्ष कुछ मांगें रखी थीं तब मैंने कहा था कि यदि आप मुझे ‘सम्पूर्ण सैन्य संगठन’ दें तो मैं आपको एक ‘दूसरा मोर्चा’ दूँगा । मैंने अपना यह वादा पूरा किया है । हमारे अभियान का प्रथम चरण पूर्ण हो गया है ।

हमारी विजयी सेनाओं ने निप्योनीज सेनाओं के साथ मिलाकर शत्रु को पीछे धकेल दिया है और अब वे हमारी प्रिय मातृभूमि की पवित्र धरती पर बहादुरी से लड़ रही है । अब जो कार्य हमारे समक्ष हैं,  उन्हें पूरा करने के लिए तैयार हो जायें । मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री का इन्तजाम करने के लिए कहा था । मुझे वे सब भरपूर मात्रा में मिल गये हैं । अब मैं आपसे कुछ और चाहता हूँ ।

जवान धन और सामग्री अपने आप जीत या स्वतन्त्रता नहीं दिला सकते । हमारे पास ऐसी प्रेरक शक्ति होनी चाहिए जो हमें वीर व नायकोंचित कार्यों के लिए प्रेरित करे । केवल इस कारण से कि अब जीत हमारी पहुच में दिखायी देती है, आपका यह सोचना कि आप जीते-जी भारत की आजादी देख पायेंगे आपके लिए एक घातक गलती होगी ।

यहां उपस्थित लोगों में से किसी के मन में आजादी के मृदु फलों का मजा लेने की इच्छा नहीं होनी चाहिए । एक लम्बी लड़ाई अब भी हमारे सामने है । आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत मरने की इच्छा जिससे आजादी का मार्ग शहीदों के खून से बनाया जा सके । साथियो, आजादी के युद्ध में मेरे साथियो ! आज मैं आपसे एक ही वस्तु मांगता हूं, मैं  खून दो और मैं तुमसे आजादी का वादा करता हूं ।