विलियम लियोन फिलिप्स का भाषण पुस्तकें महानतम सन्साधन हैं । Speech of William Leon Phillips on “Books are the Greatest Resources” in Hindi Language!

अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक, चिन्तक, आलोचक विलियम लेयान येल कलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे । महान् पुस्तक-प्रेमी लेयान के निजी संग्रह में 6,000 से ज्यादा किताबें थीं । सन् 1933 में 6 अप्रैल को उन्होंने किताबों के महत्व पर यह भाषण दिया था :

किताबें पढ़ने की आदत मनुष्य के महानतम सन्साधनों में से एक है । हम कहीं से ली गयी किताब की बजाय अपनी किताब को पढ़ने में ज्यादा आनन्द लेते हैं । उधार ली हुई किताब घर में आये मेहमान की भांति होती है ।  उसका इस्तेमाल बहुत सावधानी और औपचारिकता के साथ किया जाता है । आपको ध्यान रखना पड़ता है कि वह खराब न हो ।

जब तक वह आपकी छत के नीचे है, उसे किसी प्रकार की हानि न पहुंचे ।  आप उसके साथ लापरवाही नहीं बरत सकते । आप उसमें कोई निशान नहीं लगा सकते उनके पेजों को मोड़ नहीं सकते । आप उसका उपयोग पूरी स्वतन्त्रता के साथ नहीं कर सकते । फिर किसी रोज यद्यपि ऐसा कभी-कभी किया जाता है, आपको सचमुच उसे वापस करना पड़ता है ।

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लेकिन आपकी अपनी किताबें आपकी सम्पत्ति होती हैं । आप उनके साथ घनिष्ठता वाला स्नेहिल व्यवहार करते हैं, जिसमें कोई औपचारिकता नहीं होती । किताबें उपयोग के लिए होती हैं, प्रदर्शन के लिए नहीं । आपको ऐसी कोई किताब नहीं लेनी चाहिए जिसमें निशान लगाने से आप डरते हों या उसे खुली स्थिति में टेबल पर उलटी रखने से डरते हों ।

किताबों में मनपसन्द भागों को निशान लगाने का एक अच्छा कारण यह है कि ये भाग आपको विख्यात कथनों को याद रखने और बाद में उनको देखने में सहायक बाद के सालों में ये उसी प्रकार होते हैं जैसे आप किसी वन में दोबारा जायें जहां मार्ग की पहचान छोड़ आये हों । आप पुरानी भूमि पर फिर से जाने का मजा लेते हैं ।

आपको उस बौद्धिक दृश्यावली और अपने पुराने व्यक्ति को दोबारा से स्मरण करने का आनन्द मिलता है । युवावस्था में ही प्रत्येक को अपनी निजी लाइब्रेरी बनानी शुरू कर देनी चाहिए । मनुष्य में निजी सम्पत्ति संजोने की जो प्रवृत्ति है, उसे इस प्रकार सब तरह के फायदे और किसी तरह की बुराई के बिना परितुष्ट किया जा सकता है ।

आपके पास अपनी किताबों की अलमारी होनी चाहिए । इसमें कोई दरवाजे शीशे चाबियां नहीं होनी चाहिए ताकि आपकी आखों और हाथों की पहुंच उन तक आसान रहे । सबसे अच्छी भित्ति-सज्जा किताबों से होती है । उनके रंगों में दीवार पर चिपकाने वाले पेपर की अपे क्षा कहीं ज्यादा भिन्नताएं होती हैं । उनके डिजाइन ज्यादा लुभावने होते हैं ।

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उनका मुख्य फायदा उनका भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व है । जब आप अकेले अपने कक्ष में अंगीठी के पास बैठे हों तो आप घनिष्ठ दोस्तों से घिरे होते हैं । यह जानकारी कि वे आपकी आखों के सामने है, आपको तरोताजा कर देती है और प्रेरणा भी देती है । उग्रवश्यक नहीं कि आप उन सभी को पढ़ें । मेरा घर के भीतर अधिकांश समय 6,000 किताबों से भरे कमरे में व्यतीत होता है ।

अनजाने लोग मुझसे जो सवाल अवश्य पूछते हैं वह है क्या आपने ये सभी किताबें पड़ी है ? हमेशा की तरह मेरा जवाब होता है, ‘इनमें से कुछ, दो बार ।’ यह जवाब सच और अप्रत्याशित है । इसमें सन्देह नहीं कि जीते-जागते श्वास लेते मनुष्य स्त्री या पुरुषों जैसे और कोई दोस्त नहीं होते । मेरी पढ़ने की लगन ने मुझे कभी एकान्तवासी नहीं बनाया ।

ऐसा होता भी कैसे ? किताबें लोगों की होती हैं लोगों द्वारा होती हैं, लोगों के लिए होती हैं । साहित्य इतिहास का विशिष्ट अंश है । यह व्यक्तित्व का सर्वश्रेष्ठ और स्थायी भाग है । पुस्तक-मित्र सजीव दोस्तों से इस दृष्टि से ज्यादा उपयोगी हैं ।  आप संसार के सबसे अधिक आभिजात्य समाज के सान्निध्य का आनन्द जब चाहें, ले सकते हैं ।

किसी निजी लाइब्रेरी में आप कभी भी सुकरात, शेक्सपीयर, कार्लाइल, ड्‌यूमास, डिकन शॉ या बेरी से बातचीत कर सकते है ।  इसमें सन्देह नहीं कि इन किताबों में आपको इन महान् व्यक्तियों के व्यक्तित्व का सर्वश्रेष्ठ भाग मिलेगा । उन्होंने आपके लिए साहित्य की रचना की । उन्होंने अपना दिल खोलकर रख दिया ।

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उन्होंने आपका मनोरंजन करने का भरपूर प्रयास किया आप पर अनुकूल प्रभाव डालने का प्रयास किया । आप उनके लिए उतने ही जरूरी हैं, जितने किसी अभिनेता के लिए दर्शक । आप उसे केवल मुखौटे में नहीं देखते । आप दिल से दिल मिलाकर उसके अन्तरतम में झांकते हैं ।

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